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अयोध्या का इतिहास

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प्रयाग: हिंदुस्तानी एकेडमी, पृष्ठ -

 






अयोध्या का इतिहास
अयोध्या का इतिहास



साहित्यरत्न, हिन्दी सुधाकर,
राय बहादुर
श्री अवधवासी लाला सीताराम, बी० ए०,
संकलित।



प्रयाग
हिन्दुस्तानी एकेडेमी, यू० पी०
१९३२

PUBLISHED BY THE
The Hindustani Academy, UP.,

ALLAHABAD.

 

First Edition,

Price, Rs. 3


 

Printed by K.C. Varma

at the Kayastha Pathshala Press,

Allahabad.

 

वक्तव्य

सैकड़ों बरस से ऐसे परदेशियों के अधीन रहकर जिनको न हमारे साथ कोई सहानुभूति थी न हमारी प्राचीन सभ्यता को जानने की परवाह करते थे हम लोग अपने को भूल गये, और हमारे पुराने नगर जिनके आगे रोम, कार्थेज, और बग़दाद कल की बस्तियाँ हैं अब तीर्थ बन गये और वहाँ यात्री इसी विचार से यात्रा करने जाते हैं कि संसार के बन्धन से उनकी मुक्ति हो जाय। हमारे पास अब न धन बचा है न वैभव। केवल इतने हो पर सन्तोष करते हैं कि जिस समय हम लोग सभ्यता की पराकाष्ठा को पहुँच गये थे, उस समय आजकल की बढ़ी-चढ़ी जातियों का या तो अस्तित्व ही न था या पशुप्राय थीं। हमारे पास इस बात का प्रमाण है कि हमारे देशवासियों ने संसार में सभ्यता का सूत्रपात किया था। विचारने की बात है कि हमारा देश क्या है? और जिस देश का नाम हिन्दुस्थान है वह इस प्रायद्वीप का कौन सा भाग है? साठ वर्ष हुए हम लखनऊ में अमीनाबाद में कुछ मित्रों के साथ टहल रहे थे। एक पंजाबी लड़का पहाड़ी छड़ियाँ बेच रहा था। हमने उससे दाम पूछे तो उसने कुछ ऐसे दाम बताये जो हमको अधिक प्रतीत हुए। हमने कहा कुछ कम करोगे? वह बोल उठा कि झूठ बोलना हिन्दुस्थान के लोगों का काम है। यह कलंक बुरा तो लगा परन्तु अवसर न था कि हम उसको दंड देते। परन्तु हिन्दुस्थान शब्द ने हमको चक्कर में डाल दिया। हमारे बंगाली महाशय भी हमको हिन्दुस्थानी कहते हैं। विन्ध्याचल के दक्षिण की तो कोई बात ही नहीं। ज्यों ज्यों समय बीतता गया, हमारी समझ में यह बात आ गई कि मुख्य हिन्दुस्थान (Hindustan Proper) हिमालय के दक्षिण विन्ध्याचल के उत्तर दिल्ली और दिल्ली के पूर्व और पटने के पश्चिम के भूखंड को कहते हैं और किसी प्रान्त को हमसे सहानुभूति न रही। हिन्दुस्थान के भाग्य का निर्णय इस हिन्दुस्थान के पश्चिम पानीपत के मैदान में हुआ। पंजाबी अपने को कितना ही वीर कह लें, आक्रमणकारियों को न रोक सके।

इस देश का प्राचीन नाम उत्तरकोशला है, जिसकी राजधानी अयोध्या थी। यों तो चन्द्रवंश का प्रादुर्भाव प्रयाग के दक्षिण प्रतिष्ठानपुर में हुआ; परन्तु जैसे मनु पृथ्वी के प्रथम राजा (महीभृतामाद्यः) कहे जाते हैं वैसे ही उत्तरकोशला की राजधानी अयोध्या भी सबसे पहिली पुरी है। इसी उत्तरकोशला में विष्णु भगवान के मुख्य अवतार राम, कृष्ण और बुद्ध अयोध्या, मथुरा और कपिलवस्तु में हुए। तीर्थराज प्रयाग, मुक्तिदायिनी विश्वनाथपुरी काशी इसी कोशला में हैं। वेदों में जिन पांचालों का नाम बार बार आया है वे इसी कोशला के रहनेवाले थे। इसी कोशला में अयोध्या के राजा भगीरथ कठिन परिश्रम से गंगा को ले आये। यहीं से निकलकर क्षत्रियों ने तिब्बत, श्याम और जापान में साम्राज्य स्थापित किये। जैन लोग २४ तीर्थंकर मानते हैं। उनमें से २२ इक्ष्वाकुवंशी थे। यों तो ५ ही तीर्थंकरों की जन्मभूमि अयोध्या में बताई जाती है, परन्तु जैनियों की धारणा यह है कि सारे तीर्थकरों को अयोध्या ही में जन्म लेना चाहिये। विशेष बातें इस ग्रन्थ के पढ़ने से विदित होंगी। ऐसे प्राचीन नगर का इतिहास जानने की किस सहृदय भारतवासी को अभिलाषा न होगी।

चार बरस हुये हमने फ़ैज़ाबाद के लोकप्रिय डिपुटी कमिश्नर श्रीमान् आर॰ सी॰ होबार्ट महोदय की आज्ञा से अयोध्या का एक छोटा सा इतिहास अंग्रेजी में लिखा। यह प्रयाग विश्वविद्यालय के वाइस चैन्सलर श्रीमान् महामहोपाध्याय डाक्टर गंगानाथ झा, एम॰ ए॰, डी॰ लिट॰, एल-एल॰ डी॰ की अनुमति से Allahabad University Studies Vol. IV में छपा। सर जार्ज ग्रियर्सन, सर रिचर्ड बर्न आदि अंग्रेजी के बड़े बड़े विद्वानों ने इसकी मुक्तकंठ से प्रशंसा की। उस छोटी सी पुस्तक का अनेक मित्रों के आग्रह से हिन्दी में अनुवाद किया गया। परन्तु वह ग्रन्थ छोटा था। इससे जब हिन्दुस्तानी एकेडेमी की ओर से इसके प्रकाशन का प्रस्ताव किया गया तो श्रीमान सर शाह मुहम्मद सुलेमान महोदय की अनुमति यह हुई कि ग्रन्थ बढ़ाकर २५० पृष्ठ का कर दिया जाय।

अयोध्या के इतिहास की सामग्री प्रचुर है, परन्तु बड़े खेद की बात है कि यद्यपि महात्मा बुद्धजी यहाँ १६ वर्ष तक रहे और यहीं उनके सारे सिद्धान्त परिणत हुये तो भी उनके यहाँ निवास का पूरा विवरण नहीं मिल सका। कदाचित् लका में सिंहली भाषा में कुछ सामग्री हो। वेद, पुराण, रामायण, महाभारत, गजे़टियर आदि के अतिरिक्त रायल एशियाटिक सोसायटी के जर्नल में प्रसिद्ध विद्वान् पार्जिटर के लेखों से इस ग्रन्थ के सम्पादन में विशेषरूप से सहायता मिली है। अयोध्या में जैनधर्म का वर्णन कलकत्ते के सुप्रसिद्ध विद्वान बाबू पूरनचन्द नाहार और लखनऊ के ऐडवोकेट पं॰ अजित प्रसाद जी के भेजे लेखों के आधार पर है। गोंडा जिले के तीर्थों का वर्णन हमारे स्वर्गवासी मित्र बाबू रामरतन लाल का संकलित किया हुआ है। अयोध्या के शाकद्वीपी राजाओं के इतिहास की सामग्री स्वर्गवासी महाराजा प्रतापनारायण सिंह अयोध्यानरेश से प्राप्त हुई थी। बड़े शोक की बात है कि महाराजा साहब ऐसे गुणज्ञ रईस अब संसार में नहीं हैं, नहीं तो इस ग्रन्थ का रूप भी कुछ और होता। अस्तु, जो कुछ मिला वह पाठकों की भेंट किया जाता है। इसमें छापे की अशुद्धियाँ बहुत हैं। पढ़ने से पहले उन्हें शुद्ध कर लेना चाहिये।

अयोध्या में इतिहास की सामग्री दबी पड़ी है जो पुरातत्त्वविज्ञान की खोज से निकलेगी परन्तु जो कुछ इस ग्रन्थ में लिखा गया है उससे यदि इतिहास के मर्मज्ञों का ध्यान इस पुरानी उजड़ी नगरी की ओर आकर्षित हो तो मैं अपना परिश्रम सफल समझूँगा।

धरि हिय सिय रघुबीर पद, विरच्यो मति अनुरूप।
अवधपुरो-इतिहास यह, अवधनिवासी भूप॥
निज पुरुषन को सुजस तहँ तेज प्रताप विचारि।
पढ़ैं मुदित मन सुजन तेहि मेरे दोष बिसारि॥



प्रयाग
आश्विन कृष्ण ११ श्री अवधवासी भूप उपनाम सीताराम।
सं॰ १९८८

सूची-पत्र

अध्याय ... ... ... पृष्ठ
१—अयोध्या की महिमा ... ... ...
२—उत्तर कोशल और अयोध्या की स्थिति ... ... ...
३—प्राचीन अयोध्या ... ... ...
(क) वाल्मीकीय रामायण में अयोध्या का वर्णन ... ... ... २४
(ख) और प्राचीन ग्रन्थों में अयोध्या का वर्णन ... ... ... ३०
(ग) सूर्यवंश के अस्त होने के पीछे की अयोध्या ... ... ... ३८
४—आज-कल की अयोध्या ... ... ... ४४
५—अयोध्या के आदिम निवासी ... ... ... ५४
६—वेदों में अयोध्या ... ... ... ५९
७—पुराणों में अयोध्या ... ... ...
(क) सूर्यवंश ... ... ... ६२
(ख) शिशुनाक, मौर्य और शुगवंशी राजा ... ... ... १०७
८—अयोध्या और जैनधर्म ... ... ... ११०
९—अयोध्या और बौद्धमत ... ... ... ११७
१०—अयोध्या के गुप्तवंशी राजा ... ... ... १३१
... ... ... १३८
... ... ... १४३
१३—दिल्ली के बादशाहों के राज्य में अयोध्या ... ... ... १४७
१४—नवाब वजीरों के शासन में अयोध्या ... ... ... १५५
१५—अयोध्या के शाकद्वीपी राजा ... ... ... १६३
१६—अंगरेजी राज्य में अयोध्या ... ... ... १८०
उपसंहार
(क) अयोध्या में सोलंकी राजा ... ... ... १८२
(ख) सूर्यवंश-दिष्ट वंश ... ... ... १८७
(ग) सूर्यवंश-विदेह शाखा ... ... ... १८९
(घ) रघु का दिग्विजय ... ... ... १९४
(ङ) वसिष्ठ ... ... ... २०५
(च) हनूमान् ... ... ... २०९
(छ) चन्द्रवंश-यदु वंश ... ... ... २१५
(ज) चन्द्र-वंश–पुरु वंश ... ... ... २२२
(झ) चन्द्र-वंश-यदु (मगध राज वंश ... ... ... २२४
(ञ) चन्द्र-वंश-आयुष्-वंश ... ... ... २२६
(ट) चन्द्र-वंश-कान्य कुब्ज राज ... ... ... २२८
(ठ) प्रद्योत वंश ... ... ... २३२
(ड) शिशुनाक वंश ... ... ... २३३
(ढ) नन्द-वंश ... ... ... २३४
(ण) मौर्य वंश ... ... ... २३५
(त) शुग-वंश ... ... ... २३६
(थ) अयोध्या का वर्णन (त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र से)
(द) अयोध्या का वर्णन (धनपालकृत तिलकमंजरी से)
... ... ... २३९
(ध) ओयूटो (अयोध्या) ... ... ... २४४
(न) पिसोकिया (विशाखा) ... ... ... २५०
(प) गढ़वा और मेवहड़ के शिलालेख ... ... ... २५२
(फ) बूढ़ेदाने के चौधरी ... ... ... २५३
शब्दानुक्रमणिका ... ... ... २५५

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