आग और धुआं/8

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आठ

सत्रहवीं शताब्दी के मध्यकाल में इंगलैंड ने अपने राजा चार्ल्स प्रथम का सिर कुल्हाड़े से काट डाला। उस समय वहाँ रोमन कैथोलिक और प्रोटेस्टेन्ट सम्प्रदायों में झगड़े बढ़े हुए थे। राजसत्ता सुदृढ़ नहीं थी। ईसाई सम्प्रदाय दो भागों में विभक्त था। एक सम्प्रदाय दूसरे सम्प्रदाय से बैर रखता था, इसी कारण चार्ल्स प्रथम को अपना सिर कटाना पड़ा। १६२५ ई० में जेम्स प्रथम की मृत्यु के उपरान्त उसका पुत्र चार्ल्स प्रथम के नाम से इंगलैंड के सिंहासन पर बैठा। उस समय इंगलैंड की राजनैतिक अवस्था प्रोटेस्टेन्ट और रोमन कैथोलिकों के झगड़ों के कारण अत्यन्त डांवाडोल हो रही थी। चार्ल्स स्वयं अनुभवहीन था, इस पर उसे मन्त्रि-मण्डल भी उदण्ड तथा स्वेच्छाचारी मिला। परिणाम यह हुआ कि प्रजा पर नाना प्रकार के अत्याचार होने लगे। लोगों में क्रान्ति की लहर फैलने लगी। चार्ल्स ने क्रान्ति को निर्दयतापूर्वक कुचलना चाहा, परन्तु कृतकार्य न हुआ, उलटे प्रजा कुचले हुए सर्प की भाँति उसे नष्ट करने पर उतारू हो गई। राज्य-क्रान्ति हुई। पार्लियामेण्ट के नेता कामवेल ने जैसे-तैसे शान्ति स्थापित की, परन्तु चार्ल्स के प्रति उनके घृणा के भाव कम न हुए। सेनाओं का क्रोध इतना बढ़ गया कि वे चार्ल्स के सब साथियों को मार डालने पर भी तृप्त न हुईं। सब लोग चार्ल्स के लहू के प्यासे बन गये तथा उस पर अभियोग चलाने का आयोजन करने लगे। पार्लियामेण्ट के अधिकांश सदस्यों ने इसका विरोध किया, परन्तु कर्नल प्राइड ने तलवार के बल पर से सब विरोधियों को बाहर निकाल दिया तथा बचे हुए सभासदों से चार्ल्स पर अभियोग चलाने का बिल पास करवा दिया। बाद में, चिढ़ाने के लिए, इस बची हुई पार्लियामेण्ट का नाम रम्प रख दिया गया। बिल पास हो गया, परन्तु हाईकोर्ट के अनेक विचारकों ने इस कार्य में भाग लेने की अनिच्छा प्रकट की। इतने पर भी १५० सदस्यों की एक विचार-सभा बनाई गई तथा जॉन ब्राडशा को उसका सभापति नियुक्त किया गया। [ ७० ]चार्ल्स ने विचार सभा में आते ही ललकारकर कहा—"प्रजा का उस पर अभियोग चलाने का कोई अधिकार नहीं है। क्योंकि राजा की नियुक्ति परमात्मा की ओर से होती है, अतएव मनुष्य को तथा विशेषतया उसकी प्रजा को उसमें हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं हो सकता।"

उसने अपने पक्ष में कोई प्रमाण देने से इन्कार कर दिया। परन्तु शत्रु तो तुले हुए बैठे थे। विचार-सभा में पाँच दिन बहस के बाद उसे मृत्युदण्ड दिया गया और व्हाहटहाल जेल भेज दिया गया। विचार-सभा के फैसले को पालियामेन्ट ने भी पास कर दिया और अपने राजा को मृत्यु-दण्ड देने की आज्ञा दे दी।

यद्यपि चार्ल्स के मित्रों को ऐसी आशंका थी, पर उन्हें इस निर्णय पर बड़ा दुख हुआ। राजा के परम मित्र डी आर्टगनन ने ऐसे संकट और नाजुक समय में बड़ी धीरता और विचार से प्रतिज्ञा की कि मैं यथाशक्ति यह कत्ल न होने दूंगा। पर किस प्रकार? इस समस्या को वह अभी तक सुलझा न पाया। यह सब कुछ अवसर पर निर्भर था। पर इतना समय ही कहाँ था? यदि किसी प्रकार बधिक को वहाँ से एक दिन के लिये हटा दिया जाता तो भी यथेष्ठ समय मिल सकता था। वास्तव में उसकी प्राण-रक्षा का एकमात्र उपाय बधिक को लन्दन से बाहर हटा देना था। पर उसे लन्दन से बाहर ले कैसे जाए, डी आर्टगनन के सामने यही सबसे कठिन समस्या थी।

अपने इस प्रयत्न को चार्ल्स स्टुअर्ट पर व्हाइटहाल जेल में पहुंचकर प्रकट करना अनिवार्य था, जिससे वह निकल भागने में सावधान रहे। एक दूसरे मित्र अरेमिस ने यह नाजुक काम अपने जिम्मे लिया। चार्ल्स को पादरी जुक्सन से जेल में मुलाकात करने की आज्ञा मिल गई थी। अरेमिस ने इस अवसर पर लाभ उठाना चाहा और यह सलाह ठहरी कि वह जुक्सन के कपड़े पहनकर और उसका पूरा भेष बनाकर उसकी जगह मिलने जाय और इस बात के लिये जुक्सन किसी न किसी प्रकार राजी कर लिया जाय। व्हाइट-हाल जेल पर तीन पलटनों का पहरा रखा गया था।

राजा के कमरे में सिर्फ दो मोमबत्तियाँ जल रही थीं। धीमा प्रकाश उसमें फैल रहा था। राजा उदास भाव से बैठे हुए अपने जीवन पर विचार कर रहे थे। मृत्यु-शय्या परपड़े मनुष्य को अपना जीवन कितना ज्योतिमय [ ७१ ]और आनन्ददायक दीखता है, ठीक वही दशा इस समय उनकी थी। उनका सेवक पेरी अब भी अपने स्वामी के साथ था और कत्ल की आज्ञा सुनने के समय से ही रो रहा था।

चार्ल्स स्टुअर्ट मेज पर झुके हुए अपने तमगे की ओर देख रहे थे, जिस पर उनकी स्त्री और लड़की के चित्र अंकित थे। वे दोनों की प्रतीक्षा में थे--पहले जुक्सन की और फिर मृत्यु की। स्वप्न-जैसी दशा में वे फ्रेंच वीरों का स्मरण कर रहे थे। कभी-कभी वे स्वयं ही प्रश्न कर बैठते थे—क्या यह सब कुछ स्वप्न नहीं है? क्या मैं पागल हूँ?

अँधेरी रात थी। पास वाले चर्च से घण्टा बजने की आवाज आ रही थी। कमरे में मन्द प्रकाश फैला हुआ था। उन्हें कुछ प्रतिबिम्बित मूर्तियाँ दिखाई दीं, पर वास्तव में कुछ था नहीं। बाहर कोयले की आग जल रही थी, उसी का यह प्रतिबिम्ब था।

अचानक किसी के पैरों की आहट सुनाई दी। दरवाजा खुला और मशालों के प्रकाश से कमरा चमक उठा। श्वेत वस्त्र धारण किये हुए एक शान्त मूर्ति अन्दर आई।

"जुक्सन” चार्ल्स ने कहा- "धन्यवाद, मेरे अन्तिम बन्धु! तुम खूब मौके पर आये।"

पादरी ने सशंक भाव से कोने की ओर देखा, जहाँ पेरी सुबक-सुबककर रो रहा था।

राजा ने कहा-"पेरी, अब रोओ मत। पवित्र पिता हमारे पास आए हैं।"

पादरी ने कहा-“यदि यह पेरी है तो फिर डरने का कोई कारण नहीं! श्रीमान्, मुझे आज्ञा दीजिये कि मैं आपको अभिवादन करूं। आज्ञा हो तो मैं अपना परिचय भी दूँ और आने का कारण बताऊँ।"

आवाज को पहचानकर चार्ल्स चिल्लाने ही वाला था कि अरेमिस ने उसका मुँह बन्द कर दिया और झुककर अभिवादन किया।

चार्ल्स ने धीरे से कहा-"क्या तुम?"

"जी हाँ श्रीमान्, आपकी इच्छानुसार पादरी जुक्सन हाजिर है।"

"यहाँ कैसे आ पहुँचे? यदि वे तुम्हें पकड़ लें तो तुम्हारे टुकड़े-टुकड़े

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[ ७२ ]कर डालेंगे?"

अरेमिस खड़ा था। उसकी आकृति इस समय देव-तुल्य थी। उसने कहा-"श्रीमान्, मेरी चिन्ता न कीजिये। आप अपनी फिक्र कीजिए। आपके मित्रों की दृष्टि आपके ऊपर लगी हुई है। हम क्या करेंगे, यह अभी तक मैं भी नहीं जान पाया हूँ, पर हम चार आदमी हैं और चारों ही आपकी रक्षा करने पर तुले हुए हैं। रात-भर का समय है। आप सोइये, किसी बात पर चौंकिये भी नहीं। क्षण-क्षण की प्रतीक्षा कीजिये।"

चार्ल्स ने सिर हिलाकर स्वीकृति दी।

फिर कहा-"मित्र, तुम्हें ज्ञात है कि तुम्हारे पास व्यर्थ समय नहीं है। यदि तुम्हें कुछ करना ही है तो बहुत जल्दी करो। कल प्रातः दस बजे मैं जरूर मर जाऊँगा।"

"श्रीमान्, इसी बीच में कोई ऐसी घटना हो जायेगी, जिससे आपका वध असम्भव हो जायेगा।"

राजा ने अरेमिस की ओर विस्मित दृष्टि से देखा। उसी समय नीचे खिड़की के पास लकड़ी के लट्ठे के उतारने की आवाज सुनाई दी।

राजा ने कहा- “यह आवाज सुनते हो?"

आवाज के साथ-साथ चिल्लाने का शोर भी था।

अरेमिस ने कहा-"सुन रहा हूँ। पर यह शोर कैसा है, यह नहीं समझ आता।"

"क्या जाने, पर यह आवाज कैसी है, यह मैं बता सकता हूँ। तुम जानते हो कि मेरा कत्ल इसी खिड़की के बाहर होगा?"

"हाँ श्रीमान्, यह तो जानता हूँ।"

"तो ये लट्ठे मेरी पाड़ बनाने के लिए लाए जा रहे हैं। कई मजदूरों को तो इन्हें उतारते-उतारते चोट लग चुकी है।"

अरेमिस काँप उठा।

राजा ने कुछ ठहरकर कहा- "देखो, जीवन की आशा व्यर्थ है। मुझे प्राण-दण्ड की आज्ञा मिल चुकी है। तुम मुझे मेरे भाग्य पर छोड़ दो।"

अरेमिस ने कहा-"श्रीमन्, वे लोग पाड़ बना सकते हैं, पर बधिक को कहाँ से लायेंगे?"

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[ ७३ ]

"इसका क्या मतलब?"

“यही कि अब तक तो बधिक बहुत दूर निकल गया होगा, इसलिये आपका बध अगले दिन के लिये स्थगित करना पड़ेगा।"

"अच्छा?"

"कल रात को हम लोग आपको यहाँ से ले भागेंगे?"

"किस तरह?"--राजा ने चौंककर पूछा। उसका चेहरा प्रसन्नता से खिला हुआ था।

पेरी ने हाथ जोड़कर कहा-"आपको और आपके साथियों को ईश्वर सफलता दे।"

"मुझे तुम्हारी बातें तो मालूम होनी चाहिए, ताकि मैं भी तुम्हारी कुछ सहायता कर सकूँ।"

“सो तो मैं नहीं जानता श्रीमन्। लेकिन हम चारों में जो सबसे अधिक चतुर, वीर और धुन का पक्का आदमी है, उसी ने चलते वक्त मुझसे कहा था कि महाराज से कह देना कि कल रात को दस बजे हम उन्हें भगा लायेंगे। जब उसने यह कहा है तो वह अवश्य पूरा करेगा।"

"मुझे उस उदार सज्जन का नाम तो बताओ, ताकि मैं अन्त समय तक उसे धन्यवाद देता रहूँ, चाहे वह अपने काम में सफल हो या न हो।"

"डी आर्टगनन श्रीमन्। ये वही सज्जन हैं जो आपको उस समय बचाने में असफल रहे थे, जबकि कर्नल हैं रीसन महलों में घुस आये थे।"

"तुम सचमुच विचित्र आदमी हो। यदि मुझसे कोई ऐसी बात कहे तो मैं कभी विश्वास न करूँ।"

"श्रीमान् हम प्रत्येक क्षण आपकी रक्षा के लिए प्रयत्नशील हैं। छोटी-से-छोटी चेष्टाएँ धीमी से धीमी कानाफूसी और गुप्त से गुप्त संकेत, जो शत्रु आपकी बाबत करते रहते हैं, हमसे छिपा नहीं रह सकता।"

"ओह! मैं क्या करूँ? मेरे अन्तस्तल से कोई शब्द नहीं निकलता है। मैं तुम्हें कैसे धन्यवाद दूँ? यदि तुम अपने कार्य में सफल हुए तो मैं यही नहीं कहूँगा कि तुमने एक राजा को बचाया है, बल्कि तुमने एक स्त्री का पति बचाया है, बच्चों का पिता बचाया है। अरेमिस मेरा हाथ तो दबाओ यह हाथ तुम्हारे ऐसे मित्र का है, जो अन्तिम श्वास तक तुम्हें प्यार करता

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[ ७४ ]रहेगा।"

अरेमिस ने चाहा कि राजा के हाथ चूम लूँ। पर उसने तुरन्त हाथ खींचकर अपने हृदय पर रख लिया।

अकस्मात एक व्यक्ति ने बिना द्वार खटखटाए अन्दर प्रवेश किया। बहुत से गुप्तचर आस-पास लगे रहते थे। उन्हीं में से एक यह भी था। यह पादरी था।

राजा ने उससे पूछा-"आप क्या चाहते हैं?"

“मैं जानना चाहता हूँ कि चार्ल्स स्टुअर्ट की स्वीकृति खत्म हुई या नहीं?"

"इससे आपका क्या मतलब है? हम लोग तो एक ही पन्थ के मानने वाले नहीं हैं न?"

"सब आदमी भाई-भाई हैं। मेरा एक भाई मरने वाला है और मैं उसे मृत्यु के लिए तैयार करने आया हूँ!"

पेरी ने कहा- "हमारे स्वामी को शिक्षा की जरूरत नहीं है।"

अरेमिस ने धीरे से राजा से कहा-"इनसे नर्मी का व्यवहार करें, यह तो एक सेवक मात्र हैं।"

राजा ने कहा-"पवित्र पिता से मुलाकात करने के बाद मैं आपसे प्रसन्नता से बातें कर सकूँगा।"

एक संदिग्ध दृष्टि फेरता हुआ वह व्यक्ति वहाँ से चला गया। जुक्सन वेशधारी पादरी को भी उसने सन्देह की दृष्टि से देखा है, यह बात राजा से छिपी न रही।

दरवाजा बन्द हो जाने पर राजा ने कहा- "मुझे विश्वास हो गया कि तुम ठीक कहते थे। यह आदमी किसी बुरे भाव से आया था। जब तुम लौटो तो सावधान रहना। कोई आपत्ति न आ जाए।"

"श्रीमन्, मैं आपको धन्यवाद देता हूँ, पर आप व्याकुल न हों। इस लबादे के नीचे मैं एक कवच पहने हुए हूँ और एक खंजर भी मेरे पास है।"

"तब जाओ मन्शेर। ईश्वर तुम्हें सकुशल रखे। यही आशीर्वाद जब मैं राजा था, तब भी दिया करता था।"

अरेमिस बाहर चला गया। चार्ल्स द्वार तक पहुँचाने आए। अरेमिस

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[ ७५ ]ने आशीर्वाद दिया। पहरेदारों ने मस्तक झुका दिए, और बड़ी शान के साथ सैनिकों से भरे उस कमरे में से निकलकर वह अपनी गाड़ी में आ बैठा। गाड़ी पादरी साहब के घर की ओर चल दी।

जुक्सन व्याकुलता से उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। अरेमिस को देखकर उसने कहा-"आ गए?"

अरेमिस ने कहा-“जी हाँ, “मेरी इच्छानुसार सब कुछ सफल हुआ। सिपाही, पहरेदार, सभी ने मुझे समझा कि आप ही हैं। राजा ने आपको आशीस दी है और आपकी आशीस के लिए भी वे व्याकुल हैं।"

"मेरे पुत्र, ईश्वर ने तुम्हारी रक्षा की है। तुम्हारे इस कार्य से मुझे बहुत-कुछ आशा और साहस हुआ है।"

अरेमिस ने फिर अपने कपड़े पहने और जुक्सन से यह कहकर कि मैं फिर आऊँगा, चल दिया।

वह मुश्किल से दस गज गया होगा कि एक आदमी को लबादा पहने हुए उसने अपनी ओर आते देखा। वह सीधा आकर उसके पास खड़ा हो गया! वह पोरथस था।

पोरथस ने अरेमिस के हाथ में हाथ मिलाते हुए कहा- "मैं तुम्हारी देख-रेख कर रहा था। क्या तुम राजा से मुलाकात कर चुके?"

"हाँ, सब ठीक है। पर हमारे और साथी कहाँ हैं?"

"हमने उस होटल में ग्यारह बजे मिलने का निश्चय किया था न?"

"तो फिर अब समय नष्ट न करना चाहिए।"

गिरजे की घड़ी ने साढ़े दस का घण्टा बजाया। वे जल्दी-जल्दी चले और वहाँ सबसे पहले पहुँच गए। इनके बाद अथस पहुँचा।

अथस ने पूछा-"सब ठीक है न?"

अरेमिस ने कहा-"हाँ, तुम क्या कर आए?"

"मैंने एक नाव किराए पर तय की है। वह नाव बहुत तेज चलने वाली है। डाग्स टापू के ठीक सामने ग्रीनविच पर वह हमारी प्रतीक्षा करेगी। उस पर एक कप्तान है और चार सिपाही हैं। तीन रात के लिए पचास पौण्ड में तय हुए हैं। वे हमारी इच्छानुसार काम करेंगे। पहले तो हम टेम्स में दक्षिण दिशा को चलेंगे, फिर करीब दो घण्टे में खुले समुद्र में पहुँच

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[ ७६ ]जावेंगे। वहाँ पहुँचकर असली समुद्री डाकुओं की तरह किनारे-किनारे, और यदि समुद्र अनुकूल हुआ तो बोलोगने की ओर चलेंगे। कप्तान का नाम रागर्स है और नाव का नाम लाइटनिंग है। निशानी के लिए एक रूमाल है, जिसके कोनों में गाँठे बँधी हुई हैं।"

थोड़ी देर पीछे ही आर्टगनन ने प्रवेश किया।

उसने कहा-"अपनी जेबों में से निकलो क्या है, और सौ पौण्ड इकट्ठ करके मुझे दो।"

रकम फौरन इकट्ठी कर दी गई। डी आर्टगनन बाहर चला गया और जल्दी ही लौट आया। उसने कहा-“अच्छा, यह काम भी पूरा हुआ।"

अथस ने पूछा-"क्या बधिक लन्दन छोड़कर चला गया?"

"वह एक द्वार से जा सकता था, और दूसरे से आ सकता था। इसलिए सावधानी की दृष्टि से बन्द कर दिया है।"

"वह है कहाँ?"

"होटल में एक कोठरी में कैद है। मोसक्येटन दरवाजे पर बैठा है। यह लो उसकी ताली।"

अरेमिस ने कहा, "शाबास, पर तुमने उसे बाहर आने तक राजी कैसे किया?"

"रुपये से। इसमें खर्च तो बहुत हुआ।"

अथस ने कहा- "यद्यपि बधिक! सम्बन्धी काम खत्म हो चुका है, पर उसके सहायक भी तो बहुत हैं।"

"हाँ, हैं तो पर इस समय भाग्य हमारे साथ है।"

"कैसे?"

"जब मैं यह सोच रहा था कि अब क्या करूँ, तभी कई आदमी मेरे नौकर को, जिसकी टाँग टूट गई थी, लेकर मेरे घर पर गये। जोश में उन्मत होकर वह एक गाड़ी के पीछे-पीछे हो लिया था। इसमें पाड़ बनाने के लिये लकड़ी का सामान जा रहा था। उसमें से एक लट्ठा निकलकर उसकी टाँग पर गिर पड़ा और वह टूट गई।"

अरेमिस ने कहा-"ओह, यह वही व्यक्ति था जिसकी चिल्लाने की आवाज मैंने राजा के कमरे में सुनी थी।"

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[ ७७ ]आर्टगनन ने कहा--"सम्भव है, उसने चलते समय उनसे यह वादा किया कि तुम्हारा काम पूरा करने के लिए मैं चार आदमी शीघ्र ही भेजूंगा। और घर पहुंचते ही अपने एक दोस्त बढ़ई को जिसका नाम मिस्टर होमलो है, लिखा कि मेरे वादे के अनुसार तुम तुरन्त व्हाइटहॉल पहुंचो। देखो, यह पत्र है जिसे एक विश्वासपात्र आदमी के हाथों दस पेन्स देकर भेजा गया उसका था। और उस आदमी से वह पत्र अधिक मुद्रा देकर मैंने खरीद लिया है।"

अथस ने पूछा--"उस पन से हमें क्या ?"

"नहीं समझ सके?"

"नहीं तो।"

"अथस, जॉनबुल की तरह अंग्रेजी बोल सकने योग्य तुम मिस्टर होमलो बन जाओ और हम उसके तीनों साथी बन जाएँ । अब समझे?"

अथस प्रसन्नता से उछल पड़ा।

चारों ने मजदूरों जैसा भेष बना लिया और पाड़ बनाने चले। अथस के कन्धे पर आरी थी, पोरथस पर रन्दा, अरेमिस पर कुल्हाड़ी और डी आर्टगनन पर हथौड़ा और कीलें थीं।

आधी रात के समय राजा ने खिड़की के नीचे बहुत शोर-गुल सुना। यह सब कुछ हथोड़े की चोटों और चीरने-फाड़ने से हो रहा था। उस अन्धकार और निस्तब्धता में वह पहले से ही भयभीत हो रहे थे। इस शोर-गुल से उनकी रही-सही हिम्मत भी जाती रही । उन्होंने पेरी को द्वारपाल के पास यह कहला भेजा कि "जरा इन मजदूरों से कह दो, कम शोर मचावें। कम से कम इस अन्तिम रात्रि में तो मुझे सुख से सो लेने दे।"

पेरी ने बाहर जाकर पहरेदार से कहा परन्तु वह अपनी ड्यूटी से हट नहीं सकता था। इसलिए पेरी को ही वहाँ जाकर मना कर आने की आज्ञा उसने दे दी। महल का चक्कर काटकर पेरी ने उस खिड़की के नीचे पहुँच-कर देखा कि पाड़ अभी पूरी नहीं हो पाई है और वे लोग उसमें कीलों से काला कपड़ा लटका रहे हैं।

पाड़ की ऊँचाई जमीन से २० फीट ऊँची खिड़की तक थी। इसमें नीचे दो मंजिलें थीं। पेरी घृणा से उन आठ-दस मजदूरों को, जो अभी तक शीघ्रता से काम कर रहे थे, देखने लगा। वह देखना चाहता था कि किस [ ७८ ]आदमी के कार्य से राजा कष्ट पा रहे हैं। दूसरी मंजिल की ओर उसने देखा कि दो आदमी लोहे की कमानी सरका रहे हैं। हथौड़े की चोट पड़ते ही पत्थर खोल-खील होकर बिखर जाता है और एक आदमी घुटने टेके इधर-उधर पड़े हुए कंकड़ों को हटाता जाता है। उसे निश्चय हो गया कि यहीं के शोर की राजा शिकायत कर रहे थे।

पेरी जीने पर चढ़कर उनके पास गया और कहने लगा- "दोस्तो, अपना काम जरा धीरे-धीरे करो, जिससे शोर न मचे। मैं आप से यही प्रार्थना करने आया हूँ। राजा इस समय सो रहे हैं और उन्हें पूरे विश्राम की जरूरत है।"

हथौड़े से काम करने वाला व्यक्ति रुक गया और पीठ फेरकर उधर देखने लगा, पर अँधेरे के कारण पेरी उसका मुंह न देख सका। दूसरा आदमी जो घुटने टेके काम कर रहा था, वह भी मुड़ा। यह कम लम्बा था, अतः इसका चेहरा लालटेन के प्रकाश में दिखलाई पड़ रहा था। उस आदमी ने पेरी पर एक कड़ी दृष्टि डाली और उसके मुंह पर उँगलियाँ रख दीं। पेरी हड़बड़ाकर पीछे हट गया।

उस मजदूर ने कहा--“राजा से कह दो कि यदि आज रात को सुख से न सो सकेंगे तो कल रात को सुख से सो लेंगे।"

दूसरे मजदूरों ने भी कठोरता से हाँ में हाँ मिलाई। पेरी वहाँ से चल दिया। उसे ऐसा मालूम पड़ता था, मानो वह स्वप्न देख रहा है।

चार्ल्स बेचैनी से पेरी की बाट देख रहे थे। जब पेरी अन्दर आया तो पहरेदार ने यह जानने की इच्छा से कि राजा क्या कर रहे हैं, अन्दर झाँका। राजा कुहनी के सहारे पलंग पर लेटे हुए थे पेरी ने दरवाजा बन्द कर दिया। उसका चेहरा प्रसन्नता से लाल हो रहा था।

पेरी ने धीरे से कहा--"श्रीमन्, आपको पता है इतना शोर मचाने वाले वे मजदूर कौन हैं?"

राजा ने उदास भाव से सिर हिलाकर उत्तर दिया--"नहीं, मैं कैसे जान सकता हूँ? क्या वे आदमी मेरे परिचित हैं?"

पेरी ने पलंग पर झुककर जरा और धीरे से कहा--"श्रीमन्, वे हैं अथस और उनके साथी।" [ ७९ ] "मेरी पाड़ क्या वे बना रहे हैं?"

"हाँ, और साथ ही साथ दीवार में सूराख भी कर रहे हैं?"

राजा ने चारों ओर भयभीत दृष्टि से देखते हुए कहा--"सच! क्या तुमने देखा?"

"मैं तो बात भी कर आया।"

राजा ने दोनों हाथ जोड़कर ईश्वर से प्रार्थना की। वे खिड़की के पास गये और परदों को हटा दिया। पहरेदार अव भी पहरे पर थे। ठीक उसी के नीचे एक काले से चबूतरे पर वे परछाईं की तरह घूमते नजर आते थे। चार्ल्स को अपने पैरों के नीचे चोट पड़ने की आवाज सुनाई दी।

पेरी ने अथस को पहचान लिया था। यह पोरथस की सहायता से लट्ठा रखने के लिए दीवार में छेद कर रहा था। इस छेद का सम्बन्ध राजा के कमरे से था। कन्धा लगाकर कमरे के फर्श की ईंटें निकाली जा सकती थीं और राजा इस छेद में होकर बाहर निकल सकते थे और पाड़ के एक कोने में, जहाँ काला कपड़ा ढका हुआ था, छिप सकते थे। वहाँ छिपे ही छिपे मजदूर-जैसे कपड़े पहनकर वे अपने चारों साथियों सहित भाग सकते थे। पहरेदार बिना सन्देह किए ही उन मजदूरों को चले जाने की आज्ञा दे सकते थे, क्योंकि ये लोग पाड़ बनाने वाले थे। इधर काम भी खतम होने ही वाला था। उनके भागने की युक्ति सीधी, सच्ची और सरल थी। अथस के कोमल हाथ पत्थर निकालते-निकालते छिल गए थे, इसलिए पोरथस इस काम को करने लगा। आर्टगनन ने फ्रेंच कारीगर का छद्म-वेश बना रखा था। उसने कीलें ऐसी तरकीब से लगाई थीं कि एक चतुर कारीगर मालूम पड़ता था। अरेमिस ने ऐसा लबादा पहन रखा था जो जमीन तक लटकता था उसकी पीठ पर पाड़ का नक्शा कढ़ा हुआ था।

प्रभात हुआ। सर्दी के दिन थे। कारीगर लोग अपना काम छोड़-छोड़-कर आग जलाकर तापने के लिए वहाँ आ बैठे। केवल अथस और पोरथस ने अपना काम अभी तक नहीं छोड़ा था। सवेरा होने तक उन्होंने सूराख पूरा कर लिया। एक काले कपड़े में राजा के पहनने योग्य कपड़े लपेटकर अथस घुस गया। पोस्याले में कुश्मी पूकड़ा दी, और डी आर्टगनन ने कीलों से [ ८० ]अथस को सुराख के अन्दर रहकर अभी दूसरी दीवार और फोड़नी थी, तब कहीं जाकर वह राजा के पास तक पहुँच सकता था। इन चारों ने सोचा कि अभी तो सारा दिन पड़ा है, बधिक तो आवेगा ही नहीं, चलो बिस्टल से एक साथी और पकड़ लावें।

आर्ट गनन और पोरथस अपने-अपने कपड़े बदलने चले गए, और अरे-मिस पादरी से सहायता प्राप्त करने की आशा से उनके पास चला गया।

तीनों ने व्हाइटहॉल के सामने दोपहर को मिलने का निश्चय किया ताकि वे वहाँ की कार्यवाही देख सकें। पाड़ छोड़ने से पहले अरेमिस उस सुराख के पास, जहाँ अथस छिपा हुआ था, गया और उससे बोला कि मैं जाता हूँ। एक बार मैं चार्ल्स से मिलने का फिर प्रयत्न करूँगा।

अथस ने कहा--"साहस न खोना। राजा से सारा मामला कह सुनाना। उनसे कहना कि जब वे अकेले हों तो फर्श पर खटखटा दें ताकि मैं निश्चय-पूर्वक अपना काम करता रहूँ। अगर पेरी चिमनी का पत्थर हटाने में मेरी सहायता करे तो और भी अच्छा है। यदि कमरे में कोई पहरेदार हो तो फौरन उसे मार डालो। और जो दो हों तो एक को पेरी मार डालेगा और एक को तुम मार डालना। पर यदि तीन हों तो चाहे तुम मर भी क्यों न जाओ, किसी न किसी प्रकार राजा की रक्षा करना।"

अरेमिस ने कहा--"मैं दो कटार ले आऊँगा। इनमें से एक पेरी को दे दूंगा।"

"हाँ, अब जाओ पर राजा को सावधान कर देना कि खुशी में बहुत फूल नहीं। जब तुम लड़ रहे हो और उन्हें मौका मिले तो उनसे कह देना कि वे भाग जावें। फिर तुम चाहे मरना या जीना। दस मिनट तक तो सुराख का पता लग ही न सकेगा कि राजा किधर भाग गए। इन दस मिनटों में हम अपने रास्ते लगेंगे और राजा की प्राण-रक्षा हो जायगी|"

"जैसा तुम कहते हो, वह तो होगा ही अथस। लाओ हाथ मिलाओ। शायद अब हम कभी न मिलेंगे।"

अथस ने अपनी बाँहें अरेमिस के गले में डाल दी और दोनों बगलगीर होकर मिले।

उसने कहा--"तुम्हारी खातिर अब यदि मैं मर भी जाऊँ तो आर्टगनन

—च

[ ८१ ]से कहना कि मैं उसे अपने बच्चे की तरह प्यार करता था। मेरी तरफ से उसे गले लगा लेना। हमारे वीर पोरथस को भी गले लगाना।"

अरेमिस ने कहा- "इन जैसे राजभक्त शायद ही संसार में कोई हों।"

अरेमिस चल दिया और होटल में पहुँचा। वहाँ उसके दोनों साथी आग के सामने बैठे हुए शराब पी रहे थे और नाश्ता कर रहे थे। पोरथस खाता जाता था और पार्लियामेण्ट वालों को उनकी करतूतों के ऊपर कोस रहा था। आर्टगनन चुपचाप बैठा हुआ कुछ विचार कर रहा था।

अरेमिस ने सब हाल कह सुनाया। आर्टगनन ने सिर हिला दिया।

पोरथस ने कहा-"ठीक है, परन्तु राजा के भागने के समय हमें वहाँ हाजिर होना चाहिए। पाड़ के नीचे छिपने की अच्छी जगह है। आर्टगनन, मैं, ग्रीमोड और मास्कोटन, हम सब उनके आठ आदमियों को मार सकते है।

अरेमिस ने जल्दी से एक ग्रास खाकर एक गिलास शराब पी और अपने कपड़े बदल लिए|उसने कहा-"अब मैं पादरी के घर जाता हूं। हथियारों को संभाल लो। बधिक के ऊपर निगाह रखना आर्टगनन।" अरेमिस ने आर्टगनन को गले लगाया और चल दिया। चलकर वह पादरी जुक्सन के घर पहुँचा और अपने आने की खबर दी। पादरी महाशय उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने उसे तुरन्त अन्दर बुला भेजा।

कुछ बातचीत कर चुकने पर वे दोनों गाड़ी में बैठकर चल दिए। अभी नौ भी न बजे होंगे कि गाड़ी व्हाइट हॉल के सामने पहुँच गई। इस बीच में कोई विशेष घटना नहीं हो पाई थी। दो सिपाही तो दरवाजों पर तैनात थे और दो पाड़ के तख्तों पर इधर-उधर टहल रहे थे।

राजा अरेमिस को देखकर प्रसन्न हुए। उन्होंने जुक्सन को गले लगा लिया। पादरी जुक्सन ने पहरेदारों से वहाँ से हट जाने को कहा। सब चले गए।

दरवाजा बन्द होने पर अरेमिस ने कहा-"श्रीमान्, आप बच गए हैं। लन्दन का बधिक गायब है। उसके सहायक ने उसकी जाँघ तोड़ दी है। हमें पूरा निश्चय है कि बधिक यहाँ नहीं है और दूसरा बधिक ब्रिस्टल के सिवा

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[ ८२ ]यहाँ कहीं आस-पास मिल भी नहीं सकता। उसे वहाँ से बुलाने के लिए काफी समय चाहिए। इस हिसाब से कल तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी।"

राजा ने कहा-"लेकिन अथस?"

"आपसे दो फीट दूर है श्रीमान्। लोहे का डण्डा लेकर तीन बार खट-खटाइए। देखिए, वह आपको इसका उत्तर देता है कि नहीं।"

राजा ने ऐसा ही किया और उत्तर में तुरन्त ही फर्श के नीचे से खटखट की आवाज सुनाई दी।

राजा ने पूछा-"क्या वही उत्तर दे रहा है?"

“जी हाँ, अथस ही रास्ता बना रहा है, जिससे श्रीमान् निकल भागेंगे। पेरी यदि चिमनी के पत्थर को उठा लेगा तो आर-पार रास्ता बन जायगा।"

पेरी ने कहा-"पर मेरे पास औजार कहाँ हैं?"

अरेमिस ने कहा-"लो, यह खंजर लो पर इसकी धार बिगड़ने न पावे, क्योंकि इससे अभी और काम है।"

नीचे अथस अपना काम कर रहा था। उसकी ध्वनि प्रतिक्षण पास आती मालूम होती थी। पर अचानक कुछ शोर सुनाई दिया। अरेमिस ने लोहे का डण्डा लेकर खटखटा दिया और अथस को काम बन्द करने का संकेत किया।

शोर बढ़ता ही गया। अब पैरों की आवाज स्पष्ट आने लगी। चारों व्यक्ति चुपचाप खड़े हो गए। उनकी आँखें दरवाजे पर लग रही थीं। दरवाजा धीरे से खुला।

कुछ पहरेदार एक कतार बाँधे राजा के कमरे में आकर खड़े हो गए। पार्लियामेण्ट का एक कमिश्नर काली वर्दी पहने गम्भीर भाव से अन्दर आया। उसने राजा का अभिवादन किया और चमड़े की बसली को खोलकर एक वाक्य पढ़कर सुना दिया। पाड़ पर मरने के लिए जब कोई जाता है तो उसे इसी प्रकार यह वाक्य सुनाने का नियम है।

अरेमिस ने जुक्सन से पूछा- "इसका क्या अर्थ है?"

जुक्सन ने संकेत द्वारा उत्तर दिया कि मैं भी नहीं जानता।

राजा ने जुक्सन और अरेमिस की ओर देखते-देखते पूछा-"तब क्या

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आज का ही वध निश्चय रहा?"

कमिश्नर ने कहा-"क्या आपसे पहले ही नहीं कह दिया गया था श्रीमान, कि आज का ही दिन निश्चय हुआ है।"

राजा ने कहा-"क्या मैं एक साधारण व्यक्ति की भाँति लन्दन के एक बधिक के हाथों मारा जाऊँगा?"

"राज्य के बधिक का तो कुछ पता नहीं। पर एक अन्य व्यक्ति ने यह काम अपने हाथ में ले लिया है। वध कुछ समय के लिए रोक दिया है, ताकि आप इहलोक और परलोक का भली-भाँति चिन्तन कर लें।"

यह सुनकर राजा के रोम-रोम से पसीना बहने लगा, और अरेमिस का रंग एकदम काला पड़ गया। उसके हृदय की धड़कन मानो बंद हो गई। उसने आँखें बंद कर मेज पर हाथ टेक दिए। उनके इस गहरे दुख को चार्ल्स ने देखा। वह अपना दुख भूल गए और उसे गले लगा लिया।

उन्होंने उदास भाव से मुस्कराहट के साथ कहा-"धैर्य रखो।"

फिर कमिश्नर की ओर मुड़कर कहा-“महोदय। मैं तैयार हूँ। दो बातों की मेरी इच्छा है। आपको इसमें कुछ देर न लगेगी। एक तो मैं कॉम्यूनियन का स्वागत करूं और दूसरे अपने बच्चों को गले लगाकर अंतिम विदा ले लूं। क्या मुझे इनकी आज्ञा मिलेगी?"

"हाँ श्रीमान।" कमिश्नर यह कहकर चला गया।

राजा ने अपने घुटने टेककर कहा-"जुक्सन मेरी स्वीकृति सुन लीजिये।"

अरेमिस जाने लगा, परन्तु राजा ने उसे रोककर कहा-"ठहरो पेरी, स्वीकृति तुम भी सुन लो।"

जुक्सन बैठ गये और राजा सेवक की भाँति अपनी स्वीकृति कहने लगे।

स्वीकृति समाप्त कर चुकने पर चार्ल्स अपने बच्चों से मिलने दूसरे कमरे में चले गये। कुछ देर बाद वे लौट आए।

जनता की भीड़ इकट्ठी हो चुकी थी, वध का समय ठीक दस बजे रखा गया था। आसपास की गलियों में भी लोग भर गये थे। राजा उनके शोरगुल को खेदपूर्ण दृष्टि से देखने लगे। वे सोचने लगे, यह भयंकर कोलाहल

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[ ८४ ]जनता की अपार भीड़ का है या समुद्र का? जनता उत्तेजित अवस्था में और समुद्र अपने तूफान के समय ही ऐसा कोलाहल करता है।

राजा के चारों ओर सिपाही खड़े हुए थे। उन्हें भय हुआ कि कहीं आहट होते ही अथस अपना काम शुरू न कर दे, इसीलिए वे मूर्तिवत चुपचाप खड़े रहे।

राजा का अनुमान ठीक था। अथस ठीक उनके नीचे था। राजा ने सुना कि वह संकेत पाने की बाट में है। कभी-कभी तो वह बेचैन होकर पत्थर काटने लगता था। पर कोई सुन न ले, इस भय से तुरन्त ही बन्द भी कर देता था। दो घण्टे तक यही भयानक क्रम चलता रहा। मृत्यु की निस्तब्धता उस बन्दीगृह में छा गई।

अथस ने सोचा, मैं देखू तो, लोगों ने कैसा शोरगुल मचा रखा है। वह परदा खोलकर पाड़ की पहली मंजिल में उतर आया। यहीं पाड़ थी। उसे शोरगुल अब और भी जोर-जोर से सुनाई देने लगा। वह पाड़ के किनारे पहुँचा और काले कपड़े को खोला। उसने देखा कि सिर काटने का यन्त्र तैयार है। उसके पीछे बन्दुकधारी सिपाही हैं।

अथस ने भयभीत हो मन ही मन कहा-"यह क्या मामला है?" आदमी बढ़े चले जा रहे हैं, सिपाही हथियारबन्द हैं? और ये दर्शक लोग खिड़की की ओर एकटक क्या देख रहे हैं? मैं डी आर्टगनन को भी देख रहा हूँ, वह क्या घूमता है? हे भगवान्, क्या बधिक भाग निकला?"

अचानक ढोल बजा। उसके सिर के ऊपर पैरों की भारी आवाज सुनाई दी। उसे ऐसा लगा जैसे व्हाइटहॉल में कोई जुलूस निकल रहा है। फिर उसने किसी को पाड़ पर उतरते भी सुना। आशा, भय और विस्मय उसे परेशान कर रहे थे। वह कुछ समझ नहीं सका।

भीड़ की गुनगुनाहट बिलकुल बन्द हो गई थी। सबकी आँखें व्हाइटहॉल की खिड़की की ओर लगी हुई थीं। अधखुले मुख और रह-रहकर साँस यह बताती थी कि कुछ अनिष्ट होने वाला है।

लोगों ने देखा कि एक आदमी चला आ रहा है। उसके हाथ में नरघाती कुल्हाड़ी थी। इसी से वह बधिक मालूम पड़ता था। तख्ते पर पहुँचकर उसने कुल्हाड़ी रख दी।

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[ ८५ ]बधिक के पीछे शान्त भाव से दो पादरियों के बीच चार्क्स आए।

बधिक को देखते ही सब लोग सब कुछ समझ गये। सबको यह जानने की उत्सुकता थी कि यह अजनबी बधिक कौन है, जो ठीक मौके पर इस भयानक खून के लिए तैयार हुआ है। लोगों का विचार था कि बात कल के लिए टल गई है। बधिक मझले कद का था। उसके वस्त्र काले थे। उसकी उमर पक चुकी थी। उसकी पेशानी पर सफेद बाल लटक रहे थे।

राजा की शान्त सुन्दर और सजी हुई मूर्ति देखकर निस्तब्धता छा गई। लोग उनकी अन्तिम अभिलाषा सुनना चाहते थे।

चार्ल्स ने अधिकारी से कहा-"मैं लोगों से कुछ कहना चाहता हूँ।"

उन्हें आज्ञा दे दी गई।

राजा ने कहना शुरू किया। उन्होंने जनता को समझाया कि मेरा तुम्हारे प्रति कैसा व्यवहार रहा है। उन्होंने उसे इंगलैण्ड की शुभकामना मनाने की सलाह दी।

बधिक ने कुल्हाड़ी संभाली, परन्तु राजा ने उससे कहा-"कुल्हाड़ी को अभी मत उठाओ।" और फिर कुछ कहने लगे।

अथस के सिर पर जैसे वज्र गिरा। उसके माथे पर पसीने की बूंदें झलक रही थीं। जनता चुप और शान्त थी।

राजा ने दया-भाव से भीड़ पर दृष्टि डाली। फिर उन्होंने अपना लिबास उतारा, जिसे वे पहने हुए थे। यह वही हीरे का स्टार था, जिसे रानी ने उनके पास भेजा था। इसे जुक्सन के साथी पादरी को दे दिया गया। फिर उन्होंने छाती पर लटकता हुआ हीरे का क्रास निकाला। यह भी रानी ने भेजा था।

उन्होंने पादरी से कहा- "मैं इस क्रास को अन्तिम क्षण तक अपने हाथ में रखूँगा। जब मैं मर जाऊँ, तब इसे आप ले लें।"

"जो आज्ञा।" एक आवाज आई, जिसे अथस ने पहचान लिया कि यह अरेमिस की है।

चार्ल्स ने अपना टोप उतार लिया। इसके बाद उन्होंने एक-एक करके बटन खोल डाले और कोट भी उतारकर फेंक दिया। सर्दी का समय था, इसलिये उन्होंने अपना ऊनी बनियान पहनने को मांगा, जो दे दिया

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[ ८६ ]गया। ऐसा प्रतीत होता था कि राजा शय्या पर सोने को जा रहे हैं।

अन्त में अपने बाल उठाये हुए राजा ने बधिक से कहा-"यदि ये तुम्हारे कार्य में बाधा डालें तो उन्हें बाँध सकते हो।" यह कहकर उन्होंने एक दृष्टि उस पर डाली। कैसी चितवन थी, शान्त और सौजन्य से परिपूर्ण!

बधिक आँख से आँख न मिला सका। उसने पीठ फेर ली। अरेमिस उसकी ओर ज्वालामय नेत्रों से देख रहा था।

राजा ने जब देखा कि मेरी बात का बधिक कुछ भी उत्तर नहीं देता है, तो उन्होंने फिर दुबारा वही प्रश्न किया।

बधिक ने भर्राई हुई आवाज में कहा-“यदि आप इन्हें गर्दन पर से हटा लें तब भी काम चल जायगा।"

राजा ने अपने हाथों से बालों को गर्दन के दोनों ओर इकट्ठा कर लिया और सिर काटने की लकड़ी देखकर बोले-"यह तो बहुत नीची दीखती है। क्या जरा ऊँची न हो सकेगी?"

"यह तो जैसी होती है, वैसी ही है।" बधिक ने कहा।

"क्या तुम्हें निश्चय है कि एक ही चोट से तुम मेरा सिर काट लोगे?"

"मुझे तो यही आशा है।"

"ठीक है। अच्छा, जरा सुनो तो।"

बधिक राजा की ओर चला और अपनी कुल्हाड़ी के बल झुक गया।

"मैं प्रार्थना करने को झुकूँगा, उसी समय मुझ पर चोट मत करना।"

"तो मैं कब चोट करूं?"

"जब मैं अपना सिर टिकटी पर रख दूँ और अपने हाथ फैला दूँ और कहूँ-'सावधान' मेरे कहते ही तुम जोर से चोट करना।"

बधिक ने झुककर स्वीकार किया।

राजा ने अपने पास खड़े लोगों से कहा- "संसार-त्याग करने का समय आ गया है। मैं तुम्हें मँझदार में छोड़े जाता हूँ और स्वयं उस देश में जाता हूँ, जहाँ से फिर कोई नहीं लौटता। विदा।"

उन्होंने अरेमिस की ओर देखा और सिर हिलाकर एक विशेष संकेत किया। उन्होंने कहा-"अब सब चले जाओ और मुझे प्रार्थना कर लेने दो।"

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[ ८७ ]बधिक की तरफ मुंह करके कहा-“मैं तुमसे भी यही विनती करता हूँ। जरा सी देर की बात है, फिर मैं तुम्हारा ही हो जाऊंगा।"

चार्ल्स झुक गये। क्रास का संकेत हुआ। उन्होंने तख्त को चूमना चाहा।

उन्होंने फ्रेंच भाषा में कहा-“अथस! क्या तुम वहाँ हो? मैं बोल सकता हूँ?"

अथस के हृदय को इस आवाज ने ठेस पहुँचाई। उसने कांपते हुए कहा-"हाँ श्रीमान।"

"दोस्त, मैं अब किसी प्रकार भी बच नहीं सकता। मैंने ऐसे पुण्य ही नहीं किये थे। मैं इन सबसे बोल चुका हूँ, ईश्वर से भी बोल चुका हूँ, अब अन्त में तुमसे बोलता हूँ। एक पवित्र हेतु को दृढ़ रखने के कारण ही मेरे पूर्वजों की, मेरे बच्चों की राजगद्दी मुझसे छीनी जा रही है। सोने की एक लाख मोहरें न्यूकासिल की छत में, वहाँ से चलते समय छिपाकर रख दी थीं। इस रुपये से तुम मेरे बड़े बेटे की व्यवस्था करना। अथस! अब विदा दो।"

"विदा। बलिदान होने वाले पवित्र राजा, विदा।" अथस ने काँपती हुई आवाज में धीरे से कहा।

कुछ देर तक सन्नाटा रहा। फिर राजा ने गरजती आवाज में कहा-"सावधान।"

कठिनता से यह शब्द निकले होंगे कि एक भयानक चोट से पाड़ हिल गई। नीचे की धूल उड़ने लगी। तुरन्त ही अथस ने अपना सिर उठाया। खून की गरम बूंद उसके मस्तक पर पड़ी। पर वह अन्दर हो गया। खून की बूंदें अब जमीन पर गिर रही थीं।

अथस घुटने के बल गिर पड़ा; और थोड़ी देर तक पागलों की भांति पड़ा रहा। कोलाहल कम हो गया था, भीड़ चली गई थी। अथस फिर उधर चला और अपने रूमाल का छोर मृतक राजा के खून से रंग लिया। भीड़ कम होती जा रही थी। वह नीचे उतरा। कपड़े को खोला और दो घोड़ों के बीच में धीरे-से खिसककर भीड़ में मिल गया।

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