कुरल-काव्य/परिच्छेद १०२ लज्जाशीलता
परिच्छेद १०२
लज्जाशीलता
होती लज्जा चूक से, भद्रों को सब ठौर।
नारी लज्जा और है, यह लज्जा कुछ और॥१॥
अन्न वस्त्र सन्तान में, सब ही मानव एक।
करती लज्जा किन्तु है, उनमें भेद अनेक॥२॥
यद्यपि सारी देह में, प्राणों का आवास।
लज्जा में नर योग्यता, करती किन्तु निवास॥३॥
लज्जा की शुभभावना, निधि है रत्न समान।
ऐंठ भरे निर्लज्ज को, देखत कष्ट महान॥४॥
अन्य अनादर देख जो, लज्जित आत्मसमान।
शील तथा संकोच की, वह है मूर्ति महान॥५॥
मिलता यदि है राज्य भी, करके निन्दित काम।
नहीं करें फिर भी उसे, कीर्तिप्रिया के श्याम॥६॥
बचने को अपमान से, तजते तन भी आर्य।
डाल विपद में प्राण भी, तजें न लज्जा आर्य॥७॥
लज्जित जिससे अन्य पर, जिसे न उसमें छेव।
लज्जित होती भद्रता, देख उसे स्वयमेव॥८॥
भूले कुल आचार तो, कुल से होता भ्रष्ट।
लज्जा यदि हो नष्ट तो, सब ही सुगुण विनष्ट॥९॥
निकल गये जिस आँख से, लज्जा जीवन प्राण।
कठपुतली के तुल्य वह, जीवन मरण समान॥१०॥
परिच्छेद १०२
लज्जाशीलता
१—योग्य पुरुषों का लजाना उन कामो के लिए होता है कि जो उनके अयोग्य होते है, इसलिए वह सुन्दरी स्त्रियो की लज्जा से सर्वथा भिन्न है।
२—आहार, वस्त्र और सन्तान, इन बातो में तो सभी मनुष्य समान है, यह तो एक लज्जा की ही भावना है जिससे मनुष्य मनुष्य में अन्तर प्रगट होता है।
३—शरीर तो समस्त प्राणो का निवासस्थान है, पर यह सात्विक लज्जा है जिसमे लायकी और योग्यता वास करती है।
४—लज्जाशीलता क्या लायक लोगो के लिए रत्न के समान नहीं है। और जब वह उससे रहित होता है तब उसकी शेखी और ऐठ क्या देखने वाली आँख को पीड़ा पहुँचाने वाली नही होती?
५—जो लोग दूसरो का अपमान देखकर भी उतने ही लज्जित होते है जितने कि स्वयं अपने अपमान से, उन्हे तो लोग लज्जा और सङ्कोच की मूर्ति ही समझेगे।
६—ऐसे साधनों के सिवाय कि जिनसे उन्हे लज्जित न होना पड़े अन्य साधनों के द्वारा, लायक लोग राज्य तक पाने के लिए नहीं कर देगे।
७—जिन लोगों में लज्जा की सुकोमल भावना है वे अपने को अपमान से बचाने के लिए अपनी जान तक दे देंगे और प्राणों पर आ बनने पर भी लज्जा को नहीं त्यागेगे।
८—यदि कोई आदमी उन बातों से लजित नहीं होता है कि जिनसे दूसरों को लज्जा आती है, तो उसे देख कर भद्रता भी शरमा जायगी।
९—कुलाचार को भूल जाने से मनुष्य केवल अपने कुल से ही भ्रष्ट होता है, लेकिन जब वह लज्जा को भूलकर निर्लज्ज हो जाता है तब सब प्रकार की भलाइयाँ उसे छोड़ देती है।
१०—जिन लोगों की आख का पानी मर गया है वे जीवित होकर भी मरे के समान है। डोरी के द्वारा चलने वाली कठपुतलियो की तरह उनमे भी एक प्रकार का कृत्रिम जीवन ही होता है।