अद्भुत आलाप
गंगा-पुस्तकमाला का पैंतीसवाँ पुष्प
अद्भुत आलाप
(आश्चर्य-जनक एवं कौतूहल-वर्द्धक निबंधों का संग्रह)
लेखक
स्वर्गीय महावीरप्रसाद द्विवेदी
मिलने का पता—
गंगा-ग्रंथागार
३६, लाटूश रोड
लखनऊ
श्रीदुलारेलाल
अध्यक्ष गंगा-पुस्तकमाला-कार्यालय
मुद्रक
श्रीदुलारेलाल
अध्यक्ष गंगा-फ़ाइनआर्ट-प्रेस
लखनऊ
इस संग्रह में २१ लेख हैं। कुछ पुराने हैं, कुछ थोड़े ही समय पूर्व के लिखे हुए हैं। जो पुराने हैं, वे पुराने होकर भी पुराने नहीं। एक तो भूली हुई पुरानी बात भी सुनने पर नई मालूम होती है। दूसरे, इस पुस्तक में जिन विषयों या बातों का उल्लेख है, उनमें से अधिकांश पुरानी हो ही नहीं सकतीं। जिन विषयों का समावेश इसमें है, वे प्रायः सभी आश्चर्य-जनक, अतएव कौतूहल-वर्द्धक हैं। इस कारण, और कामों से छुट्टी मिलने पर, मनोरंजन की इच्छा रखनेवाले पुस्तक-प्रेमी इसके पाठ से अपने समय का सद्व्यय कर सकते हैं; और संभव है, इससे उन्हें कुछ नई बातें भी मालूम हो जायँ। इसका लेख नंबर ७ पंडित मधुमंगल मिश्र का लिखा हुआ है।
८ ऑक्टोबर, १९२४ | महावीरप्रसाद द्विवेदी |
(द्वितीय आवृत्ति पर)
सी॰ पी॰ के हाईस्कूलों के कोर्स में पूज्यपाद द्विवेदीजी की इस सुंदर रचना को रख देने के लिये हम वहाँ की टेक्स्ट-बुक-कमेटी को धन्यवाद देते हैं, और अन्यान्य प्रांतों की टेक्स्ट-बुक-कमेटियों और अन्यान्य शिक्षा-संस्थानों से प्रार्थना करते हैं कि वे भी इसे मिडिल या इंट्रेंस के लिये मनोनीत करें।
१७ । ७ । ३१ | दुलारेलाल |
(तृतीय आवृत्ति पर)
हर्ष की बात है, हमारे द्वितीय संस्करण के निवेदन के अनुसार यू॰ पी॰ की टेक्स्ट-बुक-कमेटी ने इस पुस्तक को अँगरेज़ी स्कूलों की आठवीं कक्षा के लिये मनोनीत किया है। क्या अन्य प्रांतों की टेक्स्ट-बुक-कमेटियाँ, हिंदी-साहित्य सम्मेलन, दक्षिण भारतीय हिंदी-प्रचार-सभा और भिन्न-भिन्न प्रांतों के गुरुकुल आदि भी ऐसा ही करने की कृपा करेंगे? मनोरंजक होने के अतिरिक्त हिंदी के सर्वश्रेष्ठ गद्य-लेखक, आचार्य द्विवेदीजी महाराज की ललित लेखनी द्वारा लिखी हुई होने के कारण यह पुस्तक बालकों को हिंदी-भाषा सिखलाने के लिये अद्वितीय सिद्ध हुई है।
१ । ७ । ३४ | दुलारेलाल |
(चतुर्थ आवृत्ति पर)
पूज्यपाद द्विवेदीजी की इस आदर्श पुस्तक का यू॰ पी॰ के स्कूलों के हेडमास्टरों तथा हिंदी-अध्यापकों ने समुचित आदर करके हमको इसका नवीन संस्करण एक ही वर्ष में निकालने का अवसर दिया है।
विद्यार्थियों में इसका और अधिक प्रचार करने के विचार से हमने इसका मूल्य भी १) से ।।।) कर दिया है। आशा है, कोई भी स्कूल इस वर्ष इसकी पढ़ाई से वंचित न रह जायगा।
कवि-कुटीर | दुलारेलाल |
१ । ६ । ३५ |
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