अंतर्राष्ट्रीय ज्ञानकोश/चेकोस्लोवाकिया

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[ ११९ ] चैकोस्लोवाकिया--यह देश गत महायुद्ध के बाद आस्ट्रिया के पूर्वाधिकृत

प्रान्तों बोहेमिया, मोराविया, साइलेशिया और हंगरी के पूर्वाधिकृत स्लोवाकिया [ १२० ]
और रूस के लघु कारपेथियन प्रान्तों को मिलाकर बनाया गया था। इनका क्षेत्रफल १९३८ ई० मे ५२,००० वर्गमील और जनसख्या १,५०,००,००० थी। यह प्रजातत्र राज्य था। इसमे कई अल्प-सख्यक जातियॉ है,परन्तु चैक जाति बहुमत मे थी। उनकी सख्या ७०,००,००० है। स्लोवाक ३०,००,००० से भी कम हैं। चैक यह कहते थे कि चैक और स्लोवाक मिलकर एक राष्ट्र बन जाय। परन्तु स्लोवाक इसके विरुद्ध थे। वह पृथक् राष्ट्र बनाना चाहते थे। मोराविया और बोहेमिया के सीमान्त प्रदेशो(सूडेटनलैण्ड)मे ३२,५०,००० जर्मन रहते थे जो और भी अधिक अधिकार चाहते थे। इनके अतिरिक्त ७,००,००० हगेरियन और ५,५०,००० रूथानियन या यूक्रेनियन थे। इन अल्पसंख्यक जातियो को यद्यपि राजनीतिक और क़ानूनी समान अधिकार प्राप्त थे, तथापि गैर-चैक प्रजा के साथ भेदभाव का बर्ताव किया जाता था,और इसीकी इन सब अल्पसख्यकों को शिकायत थी। जब सन् १९३३ मे हिटलर ने जर्मनी का शासन-भार ग्रहण किया, तब सूडेटनलैण्ड मे जर्मनो ने आन्दोलन शुरू किया। इनका नेता हेनलीन था। सूडेटन जर्मनो ने यह मॉग पेश की कि उन्हे चैकोस्लोवाकिया ने स्वराज्य दे दिया जाय। ब्रिटिश मध्यत्थ संसीमैन के प्रभाव से चैकोस्लोवाकिया की सरकार ने सूडेटन जर्मनों को स्वराज्य दे दिया।परन्तु फिर भी हैनलीन तथा हिटलर ने यह मॉग पेश की कि सूडेटन ज़िलो को जर्मनी मे मिलाने की बात को चैक स्विकार करे। सूडेटनलैण्ड मे घोर सघर्ष और उपद्रव मचा। परन्तु ग्रेटब्रिटेन, फ्रान्स और रूस ने, जिन्होने चैकोस्लोवाकिया की रक्षा के लिए वचन दिया था, और जो उनकी सहायता पर निर्भर था, उसका परित्याग कर दिया। तब म्युनिख मे समझौता हुआ और चैकोस्लोवाकिया को सूडेटनलैण्ड जर्मनी को दे देने के लिये वाध्य किया गया। म्युनिख समझौते के बाद हगरी और पोलैण्ड ने भी मॉगे पेश की और अपने-अपने प्रदेशो को वापस ले लिया। इस प्रकार चैकोस्लोवाकिया का अग-भंग हुआ। राष्ट्रपति वेनेश ने त्यागपत्र दे दिया।किसानवादियो के एक दल ने शासन-सत्ता अपने हाथ मे ले ली। चैक, स्लोवाक तथा रूथानियन सरकारो ने मिलकर एक संघ-राज्य स्थापित किया। अब जर्मनी ने यह आग्रह किया कि, संघ-राज्य नात्सी निती को अपनावे और उसने १० मार्च
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१९३९ को स्लोवाको को उत्तेजित किया और विद्रोह कराया। उन्होने पूर्ण स्वतंत्रता की मॉग पेश की। हिटलर को यह अच्छा बहाना मिल गया, उसने कहा कि यह विद्रोह जर्मनी की शान्ति के लिये एक ख़तरा है। अतः १५ मार्च १९३९ को जर्मन फ़ौजो ने चैकोस्लोवाकिया में प्रवेश किया। इसका कोई विरोध या प्रतिरोध नही किया गया। चैकोस्लोवाकिया के

राष्ट्रपति हाशा तथा अन्य मंत्रियों से ज़बरदस्ती एक दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर कराये गये, जिसके अनुसार चैकोस्लोवाकिया के शेष भाग बोहेमिया, मोराविया और चैक प्रान्तो को, जर्मन-संरक्षण मे, जर्मनी में मिला लिया गया। स्लोवाक को भी इसी प्रकार का संरक्षित ‘स्वतत्र' राज्य बना दिया गया। चैक सेना को निःशस्त्र कर दिया गया। चैक प्रजा के इस बलिदान ने संसार की ऑखे खोल दी और नात्सीवाद का भयंकर रूप प्रकट होगया। डा० बेनेश लन्दन चले गये। वहाँ जाकर उन्होने चैकोस्लोवाकियन राष्ट्रीय समिति बनाई है, जिसे मित्र-राष्ट्रों ने स्वीकार कर लिया है और उसे चैक प्रजा की प्रतिनिधि मानते हैं। यह समिति देश की स्वतन्त्रता के लिये प्रयत्नशील है।