अद्भुत आलाप/१२—विद्वान् घोड़े
अमेरिका के एक ऐसे कुत्ते का हाल पाठक सुन चुके हैं, जो मनुष्य की बोली बोल सकता है। अब विद्वान् घोड़ों का भी वृत्तांत सुन लीजिए। यह वृत्तांत भी अमेरिका के प्रसिद्ध पत्र 'साईटिफ़िक् अमेरिकन' में प्रकाशित हुआ है। इसे सहस्र-रजनी चरित्र की कहानी या ग़प न समझिए। इन बातों की परीक्षा पंडितों ने की है, और इनके सच होने का सार्टिफ़िकेट भी दिया है। जिन लोगों ने इन बातों की सचाई में संदेह किया था, और इन घोड़ों का समझ और गणित-शक्ति की बात को इनके मालिकों की चालाकी बताई थी, उनकी आलोचनाओं का खंडन अनेक पंडितों ने अच्छी तरह किया है।
किसी नए वैज्ञानिक तत्त्व का पता लगने पर पता लगानेवाले का कर्तव्य है कि उस विषय से संबंध रखनेवाली सारी बातें वह लिख ले। इसके बाद वह तत्संबंधी सिद्धांत ढ़ूँढ़ निकालने की चेष्टा करे। यही व्यापक नियम है। पर जब कोई अलौकिक और अद्भुत बातें ज्ञात होती हैं, तब पहले यही देखना पड़ता है कि वे बातें सच भी हैं या नहीं; क्योंकि पहले तो उन पर लोगों का विश्वास ही नहीं होता। अतएव पहले उनकी सचाई पर दृढ़ प्रमाण देना पड़ता है। सिद्धांत पीछे से निकाले जाते हैं। यह, घोड़ों की विद्वत्ता-संबंधी विषय, भी अलौकिक अतएव अविश्वसनीय-सा है। इसलिये पहले उसका संक्षिप्त वृत्तांत लिखकर उसकी सचाई का प्रमाण दिया जायगा। सिद्धांत पीछे से निकलते रहेंगे।
जर्मनी में एक महाशय रहते हैं। उनका नाम है हर वॉन आस्टिन। उन्होंने एक घोड़ा पाला और उसका नाम रक्खा हंस। इस बात को कई वर्ष हुए। उन्होंने उसे अन्यान्य बातों के सिवा जोड़, बाक़ी, गुणा आदि के प्रश्न हल करना भी सिखाया। इस प्रकार उन्होंने यह सिद्ध किया कि हंस में सोचने, समझने और याद रखने की शक्तियाँ विद्यमान हैं। इस घोड़े के गणित-ज्ञान की परीक्षा डॉक्टर फस्ट नाम के एक विद्वान् ने की। पर उसकी राय में इस घोड़े के संबंध की सारी बातें आस्टिन की चालाकी का कारण मालूम हुईं। अतएव उसने अपनी जाँच का फल बड़े ही प्रतिकूल शब्दों में प्रकाशित किया। आस्टिन ने हर अंक के लिये अपने घोड़े की टाप के ठोंकों की संख्या नियत कर दी थी।
उदाहरणार्थ—१ के लिये एक ठोंका, २ के लिये दो, ३ के लिये तीन। इसी तरह और भी समझिए। जब उस घोड़े के सामने बोर्ड पर जोड़ने, घटाने या गुणा करने के लिये कुछ संख्याएँ लिख दी जाती, तब वह पूछे गए प्रश्न का उत्तर अपनी टापों के ठोंकों से देता। इस पर डॉक्टर फस्ट ने आस्टिन पर यह इलजाम लगाया कि ज्यों ही घोड़ा उत्तर-सूचक अंकों को बतानेवाले ठोंकों को अंतिम संख्या पर पहुँचता है, त्यों ही आस्टिन साहब कुछ इशारा कर देते हैं। उस इशारे को पाते ही घोड़ा वहीं रुक जाता है, और ठोंके नहीं लगाता। अतएव उसकी टापों के ठोंकों की संख्या से सही जवाब निकल आता है। यदि मालिक इशारा न करे, तो घोड़ा कभी सही जवाब न दे सके। इस पर अखबारों में बहुत दिन तक वाद-विवाद होता रहा। कितनों ही ने यह सब आस्टिन साहब की बाजीगरी बताई। कितनों ही ने कहा कि यदि आस्टिन साहब के इशारों से भी हंस वे सब काम करता हो, जिनके किए जाने की घोषणा की गई है, तो यह साबित होता है कि और घोड़ों की अपेक्षा वह अधिक बुद्धिमान् है, और उसमें सोचने, समझने, अर्थात् विचार करने की भी शक्ति है।
जर्मनी में एक जगह एलबरफ़ेल्ड है। यहाँ क्राल नाम के एक धनी रहते हैं। वह बहुत बड़े व्यापारी हैं। विज्ञान से भी आपको प्रेम है। जब उन्होंने हंस की बुद्धिमत्ता की बातें अखबारों में पढ़ीं, तब उन्होंने इस घोड़े को प्रत्यक्ष देखना चाहा। वह आस्टिन के अस्तबल में गए। हंस को उन्होंने देखा, और बड़ी कड़ी परीक्षाएँ लीं। उन्होंने ऐसा प्रबंध किया कि आस्टिन के लिये इशारा देना असंभव हो गया। तिस पर भी हंस ने उनके दिए हुए जोड़, बाक़ी और गुणा आदि के प्रश्नों के सही-सही उत्तर दिए। इस पर काल को विश्वास हो गया कि यह घोड़ा अवश्य ही अलौकिक बुद्धिमान है। उन्होंने कहा कि जिन विज्ञान-शास्त्रियों ने इस घोड़े की बुद्धिमानी क्या, विद्वत्ता में शंका की है, उनकी शंका को मैं निर्मूल सिद्ध करने की चेष्टा करूँगा। यह कहकर वह अपने घर लौट आए।
घर आकर काल ने दो अरबी घोड़े खरीदे। एक का नाम उन्होंने मुहम्मद रक्खा, दूसरे का ज़रिफ़। यह बात १९०८ की है। इसी सन् के नवंबर की दूसरी तारीख़ को उन्होंने इन घोड़ों को सिखाना शुरू किया। शिक्षा का ढंग उन्होंने प्रायः वही रक्खा, जो आस्टिन का था। बहुत ही थोड़ा फेर-फार करके उस प्रणाली को कुछ और सरल अवश्य कर दिया। उन्होंने भी आस्टिन ही की तरह प्रत्येक अंक के लिये घोड़ों के खुरों के ठोंकों की संख्या नियत कर दी। इकाई के अंकों के लिये वह दाहिने पैर के खुर से और दहाई के अंकों के लिए बाएँ से काम लेने लगे। तीन ही दिन में, बोर्ड पर लिखे गए, १,२,३,—ये तीन अंक—घोड़े सीख गए, और उन अंकों पर मुँह रखकर पूछे गए अंक भी वे बताने लगे। दस दिन बाद मुहम्मद ४ तक गिनने लगा। इसके बाद क्राल ने उन दोनो को इकाई और दहाई का भेद सिखाया। तब वे अपने दाहने बाएँ पैरों के खुरों से उनको बताने लगे। १२ दिन बाद मुहम्मद जोड़ और चाकी लगाने लगा। उसे ऐसे सवाल दिए जाने लगे—
१+३, २+५ इत्यादि
५—३, ४—२ इत्यादि
१८ नवंबर को क्राल साहब ने गुणा और भाग सिखाया, और २१ को कसर और कसरवाले अंकों का जोड़ आदि। दिसंबर में मुहम्मद ने कुछ शब्द जर्मन और कुछ फ्रेंच-भाषाओं के सीख लिए, और इन भाषाओं में किए गए प्रश्नों को वह समझ भी लेने लगा। १९०९ के मई महीने में मुहम्मद वर्ग-मूल और धन-मूल भी सीख गया, और गणित के कठिन-से कठिन प्रश्नों का उत्तर देने लगा। गणित-ज्ञान में उसने मनुष्य का भी मात कर दिया।
इसके बाद उन घोड़ों को पढ़ना और 'स्पेलिंग्' करना सिखाया जाने लगा। रोमन-वर्णमाला के प्रत्येक अक्षर के लिये ११ और ६६ के बीच का कोई अंक निश्चित किया गया। चार ही महीने की शिक्षा से ज़रिफ़, चाहे जो शब्द उसके सामने उच्चारण किया जाय, उसके स्पेलिंग् कर लेने लगा—फिर चाहे वह शब्द कभी उसने बोर्ड पर लिखा देखा हो, चाहे न देखा हो। कल्पना कीजिए, उसके सामने पेपर ( Paper )-शब्द बोला गया। बोलते ही वह P-A-P-E-R कह देगा। अर्थात् इन पाँचों वर्णों के लिये जो अंक निश्चित होंगे, उन्हें वह अपने पैरों के ठोंकों से बना देगा। जर्मन या फ्रेंच-भाषा में उन-उन भाषाओं के शब्द-विशेषों में जो वर्ण होंगे, उनकी वह कम परवा करेगा। परवा वह सिर्फ़ उच्चारण की ध्वनि की करेगा। अर्थात् ध्वनि से जो स्वर या व्यंजन व्यक्त होंगे, उन्हीं को वह अपनी टापों से बतावेगा। इससे यह भी सिद्ध हुआ कि जर्मन, फ्रेंच और अँगरेज़ी आदि भाषाओं की शब्द-लिपि अस्वाभाविक है। इस बात को मनुष्य ही नहीं, घोड़े तक समझते हैं। इसी से वे ध्वनि के अनुसार, जैसा कि देवनागरी-लिपि में होता है, उनकी वर्ण-कल्पना करते हैं। अस्तु।
मुहम्मद एक दफ़े बीमार हो गया। उसकी पिछली टाँग में चोट आ गई। वह लँगड़ाने लगा। पशु-चिकित्सक डॉक्टर मिटमैन बुलाए गए। उन्होंने उसे देखा, और दवा बताकर चले गए। इसके बाद डॉक्टर डेकर उन घोड़ों को देखने आए। उन्हें क्राल साहब ज़रिफ़ के पास ले गए। जाकर वह उससे बोले—डॉक्टर मिटमैन की तरह यह भी चिकित्सक हैं। इनका नाम है डेकर। परंतु यह मनुष्य की चिकित्सा करते हैं, पशुओं की नहीं। आध घंटे तक ज़रिफ़ का इम्तहान—जोड़, बाक़ी, गुणा, भाग, वर्गमूल, घन-मूल तथा वर्ण-निदेश या स्पेलिंग् में—हुआ। सबमें वह पास हो गया। इम्तहान हो चुकने पर क्राल ने उससे पूछा—क्या तुम्हें इनका नाम अब तक याद है? ज़रिफ़ ने अपने पैरों के ठोंकों से उत्तर दिया—D.G.R याद रखिए, Dekker के सही-सही उच्चारण करने से प्रायः उन्हीं तीन वर्णों की ध्वनि मुँह से निकलती है। ज़रिफ़ वर्णों के बीच का स्वर भूल गया था। पर याद दिलाने पर उसने अपनी भूल सुधार दी।
आस्टिन के साथ वैज्ञानिकों ने कैसा सुलूक किया था—उसे किस तरह झूठा ठहराया था—यह बात काल साहब अच्छी तरह जानते थे। अतएव उन्होंने अपने घोड़ों की शिक्षा का समाचार अख़बारों में न प्रकाशित किया। कुछ ही विश्वसनीय विद्वानों और मित्रों को उनकी परीक्षा लेने दी। तीन साल बाद, उन्होंने, इस विषय पर, एक पुस्तक लिखकर प्रकाशित की। फल यह हुआ कि जर्मनी के विद्वानों और विज्ञान वेत्ताओं में हलचल मच गई। उनके दो दल हो गए। एक अनुकूल पक्ष, दूसरा प्रतिकूल। उन दोनो ने अपने-अपने पक्ष की हाँकने में आकाश पाताल एक कर दिया था। पशु-शास्त्र, मानस-शास्त्र, प्राणि-विज्ञान आदि के पंडितों की समझ में यह बात आती ही नहीं कि घोड़े भी सिखलाने से इतने विद्वान हो सकते हैं।
अगस्त, १९१३