अयोध्या का इतिहास/उपसंहार/(ग) सूर्यवंश-विदेह शाखा
उपसंहार (ग)
सूर्यवंश
विदेह-शाखा
१ मनु
२ इक्ष्वाकु
३ निमि
४ मिथि-जनक[१]
५ उदावसु
६ नन्दिवर्द्धन
७ सुकेतु
८ देवरात
९ वृहदुक् थ (बृहद्रथ, वा॰ रा॰)
१० महावीर्य (महावीर, वा॰ रा॰)
११ सुधृति
१२ धृष्टकेतु
१३ हर्यश्व
१४ मरु
१५ प्रतीन्धक
१६ कृतिरथ (कीर्तिस्थ, वा॰ रा॰)
१७ देवमीढः
१८ विवुध
१९ महाधृति (महीध्रक, वा॰ रा॰)
२० कृतिरात (कीर्तिरात, वा॰ रा॰)
२१ महारोमन्
२२ स्वर्ण रोमन
२३ हस्वरोमन्
२४ सीरध्वज (अयोध्या के दशरथ
के समकालीन)
२५ भानुमत्
२६ शतघुन्न
२७ शुचि
२८ उर्ज्जवह
२९ सनद्वाय
३० कुनि
३१ अञ्जन
३२ कुलजित् (ऋतुजित)
३३ अरिष्टनेमि
३४ श्रुतायुष्
३५ सूर्यार्श्व
३६ संजय
३७ क्षेमारि
३८ अनेनस
३९ समरथ (मीनरथ)
४० सत्यरथ
४१ सत्यरथि
४२ उपगुरु
४३ उपगुप्त
४४ स्वागत
४५ स्वनर
४६ सुवर्चस
४७ सुभास
४८ सुश्रुत
४९ जय
५० विजय
५१ ऋत
५२ सुतय
५३ वीतहव्य
५४ धृति
५५ बहुलाश्व
५६ कृति
महाभारत के पीछे इस राजवंश का पता नहीं लगता । इस राजवंश में इन दो राजाओं के नाम प्रसिद्ध हैं।
१ मिथि—श्रीमद्भागवतपुराण में लिखा है कि राजा मिथि ने यज्ञ प्रारम्भ करके वसिष्ठ को ऋत्विक् बनाया। वसिष्ठ ने कहा कि इन्द्र हमको वरण कर चुके हैं, जब तक उनका यज्ञ पूरा न हो जाय तुम ठहरे रहो। निमि ने कुछ न कहा और वसिष्ठ इन्द्र का यज्ञ कराने लगे। निमि ने वसिष्ठ की राह न देख कर दूसरे पुरोहित का बुला लिया, और यज्ञ करने लगे। इन्द्र का यज्ञ समाप्त करके वसिष्ठ जी लौटे तो निमि पर बहुत बिगड़े और उनको शाप दिया कि तुम्हारी देह पतित हो जाय। राजा ने भी उनको शाप दिया, और कहा तुमने लोभ के मारे धर्म का विचार नहीं किया। राजा और गुरु दोनों ने शरीर छोड़े। वसिष्ठ तो फिर उर्वशी के गर्भ से जन्मे और निमि की देह को मुनियों ने गन्ध-द्रव्य में रख दिया, और यज्ञ समाप्त होने पर देवताओं से कहने लगे कि आप लोग कहें तो निमि जिला दिये जाँय। निमि बोल उठे कि मैं अब देह के जंजाल में न फँसूँगा। देवताओं ने कहा अब यह विदेह होकर सब के नेत्रों में वास करें और उन्मेष निमेष रूप से प्रकट होने लगें। फिर मुनियों ने निमि के देह को मथा। उसमें से एक सुकुमार पुरुष उत्पन्न हुआ। इस असाधारण रीति से जन्म होने के कारण उसका नाम जनक विदेह हुआ। उसने मिथिला नगरी बसाई।
हमें यह कथा मिथिला शब्द की उत्पत्ति सिद्ध करने के लिए गढ़ी हुई जान पड़ती है। महाभाष्य में मिथिला शब्द की उत्पत्ति यों दी हुई है:—
मभ्यन्ते रिपवो मिथिला नगरी।
मिथिला जिसमें बैरी मथ डाले जायँ। मिथिला भी इक्ष्वाकु के एक पुत्र की बसाई हुई है। ज्येष्ठ पुत्र की राजधानी अयोध्या थी, उसी की जोड़ का यह नाम रक्खा हुआ प्रतीत होता है।
ह्रस्वरोमन के दो बेटे थे, सीरध्वज और कुशध्वज। सीरध्वज का स्पष्ट अर्थ है जिसकी ध्वजा में सीर अर्थात् हल का चिह्न हो परन्तु श्रीमद्भागवत में लिखा है कि राजा ह्रस्वरोमन यज्ञ करने के निमित्त हल चलाते थे, इसी से पुत्र जन्मा जिसका नाम सीरध्वज रक्खा गया। श्रीमद्भागवत में कुशध्वज सीरध्वज का बेटा है।
२ सीरध्वज—यह बड़े नामी पुरुष थे और इनके गुरु याज्ञवल्क्य थे। इनके यहां शिवजी का धनुष पूजा जाता था। इनके दो बेटियां थीं, एक श्री सीताजी जिनका जन्म यज्ञभूमि में हुआ था, और दूसरी ऊर्मिला| सीरध्वज ने यह प्रतिज्ञा की थी कि जो वीर पुरुष इस धनुष को तोड़ दे उसी के साथ सीता का व्याह हो। धनुष तोड़ कर सीता जी को बरने के लिए बड़े बड़े बीर आये, परन्तु सब अपना सा मुँह ले कर लौट गये। मध्यदेश में सांकास्य एक राज्य था जिसकी जगह अब फ़र्रुखाबाद जिले में संकिस्सा बसन्तपुर नाम एक गाँव बसा हुआ है। उन दिनों इसका राजा सुधन्वा था। सुधन्वा ने राजा सीरध्वज से कहला भेजा कि धनुष और सीता दोनों हमें दे दो। सीरध्वज ने न माना। इसपर सुधन्वा ने मिथिला पर चढ़ाई कर दी। सीरध्वज ने उसको मार कर उसका राज्य अपने छोटे भाई कुशध्वज को दे दिया। कुशध्वज की दो बेटियां मांडवी और श्रुतिकीर्ति श्रीरामचन्द्र जी के छोटे भाई भरत और शत्रुन को ब्याही थीं।
- ↑ दा॰ रा॰ अध्याय ७३ में जनक मिथि का बेटा हैं।