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साहित्य का उद्देश्य/38

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साहित्य का उद्देश्य
प्रेमचंद

पृष्ठ २८४ से – २८५ तक

 
साहित्य में ऊंचे विचार की आवश्यकता
 

रूस में हाल में साहित्यकारों में एक बड़े मजे की बहस छिड़ी थी। विषय था-साहित्य का उद्देश्य क्या है? लोग अपनी अपनी गा रहे थे। कोई कहता था-साहित्य सत्य की खोज का नाम है। कोई साहित्य को सुन्दर की खोज कहता था। कोई कहता था-वह जीवन की आलोचना है। कोई उसे जीवन का चित्रण मात्र बतलाता था। आखिर जब यह झगड़ा न तय हुआ तो सलाह हुई कि किसी गंवार से पूछा जाय कि वह साहित्य को क्या समझता है। आखिर यह जत्था मजदूर की खोज में निकला। दूर न जाना पड़ा। चन्द ही कदम पर एक मजदूर कन्धे पर फावड़ा रखे, पसीने में तर आता हुआ दिखाई दिया। एक साहित्य महारथी ने उससे पूछा-क्यों भाई तुम साहित्य किस लिए पढ़ते हो? मजदूर ने उन विद्वज्जनों की ओर विस्मय दृष्टि से देखा। ऐसी मोटी-सी बात भी इन लोगों को नहीं मालूम। देखने में तो सभी पढ़े-लिखे से लगते हैं। समझा, शायद यह लोग उसका मजाक उड़ा रहे हैं। बिना कुछ जवाब दिये आगे बढ़ा। तुरन्त फिर वही प्रश्न हुआ-क्यों भाई, तुम साहित्य किस लिए पढ़ते हो?

मजदूर ने अबकी कुछ जवाब देना आवश्यक समझा। कहीं यह लोग उसकी परीक्षा न ले रहे हो। तैयार छात्र की भाँति तत्परता से बोला-जीवन की सच्ची विधि जानने के लिए। इस उत्तर ने विवाद को समाप्त कर दिया। साहित्य का उद्देश्य जीवन के आदर्श को उपस्थित करना है, जिसे पढ़कर हम जीवन मे क़दम-क़दम पर आने वाली कठिनाइयो का सामना कर सके। अगर साहित्य से जीवन का सही रास्ता न मिले, तो ऐसे साहित्य से लाभ ही क्या । जीवन की आलोचना कीजिए चाहे चित्र खींचिए आर्ट के लिए लिखिए चाहे ईश्वर के लिए, मनोरहस्य दिखाइए चाहे विश्वव्यापी सत्य की तलाश कीजिए-अगर उससे हमे जीवन का अच्छा मार्ग नहीं मिलता, तो उस रचना से हमारा कोई फायदा नही । साहित्य न चित्रए का नाम है, न अच्छे शब्दो को चुनकर सजा देने का, अलंकारो से वाणी को शोभायमान बना देने का । ऊँचे और पवित्र विचार ही साहित्य की जान है।

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