कार्ल मार्क्स फ्रेडरिक एंगेल्स/फ़्रेडरिक एंगेल्स

विकिस्रोत से
कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एंगेल्स  (1918) 
द्वारा लेनिन
[ ४७ ]

फ़्रेडरिक एंगेल्स

दीप बुझा जो सचमुच कैसा कान्तिमान् था,
हृदय रुका जो सचमुच कितना था विशाल औ' प्राणवान् था!²⁷

५ अगस्त , १८९५ को लंदन में फ्रेडरिक एंगेल्स का देहांत हुआ । अपने मित्र कार्ल मार्क्स (जिनका देहांत १८८३ में हुआ था) के बाद एंगेल्स ही समूचे सभ्य संसार के आधुनिक सर्वहारा के सबसे विख्यात पंडित और आचार्य थे। जबसे भाग्य ने कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स को एक सूत्र में बांध दिया उस समय से इन दोनों मित्रों का जीवन-कार्य एक ही साझे ध्येय को अर्पित हो गया। अतः फ्रेडरिक एंगेल्स ने सर्वहारा के लिए क्या किया यह समझने के लिए समकालीन मजदूर आंदोलन के विकास के विषय में मार्क्स के कार्य और शिक्षा के महत्त्व की स्पष्ट कल्पना आवश्यक है। सबसे पहले मार्क्स और एंगेल्स ने ही दिखा दिया कि मजदूर वर्ग और मजदूर वर्ग की मांगें उस वर्तमान अर्थ-व्यवस्था का एक आवश्यक परिणाम हैं जो पूंजीवादी वर्ग के साथ अनिवार्य रूप से सर्वहारा को जन्म देती है और उसका संगठन करती है। उन्होंने दिखा दिया कि आज मनुष्य-जाति को उसे उत्पीड़ित करनेवाली बुराइयों के चंगुल से मुक्त करने का कार्य उदारचित्त व्यक्तियों के सदाशयतापूर्ण प्रयत्नों से नहीं, बल्कि संगठित सर्वहारा के वर्ग-संघर्ष से संपन्न होगा। अपनी वैज्ञानिक रचनाओं में सबसे पहले मार्क्स और एंगेल्स ने ही स्पष्ट किया कि समाजवाद कोई स्वप्नदर्शियों का आविष्कार नहीं है, बल्कि है आधुनिक समाज की उत्पादक शक्तियों के विकास का अंतिम लक्ष्य और अनिवार्य परिणाम। आज तक का समूचा लिखित इतिहास [ ४८ ] वर्ग-संघर्ष का , विशिष्ट सामाजिक वर्गों द्वारा दूसरे वर्गों पर शासन और विजय का, इतिहास रहा है। और यह तब तक जारी रहेगा जब तक वर्ग- संघर्ष और वर्ग-शासन की बुनियादों - निजी संपत्ति और अव्यवस्थित सामाजिक उत्पादन - का लोप नहीं होगा। सर्वहारा के हितों की दृष्टि से इन बुनियादों का नाश होना आवश्यक है और इसलिए संगठित मजदूरों के सचेतन वर्ग- संघर्ष का रुख़ इनके विरुद्ध मोड़ देना चाहिए। और हर वर्ग-संघर्ष एक राजनीतिक संघर्ष है।

मार्क्स और एंगेल्स के ये दृष्टिकोण अब अपनी मुक्ति के लिए लड़नेवाले सभी सर्वहारा ने अंगीकार कर लिये हैं। पर जब १६ वीं शताब्दी के ५ वें दशक में उक्त मित्र-द्वय ने अपने समय के समाजवादी साहित्य- सृजन और सामाजिक आंदोलनों में भाग लिया उस समय ये मत पूर्णतया नवीन थे। उस समय बहुत-से ऐसे लोग थे जो राजनीतिक स्वतंत्रता के संघर्ष में, राजा-महाराजाओं, पुलिस और पादरियों की स्वेच्छाचारिता के विरुद्ध संघर्ष में रत होते हुए भी पूंजीवादी वर्ग के हितों और सर्वहारा के हितों के बीच का विरोध-भाव न देख पाये। इनमें प्रतिभाशाली लोग थे और प्रतिभाहीन भी , ईमानदार लोग थे और बेईमान भी। ये लोग यह विचार स्वीकार तक न करते थे कि मजदूर एक स्वतंत्र सामाजिक शक्ति के रूप काम करें। दूसरी ओर, कितने ही ऐसे स्वप्नदर्शी थे, और इनमें से कुछ प्रतिभाशाली भी थे, जो मानते थे कि बस , शासकों और शासक वर्गों को समकालीन समाज-व्यवस्था के अन्याय के बारे में विश्वास दिलाने भर की ज़रूरत है , फिर धरती पर शांति और आम खुशहाली की स्थापना करना बायें हाथ का खेल हो जायेगा। वे बिना संघर्ष के समाजवाद के स्वप्न देखा करते थे। अंततः, उस समय के लगभग सभी समाजवादी और आम तौर पर मजदूर वर्ग के मित्र सर्वहारा को एक फोड़ा भर मानते थे और भयग्रस्त होकर देखते थे कि उद्योग की वृद्धि के साथ यह फोड़ा भी कैसे बड़ा होता जा रहा था। अतः, वे सब इस बात पर तुले हुए थे कि उद्योग का और सर्वहारा का विकास कैसे रोका जाये , “इतिहास का पहिया" कैसे रोका जाये। सर्वहारा के विकास के आम भय में अंशभागी होना तो दूर ही रहा, उल्टे मार्क्स और एंगेल्स सर्वहारा की अप्रतिहत वृद्धि पर अपनी सारी आस

४८

[ ४९ ]लगाये हुए थे। सर्वहारा की संख्या जितनी अधिक होगी, क्रांतिकारी वर्ग

के रूप में उसकी शक्ति उतनी ही अधिक होगी और समाजवाद समीपतर और संभवतर होगा। मार्क्स और एंगेल्स द्वारा की गयी मजदूर वर्ग की सेवाओं का वर्णन संक्षेप में इन शब्दों में अभिव्यक्त किया जा सकता है : उन्होंने मजदूर वर्ग को स्वयं अपने को पहचान लेने और अपने प्रति सचेत होने की शिक्षा दी, और स्वप्नों के स्थान में विज्ञान की स्थापना की।

इसी लिए हर मजदूर को एंगेल्स के नाम और जीवन से परिचित होना आवश्यक है। यही कारण है कि इस लेख-संग्रह में हम वर्तमान सर्वहारा के दो महान आचार्यों में से एक, फ्रेडरिक एंगेल्स के जीवन और कार्य की रूपरेखा प्रस्तुत करना आवश्यक मानते हैं। हमारे अन्य सभी प्रकाशनों की तरह इस लेख-संग्रह का उद्देश्य भी रूसी मजदूरों के बीच वर्ग-चेतना को जागृत करना है।

एंगेल्स का जन्म १८२० में प्रशा राज्य के राइन प्रदेश में स्थित बार्मेन में हुआ था। उनके पिता एक कारखानेदार थे। १८३८ में एंगेल्स को जिम्नेजियम की शिक्षा पूरी किये बिना ही पारिवारिक परिस्थितियों के कारण ब्रेमेन के एक व्यापारिक प्रतिष्ठान में क्लर्क की नौकरी पकड़नी पड़ी। पर एंगेल्स की वैज्ञानिक और राजनीतिक शिक्षा जारी ही रही, उसमें व्यापारिक मामले कोई बाधा न डाल सके। जब वह जिम्नेजियम में पढ़ रहे थे उसी समय से निरंकुशशासन और नौकरशाहों के अत्याचारों से घृणा करने लगे थे। दर्शन का अध्ययन उन्हें और आगे ले गया। उन दिनों जर्मन दर्शन पर हेगेल की शिक्षा का प्रभाव था और एंगेल्स उनके अनुयायी बन गये। यद्यपि स्वयं हेगेल निरंकुश प्रशियन राज्य के प्रशंसक थे और बर्लिन विश्वविद्यालय के एक प्रोफ़ेसर के नाते उसकी सेवा कर रहे थे, फिर भी उनके सिद्धांत क्रांतिकारी थे। इस बर्लिनवासी दार्शनिक के जो शिष्य वर्तमान परिस्थिति के साथ राजीनामा करने से इनकार करते थे उन्हें मनुष्य की तर्कशक्ति और उसके अधिकारों में हेगेल का विश्वास और हेगेलवादी दर्शन का यह आधारभूत सिद्धांत कि विश्व परिवर्तन और विकास की एक सतत प्रक्रिया के अधीन है, इस विचार की ओर अग्रसर कर रहा था कि

4-2600

४६

[ ५० ]इस परिस्थिति के विरुद्ध संघर्ष, वर्तमान अन्याय और चालू बुराई के विरुद्ध

संघर्ष भी अनंत विकास के सर्वव्यापी नियम में दृढमूल है। यदि सब बातें विकसित होती हैं, यदि संस्थाएं दूसरी संस्थाओं को स्थान देती हैं, तो क्या कारण है कि प्रशियन राजा या रूसी ज़ार की निरंकुशता, विशाल बहुमत को हानि पहुंचाकर नगण्य अल्पमत की समृद्धि या जनता पर पूंजीवादी वर्ग का प्रभुत्व सदैव बना रहे ? हेगेल के दर्शन ने मन और विचारों के विकास की बात की ; वह आदर्शवादी दर्शन था। मन के विकास से उसने प्रकृति , मनुष्य और मानवीय , सामाजिक संबंधों के विकास का तर्क-निर्णय निकाला। हेगेल का विकास की अनंत प्रक्रिया★ विषयक विचार बनाये रखते हुए मार्क्स और एंगेल्स ने पूर्वचिंतित आदर्शवादी दृष्टिकोण अस्वीकार किया ; जीवन के तथ्यों की ओर मुड़ते हुए उन्होंने अवलोकन किया कि मन का विकास प्रकृति के विकास का स्पष्टीकरण नहीं देता बल्कि इसके विपरीत मन का स्पष्टीकरण प्रकृति से , पदार्थ से प्राप्त होना चाहिए ... हेगेल और अन्य हेगेलवादियों के विपरीत मार्क्स और एंगेल्स पदार्थवादी थे। संसार और मनुष्य-जाति की ओर पदार्थवादी दृष्टिकोण से देखते हुए उन्होंने अनुभव किया कि जिस प्रकार प्रकृति के सभी व्यापारों के मूल में भौतिक कारण रहते हैं उसी प्रकार मनुष्य समाज का विकास भी भौतिक , उत्पादक शक्तियों के विकास द्वारा निर्धारित होता है। मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ज़रूरी वस्तुओं के उत्पादन में मनुष्य मनुष्य के बीच जो परस्पर संबंध स्थापित होते हैं वे उत्पादक शक्तियों के विकास पर ही निर्भर करते हैं। और इन संबंधों में ही सामाजिक जीवन के सभी व्यापारों, मानवीय आकांक्षाओं, विचारों और नियमों का स्पष्टीकरण निहित होता है। उत्पादक शक्तियों का विकास निजी संपत्ति पर आधारित सामाजिक संबंधों को जन्म देता है, पर अब हम जानते हैं कि उत्पादक शक्तियों का यह विकास ही


★मार्क्स और एंगेल्स ने समय समय पर स्पष्ट किया है कि अपने बौद्धिक विकास में वे महान् जर्मन दार्शनिकों और विशेषकर हेगेल के ऋणी "जर्मन दर्शन के बिना ," एंगेल्स कहते हैं , “वैज्ञानिक समाजवाद का जन्म ही न होता।"²⁸

५०

[ ५१ ]बहुमत को उसकी संपत्ति से वंचित कर देता है और यह संपत्ति नगण्य

अल्पमत के हाथों में केंद्रित कर देता है। वह संपत्ति को, अर्थात् वर्तमान सामाजिक व्यवस्था के आधार को नष्ट कर देता है, वह स्वयं ही उसी लक्ष्य की ओर बढ़ता है जिसे समाजवादी अपने सामने रखे हुए हैं। समाजवादियों को बस यह समझ लेना है कि इन सामाजिक शक्तियों में से कौनसी शक्ति वर्तमान समाज में अपनी स्थिति के कारण समाजवाद को लाने में रुचि रखती है, और इस शक्ति को उसके हितों और ऐतिहासिक मिशन की चेतना प्रदान करनी है। यह शक्ति है सर्वहारा। एंगेल्स को यह इंगलैंड में, ब्रिटिश उद्योग के केंद्र मैंचेस्टर में ज्ञात हुआ जहां वह एक व्यापारिक प्रतिष्ठान की सेवा में प्रवेश करके १८४२ में बस गये थे। उनके पिता इस प्रतिष्ठान के एक हिस्सेदार थे । यहां एंगेल्स केवल फैक्टरी के दफ्तर में नहीं बैठे रहे , उन्होंने उन गंदी गलियों के चक्कर लगाये जहां मज़दूर दरबों की सी जगहों में रहते थे। उन्होंने अपनी आंखों उनकी दरिद्रता और दयनीय दशा देखी। पर वह केवल वैयक्तिक निरीक्षण करके ही नहीं रहे। ब्रिटिश मजदूर वर्ग की स्थिति के संबंध में जो भी सामग्री देखने में आयी, उन्होंने सारी की सारी पढ़ डाली और जो भी सरकारी कागज़ात हाथ लगे, उन्होंने उन सबका ध्यान से अध्ययन किया। इन अध्ययनों और निरीक्षणों का फल १८४५ में प्रकाशित 'इंगलैंड के मजदूर वर्ग की स्थिति' शीर्षक पुस्तक के रूप में प्रकट हुआ। 'इंगलैंड के मजदूर वर्ग की स्थिति' के लेखक के नाते एंगेल्स ने जो मुख्य सेवा की उसका उल्लेख हम पहले ही कर चुके हैं। एंगेल्स के पहले भी कितने ही लोगों ने सर्वहारा के कष्टों का वर्णन और उसकी सहायता की आवश्यकता के प्रति संकेत किया था। पर एंगेल्स ही वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने कहा कि सर्वहारा न केवल कष्टग्रस्त वर्ग है, पर यह कि वस्तुतः सर्वहारा की लज्जाजनक आर्थिक स्थिति उसे अप्रतिहत रूप से आगे बढ़ा रही है और उसकी अंतिम मुक्ति के लिए लड़ने को विवश कर रही है। और लड़ाकू सर्वहारा स्वयं अपनी सहायता कर लेगा। मजदूर वर्ग का राजनीतिक आंदोलन अनिवार्य रूप से मजदूरों को अनुभव करायेगा कि उनकी एकमात्र मुक्ति समाजवाद में निहित है। दूसरी ओर, समाजवाद

4*

५१

[ ५२ ]तभी एक शक्ति बनेगा जब वह मजदूर वर्ग के राजनीतिक संघर्ष का उद्देश्य

बन जायेगा। ये हैं इंगलैंड के मजदूर वर्ग की स्थिति से संबंधित एंगेल्स की पुस्तक के मुख्य विचार। ये विचार अब सभी विचारशील और संघर्षरत सर्वहारा ने अंगीकार कर लिये हैं, पर उस समय वे पूर्णतया नवीन थे। इन विचारों का प्रकाशन एक ऐसी पुस्तक में हुआ जो हृदयग्राही शैली में लिखी हुई है और ब्रिटिश सर्वहारा की दयनीय दशा के अत्यंत प्रामाणिक और भयानक चित्रों से भरपूर है। यह पुस्तक पूंजीवाद और पूंजीवादी वर्ग के विरुद्ध एक घोर अभियोग-पत्र सिद्ध हुई। उसने बहुत ही गंभीर प्रभाव उत्पन्न किया। आधुनिक सर्वहारा की स्थिति के सर्वोत्तम चित्र प्रस्तुत करनेवाली पुस्तक के रूप में एंगेल्स की इस रचना को सर्वत्र उद्धृत किया जाने लगा। और वस्तुतः न १८४५ के पहले और न उसके बाद ही मजदूर वर्ग की दयनीय दशा का इतना प्रभावोत्पादक और सत्यदर्शी चित्र और कहीं प्रस्तुत हो पाया है।

इंगलैंड में आ बसने के बाद ही एंगेल्स समाजवादी बने। मैंचेस्टर में उन्होंने उस समय के ब्रिटिश मज़दूर आंदोलन में सक्रिय भाग लेनेवाले लोगों से संपर्क स्थापित किये और अंग्रेज़ी समाजवादी प्रकाशनों के लिए लेख लिखना आरंभ किया। १८४४ में जर्मनी लौटते समय वह पेरिस में मार्क्स से परिचित हुए। मार्क्स के साथ उनका पत्र-व्यवहार इससे पहले ही जारी हुआ था। पेरिस में फ्रांसीसी समाजवादियों और फ्रांसीसी जीवन के प्रभाव से मार्क्स भी समाजवादी बन गये थे। यहां इस मित्र-द्वय ने संयुक्त रूप से एक पुस्तक लिखी जिसका शीर्षक है 'पवित्र परिवार या आलोचनात्मक आलोचना की आलोचना'। यह पुस्तक 'इंगलैंड के मजदूर वर्ग की स्थिति' के एक वर्ष पहले प्रकाशित हुई और इसका अधिकांश मार्क्स ने लिखा। इसमें क्रांतिकारी-पदार्थवादी समाजवाद के आधार समाविष्ट हैं जिनके मुख्य विचारों की व्याख्या हम ऊपर कर चुके हैं। 'पवित्र परिवार' दार्शनिक बावेर बंधुओं और उनके अनुयायियों का चुटकीला उपनाम है। इन सज्जनों ने ऐसी आलोचना का उपदेश दिया जो समूची वास्तविकता के परे हो , जो पार्टियों और राजनीति के परे हो , जो सारी व्यावहारिक गतिविधि से इनकार करती हो और जो केवल "आलोचनात्मक ढंग से" आसपास के संसार का और उसमें घट रही

५२

[ ५३ ]

घटनाओं का चिंतन करती हो। इन सज्जनों ने , अर्थात् बावेर बंधुओं ने सर्वहारा को घमंड से एक आलोचना-शून्य समूह माना। मार्क्स और एंगेल्स ने बड़े जोश के साथ इस बेहूदी और हानिकारक प्रवृत्ति का विरोध किया। एक वास्तविक मानवीय व्यक्तित्व - अर्थात् शासक वर्गों और राज्य द्वारा पददलित मज़दूर- के नाम पर उन्होंने चिंतन की नहीं, बल्कि अधिक अच्छी समाज-व्यवस्था के लिए संघर्ष की मांग की। अवश्य ही उन्होंने सर्वहारा को यह संघर्ष खड़ा करने योग्य और उसमें दिलचस्पी रखनेवाली शक्ति माना। 'पवित्र परिवार' के प्रकाशित होने से पहले ही एंगेल्स ने मार्क्स और रूगे के 'जर्मन-फ्रांसीसी पत्रिका' में 'राजनीतिक अर्थशास्त्र विषयक आलोचनात्मक निबंध'²⁹ प्रकाशित किये थे जिनमें उन्होंने समाजवादी दृष्टिकोण से समकालीन अर्थ-व्यवस्था के प्रधान व्यापारों का परीक्षण किया था और यह निष्कर्ष निकाला था कि वे निजी संपत्ति के प्रभुत्व के आवश्यक परिणाम थे। मार्क्स ने राजनीतिक अर्थशास्त्र का अध्ययन करने का निश्चय किया इसमें निःसंशय एंगेल्स के साथ उनके वैचारिक संपर्क का हाथ था। इस विज्ञान के क्षेत्र में मार्क्स की रचनाओं ने वस्तुतः क्रांति कर दी।

१८४५ से १८४७ तक एंगेल्स ब्रसेल्स और पेरिस में रहे और अपनी वैज्ञानिक साधना को ब्रसेल्स और पेरिस के जर्मन मजदूरों के बीच की व्यावहारिक गतिविधियों का साथ दिया। यहां मार्क्स और एंगेल्स ने गुप्त जर्मन 'कम्युनिस्ट लीग' के साथ संपर्क स्थापित किया और लीग ने उन्हें उनके द्वारा रचित समाजवाद के मुख्य सिद्धांतों की व्याख्या करने का कार्य सौंप दिया। इस प्रकार मार्क्स और एंगेल्स विरचित सुप्रसिद्ध 'कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणापत्र' प्रकट हुआ। यह १८४८ में प्रकाशित हुआ। यह छोटी- सी पुस्तिका अनेकानेक ग्रंथों का मूल्य रखती है : आज भी उसकी आत्मा समूचे सभ्य संसार के संगठित और संघर्षरत सर्वहारा को स्फूर्ति और प्रेरणा प्रदान करती है।

१८४८ की क्रान्ति ने, जो पहले फ्रांस में उत्पन्न हुई और फिर पश्चिमी यूरोप के अन्य देशों में फैल गयी, मार्क्स और एंगेल्स को फिर से उनकी मातृभूमि के दर्शन कराये। यहां, राइनी प्रशा में उन्होंने कोलोन

५३

[ ५४ ]

से प्रकाशित होनेवाले जनवादी 'नया राइनी समाचारपत्र' ('नोये राइनिशे साइटुङ') की बागडोर अपने हाथों में ली। ये दोनों मित्र राइनी प्रशा की सारी क्रान्तिकारी-जनवादी आकांक्षाओं के हृदय और आत्मा थे। उन्होंने आख़िरी दम तक प्रतिक्रियावादी शक्तियों के विरुद्ध जनता के हितों और स्वतंत्रता की रक्षा की। जैसा कि हम जानते हैं , जीत प्रतिक्रियावादी शक्तियों की हुई। 'नोये राइनिशे त्साइटुङ' का गला घोंट दिया गया। मार्क्स को, जो पिछले निर्वासन-काल में अपनी प्रशियाई नागरिकता खो चुके थे, फिर निर्वासित कर दिया गया; पर एंगेल्स ने सशस्त्र जन-विप्लव में भाग लिया , स्वतंत्रता के लिए तीन लड़ाइयों में जौहर दिखाया और विप्लवकारियों की पराजय के बाद स्विट्ज़रलैंड से होकर लंदन भाग गये।

मार्क्स भी वहीं बस गये। एंगेल्स फिरेक बार मैंचेस्टर के उसी व्यापारिक प्रतिष्ठान में क्लर्क बन गये जहां वे उन्नीसवीं शताब्दी के पांचवें दशक में काम करते थे। बाद में वह उक्त प्रतिष्ठान के हिस्सेदार बने। १८७० तक वह मैचेस्टर में रहे जब कि मार्क्स लंदन में रहते थे। फिर भी इससे उनके अत्यंत जीवंत बौद्धिक संपर्क के जारी रहने में कोई बाधा न आयी : लगभग हर रोज़ उनकी चिट्ठी-पनी चलती थी। इस पत्र-व्यवहार द्वारा मित्र-द्वय ने दृष्टिकोणों एवं ज्ञान का आदान-प्रदान और वैज्ञानिक समाजवाद की रचना में सहयोग जारी रखा। १८७० में एंगेल्स लंदन चले गये और वहां उनका भारी परिश्रम से भरपूर संयुक्त बौद्धिक जीवन १८८३ तक अर्थात् मार्क्स के देहांत तक जारी रहा। इस परिश्रम का फल मार्क्स की ओर से 'पूंजी' रहा, जो राजनीतिक अर्थशास्त्र पर हमारे युग की सबसे महान् रचना है, और एंगेल्स की ओर से कितनी ही छोटी-मोटी रचनाएं। मार्क्स ने पूंजीवादी अर्थतंत्र के जटिल व्यापारों के विश्लेषण पर काम किया। एंगेल्स ने सीधी-सादी और अक्सर खंडन-मंडनात्मक भाषा में लिखी हुई अपनी रचनाओं में साधारणतः वैज्ञानिक समस्याओं और अतीत तथा वर्तमान की विविध घटनाओं का विवेचन इतिहास की पदार्थवादी धारणा और मार्क्स के आर्थिक सिद्धांत के प्रकाश में किया। एंगेल्स की इन रचनाओं में से हम निम्नलिखित रचनाओं का उल्लेख करेंगे : ड्यूहरिंग के विरुद्ध

५४

[ ५५ ]

की खंडन-मंडनात्मक रचना ( जिसमें दर्शन, प्राकृतिक विज्ञान और सामाजिक विज्ञानों के क्षेत्र की अत्यंत महत्वपूर्ण समस्याओं का विश्लेषण किया गया है)★, 'परिवार , निजी संपत्ति और राज्य की उत्पत्ति' (रूसी में अनुवादित , सेंट-पीटर्सबर्ग में प्रकाशित , तृतीय संस्करण, १८६५), 'लुडविग फ़ायरबाख (टिप्पणियों सहित रूसी अनुवाद प्लेखानोव द्वारा, जेनेवा , १८६२), रूसी सरकार की विदेश नीति के संबंध में एक लेख (जेनेवा के 'सोसिअल- देमोक्रात' के पहले और दूसरे अंकों में रूसी में अनुवादित)³² मकानों के सवाल पर कुछ उत्कृष्ट लेख, और अंत में, रूस के आर्थिक विकास के संबंध में दो छोटे पर अतिमूल्यवान् लेख (रूस के संबंध में फ्रेडरिक एंगेल्स के विचार'³⁴, वेरा जासुलिच द्वारा रूसी में अनुवादित , जेनेवा , १८६४)। पूंजी से संबंधित विशाल काम पूरा होने से पहले ही मार्क्स का देहांत हुआ। फिर भी कच्चे रूप में यह काम तैयार था। अपने मित्र की मृत्यु के बाद एंगेल्स ने 'पूंजी' के द्वितीय और तृतीय खंडों की तैयारी और प्रकाशन का भारी काम अपने कंधों पर लिया। उन्होंने द्वितीय खंड १८८५ में और तृतीय खंड १८६४ में प्रकाशित किया (उनकी मृत्यु के कारण चतुर्थ खंड की तैयारी में बाधा पड़ी) । उक्त दो खंडों के प्रकाशन की तैयारी का काम बहुत ही परिश्रमपूर्ण था। आस्ट्रियाई सामाजिक-जनवादी एडलर ने ठीक ही कहा कि 'पूंजी' के द्वितीय और तृतीय खंडों के प्रकाशन द्वारा एंगेल्स ने अपने प्रतिभाशाली मित्र का भव्य स्मारक खड़ा किया , एक ऐसा स्मारक जिसपर न चाहते हुए भी उन्होंने अपना नाम अमिट रूप में अंकित कर दिया। और वस्तुतः ‘पूंजी' के इन दो खंडों के रचयिता दो व्यक्ति हैं : मार्क्स और एंगेल्स। प्राचीन इतिहास में मैत्री के कितने ही हृदयस्पर्शी उदाहरण मिलते हैं। यूरोपीय सर्वहारा कह


★'यह बहुत ही अनोखी और शिक्षादायी पुस्तक है। दुर्भाग्य से उसका एक छोटा-सा हिस्सा ही रूसी में अनुवादित किया गया है। इस हिस्से में समाजवाद के विकास की ऐतिहासिक रूपरेखा दी गयी है ('वैज्ञानिक समाजवाद का विकास', द्वितीय संस्करण , जेनेवा, १८६२)³¹ ।

५५

[ ५६ ]सकता है कि उसके विज्ञान की रचना दो ऐसे पंडितों और योद्धाओं ने

की जिनके परस्पर संबंधों ने प्राचीन लोगों की मानवीय मैत्री की अत्यंत हृदयस्पर्शी कथानों को पीछे छोड़ दिया। एंगेल्स सदा ही - और आम तौर पर न्यायसंगत रूप से - अपने को मार्क्स के बाद रखते थे। “मार्क्स के जीवन काल में," उन्होंने अपने एक पुराने मित्र को लिखा था, "मैंने पूरक भूमिका अदा की।"³⁸ जीवित मार्क्स के प्रति उनका प्रेम और मृत मार्क्स की स्मृति के प्रति उनका आदर असीम था। इस दृढ़ योद्धा और कठोर विचारक का हृदय गहरे प्रेम से परिपूर्ण था।

१८४८-४९ के आंदोलन के बाद निर्वासन-काल में मार्क्स और एंगेल्स केवल वैज्ञानिक कार्य में ही नहीं व्यस्त रहे । १८६४ में मार्क्स ने 'अंतर्राष्ट्रीय मजदूर सभा' की स्थापना की और पूरे दशक भर इस संस्था का नेतृत्व किया। एंगेल्स ने भी इस संस्था के कार्य में सक्रिय भाग लिया। 'अंतर्राष्ट्रीय सभा' ने मार्क्स के विचारानुसार सभी देशों के सर्वहारा को एक किया और मजदूर वर्ग के आंदोलन के विकास की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। पर १६ वीं शताब्दी के आठवें दशक में उक्त सभा का अंत होने के बाद भी मार्क्स और एंगेल्स की एकीकरण विषयक भूमिका नहीं समाप्त हुई। इसके विपरीत कहा जा सकता है कि मज़दूर आंदोलन के आध्यात्मिक नेताओं के रूप में उनका महत्त्व सतत बढ़ता रहा, क्योंकि स्वयं यह आंदोलन भी अप्रतिहत रूप से प्रगति करता रहा। मार्क्स की मृत्यु के बाद अकेले एंगेल्स यूरोपीय समाजवादियों के परामर्शदाता और नेता बने रहे। उनका परामर्श और मार्गदर्शन जर्मन समाजवादी और स्पेन , रूमानिया, रूस आदि जैसे पिछड़े देशों के प्रतिनिधि भी समान रूप से चाहते थे। जर्मन समाजवादियों की शक्ति सरकारी यंत्रणाओं के बावजूद शीघ्रता से और सतत बढ़ रही थी और उक्त पिछड़े देशों के प्रतिनिधि अपने पहले क़दमों के बारे में विचार करने और क़दम उठाने को विवश थे। वे सब वृद्ध एंगेल्स के ज्ञान और अनुभव के समृद्ध भंडार से लाभ उठाते थे।

मार्क्स और एंगेल्स दोनों रूसी भाषा जानते थे और रूसी पुस्तकें पढ़ा करते थे। रूस के बारे में वे जीवंत रुचि लेते थे, रूसी क्रांतिकारी आंदोलन

५६

[ ५७ ]के प्रति सहानुभूति रखते थे और रूसी क्रांतिकारियों से संपर्क बनाये हुए

थे। समाजवादी बनने से पहले वे दोनों जनवादी थे और राजनीतिक निरंकुशता के प्रति घृणा की जनवादी भावना उनमें बहुत ही बलवती थी। इस प्रत्यक्ष राजनीतिक भावना, उसके साथ साथ राजनीतिक निरंकुशता और आर्थिक उत्पीड़न के बीच के संबंधों की गंभीर सैद्धांतिक समझबूझ और इसी तरह जीवन विषयक समृद्ध अनुभव ने मार्क्स और एंगेल्स को यथार्थतः राजनीतिक दृष्टिकोण से असाधारण रूप में संवेदनशील बना दिया। इसी कारण बलशाली जारशाही सरकार के विरुद्ध मुट्ठी-भर रूसी क्रांतिकारियों के संघर्ष ने इन जांचे-परखे क्रांतिकारियों के हृदयों में सहानुभूति की प्रतिध्वनि उत्पन्न की। दूसरी ओर, मायावी आर्थिक सुविधाओं की प्राप्ति के लिए रूसी समाजवादियों के सबसे फ़ौरी और सबसे महत्त्वपूर्ण काम की ओर से, यानी राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त करने की ओर से मुंह मोड़ लेने की प्रवृत्ति की और उन्होंने संशय की दृष्टि से देखा, और इतना ही नहीं, उन्होंने उसे सामाजिक क्रांति के महान् कार्य के प्रति विश्वासघात माना। “सर्वहारा की मुक्ति स्वयं सर्वहारा का ही काम होना चाहिए" मार्क्स और एंगेल्स बराबर यही सीख देते रहे। पर अपनी आर्थिक मुक्ति के लिए सर्वहारा को अपने लिए कुछ राजनीतिक अधिकार प्राप्त कर लेने चाहिए। इसके अलावा मार्क्स और एंगेल्स ने स्पष्ट रूप से देखा कि रूस की राजनीतिक क्रांति पश्चिमी-यूरोपीय मजदूर आंदोलन के लिए भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण सिद्ध होगी। स्वेच्छाचारी रूस सदा से ही आम तौर पर यूरोपीय प्रतिक्रिया का गढ़ रहा था। एक लंबे समय तक जर्मनी और फ्रांस के बीच अनबन के बीज बोनेवाले १८७० के युद्ध के परिणामस्वरूप रूस को प्राप्त हुई अत्यधिक अनुकूल अंतर्राष्ट्रीय स्थिति ने अवश्य ही प्रतिक्रियावादी शक्ति के रूप में स्वेच्छाचारी रूस का महत्त्व बढ़ा ही दिया। केवल स्वतंत्र रूस , यानी वह रूस, जिसे न पोलों, फ़िन्नियों, जर्मनों , अर्मनियों या अन्य छोटे-मोटे राष्ट्रों को उत्पीड़ित करने की और न ही फ्रांस और जर्मनी को बराबर एक दूसरे के विरुद्ध उभाड़ने की आवश्यकता होती, वही वर्तमान यूरोप को युद्ध के भार से मुक्त होने में समर्थ बना देता, यूरोप के सभी प्रतिक्रियावादी तत्त्वों को निर्बल कर

5-2600

५७

[ ५८ ]देता और यूरोपीय मज़दूर वर्ग की शक्ति बढ़ा देता। इसलिए एंगेल्स की उत्कट इच्छा थी कि पश्चिम के मज़दूर आंदोलन की प्रगति के हित में भी रूस में राजनीतिक स्वतंत्रता की स्थापना हो। एंगेल्स की मृत्यु से रूसी क्रांतिकारियों का श्रेष्ठ मित्र खो गया।

सर्वहारा के महान योद्धा और आचार्य फ़्रेडरिक एंगेल्स की स्मृति अमर रहे!

 
लेखन-काल : शरद, १८९५ ब्ला॰ इ॰ लेनिन,
संग्रहीत रचनाएं,
'रबोत्निक' लेख-संग्रह, अंक १-२, चौथा रूसी संस्करण,
१८९६ में पहली बार प्रकाशित खंड २, पृष्ठ १-१३