अंतर्राष्ट्रीय ज्ञानकोश/कृपालानी, आचार्य जे० वी०
कृपालानी, आचार्य जे० वी०--गान्धीवादी काग्रेसी नेता। अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी के प्रधान मत्री। जब गान्धीजी ने चम्पारन (बिहार) में नील की बड़ी-बडी खेतियॉ करनेवाले यूरोपियन (‘निलहे गोरो') द्वारा मज़दूरो पर किये जानेवाले अत्याचारो के विरोध में, सन् १९१७ मे, आन्दोलन किया, तब कृपालानीजी बिहार के एक कालिज में अध्यापक थे। वह तभी गान्धीजी के सम्पर्क में आये और उन्होने सत्याग्रह सिद्धान्त का अध्ययन किया। उन्होने भारतीय जनता की मनोवृत्ति का भी अध्ययन किया। चम्पारन के मजदूरो की स्थिति की जॉच करनेवाली कमिटी में भी उन्होने भाग लिया। इसके बाद प० मदनमोहन मालवीय से इनकी भेट हुई और एक वर्ष तक उनके प्राइवेट सैक्रेटरी रहे। सन् १९१८ मे देहली में जब कांग्रेस का अधिवेशन हुया तब यह माननीय मालवीयजी के मत्री थे। इस कारण देहली में इन्हे देश के नेताओं से परिचय प्राप्त करने का अच्छा अवसर प्राप्त हुआ।
सन् १९१९ में इन्हे काशी हिन्दू-विश्वविद्यालय में राजनीति का प्रोफेसर नियुक्त किया गया। जब सन् १९२२ मे अहमदाबाद में गान्धीजी के आदेश से राष्ट्रीय शिक्षा-सस्था, गुजरात विद्यापीठ, की स्थापना की गई तब श्री कृपालानी प्रोफेसरी छोड़कर विद्यापीठ में चले गये। वहाँ पाँच वर्ष तक रहे। पीछे आप अखिल-भारतीय चरखा संघ में सम्मिलित होगये और संयुक्त-प्रान्तीय-शाखा-चरखा-सघ के केन्द्र, गान्धी आश्रम, मेरठ मे, आ गये और तब से बराबर वहाँ के प्रधान कार्यकर्ता हैं। इसके साथ ही, पीछे आप काँग्रेस के सैक्रेटरियट-स्वराज्य -भवन,प्रयाग--में आगये और प्रधान मंत्री (जनरल सैक्रेटरी) के पद पर काम करने लगे। बीच के कुछ वर्षों को छोडकर, वे कांग्रेस के बराबर प्रधान मंत्री है। आचार्य कृपालानी स्पष्ट-वक्ता तथा
कुशल लेखक है। वह अपने भाषण मे हास्य-रस का सुन्दर पुट देते हैं और कभी-कभी अपने श्रोताओं को मुग्ध कर देते है। आप वर्षो गान्धीजी के निकट सम्पर्क मे रहे है और उनके सिद्धान्तो और विचारो का गम्भीर अध्ययन किया है। अपने जीवन के दीर्घकाल तक अविवाहित रहने के उपरान्त, काफ़ी बड़ी उम्र मे, अभी कुछ वर्ष पूर्व, आपने विवाहित-जीवन मे प्रवेश किया है। कालिज और राष्ट्रीय विद्यापीठ मे अध्यापन-कार्य किया, इसलिये आप आचार्य कहलाये। आपने गान्धीवाद पर कई पुस्तके लिखी है।