कामना/2.3
तीसरा दृश्य
स्थान-कुटीर
(विनोद और लीला)
लीला—मेरा स्वर्ण-पट्ट ?
विनोद—अभी तक तो नहीं मिला।
लीला—आज तक तो आशा-ही-श्राशा है।
विनोद—परंतु अब सफलता भी होगी।
लीला—कैसे?
विनोद-अपराध होना आरम्भ हो गया है। अब तो एक दिन विचार भी होगा। देखो, कौन-कौन खेल होते है।
लीला-तुम उन दोनों को कहाँ रख आये ?
विनोद-पहले विचार हुआ कि उपासना-गृह
५५
या संग्रहालय मे रक्खे जायें । फिर यह निश्चित हुआ
कि नहीं, मित्र-कुटुम्ब के लिए जो नया घर बन रहा
है, उसी में रखना चाहिये । और, उन शिकारियों को
वहाँ रक्षक नियत किया गया है।
लीला-इस विचार-योजना मे कुछ-न-कुछ तुम्हे मिलेगा।
विनोद-परंतु लीला, हम लोग कहाँ चले जा रहे हैं, कुछ समझ रही हो ? समझ मे आने की ये बाते हैं?
लीला-अच्छी तरह । ( मदिरा का पात्र भरती हुई ) कहीं नीचे, कहीं बड़े अंधकार में ।
विनोद-फिर मुझे क्यो प्रोत्साहित कर रही हो ?
(लीला पात्र मुंह से लगा देती है, विनोद पीता है)
लीला-आज तुम्हे गाना सुनाऊँगी।
विनोद-(मद-विह्वल होकर) सुनाओ प्रिये !
(लीला गाती है)
छटा कैसी सलोनी निराली है,
देखो आई घटा मतवाली है।
आओ साजन मधु पियें, पहन फूल के हार ;
फूल-सदृश यौवन खिला, है फूल की बहार ।
भरी फूलों से बेले की डाली है ॥ छटा० ॥
शीतल धरती हो गई, शीतल पड़ी फुहार ;
शीतल छाती से लगी, शीतल चली बयार ।
सभी ओर नई हरियाली है ॥ छटा० ॥
(सहसा कामना का कई युवकों के साथ प्रवेश)
कामना—फूल के हार कहाँ लीला | तपा हुआ सोने का हार है । शीतलता कहाँ, ज्वाला धधक उठी है। यह आनंद करने का समय नही है ।
विनोद—क्या है रानी ?
कामना—विनोद, ये शिकारी उन अपराधियो के रक्षक है, इन्हे दिन-रात वहाँ रहना चाहिये । तब इनके जीवन-निर्वाह का प्रबंध—
विनोद—जैसी आज्ञा हो ।
(विलास का प्रवेश)
विलास—ये शिकारी नहीं, सैनिक हैं, शांति- रक्षक है । सार्वजनिक संग्रहालय पर अधिकार करो। इनमे से कुछ उसकी रक्षा करेगे, और बचे हुए कारागार की।
विनोद—कारागार क्या ?
विलास—वही, जहाँ अपराधी रक्खे जाते है, जो शासन का मूल है, जो राज्य का अमोघ शस्त्र है।
लीला—(विनोद से) यह तो बड़ी अच्छी बात है।
५७
कामना
कामना-विनोद, मैं तुमको सेनानी बनाती हूँ। देखो, प्रबंध करो। आतंक न फैलने पावे ।
विलास-यह लो सेनापति का चिन्ह ।
(एक छोटा-सा स्वर्ण-पट्ट पहनाता है। कामना तलवार हाथ मे देती है । सब भय और आश्चर्य से देखते हैं)
कामना-(शिकारियों से ) देखो, आन से जो लोग इसकी आज्ञा नही मानेगे, उन्हे दंड मिलेगा।
(सब घुटने टेकते हैं)
विलास-परंतु सेनापति, स्मरण रखना, तुम इस राजमुकुट के अन्यतम सेवक हो। रानसेवा में प्राण तक दे देना तुम्हारा धर्म होगा।
विनोद-(घुटने टेककर) मै अनुगृहीत हुआ।
लीला-(धीरे से) परंतु यह तो बड़ा भया- नक धर्म है।
कामना-हाँ विलासनी।
विलास-आज राजसभा होगी। उसी में कई पद प्रतिष्ठित किये जायेंगे। वहीं सम्मान किया जाय ।
कामना-अच्छी बात है।
(विनोद अपने सैनिकों के साथ परिक्रमण करता है)
[ पट-परिवर्तन ]
५८