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इतिहास तिमिरनाशक 2/अर्ल आफ़ माइरा

विकिस्रोत से
इतिहास तिमिरनाशक भाग 2
राजा शिवप्रसाद 'सितारे हिंद'

लखनऊ: नवलकिशोर प्रेस, पृष्ठ ४१ से – ५० तक

 

अर्ल आफ़ माइरा

नयपालवाले बहुत दिनों से अपना राज बढ़ाते चलेआते थे। यहां तक कि अंगरेज़ी अमलदारी पर हाथ फैलाने लगे। जब समझाने बुझाने से कुछ काम नहीं निकला सर्कारनेलड़ाई १८१४ ई० की तयारी की राजा बालक था काम राज का काजीभीमसेन करता था। फ़ौजजंगी अ़लमदारी पर हाथ पर उसकी मजबूतीर बहादुरी पर पूरा एतिबार था। ३५०० आदमी जेनरल जिलस्पी के साथ सहारनपुर से देहरादून गये और वहाँ से अढ़ाई कोस के तफ़ावत पर नयपालियों के कलंगा नाम किले पर हमला किया किले में कुल छ सौ नयपाली थे लेकिन जेनरल जिलस्यो मारा गया। और सर्कारी फ़ौज को पीछेहटना पड़ा। बीस पच्चीस दिन में जब दिल्ली से भारी तोपें आन पहुंची तीन दिन के गोले बरसने में किले के अंदर कुल सत्तर आदमी जीते बाकी रह गये। पर सर्कारी फ़ौज के हाथ वेभी नहीं लगे किलेदार के साथ किसी तरफ़ को निकल गये ‌। इन को इस जवांमर्दी से नयपालियों का दिल बहुत बढ़ा और सर्कारी फ़ौज को नुकसान उठाना पड़ा। कलंगासे सर्कारी फ़ौज पच्छम सिरमौर की राजधानी नाहन के पास तक का किला लेने को गई । लेकिन वहां इसको कोशिश बेफाइदा हुई किले पर झंडा नयपालियों का फहराता रहा ४५०० आदमी जेन. रल ऊड के साथ गोरखपुर को सहब से पालपा का क़िला लेने को रवाना हुए। लेकिन रास्ता जंगल झाड़ी और तराईमेंऐसा खराब पाया कि जब बीमार पड़ने लगे बुटवल से लौटकर गोरखपुर को छावनी में चले आये। आठ हज़ार आदमीजेन- रल मार्लि के साथ दानापुर से. बेतिया होकर नयपाल की राजधानी काठमांडू लेने को चले लेकिन सर्हद्द पर पहुंचते

ही कुछ सिपाही कट जानेके सबब जेनरल माला ऐसाबेदिल हो गया। कि सर्हद्द की हिफाजत के लिये कुछथोड़ीसी फौज छोड़कर बेतिया हट आया। और जब इतनी मदद पहुंची कि १६००० आदमी इसके तहत में हो गये तब भी क्या जाने इसके मनमें क्या समाई बे कहे सुने अचानक एक दिन सूरज निकलने से पहले फ़ोज से निकाल कर किसी तरफ़ को चल दिया। इस अर्से में कर्नज गार्डनर मे रुहेलखण्ड से कमाऊ में घुस कर अलमारेका किला नयपाजियोंसेखालीकरवालिया। लेकिन कप्तान हिक्सी जो उस से शामिल होने को जाता था। शिकस्त खाकर नयपालियों की कैद में पड़गया निदान यहती जिलस्पी और माली सखों को उतावली ओर बेदिली थी। अब जेनरल अक्टरलोनी को बहादुरीसुनों इसनेछहज़ार आदमी लेकर हंड्ररकी राजधानी नालागढ़क्षनयपालियोंसे खाली कराली। नयपालियों का राज इस वक्त कोटकांगडे तक पहुंच गया था बिलकुल पहाड़ी राजाओं को उनके राज से बेदखल कर दिया था। या उन से भारी कर यानी ख़राज ठहराकर उन्हें अपनाज़ेलदार नालियाथा। बहुतेरे राजा इन नयपा- लियों के निकाले सर्कारी फौजकेसाथ खिदमत के लिये हाज़िर थे हमने इस लड़ाई काहालखुद राजारामसिंहनालागढ़वालेको जुबान सुना है वहउस वक्त जेनर न अकृरलोनी के साथथा नालागढ़ से सारी फ़ौज रामगढ़के तरफगयी नयपालियों का नामी जेनरल अमरसिंह थापा तीन हजार सिपाहीलेकरउसके बचाने को आया। जेनरल अकृरलौनी ने भी अपनी मदद के लिये कुछ ओर सर्कारी फौज के आ जानेका इन्तिज़ार करमा मुनासिब जाना। और फिर बड़ी अलमन्दी के साथमलोनके मज़बूत किले की तरफ कूच किया जब नयपाली रामगढ़ से १८१५ ई० मलोन के बचाने को चले रामगढ़ सहज़ में सर्कारके कब्जे में आगया। निदान सारी फौज तो उस पहाड़केनीचे जिसपर मलोन का किलाहै एक नदी के कनारपड़ीथी और नयपालियों


शिमला कोश्रजंटी के ताबे है।


मलीन से सूरजगढ़ तक पहाड़ पर मोरचे जमाये थे। रैला

और देषथल इसके बीचमें थे दोनों कमज़ोर थे। अकृरलीनी ने मेजर इनिस के तहत में तो कुछ फ़ौज रैला परभेजी और कर्नलटाम्सन को देवथल पर हमला करने का हुक्म दिया। इसी तरह कमान शवर्स को क़िले के नीचे नयपालियों की छावनी लेने को रवाना किया। कप्तान शवर्स मारा गया। लेकिन, रैला और देवथल सर्कारी फ़ौज के कब्जे में आया। दूसरे दिन अमरसिंह ने भक्तिसिंह को इन्हें वहाँसे निकालने के लिये बढ़ाया। और आप निशान के साथ बची हुई फ़ौज लेकर मदद को मुस्तइद रहा। नअघाली कमान की शकल भक्तिसिंह के पीछे भारेज़ो कोज का दोनों कमारा दबाएशेरों की तरह इस तरह पर संधेि बढ़े पाते थे कि अर्चि सकारी तोपखाने से ज़ंजीरी गोले झाडू की तरह मैदान को दुश्मनों साफ़ कर रहे थे इन नयपालियों के निशानों से सार्कारी तमाम तोपों पर कुल तीन अफ़्सर और तीन ही गोलंदाज़ वाक़ी रह गये। बाक़ी सबकाम आये या घायल होकरवेकाम हो गये। दो घंटे तक कामिल लड़ाई होती रही। आख़िर अंगरेजी जवानों में संगोनें चढ़ाई और नयपालियों पर हमला कर दिया पांव न ठहरसकेपीठ दिखाई। भक्तिसिंह की लोथ खेत रही अमरसिंह किले में घुसगया बीर ओर बहादुर दुश्मन भी इज्जत के लाइक है जेनरल अकृरलोनी ने भक्तिसिंह की लाश दुशाले में लपेट कर अमरसिंह के पास भिजवा दी। उसको दो स्त्रियां उस के साथ सती हुई सारी फ़ौजरोज़ बरोज़किला लेने की तदबीरें करती जातो थी। यहांतक कि आठवीं मई को हमला कर देने की तयारी हुई। अमरसिंह ने अबअपनी ताकत मुकाबले को न देखकर इश करार पर कि सर्कारउसके आदमियों को और जेतक के किलेवालों कोभी अपने हथियार और माल असबाब समेत नयपाल चला जाने दे किलों को ख़ाली करके जमना के पच्छम विलकुल इलाके छोड़ दिये। समरसिंह को शिकस्त खाने से नयपाली मुस्तपड़गये। पयाम

सुलह का भेजा। लेकिन जब सर्कार ने देखा कि वह ख़ाली दिन बिताना चाहते हैं और दूसरे साल फिर लड़नेका सामान तैयार करते जाते हैं सतरह हज़ार फ़ौज देकर जेनरल अकृर लोनी की कि अब ख़िताब मिलकर सर डेविड अकृरलीनी हो गया था नयपाल पर चढ़ाई करने का हुक्म दिया। इसने अपना लश्कर ऐसे ऐसे घाटे से और नाले खोलोसे कि जहांँ घने जंगलों के सबब सूरज की किरण भी नहीं पहुंचती थी निकालकर मकावनपुर से कोस भर के अंदर जा डाला। ओर एक अच्छी लड़ाई लड़ा। ५०० आदमी नयपालियों के मारे गये क़िलेदार ने कि काज़ी भीमसेन का भाई था कहला भेजा आप क्यों लड़ते हैं महाराज ने आप के कहने बमूजिक सुलहनामे पर दस्तख़त करदिया निदान इस सुलहनामे के बमूजिब काली नदी नयपाल की बच्छम सर्हद्द ठहरी। और शिकम के राजा की ज़मीन जो नयपालियों ने दबा ली थी पूरब में उसे लौटवा दी गयी। और काठमांडू में एक सर्कारी रज़ीर्डट का रहना फ़रार पाया। गवर्नर जेनरल को शाह के यहां से मार्किस अाफ़ हेस्टिंग्ज़ का ख़िताब मिला और पर डेविड अकृरलोनी के नाम में शुकराना आया

इस में शक नहीं कि मरहठों का ज़ीर घटा दिया गया था। पर उनका हौसिला भुभल में दबेहुए अंगारे को तरहसुल गतारहा। पेशवा फिर भी इनका पेशवा बनने की आर्जू रखता था‌। छुप छुप के नागपुर ग्वालियर और इन्दोर यानी भोसला सेंधिया और हुल्कर के पास आयाम भेजता रहताथा। बडोदे- वाला गायकवाड़ सर्कार के कहने मेंथा। इसीलिये पेशवा उस से ख़ार खाता था। आपस की किसी तक्रार के तस्फ़िये के लिये जब सर्कार ने जान की जिम्मेबरी लेकर गायब- वाड़ की तरफ़ से गंगाधरशास्त्रोको पेशवा के पास भिजवाया। पेशवा पंडरपुरमें था उसके मंची यानो दीवान विम्बकजी ने उसे पंडरनाथ के दर्शन को बुलाया। जब यह दर्शन

करके मंदिर से देर की तरफ लोटा। पांच आदामियों ने पीछे से झपटकर उसका काम तमाम कर डाला। सर्कार जान गयी कि यह पेशवा के इशारे से हुआ। लेकिनउससे कुछ न कहकर चिम्बक की बम्बई के पास ठाण के क़िले में कैद कर दिया। पेशवा को यह बहुत बुरा लगा। पर इलाज क्या था इस उसमें पिंडारों ने बड़ा जुलूम मचादिया था यह निरेलुटेरेथे। हिंदू मुसलमान सब कोमके आदमी उनमें शामिलथे। सवारीउनकी घोड़े से टट्टू तक। भोर हथियारउनके बंदूकसे निरसोंटेतका हज़ारोंही गिनती मेंथे मंज़िलों का धावा मारतेथे। जहाँजाते थे ठोकरे तक नहीं छोड़ते थे। भूलकर और संधिया मेइनको नर्मदा कनारे इलाकेदेरक्खे थे। और दुश्मनोंका इलाका नबाह करनेकोइन्हें बहुत अच्छा बसोला समझते थे। अबतकतोइन्हों ने पेशवा और हैदराबाद ओर नामपुरवाले के इलाकों को लूटा लेकिन अब सारी अमलदारी में भी थावा मारनाशुकिया। किसी साल बिहार का सूबा लूटा किसी साल सूरत जा घेरा किसी साल गंतूर और कड़पमें सिर ना निकाला॥ भवनर जेन- रल को मालूम हो गया कि जब तक यह पिंडारे नेस्तनाबूद म किये जायंगे इस मुल्क में अमन चैन को सूरत पैदा न होगी निदान गवर्नर जेनरल में हर तरफ से फाज़ों की रवा-१८१० ई० नगी का हुक्मराजी किया। और इस हुक्मसेयहां और दखन दोनों जगहमिलाकर एकलाख तेरह हजार आदमीका लश्कर ३०० तोपोके साथ रवाना हुआ। बंगाले को इकसठ हज़ार सिपाही में से बड़ा हिस्सा गवर्नर जेनरल के साथ कानपुर में था। दहना बाबू आगरे में रहा। बायां बुंदेलखंड में उसने बायें और भी दो टुकड़े मिरज़ापुर के पास और बिहार की सईट्ट पर थे बची हुई फौज सर डेविड अकरलोनी के तहत में दिल्ली की हिफाजत को रही। दखन को बावन हजार सिपाहमंदराजके कमांडरइनचीफ़सर टी० हिस्लपनेपांचहिस्सों में बांटी। लेकिन मसल मश़हूर है। बेल न कूदा कूदो गीन पिंडारों से तो अभी लड़ाई शुरू भी नहीं हुई थी। वैशवा

ने मुक़ाबले पर कमर बांधी। विम्बक ठाणा के क़िले से भाग आया था। विशवा सर्कार के दिखलाने को तो उसके गिरफ्तारी की कोशिश करताथा और छुपछुप कर उसे हर तरह कीमदद पहुंचाता था। जब नयी सियाह भरती करने लगा औरसकारी सिपाह को इधर से फोड़कर अपनी तरफ मिलाने की उसकी पैरवी ज़ाहिर हो गयी रज़ीडंट एलफिंस्टन साहिब ने अपनी फ़ौज को पूना के पूरब की छावनी छोड़कर उत्तर किरकी में रनीडंटी के पास अनाने का हुक्म दिया। पेशवा को यह बुरा लगा रज़ीडंट से कहला भेना कि आप इसहर्कतमे बाज़ रहिये रजीडंट ने साफ़ जवाब दिया और जब देखा कि पेशवा के सिपाही रज़ीडंटी और छावनी के बीच में जमा होने लगे रजीडंटी छोड़कर किरकी की छावनी में चला आया। पेंशवां के सिपाहियों ने रज़ीडंटी लूटकर जला दी। पेंशया की फौज में तख़मीनन दस हज़ार सवार और दस ही हज़ार पेदल होंगे और सारी सिर्फ पैदल सिपाही सो भी तीन हज़ार से कम लेकिन सकारी सिपाहियों ने हमला किया और पेशवा को सारी फौज को भगा दिया पेशवा मे पुरंदर की राह ली। वहां भी पर न जमे सितारे गया। जब वहां भी न ठहर सका सेवाजी के जानशीन यानी सितारे के राजा को उसके कुनबे समेत साथ लेकर बहले दखन की तरफ बढ़ा। फिर मालवे को फिरा। फिर पना की जानिब मुड आया। निदान आगे आगे तो येशवा * अपने नाम के अर्थ बजिबभागा चला जाता था और पीछे पीछे सर्कारी फ़ोज उसके रगेदने की परछाई की तरह पीछा किये हुए थी। पूना के पास भीमा किनारे कोरा गांव में एक छोटी सी लड़ाई भी हो गयी खेत सकारी फौजके हाथ रहा सितारे के किले पर सर्कार ने राजाका निशान चढ़ा दिया। और पेशवा की माजली का उसकेउहवे से इश्तिहार जारी किया! अष्टी की लड़ाई में पेशवा का


फ़ारसी में पेश आगे को कहते हैं पेशवा का अर्थ को मागेरहे इस का नाम बाजीराव था।
वफ़ादार जेनरल गोकला मारा गया। और सितारे का राजा अपने कुनबे समेत सर्कार की हिमायत में चला आया। निदान पेशवा इस क़दर हैरान और परेशान हुआ कि आख़िर थक कर और हार मानकर सन् १८१८ में आठलाख सालका पिंशन १८१८ई० क़बूल कर लिया। और मुल्क से दस्तबर्दार होकर गंगासेवन के लिये बिठूर में आ रहा चिम्बक को सकार ने गिरफ्तार करने जनम भर के लिये चनार के किले में कैद कर दिया।

इस पेशवाको उखाड़ पछाड़ में नागपुर के राजा आपासाहिब की नटखटी सार को बखूबो साबित हो गयी वह पेशवा ओर पिंडारों से साज़िश गहता था। और पूना को रज़ीउंटी फूंकने के बाद उसने पेशवा का दिया हुआ खिताब सेनापति का इतिमार किया था और अपने झंडे पर पेशवाकानिशान यानी जरीपटका चढ़ा दिया था। किस साहिब रज़ीडंट अपनी रज़ीडंटी की हिफाज़त का उपाय करने लगे रज़ीउंट के पास उस वक्त कुल तेरह सौ सिपाही थे ओर राजाकेपास बीस हज़ार सवार पैदल रज़ीडंटी और शहर के बीच में एक पहाड़ी सो हे नाम उसका सीताबलदी उसी पर सारीसिपा- हियों ने मोरचा नमाया। सत्ताईसवीं नवम्बर सन् १८१० को राजा को फ़ोन ने इनपर हमला किया इस लड़ाई में सकारी सिपाहियों ने निहायत बहादुरी दिखलायी यहां तक कि चोथाई कंट गये पर खेत न छोड़ा। राजा को सारी फ़ौज को जो दलबादल की तरह उमड़ आयीथी तीन तेरह करकेभगा दिया जब राजा ने यह हाल देखा। कहलाभेजा कि फ़ौजवे परवानगी लड़ी मुझेबड़ाअफ़सोस हे में सर्कारका तावहूंरजी़डंट ने जवाब दिया कि अगर तूसच्चाहे फोन छोड़कर हमारे पास चला श्राराजा रजीडंटी में चला आयारिज़ोडट ने उसेफिर नये सिर से नागपुरको गद्दीपर बिठाया। लेकिनयहनादानइस पर भी अपनी हर्कत से बाज़ न पाया। सकीर को दुश्मनोर पेशवाकोटोस्त समझता रहा।तबनाचार सकार ने उसे नजबंद पारके इलाहाबाट कोरवाना किया। ओर उसकोजगह नागपुरको

गद्दी पर रघुजी भौंसलाके पोते को बिठाया। लेकिनआपारास्ते से भागकर नागपुर से ८० कोसपर नर्मदा के दखन एक पहाड़ी गोंद सर्कार की पनाह में चला गया। और वहां फ़ौजजमाकरके १८१६ई० बखेड़ा उठाने लगा। निदान सन १८१६ में जब सर्कार ने उसके इलाज को तदबीर को वह उन जंगलपहाडोंकोछोड़कर सेंधिया के क़िले असीरगढ़ में जा घुस्थ और फिर फ़कीरी भेस में पंजाब की तरफ चला गया। सर्कारने जोधपुर के बजाकी फे़ल ज़ामिनी पर इसे वहां रहनेकी इजाज़तदी ओरएनमुद्रत बाद उसी जगह इसका मरना हुआ। सन ने इस क़सूर पर कि असीरगढ़ के किल्लेदार ने आपा साहिब को पनाह दी थी और क़िलेदार को सेंधिया की पोशीदा पवानगीथी संधिया को सजा देने के लिये उस मशहूर मन बूत किले को घेरकर अपने दखल में कर लिया। अब रह गयाहुल्कर सो जस्वना- राव घा तो परलोक होगया था उसकी रानी तुलसीबाईने एक लड़का गोद लेकर गद्दी पर बिठाया। तुलसी बाई ने अपनी सोन के डर से अपने यार गनपतराव समेत सारी पनाह में चला आना चाहा। लेकिन फोज में इस में अपनीतबाहीसम- पहर तुर्त उसका सिर काट डाला और लड़के राजा क ग्राम से सकार साथ लड़ने का सामान किया। मंदराजका कमांडरइनचीफ जो पास हो मोजूद था बिजली की तरह फोन लेकर इनके सिर पर पहुंचा। और सिमा पार मही- दपुर में इन्हें ऐसा काटा मारा और भगाया कि तब से वह रान बिलकुल सुस्त पड़ गया। सन् १८५० में सुलहनामा लिख गया। क्या महिमा हे सर्व शक्तिमान जगदीश्वर की कि सकार ने तो खाली लुटेरों ओर डाकू यानी पिंडारों का इस फोन से नाश करना चाहा था लेकिन वहां उनके हिमायतो बल्कि बानी मबानी यानी मूलकारण मरहठों ही का नाश होगया। गोया बिल्कुल हिन्दुस्तान बेखलिश हुआ और आप से आप सकार के सायेमें चलाया। सिवायसितारे के तमाम इलाके पेशवा के और अक्सर इलाके नागपुर के

दख़ल में आ जाने से सर्कारी अ़मल्दारी बहुत बढ़ गयी अजमेर भी इनके क़ब्जे़ में आया। और कच्छ गुजरात और रच- पुताने के सब राजाओं ने बल्कि उदयपुर के रानाओं मे भी जिन्हों ने न मुसल्मानों के स्त्रम्हने और न मरहठों के आगे कभी सिर झुकारण था बड़ी खुशी से सर्कार का हिफ़ाज़त की हाथ अपने ऊपर क़बूल किया। जब पेशवा ऐसे सर्दार की जो नव लाख घोड़ों का धनी कहलाता था बाई पचंययी तो अब पिंडारों का हम क्या हाल लिखें इतना ही लिखना काफ़ी है कि दखन की सर्कारी फोन ने नर्मदा पार होते ही पिंडारों के बिजुकुल इलाकों में कब्ज़ा करके उन्हेंतोनतेरह करदिया। ओर बंगालेकी सारी फ़ौज ने भी खूब उनका शिकारकिया। अमीरखां ने जिसके जानशीन अव टों के नबाब सहलाते हे अपनी लुटेरे फ़ौज दूर करके सर्कार को अहदनामा लिख दिया। अरीमखां ओर वासिलमुहम्मद पिंडारों के सारों ने जो महोदपुर में हुल्करको फ़ौजके साथमार्कार से लड़े ने अपने तई सर्कार के हवाले कर दिया। सकार में उन्हें खाने को गोरखपुर में जागीरें दी बासिलमुहम्मद ने भागना चाहा था और जब भाग न सका जहर पार भर मया। इन पिंडारों का नामी सदार चीतू जो आपा साहिब के साथ असीरगढ़ तक गया था जंगल में शेर का लुकन्न हुआ।

लखनऊ का मब्बाब वज़ीर संबादत अलीखां सन् १८१४ मैं मर गया था। उसके बेटे और नानशीन ग़ाजियुमोनहेदर में अब प्रकारकोइजाज़त से लकबबादशाहका इख्तियार किया।

माचिस श्राफटिंग्ज सन् १८२३ में गवर्मरजेनरलके उढे १८२३ ई० के मुस्ताफ़ी होकर विलायत गया । मोर वहांठसेइनखिदमती के नाम में छ लाख रुपये की कीमत कह सकीर से इलाका मिला। इस के उहदे पर जार्ज केनिंग * मुर्रर लेकिन पीछेसे जब उस ने उससे इनकार किया लार्ड सम्हस्ट


इसी के बेटे लार्ड केनिंग ने सन १८५७ का बना दबाया और इस मुलक को तबाह होने से बचाया। हुआ था। गवर्नर जेनरल मुक़र्रर होकर पहली अगस्त की कलकत्ते में दाख़िल हुआ।