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अद्भुत आलाप/१६—मंगल ग्रह तक तार

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लखनऊ: गंगा ग्रंथागार, पृष्ठ १२७ से – १३० तक

 
१६––मंगल ग्रह तक तार

पृथ्वी के पुत्र का नाम मंगल है। वह पृथ्वी ही से उत्पन्न है। कहते हैं, पृथ्वी और मंगल का पिंड पहले एक ही था। किसी कारण से वह पृथ्वी से टूटकर अलग हो गया और एक नया ग्रह बन गया। छोटा होने के कारण जल्दी ही वह प्राणियों के रहने योग्य हो गया। पृथ्वी पर प्राणियों की बस्ती होने के पहले ही मंगल में हुई होगी, और वहाँ के मनुष्य यहाँवालों की अपेक्षा अधिक सभ्य, समझदार और शिक्षित होंगे। विज्ञानियों का अनुमान ऐसा ही है।

इटली के मारकोनी साहब का नाम पाठकों ने सुना होगा। उन्होंने बेतार की तारबर्क़ी निकाली है। अब उसका प्रचार इस देश में भी हो गया है। उन्होंने प्रतिज्ञा की है कि हमारी बेतार की तारबर्क़ी किसी समय पृथ्वी से मंगल तक बराबर जारी हो जायगी! इसे हँसी न समझिए। मारकोनी साहब सचमुच ही इस बात का दावा करते हैं कि मंगल तक उनका तार कभी-न-कभी ज़रूर लग जायगा। ईथर-नामक पदार्थ, जो हवा से भी पतला है, सारे विश्व में व्याप्त है। उसी की करामात से बेतार की तारबर्क़ी चलती है। हज़ारों कोस दूर देशों में, समुद्र पार करके, इस तार की ख़बरें ज़रा ही देर में पहुँच जाती हैं। नदी, समुद्र, पहाड़, पहाड़ी, जंगल, वियावान, नगर, क़स्बे इत्यादि पार करने में इन ख़बरों को ज़रा भी बाधा नहीं पहुँचती। दो
तीन हज़ार मील की दूरी, बात कहते, ये ख़बरें तय कर डालती हैं। जब ऊँचे ऊँचे पहाड़ लाँघने में इनको कोई कठिनता नहीं मालूम होती, तब साफ-सुथरे आकाश-मार्ग को तय करने में क्यों मालूम होने लगी? हाँ, मामला दूर का है। इसलिये तार भेजने की बिजली की ताक़त ख़ूब अधिक दरकार होगी। वह अमेरिका के नियागरा-प्रपात से प्राप्त की जा सकती है। बस, फिर ५,००,००,००० मील दूर, आकाश में, २०० शब्द फ़ी मिनट के हिसाब से खबरें भेजी जाने में कुछ भी देरी न लगेगी!

अजी साहब, आपकी ख़बरें मंगल-ग्रहवाले पढ़ेंगे किस तरह? और वहाँ कोई रहता भी है? इन बातों का पता लगाना औरों का काम है, मारकोनी साहब का नहीं। वह सिर्फ़ ख़बर भेजने का बंदोबस्त कर देंगे। मंगल में आदमियों को खोजकर उन्हें पृथ्वी की खबरों का जवाब देने लायक़ बनाना औरों का काम है। यह काम भी लोग धड़ाके से कर रहे हैं।

मंगल के जो छायाचित्र लिए गए हैं, उनसे प्रकट होता है कि इस ग्रह में कितनी ही नहरें हैं। वे खूब लंबी, चौड़ी और सीधी हैं। वे प्राकृतिक नहीं हैं, आप-ही-आप नहीं बन गईं। उनके आकार को देखने ही से मालूम होता है कि व आदमियों की बनाई हुई हैं, और बहुत होशियार आदमियों ने उन्हें बनाया होगा। हम लोगों से तो वे जरूर ही अधिक होशियार होंगे। कला-कौशल में वे हमसे बहुत बढ़े चढ़े होंगे। ऐसे सभ्य, शिक्षित और कला-कुशल आदमी हमारी खबरें न पढ़ सकेंगे! हम लोग अँगरेज़ी
में ख़बरें भेजेंगे। हमसे सैंकड़ोंगुना अधिक विद्वान् और विज्ञान-निधान होने के कारण वे धीरे-धीरे, वहीं बैठे-बैठे, हमारी अँगरेज़ी सीख लेंगे। और, फिर, अपनी भाषा हमें सिखला देंगे। अँगरेज़ी की मदद से वे यह काम बहुत आसानी से कर सकेंगे।

जितनी आकर्षण-शक्ति पृथ्वी में है, उसकी एक ही तिहाई मंगल में है। इससे यहाँ के विज्ञानियों ने हिसाब लगाया है कि मंगल के आदमी कुंभकर्ण के भी चचा होंगे। वे बहुत ही भीमकाय और विशाल बली होंगे। मान लीजिए, पृथ्वी के आदमियों की अपेक्षा मंगलवाले तिगुने बड़े हैं। अब यदि वे पृथ्वी पर किसी तरह आ जायँ, तो उनका वज़न यहाँ के आदमियों की अपेक्षा बीसगुना अधिक हो! एक साहब की राय है कि मंगली मनुष्यों की छाती बहुत चौड़ी होगी। श्वासोच्छ्वास में मनों हवा पाने और बाहर निकालने के लिये उनके फेफड़े मछलियों के फेफड़ों के सदृश बड़े-बड़े होगे। उनकी नाक लंबी और हाथ नीचे पैरों तक लंबे होंगे।

दो-एक आदमियों ने अध्यात्म-विद्या के बल से पात्रों को आध्यात्मिक नींद में करके उनसे कहा––"पृथ्वी पर नहीं; मंगल पर हो। बतलाओ तो सही, तुम क्या देख रहे हो?" उन्होंने कहा––"हम विलक्षण प्रकार के भीम भूधराकार प्राणी देख रहे हैं। उनके पंख हैं। उनकी गर्दन बहुत लंबी है। वे मज़े में जहाँ चाहते हैं, उड़ते फिरते हैं। वे भी आदमी ही हैं। फ़र्क़ इतना ही है कि डील-डौल में वे बहुत बड़े हैं।" बिजली की काफ़ी शक्ति मिलने पर मंगल ही तक नहीं, किंतु उससे भी सौगुना दूर ख़बरें भेजी जा सकेंगी। किसी दिन नेपच्यून नाम के अत्यंत दूरवर्ती ग्रह में भी तार-घर खुल जायगा, और उसका लगाव पृथ्वी से हो जायगा। वही क्यों, कोई भी ग्रह ऐसा न रहेगा, जिस पर तार-घर न हो। पर पहले मंगल ही तक ख़बर भेजने की कोशिश की जायगी; क्योंकि वहाँवाले विज्ञान में बहुत कुशल जान पड़ते हैं, और जल्द अँगरेज़ी सीखकर हमारी खबरों को पढ़ लेंगे, और अपनी भाषा भी हमें जल्द सिखला देंगे। जिस दिन पहले-पहल खबर मंगल में पहुँचेगी, उस दिन शायद हम पर मंगलवाले बेतरह बिगड़ उठे, और हमें खूब झाड़-फटकार बतलावें। वे शायद कह उठे-"अरे मूर्खों, तुम्हें हम लोग हज़ारों वर्ष से पुकार रहे हैं, पर तुम अब जागे हो!"

जुलाई,१९०६