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पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/२६

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१२ अनासक्तियोग शस्त्रपाणयः। उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दन । नरकेऽनियतं वासो भवतीत्यनुशुश्रुम ।।४४॥ हे जनार्दन ! कुलधर्मका नाश हुए मनुष्यका नरकमें अवश्य वास होता है, ऐसा हम लोग सुनते आये हैं। ४४ अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम् । यद्राज्यसुखलोभेन हन्तु स्वजनमुद्यताः ॥४५॥ अहो, कैसे दुःखकी बात है कि हमलोग महापाप करनेको तुल गये हैं, अर्थात राज्य-सुखके लोभसे स्वजन- को मारनेको तैयार हो गये है। ४५ यदि मामप्रतीकारमशस्त्र धार्तराष्ट्रा रणे हन्युस्तन्मे क्षेमतरं भवेत् ॥४६।। निःशस्त्र और सामना न करनेवाले मुझको यदि धृतराष्ट्रके शस्त्रधारी पुत्र रणमें मार डाले तो वह मेरे लिए बहुत कल्याणकारक होगा। ४६ संजय उवाच एवमुक्त्वार्जुनः संख्ये रथोपस्थ उपाविशत् । विसृज्य सशर चाप शोकसंविग्नमानसः ।।४७।। संजयने कहा- ऐसा कहकर रणमें शोकसे व्यग्रचित्त हुआ अर्जुन धनुषबाण डालकर रथके पिछले भागमें बैठ गया। ४७