सामग्री पर जाएँ

अद्भुत आलाप/११—पशुओं में बोलने की शक्ति

विकिस्रोत से
अद्भुत आलाप
महावीर प्रसाद द्विवेदी

लखनऊ: गंगा ग्रंथागार, पृष्ठ १०१ से – १०७ तक

 
११--पशुओं में बोलने की शक्ति

अब तक लोगों का यही खयाल था कि पशु मनुष्यों की भाषा नहीं बोल सकते। परन्तु योरप और अमेरिका के प्राणि-तत्त्व- वेत्ताओं ने अपने अनुभवों द्वारा इस विचार को असत्य सिद्ध कर दिया है। उन्होंने दिखला दिया है कि शिक्षा पाने पर पशु मनुष्यों की बोली थोड़ी-बहुत बोल सकते हैं। प्राणि-विद्या के जिन पंडितों ने इस विषय की विशेष आलोचना की है, उनमें अध्यापक वेल, वूसलर, किनेमैन, कार्नेस तथा गार्नर मुख्य हैं। इनमें से केवल प्रथम दो प्राणि-विद्या-विशारदों के अनुभवों का संक्षिप्त वृत्तांत हम सुनाते हैं। पहले वेल साहब के अनुभवों का सारांश सुनिए---

अध्यापक वेल के पिता चिकित्सक थे। वह तोतलेपन का बहुत अच्छा इलाज करते थे। अतएव सैकड़ों तोतले अपनी चिकित्सा कराने के लिये उनके पास आया करते थे। उन्हीं तोतलों का मुँह देखते-देखते एक बार अध्यापक खेल के मन में यह बात आई कि क्या कुत्तों के मुँह से भी मानवीय शब्द कहलाए जा सकते हैं। इस बात की परीक्षा करने के लिये उन्होंने एक कुत्ता पाला, और उसके मुँह से शब्द कहलवाने की कोशिश करने लगे। कुछ दिनों तक परिश्रम करने के बाद वह कुत्ता अँगरेजी का 'मामा'(Mamma=मा)-शब्द उच्चारण करने लगा। कुछ दिनों बाद वह 'ग्रांड मामा' (Grand Mamma=दादी)

भी कहने लगा। यह देखकर लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ, और यह आशा हुई कि वह सिखलाए जाने पर और शब्द भी बोल सकेगा। अतएव पूर्वोक्त अध्यापक महाशय ने उसे 'हाउ आर यू ग्रांड मामा' ( How are you Grand Mamma=दादी, कैसी तबियत है? ) यह वाक्य सिखाना प्रारंभ किया। कुछ दिनों में वह कुत्ता यह वाक्य भी अस्पष्ट रूप से उच्चारण करने लगा। यह देखकर वेल साहब तथा उनके पड़ोसियों के हर्ष और विस्मय की सीमा न रही।

अध्यापक वेल को पशुशाला में अन्य पशुओं के साथ बहुत-से बंदर, कुत्ते तथा तोते भी हैं। इन्हें वह बहुत प्यार करते हैं। कारण यह कि ये प्राणी मानव-भाषा के कोई-कोई शब्द अच्छी तरह बोल सकते हैं। इनमें से कोई ऐसे भी हैं, जो कुछ वर्ण लिख सकते हैं। पीटर नाम का एक बंदर है। कहते हैं, वह अँगरेजी-वर्ण-माला साफ-साफ लिख सकता है। वेल साहब के तोते भी मनुष्य की बोली बोलने में निपुण हैं। परंतु आपका मत है कि अन्य पशु-पक्षियों की अपेक्षा बंदर और कुत्ते मानवीय भाषा बोलना अधिक अच्छी तरह और अधिक जल्दी सीख सकते हैं। यहाँ तक कि आप शब्दोच्चारण के लिये कुत्तों के कंठ की गठन-प्रणाली को मानव-कंठ की गठन-प्रणाली से अधिक उपयोगी बतलाते हैं।

अब तक जो हमने लिखा, उससे यह प्रकट है कि यदि परिश्रम-पूर्वक शिक्षा दी जाय, तो बंदर और कुत्ते मानव-भाषा

के कुछ शब्द बोल सकते हैं। परंतु हाल ही में, जर्मनी में, एक ऐसे अद्भुत कुत्ते का पता लगा है, जो विशेष शिक्षा पाए बिना ही मनुष्यों की तरह कुछ शब्दों द्वारा बातचीत कर सकता है। उसकी भाव व्यंजक भाषा केवल तोता-रटंत नहीं, किंतु स्वाभाविक मानसिक विकास का फल है। इस विचित्र कुत्ते ने वैज्ञानिक संसार में हलचल-सी डाल दी है। इसका नाम डान है।

डान ने शैशवावस्था में ही अपनी असाधारण बुद्धिमत्ता का परिचय दिया था। उसके शैशवकाल की बहुत-सी आश्चर्यजनक बातें प्रसिद्ध हैं। कहते हैं, उसको कभी किसी प्रकार की शिक्षा नहीं दी गई। उसमें अन्य गुणों की तरह भाषा का आप-ही-आप विकास हुआ। वह जब चाहता है, तब खुद ही बातचीत करने लगता है, और जप नहीं चाहता, तब हजार कोशिश करने पर भी नहीं बोलता।

जिस समय वह छ महीने का था, उसी समय उसने अर्थयुक्त शब्दों का उच्चारण करके लोगों को आश्चर्य में डाल दिया था। एक बार वह अपने स्वामी की मेज़ के सामने आकर खड़ा हुआ, और उनकी ओर इस प्रकार देखने लगा, मानो कुछ चाहता हो। मालिक ने पूछा---"क्या तुम कुछ चाहते हो?" उसने स्पष्ट रूप से अपने देश की जर्मन-भाषा में उत्तर दिया--"हाँ, चाहता हूँ।" इस अद्भुत कांड को देखकर मालिक के आश्चर्य की सीमा न रही। उस दिन से वह उसे विशेष आराम से रखने लगे।
पर या दुर्दिन के समय वह बातचीत करना नहीं चाहता। उस समय केवल चुपचाप पड़े रहना ही उसे अच्छा लगता है। यह अक्सर देखा गया है कि अधिक बातचीत करने से वह थक जाता है। कारण यह कि भाषा मानसिक व्यापार है, और पशुओं में मानसिक शक्ति कम है। इसलिये थोड़ा-सा भी मानसिक परिश्रम करने से वह थक जाता है।

डान शिकारी जाति का कुत्ता है। वह बड़ा ही सुदर है। उसकी आँखें प्रतिभा-व्यंजक है। सच पूछिए, तो उसकी आँखों से मानवीय भाव साफ-साफ झलकता है, और उसको गति तथा आचरण इस बात को अच्छी तरह प्रकट करते हैं कि वह मनुष्यों और कुत्तों का मध्यवर्ती जीव है।

डॉक्टर बूसलर के व्याख्यान का यही सरांश है। व्याख्यान के अंत में डॉक्टर साहब ने अपनी कही हुई बातों को प्रमाणित करने के लिये सब लोगों को डान के दर्शन कराए, और भरी सभा में उसकी परीक्षा ली। पहले उससे पूछा गया कि तुम्हारा नाम क्या है? उसने फौरन ही गभीर स्वर से उत्तर दिया--"डान।" इसके बाद परिष्कृत जर्मन-भाषा में डॉक्टर बूसलर और डान के बीच निम्न-लिलित प्रश्नोत्तर हुए---

बूसलर--"तुम्हें कैसा जान पड़ता है?"

डान--"भूख लगी है।"

बूसलर--"क्या तुम कुछ खाना चाहते हो?"

डान--"हाँ, चाहता हूँ।" रोटी का एक टुकड़ा दिखाकर बूसलर साहब ने पूछा---"यह क्या है?"

उसने तुरंत ही उत्तर दिया---"रोटी।"

तत्पश्चात् उससे और भी बहुत-से प्रश्न किए गए, जिनका उसने ठीक-ठीक उत्तर दिया।

डान यों तो कितने ही शब्द बोल सकता है, परंतु जितने शब्दों का वह ठीक-ठीक और बहुधा प्रयोग करता है, उनकी संख्या नौ है। इससे यह न समझना चाहिए कि केवल इतने ही शब्द उसने रट लिए हैं, और उन्हीं को दोहराता है। डान इन शब्दों का शुद्ध उच्चारण करना तथा इन्हें यथास्थान रखकर वाक्य बनाना और उन्हें उचित अवसर पर आवश्यकतानुसार प्रकट करना भी जानता है। वह मनुष्यों की तरह बड़ी खूबी से अपने मनोगत भाव प्रकाशित करता तथा प्रश्नों का उत्तर बड़ी सफ़ाई से देता है। फिर डान की शब्द-संख्या को भी कम न समझना चाहिए; क्योंकि जब हम यह देखते हैं कि आस्ट्रेलिया के मूल निवासियों की शब्द-संख्या केवल डेढ़ सौ है, तथा सभ्य देशों में रहनेवाले लोग भी प्रायः दो सौ से अधिक शब्द अपने रोजाना बोल-चाल में इस्तेमाल नहीं करते, तब हमें यह जान पड़ता है कि वास्तव में कुत्ते के रूप में डान मनुष्य ही है।

मार्च, १९१३