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कुरल-काव्य/परिच्छेद ५१ विश्वासपुरुषों की परीक्षा

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कुरल-काव्य
तिरुवल्लुवर, अनुवादक पं० गोविन्दराय जैन

पृष्ठ २१० से – २११ तक

 

 

परिच्छेद ५१
विश्वासपुरुषों की परीक्षा

धनसे, भयसे, कामसे, और धर्मसे भूप।
जाँचो नर के सत्य को, मान कसौटी रूप॥१॥
जिसे प्रतिष्ठाभंग का, भय रहता स्वयंमेव।
उस कुलीन निर्दोष को, रखो सदा नरदेव॥२॥
ज्ञानविभूषित प्राज्ञ नर, ऋषिसम शीलाधार।
दोषशून्य वे भी नही, जो देखो सुविचार॥३॥
सद्गुण देखो पूर्व में, फिर देखो सब दोष।
उनमें जो भी हों अधिक, प्रकृति उसीसम घोष॥४॥
इसका मन क्या क्षुद्र है, अथवा उच्च उदार।
एक कसौटी है इसे, देखो नर-आचार॥५॥
आशु-प्रतीति न योग्य वे, जो नर हैं गृहहीन।
कारण एकाकी मनुज, लज्जा-ममताहीन॥६॥
मूर्ख मनुज से प्रेमवश, करके यदि विश्वास।
करे मंत्रणा भूप तो, विपदायें शिर-पास॥७॥
अपरीक्षित नर का अहो, जो करता विश्वास।
दुःखबीज बोकर कुधी, देता संतति त्रास॥८॥
करो परीक्षित पुरुष का, मन में नृप विश्वास।
जाँच अनन्तर योग्यपद, दो उसको सोल्लास॥९॥
बिना ज्ञान कुल शील के, करना परविश्वास।
अप्रतीति फिर ज्ञात की, दोनों देते त्रास॥१०॥

 

परिच्छेद ५१
विश्वस्त पुरुषों की परीक्षा

१—धर्म, अर्थ, काम और प्राणों का भय, ये चार कसौटियाँ है जिन पर कस कर मनुष्य को चुनना चाहिए।

२—जो अच्छे कुल में उत्पन्न हुआ है, दोषों से रहित है और अपयश से डरता है वही तुम्हारे लिए योग्य मनुष्य है।

३—जब तुम परीक्षा करोगे तो देखोगे कि अत्यन्त ज्ञानवान और शुद्ध-मन वाले लोग भी हर प्रकार के अज्ञान से सर्वथा अलिप्त न निकलेगे।

४—मनुष्य की भलाइयों को देखो और फिर उसकी बुराइयों पर दृष्टि डालो। इनमे जो अधिक है, बस समझ लो वैसा ही उसका स्वभाव है।

५—क्या तुम जानना चाहते हो कि अमुक मनुष्य उदारचित्त है या क्षुद्रहृदय? स्मरण रक्खो कि आचार-व्यवहार चरित्र की कसौटी है।

६—सावधान! उन लोगों का विश्वास देखभाल कर करना कि जिनके आगे पीछे कोई नहीं है, क्योकि उन लोगों का हृदय ममताहीन और लज्जारहित होता है।

७—यदि तुम किसी मूर्ख को अपना विश्वासपात्र सलाहकार बनाना चाहते हो, केवल इसलिए कि तुम उसे प्यार करते हो, तो सोच रक्खो कि वह तुम्हे अनन्त मूर्खताओं में ला पटकेगा।

८—जो आदमी परीक्षा लिये बिना ही दूसरे मनुष्य का विश्वास करता है, वह अपनी संत्तति के लिए अनेक आपत्तियों का बीज बो रहा है।

९—परीक्षा किये बिना किसी का विश्वास न करो और अपने आदमियों की परीक्षा लेने के अनन्तर हर एक को उसके योग्य काम दो।

१०—अनजाने मनुष्य पर विश्वास करना और जाने हुए योग्य पुरुष पर सन्देह करना, ये दोनों ही बाते एक समान अगणित आपत्तियों की जननी है।