अंतर्राष्ट्रीय ज्ञानकोश/अखिल इस्लामवाद

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अन्तर्राष्ट्रीय ज्ञानकोश  (1943) 
द्वारा रामनारायण यादवेंदु

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अखिल इस्लामवाद—इस आन्दोलन का यह लक्ष्य है कि राजनीतिक दृष्टि से इस्लाम के समस्त अनुयायी मिलकर अपना एक संघ या साम्राज्य स्थापित करें। संसार मे मुसलमानो की कुल संख्या ३०,००,००,००० है। इस्लामी बंधुत्व मुस्लिम मत का एक आधारभूत सिद्धान्त है और ख़लीफा की विगत संस्था यह सिद्ध करती है कि राजनीतिक दृष्टि से समस्त मुसलमान एक प्रमुख के अधीन रहे हो। आधुनिक अर्थ मे अखिल इस्लामवाद का प्रादुर्भाव १८वीं शताब्दी में हुआ। तुर्की मे सुल्तान अब्दुर् रशीद द्वितीय के नेतृत्व मे यह आन्दोलन शुरु किया गया। परन्तु यह प्रयत्न विफल रहा। सन् १९११ मे अखिल इस्लामवादी कांग्रेस भी विफल रही। सन् १९१४-१८ के विश्वयुद्ध मे ख़िलाफ़त की स्थिति दुर्बल सिद्ध हुई। तुर्किस्तान के सुल्तान की जिहाद (धर्म-युद्ध) की घोषणा का मित्रराष्ट्रो पर कोई प्रभाव न पड़ा, और मुसलिम अरबो तथा भारतिय मुसलमानो ने इस्लामी तुर्कों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। जब मुस्तफा कमाल पाशा ने सुल्तान और खिलाफत संस्था का खा़त्मा कर दिया और तुर्किस्तान मे 'अधार्मिक नीति' के अनुसार राज्य-प्रबंध तथा शासन होने लगा, तब अरबो मे अखिल इस्लामवाद के प्रति अधिक अनुराग बढ़ गया। विगत विश्व-युद्ध के पूर्व तुर्किस्तान प्रमुख इस्लामी राज्य था। वह अखिल इस्लामवाद का भी केन्द्र था। इसलिए ख़िलाफत के पुनरुद्धार के लिए प्रयत्न किया जाने लगा। सन् १९२६ मे काहिरा मे खिलाफत कांग्रेस और मक्का मे अखिल मुस्लिम कांग्रेस हुई। परन्तु कोई व्यवहारिक निश्चय न होसका। ख़लीफा के पद के लिए कई नाम लिए जाने लागे। बादशाह
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इव्न सउद और मुफ़्ती आज़म (Grand Mufti) के नाम भी पेश किए गए। परन्तु सत्य तो यह है कि आदिकालीन ख़लीफ़ो के समय से आज तक कोई संयुक्त पान-इस्लामी साम्राज्य नही रहा, और आज भी जातीय, भौगोलिक तथा आर्थिक मतभेद अखिल-इस्लामी साम्राज्य की स्थापना में बाधक है। परन्तु अब इस्लामी जनता के स्वातंत्र्य-युद्ध में अखिल इस्लामवाद को एक आध्यात्मिक अस्त्र की तरह काम में लाया जा रहा हे। सन् १९३८ में मिस्र और शाम (सीरिया) में जो मुस्लिम सम्मेलन हुए उनका फिलिस्तीन की समस्या पर, अरबो के पक्ष में, अच्छा प्रभाव पड़ा। सन् १९३४ में सादावाद के समझौते के अनुसार यह निश्चय हुआ कि तुर्की, ईरान, ईराक़ और अफ़ग़ानिस्तान में परस्पर राजनीतिक सहकारिता स्थापित की जायेगी। उसी प्रकार सऊदी अरब की मिस्र और ईराक़ के साथ जो सधियाॅ हुई है, उनमें "इस्लामी सद्भावना" का उल्लेख किया गया है।