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अणिमा/१२. अज्ञता

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अणिमा
सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'
अज्ञता

लखनऊ: चौधरी राजेन्द्रशंकर, युग-मन्दिर, उन्नाव, पृष्ठ २१

 
 

अज्ञता

मन के तिनके के
नहीं जले अब तक भी जिनके,
देखा नहीं उन्होंने अब तक कोना-कोना
अपने जीवन का, दुनिया की चाँदी, सोना,
लाल, जवाहर, द्वीरे, मोती
छिपे हुए हैं अब तक उनसे, अब तक सोती
जगती भी आकाङ्क्षा उनकी,
अब तक धुन की
नहीं उठी लौ,
उनके आसमान की अब तक नहीं फटी पौ,
नहीं दिखा
उनके जीवन की पुस्तक में है कहाँ क्या लिखा;
मिले तार
उनके औरों से नहीं, नहीं बजती बहार।