साहित्य सीकर/१५—संपादकों के लिए स्कूल

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१५-सम्पादकों के लिए स्कूल

कुछ दिन हुये अखबारों में यह चर्चा हुई थी कि अमेरिका में सम्पादकों के लिये स्कूल खुलने वाला है। इस स्कूल का बनना शुरू हो गया और, इस वर्ष इसकी इमारत भी पूरी हो जायगी। आशा है कि स्कूल इसी वर्ष जारी भी हो जाय। अमेरिका के न्यूयार्क प्रान्त में कोलंबिया नामक एक विश्वविद्यालय है। वही इस स्कूल को खोल रहा है। जैसे, कानून, डाक्टरी, इञ्जीनियरी और कला-कौशल आदि के अलग-अलग स्कूल और कालेज हैं; और अलग-अलग होकर भी किसी विश्वविद्यालय से सम्बन्ध रखते हैं, वैसे ही सम्पादकीय विद्या सिखलाने का यह रकूल भी कोलंबिया के विश्व-विद्यालय से सम्बन्ध रखेगा। संसार में इस प्रकार का पहला स्कूल होगा।

और कोई देश ऐसा नहीं जिसमें अमेरिका के बराबर अखबार निकलते हो। मासिक और साप्ताहिक अखबारों को जाने दीजिये, केवल दैनिक अखबार वहाँ से २,००० से भी अधिक निकलते हैं इतने दैनिक अखबार दुनिया में कहीं नहीं निकलते। जहाँ अखबारों का इतना आधिक्य है वहाँ अखबारनसीबी का स्कूल खोलने की यदि जरूरत पड़े तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। अमेरिका में जैसे और व्यवसाय—रोजगार हैं—वैसे ही अखबार लिखना भी एक व्यवसाय है जो लोग इस व्यवसाय को करना चाहेंगे वे इस स्कूल में दो वर्ष तक रहकर सम्पादकीय विद्या सीखेंगे। जो लोग इस समय सम्पादकता कर [ १११ ]भी रहे हैं हुये भी इस स्कूल में, कुछ काल तक रहकर, संपादन-कला में कुशलता प्राप्त कर सकेंगे। इस स्कूल के लिये बीस लाख डालर धन एकत्र किया गया है; और पचास हजार डालर लगाकर इसकी इमारत बन रही है। हारवर्ड विश्वविद्यालय के सभापति, इलियट साहब, से पूछा गया था कि इस स्कूल में कौन-कौन विषय सिखाये जायँ। इलियट साहब ने विषयों की नामावली इस प्रकार दी हैं—

प्रबन्ध-विषय—दफ़्तर की स्थिति-स्थापकता; प्रकाशक के कर्तव्य; अखबार का प्रचार; विज्ञापन-विभाग; सम्पादकीय और सम्वाददाताओं का विभाग; स्थानीय बाहरी और विदेशी समाचार-विभाग; साहित्य और समालोचना-विभाग; राज-कर-विभाग; खेल कूद और शारीरिक व्यायाम-विभाग। इन सब विभागों के विषय में अच्छी तरह से शिक्षा दी जायगी और प्रत्येक विषय की छोटी से भी छोटी बातों पर व्याख्यान होंगे।

कला-कौशल (कारीगरी) विषय—छापना, स्याही, कागज, इल्यक्ट्रो टाइपिंग, स्टीरियो टाइपिंग, अक्षर-योजना, अक्षर ढालना, चित्रों की नकल उतारना, जिल्द बाँधना, कागज काटना और सीना इत्यादि।

कानून-विषय—स्वत्व-रक्षण-(कापी-राइट)-विधि; दीवानी और फौजदारी मान-हानि-विधि; राजद्रोह-विषयक विधि, न्यायालय के कार्यों का समालोचना-सम्बन्धी कर्तव्य, सम्पादक, प्रकाशक, लेखक, और संवाददाताओं की जिम्मेदारी का विधान। संपादकीय कर्तव्याकर्तव्य अथवा नीतिविद्या। सम्पादकों की सर्वसाधारण के सम्बन्ध रखने वाली जिम्मेदारी का ज्ञान। समाचारों को प्रकाशित करने में समाचार पत्रों के सम्पादक और स्वामी के मत-प्रदर्शक की सीमा। मत प्रकट करने में सम्पादक, प्रकाशक और सम्वाददाताओं का परस्पर सम्बन्ध।

अखबारों का इतिहास। अखबारों की स्वतन्त्रता इत्यादि। [ ११२ ]फुटकर बातें—सर्वसम्मत से स्वीकार किये विराम-चिह्न, वर्ण-विचार, संक्षेप-चिन्ह, शोधन-विधि आदि। पैराग्राफ और सम्पादकीय लेख लिखना, इतिहास, भूगोल, राज-कर, राज्य-स्थिति, देश-व्यवस्था, गार्हस्थ्य-विधान और अर्थशास्त्र आदि के सिद्धान्तों के अनुसार प्रस्तुत विषयों का विचार करना।

इलियट साहब का मत है कि सम्पादक के लिए इन सब बातों का जानना बहुत जरूरी है। सत्य की खोज में जो लोग रहते हैं उनकी भी अपेक्षा सम्पादकों के लिए अधिक शिक्षा दरकार है। आजकल के सम्पादकों में सबसे बड़ी न्यूनता यह पाई जाती है कि वे सत्य काे जानने में बहुधा हत-सफल होते हैं, उनमें इतनी योग्यता ही नहीं होती कि वे यथार्थ बात जान सकें। इतिहास के तत्व और दूसरे शास्त्रों के भूल सिद्धान्तों का भली भाँति न जानने के कारण सम्पादक लोग कभी-कभी बहुत बड़ी गलतियाँ कर बैठते हैं।

सम्पादकों के लिए एक और भी गुण दरकार होता है। वह है लेखन कौशल। इसका भी होना बहुत आवश्यक है। इसके बिना अखबारों का आदर नहीं हो सकता। यह कौशल स्वाभाविक भी होता है और सीखने से आ सकता है। जिनमें लेखन-कला स्वभाव-सिद्ध नहीं उनको शिक्षण से तादृश लाभ नहीं होता। परन्तु स्वभाव-सिद्ध लेखकों को शिक्षण मिलने से उनकी लेखन-शक्ति और भी तीव्र हो जाती है।

इलियट साहब ने संपादक के लिये जिन-जिन विषयों का ज्ञान आवश्यक बतलाया है उनका विचार करके, हम हिन्दी के समाचार-पत्र और मासिक पुस्तकों के सम्पादकों की, अपनी योग्यता का अनुमान करने में बहुत बड़ी विषमता दृग्गोचर होती है। अमेरिका के समान सभ्य और शिक्षित देश में जब सम्पादकों को उनका व्यवसाय सिखलाने की जरूरत है तब अशिक्षित देशों की क्या कथा? इस दशा में, बेचारा भारतवर्ष किस गिनती में है?

[जनवरी, १९०४