कामना/1.2

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कामना  (1927) 
द्वारा जयशंकर प्रसाद

[  ]दूसरा दृश्य

स्थान-वृक्ष-कुंज

(एक परिवार बैठा बातचीत कर रहा है)

बालिका–मां, कोई कहानी सुना।

बालक-नही मां, तू बहन से कह दे, वह मेरे साथ दौड़े।

माता-थोड़ा-सा बुनना और है । मैं कहानी भी सुनाऊँगी, और तुझे दौड़ाऊँगी भी। आज तूने कम खाया, क्या भूख नहीं थी ?

बालिका–मां, आज यह दौड़ न सका, इसी से-

माता-तो तूने इसे क्यों नहीं खेल खिलाया ?

बालक-मां, आज वहाँ लड़कों में कामना नहीं

आई । इससे बहुत कम खेल-कूद हुआ।

(एक स्त्री का प्रवेश)

स्त्री-अजी कहाँ हो बहन ! कुछ सुना ?

माता-क्यों बहन, क्या है ? आओ,

स्त्री-अरे आज तो एक नई बात हुई है।

माता-क्या?

स्त्री-समुद के उस पार से एक युवक आया है। बैठो। [ १० ]माता-सपना तो नहीं देख रही है।

स्त्री-क्या ! मै अभी देख आ रही हूँ।

माता–कहाँ है ? वह कहाँ बैठा है ?

स्त्री-कामना के घर मे । उसी के साथ तो वह द्वीप मे आया है।

माता-वह उसे क्यो ले आई ? क्या किसी ने रोका नहीं? उपासना-मंदिर से क्या आदेश मिला कि वह नवीन मनुष्य इस देश में पैर रखने का अवि- कारी हुआ, क्योकि यह एक नई घटना है ।

स्त्री-आजकल तो उपासना का नेतृत्व उसी कामना के हाथ मे है, तब दूसरा कौन आदेश देगा ?

बालक-वह कैसा है मां ?

बालिका-क्या हमी लोगो के जैसा है ?

स्त्री-और तो सब कुछ ही लोगो का-सा है। केवल एक चमकीली वस्तु उसके सिर पर थी। कामना कहती है, अब उसने वह मुझे दे दी है । उसे सिर में बॉधकर कामना बड़ी इठलाती हुई सबसे बाते कर रही है।

(एक किशोरी बालिका का प्रवेश)

किशोरी-सब लोग चलो, आगंतुक के लिए एक [ ११ ]घर की आवश्यकता है । कामना ने सहायता चाही है ।

(सब जाते है । लीला और सन्तोष का प्रवेश)

लीला-हाँ प्रियतम ! इस पूर्णिमा को हम लोग एक हो जायेंगे।

सन्तोष-परंतु तुम्हारी सखी तो-

लीला -अरे सुना है, उसने भी वरण किया है।

सन्तोष-किसे ? वह तो इससे अलग रहा चाहती है।

लीला -कोई समुद्र-पार से आया है।

सन्तोष-हॉ, आने का समाचार तो मैने भी सुना है; पर उस नवागंतुक से क्या इस देश की कुमारी ब्याह करेगी?

लीला -क्यो, क्या ऐसा नहीं हो सकता ?

सन्तोष-अभी तक तो नही सुना, क्या किसी पुरानी कहानी मे तुमने ऐसा सुना है ?

लीला-परंतु कोई आया भी तो नहीं था।

सन्तोष-यह तो ठीक नहीं है । सुना है, उसका नाम विलास है।

लीला-ठीक तो नहीं है; पर होगा यही । [ १२ ]सन्तोष-यदि विरोध हुआ, तो तुम क्या करोगी?

लीला-मेरी सखी है। आज तक तो इस द्वीप मे विरोध कभी नहीं हुआ !

सन्तोष-तो मैं विचार करूँगा । तुम्हारे पथ पर मैं चल सकूँगा ?

लीला-(आश्चर्य से) क्या इसमें भी सन्देह है ?

सन्तोष-हाँ लीला-

लीला-नहीं-नहीं, ऐसा न कहो-

( दोनों जाते हैं)