कामना/1.3

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कामना  (1927) 
द्वारा जयशंकर प्रसाद

[ १२ ]

तीसरा दृश्य

स्थान-कुज-वन

( कामना के साथ बैठा हुआ विलास)

कामना-प्रिय, अब तो तुम हम लोगों की बातें अच्छी तरह समझने लगे । जो लोग मिलने आते हैं, उनसे बातें भी कर लेते हो।

विलास-हॉ, अब तो कोई अड़चन नहीं होती प्रिये ! तुम लोग कुछ गाती नहीं हो क्या ? [ १३ ]कामना-गाती क्यों नहीं हैं, पर तुम्हे हमारे गाने अच्छे लगेंगे?

विलास-क्यों नहीं, सुनूं तो।

(कामना गाती है और विलास बाँसुरी बजाता है)

सघन वन-वल्लरियों के नीचे

उषा और सन्ध्या-किरनों ने तार बीन के खींचे हरे हुए वे गान जिन्हे मैंने आँसू से सीचे स्फुट हो उठी मूक कविता फिर कितनों ने दृग मींचे स्मृति-सागर मे पलक-चुलुक से बनता नही उलीचे मानस-तरी भरी करुना-जल होती ऊपर नीचे

विलास-कामना ! कामना ! तुम लोगों का ऐसा गान है । इसे गान कहते है। मैने तो ऐसा गान कभी नहीं सुना !

कोमना- (आश्चर्य ) क्या ऐसा गान कहीं नहीं होता?

विलास-इस लोक में तो नहीं।

कामना-तब तो बड़ी अच्छी बात हुई।

क्लिास-क्यों ?

कामना-मैं नित्य सुनाऊँगी। [ १४ ]विलास-क्यो प्रिये, तुम्हारे देश के लोग मुझसे अप्रसन्न तो नहीं है ? क्या तुम-

कामना-इसमें अप्रसन्न होने की तो कोई बात नहीं है। यह तो इस द्वीप का नियम है कि प्रत्येक स्त्री-पुरुप स्वतंत्रता से जीवन-भर के लिए अपना साथी चुन ले।

विलास.—क्या तुम किसी का डर नहीं है ?

कामना-( अल्हड़पन से ) डर ! डर क्या है ?

विलास-क्या तुम्हारे ऊपर किसी की आज्ञा नहीं है?

कामना-हॉ है, नियम की। वह तुम्हारे लिए टूट नहीं रहा है। और, इस समय तो मै ही इस द्वीप-भर की उपासना का नेतृत्व कर रही हूँ। मेरे लिए कुछ विशेष स्वतंत्रता है।

विलास-क्या ऐसा सदैव रहेगा ?

कामना-(चौंककर ) क्या मेरे जीवन-भर ? नही, ऐसा तो नहीं है, और न हो सकता है।

विलास-(गम्भीरता से) क्यों नहीं हो सकता ? हमारे देश में तो बराबर होता है। [ १५ ]कामना-(प्रसन्नता और घबराहट से ) तो क्या मेरे लिए यहाँ भी वह सम्भव है ?

विलास -उद्योग करने से होगा।

कामना-चलो, उस शिलाखंड पर अच्छी छाया है, वही बैठे।

( हाथ पकड़कर उठाती है। दोनो वहीं जाकर बैठते हैं )

विलास-कामना, तुम लोगो की कोई कहानी है ?

कामना-है क्यो नहीं।

विलास-कुछ सुनाओ । इस द्वीप की कथा मै सुनना चाहता हूँ।

कामना-( आकाश की ओर दिखाकर) हम लोग बड़ी दूर से आये है। जब विलोड़ित जलराशि स्थिर होने पर यह द्वीप ऊपर आया, उसी समय हम लोग शीतल तारकाओ की किरणो की डोरी के सहारे नीचे उतारे गये । इस द्वीप मे अब तक तारा की ही संतानें बसती है।

विलास-क्यो यह जाति उतारी गई ?

कामना-वहाँ चुपचाप बैठने से यह संतुष्ट नहीं थी। पिता ने खेल के लिए यहाँ भेज दिया। इन [ १६ ]तारा की संतानो का खेल एक बड़े छिद्र से पिता देखा करते हैं।

विलास-कौन-सा छिद्र?

कामना-वही, जिससे दिन हो जाता है । पिता का असीम प्रकाश उससे दिखलाई पड़ता है; क्योकि वह केवल आलोक है। रात को मँझरीदार परदा खीच लेता है । वही कहीं-कहीं से तारे चमकते हैं। यह सब उसी लोक का प्रकाश है।

विलास-अच्छा, तो वहॉ जाते कैसे हैं ?

कामना-पिता की आज्ञा से, कभी छोटी, कभी बड़ी एक राह खुलती है, और किसी दिन बिलकुल नहीं, उसे चंद्रमा कहते हैं । अपने शीतल पथ से थकी हुई तारा की संतान अपने खेल समाप्त कर उसी से चली जाती है।

विलास-( आश्चर्य से ) भला तारों की राह से ये क्यों भेजे जाते हैं ?

कामना— यह खिलवाड़ी और मचलने वाली संतान थका देने के लिए भेनी जाती है। हमारे अत्यंत प्राचीन आदेशों मे तो यही मिलता है, ऐसा ही हम लोग जानते है। [ १७ ](दूर एक बड़ा सुरीला पक्षी बोलता है। कामना घुटने टेक कर सिर झुका लेती और चुपचाप उसका शब्द सुनती है)

विलास-कामना ! यह क्या कर रही हो ?

कामना-( उठकर ) पिता का संदेश सुन रही थी। मैं उपासना-गृह में जाती है, क्योकि कोई नवीन घटना होने वाली है । तुम चाहे ठहरकर आना ।

(चली जाती है)

विलास-आश्चर्य । कैसी प्रकृति से मिली हुई यह जाति है । महत्त्व और आकांक्षा का, अभाव और संघर्ष का लेश भी नहीं है । जैसे शैल-निवासिनी सरिता, पथ के विपम ढोको को, विघ्न-बाधाओ को भी अपने सम और सरल प्रवाह तथा तरल गति से ढकती हुई बहती रहती है, उसी प्रकार जह जाति, जीवन की वक्र रेखाओं को सीधी करती हुई, अस्तित्व का उपभोग हॅसती हुई कर लेती है। परंतु ऐसे- (चुप होकर सोचने लगता है) ऊहूँ, करना होगा। ऐसी सीधी जाति पर भी यदि शासन न किया, तो मनुष्य ही क्या ? इनमे प्रभाव फैलाकर अपने नये और व्यक्ति- गत महत्ता के प्रलोभन वाले विचारो का प्रचार करना होगा। जान पड़ता है कि किसी गुप्त संकेत पर ये [ १८ ]लोग प्राचीन प्रथा के अनुसार केवल उपासना के लिए किसी के नेतृत्व मे अनुसरण करते है। सम्भवतः जब तक लोग उसकी कोई अयोग्यता न देख लेगे. तब तक उसी को नेता मानते रहेगे । भाग्य से आज- कल कामना ही है; परंतु मेरे कारण शीघ्र इसको अपने पद से हटना होगा। तो जब तक यह इस पद पर है, उसी बीच में अपना काम कर लेना होगा ।

(दूर पर एक स्त्री की छाया देख पड़ती है)

छाया-मूर्ख। अपने देश की दरिद्रतासे विताडित और अपने कुकर्मों से निर्वासित साहसी ! तू राजा बना चाहता है ? तो स्मरण रख, तुझे इस जाति को अपराधी बनाना होगा। जो जाति अपराध और पापो से पतित नही होती, वह विदेशी ता क्या, किसी अपने सजातीय शासक की भी आज्ञाओ का बोझ [ १९ ](विलास जाता है । छाया अदृश्य हो जाती है)

(एक ओर से कामना, दूसरी ओर से विनोद का प्रवेश)

कामना-विनोद ! तुम इधर लीला से मिले थे? वह तुम्हे एक दिन खोज रही थी।

विनोद-सन्तोष के कारण मै उससे नही मिलता । आज उसका ब्याह होने वाला था न।

कामना-वह सन्तोष से न ब्याह करेगी ? चलो, फूलो का मुकुट पहनाकर तुम्हे ले चलूं।

विनोद-मै?

कामना-हाँ।