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अयोध्या का इतिहास/उपसंहार/(न) पिसोकिया (विशाखा)

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प्रयाग: हिंदुस्तानी एकेडमी, पृष्ठ २५० से – २५१ तक

 

 

उपसंहार (न)
पिसोकिया (विशाखा)

इस राज्य का क्षेत्रफल ४००० ली और राजधानी का १६ ली है। अन्नादि इस देश में जिस प्रकार अधिक होते हैं उसी प्रकार फल फूल की भी बहुतायत है। प्रकृति कोमल और उत्तम है तथा मनुष्य शुद्ध और धर्मिष्ठ हैं। ये लोग विद्याभ्यास करने में परिश्रमी और धार्मिक कामों के सम्पादन करने में बिना बिलम्ब योग देनेवाले होते हैं। कोई २० संघाराम ३००० सन्यासियों के सहित हैं जो हीनयान सम्प्रदाय की सम्मतीय संस्था का प्रतिपालन करते हैं। कोई पचास देवमन्दिर और अगणित विरोधी उनके उपासक हैं।

नगर के दक्षिण में सड़क के बांई ओर एक बड़ा संघाराम है। इस स्थान में देवाश्रम अरहत् ने "शीद्द शिननल" नामक शास्त्र लिखकर इस बात का प्रतिवाद किया है कि व्यक्तिरूप में अहम् कुछ नहीं है। गोप अरहट ने भी इस स्थान पर "शिङ्ग क्योिइउशीलन" नामक ग्रंथ को बना कर इस बात का प्रतिवाद किया है कि व्यक्तिविशेष रूप में अहम् ही सब कुछ है। इन सिद्धान्तों ने अनेक विवादग्रस्त विषयों को खड़ा कर दिया है। धर्मपाल बोधिसत्व ने भी यहां पर सात दिन में हीनयान सम्प्रदाय के एक सौ विद्वानों को परास्त किया था।

संघाराम के निकट एक स्तूप २०० फीट ऊँचा राजा अशोक का बनवाया हुआ है। प्राचीन काल में बुद्धदेव ने छः वर्ष तक यहां निवास किया था और धर्मोंपदेश करके अनेक मनुष्यों को अपना अनुयायी बनाया था। स्तूप के निकट ही एक अद्भुत वृक्ष ६-७ फ़ीट ऊंचा लगा हुआ है। कितने ही वर्ष व्यतीत हो गये परन्तु यह ज्यों का त्यों बना हुआ है, न घटता है और न बढ़ता है। किसी समय में बुद्ध दव ने अपने दांतों को स्वच्छ करके दातुन को फेंक दिया था। वह दातुन जम गई और उसमें बहुत से पत्ते निकल आये, वही यह वृक्ष है। ब्राह्मणों और विरोधियों ने अनेक बार धावा कर के इस वृक्ष को काट डाला परन्तु यह फिर पहिले के समान पल्लवित हो गया।

इस स्थान के निकट ही चारों बुद्धों के आने जाने के चिह्न पाये जाते हैं तथा नख और बालों सहित एक स्तूप भी है। पुनीत स्थान यहां पर एक के बाद एक बहुत फैले चले गये हैं तथा जंगल और झीलें भी बहुतायत से हैं।

यहां के पूर्वोत्तर ५०० लो चल कर हम "शीसाहलो फुसिहताई" राज्य में पहुँचे।