इतिहास तिमिरनाशक 2/लार्ड एम्हर्स्ट
लार्ड एम्हर्स्ट
नयपालियों की तरह बर्मावालों का भी सिर खुज लाया। मुल्क बढ़ाने का शोक़ पैदा हुआ। अराकान मनीपुर
और आसाम फ़तह करके कचार पर चढ़ाई की। कचार
के राजा ने सर्कार की पनाह ली सकार ने उसकी मदद को
फ़ौज भेजी। लेकिन बहीवालों का तो सिर आसमान पर
चढ़ा हुआ थो गवर्नर जेनरल से कहला भेजा कि चटगांव
ढाका और मुर्शिदाबाद भी किसी ज़माने में हमारे
मूलक हिस्सा था भला चाहते हो तो अब भी छोड़दो गवर्नरजेनरल
तो हंसकर सुन रहे लेकिन इन पागलों ने सारी इलाकों को
अपनी नानी जी को मीरास समझकर चटगांव के कनारे पर
जो शाहपुरिया के टापू में सर्कारी चौकी के तेरहं जवान थे
तीन, उन में से काट डाले। बाकी बचारे जान लेकर भागे।
१८२४ ई०.निदान पांचवीं मार्च सन् १८२४ को सर्कार ने लड़ाईका इशितहार दिया। कुछ थोड़ी सी फ़ौज ने तो ब्रह्मपुत्र के किनारे
किनारे जाकर बिल्कुल आसाम में दखल किया। और दूसरी
ने अराकान जा लिया। और बाकी ११००० फ़ौज ने जहाज़ों
में सवार होकर रंगून पर निशान चढ़ाया। जब सर्कारी फ़ौज
बम्ही की राजधानी आवा लेने के इरादे वहां से भागेबढ़ी।
हर लड़ाई में बम्हावालों पर फतह बाती गयी। लेकिन
पाबहवा की खराबी ओर बेगाना मुन्क होने के सबब
आदमी और रुपया दोनों का बड़ा नुकसान हुआ। बड़ें
बड़े बिकट जंगल और दलदलों में लड़ना पड़ा। अंधे
के हाथ से बटेर लगे मैंगोमहाबंदूला के आदमियों ने
कहीं चटगांव के जिले में रामके दर्मियान ३५० सकारो सिपाही
काट डाले थे रावाने इसे सरारुस्तुमसमझा। सेनापति मुक़र्रर
इन में डायना नाम पहला हो धुएं का जहाज़ या को
लड़ाई के लिये भेजा गया।
करके सर्कारी फ़ौज के मुक़ाबले को भेजा। इसने भी बीड़ा
उठाया कि बे फ़रंगियों के निकाले दौर में मुंह नहीं दिख-
लाऊंगा लेकिन सच उसने मुह नहीं दिखलाया। कईलड़ाइयों
के बाद डुनाव्यू के क़िले में बान लगकर मर गया। निदान
जब सर्कारी फ़ौज इन्हें शिकस्तदेतीइनके क़िलेऔरतोपखानेले.
ती फतहके निशान उड़ाती आवासे कुलचारमंज़िलइधरयंडाबू
में जा पहुंची। राजानेघबराकरसुलहकरली। चारशिस्तमिएका १८२६ ५०
करोड़ रुपया लड़ाई के खर्चबाबतदिया। और आसाम अरा-
कान और मर्तबान के दखन का बिलकुल मुलक छोडदिया।
इसी लड़ाई के शुरू में सैंतालीसवीं पल्टन को और दो पलटनों के साथ जो बारकपुर को छावनी में थीं रंगून हुक्म हुआ था। सिपाही समुद्र का नाम और बम्हाँ की आबहवा और रामको कत्लका हालसुनकर हिचकिचा गये जाने से इनकार किया। परेड पर दो गोरोंको घम्टनें कलकत्ते में बुलायी गयीं सैंतालीसकों के बहुतेरे सिपाही तोपसे उड़ा दिये गये बहुतेरे फांसी पड़े बहु तेरों ने केद में मिट्टी काटी बाकी के नाम कट गये।
भरतपुर में। सन१८२३। राजा रंजीतसिंहके बेटेरणथीर
सिंह के लावल्द मरने पर रणधीरसिंह का भाई बलदेवसिंह
गद्दी पर बैठा। उसकेभतीजे दुर्जनसालने इसझूठीबातपर कि
मुझे रणधीर सिंहने गोद लिया था गद्दीका दावाकिया। बल-
देवसिंह ने अपने लड़के बलवन्त सिंहको रजपुतानेकेरजीडंट
सर डेविड कांफरलोनी की गोद में रख दिया। और कहा कि
दुर्जनसाल ज़रूर मेरे बाद बखेड़ा करेगा मैं चाहता हूं कि
प्रांप मेरे रहते मेरे लड़के को सर्कार की तरफ से गट्टी या
- लेकिन अपनी तवारीखों में यही लिखा कि किसी टापू जंगली आदमी भूलकर इस मुलक पर चढ़ आये थे जब भूखों मरने लगे दयावान महाराज ने करोड़ रुपया राहवर्च देकर अपने वतन को लौट जाने की इजाजत मरहमतफाई यह हाल हैं रशिया को तवारीखों का! छठा दें रज़ीडंट ने खुशी से यह बात कबूल को और बलवन्तसिंह को गद्दी पर बैठा दिया। सन् १८८५ में बलदेवसिंह का परलोकहुआ। दुर्जनसालने बलवन्तसिंह के मामू को मार डाला ओर बलवन्तसिंह को क़ेदकरके राजगद्दी पर आप बैठा। सर डेविड अक्टरलोनी ने लड़ाई को तयारी की। लेकिन सर्कार ने उसकी यह तजवीज़ पसंद और मंज़ूरन की। सर डेविड अकृरलोनी ने उसी दम इस्तीफ़ा भेजा। और मेरठ के मुक़ाम में मरगया। भरतपुरवालों का गुमान है कि उसने ज़हर खाया। उसके उ़हदेषरसरचार्लस् मेटकाफ़
मुकर्रर हुआ। इस अर्से में दुर्जनसाल का भाई माधोसिंह उस से बिगड़ गया। और डोंग में जाकर सिपाही भरतीकरने लगा सकार ने देखा कि पिंडारों की तरह यह लोग फिर लूट मार का बाजार गर्म करेंगे और होसे होते मारी अमल्दारी में फ़साद उठावेंगे दुर्जनसालकोबहुत समझाया। जब उसने कुछ न माना लाईकम्बरमिश्रर कमांडरइन्चोफको बीस हज़ार फोज देकर दुर्जनसोल के निकालने के लिये भेजा। दसों दिसम्बर को सर्कारीलश्कर भरतपुरके साम्हने पहुंचा। और अठारहवों जनवरी को सुरंगें उड़ा कर किला तोड़ा। दुर्जनसाल[१] पकड़ा गया बलवन्तसिंह को सर्कार ने नये सिर से गद्दी पर बिठाया।
इन्हीं दिनों में यानी सन् १८०४ में सर्कारीनेडव लोगों की सुमिचा के टाप में बनकुलन देकरउनसे मलाका और सिंहपुर का टापू ले लिया। और यही स्ट्रेट सेटलमेन्ट कहलाया।
- ↑ बनारस भेजा गया और उसी जगह मरा।