सामग्री पर जाएँ

कुरल-काव्य/परिच्छेद ५७ भयप्रद कृत्यों का त्याग

विकिस्रोत से
कुरल-काव्य
तिरुवल्लुवर, अनुवादक पं० गोविन्दराय जैन

पृष्ठ २२२ से – २२३ तक

 

 

परिच्छेद ५७
भयप्रद कृत्यों का त्याग

दोषी को नृप दण्ड दे, सीमा में अनुरूप।
करे न दोषी दोष फिर, हो उसका यह रूप॥१॥
शक्ति रहे मेरी अटल, यह चाहो यदि तात।
तो कर में वह दण्ड लो, जिसका मृदु आघात॥२॥
असि ही जिसका दण्ड' वह, बड़ा भयंकर भूप।
कौन सखा उसका यहाँ, क्षय ही अन्तिम रूप॥३॥
निर्दय शासन के लिए, जो शासक विख्यात।
असमय में पदभृष्ट हो, खोता तन वह तात॥४॥
भीम अगभ्य नरेश की, श्री यों होती भान।
राक्षस रक्षित भूमि में, ज्यों हो एक-निधान॥५॥
क्षमारहित जो क्रूर नृप, बोले बचन अनिष्ट।
बढ़ा चढ़ा उसका विभव, होगा शीघ्र विनष्ट॥६॥
कर्कश वाणी और हो, सीमा बाहिर दण्ड।
काटे तीखे शस्त्र ये, नृप की शक्ति प्रचण्ड॥७॥
प्रथम नहीं ले मंत्रणा, सचिवों से जो भूप।
क्षोभ उसे वैफल्य से, श्री उसकी हतरूप॥८॥
रहा अरक्षित जो नृपति, पाकर भी अवकाश।
चौंक उठेगा कांप कर, रण में लख निज नाश॥९॥
मूर्ख मनुज या चाटुकर, देते जहाँ सलाह
ऐसे कुत्सित राज्य में, पृथ्वी भरती आह॥१०॥

 

परिच्छेद ५७
भयप्रद कृत्यों का त्याग

१—राजा का कर्तव्य है कि वह दोषी को नापतौल कर ही दण्ड देवे, जिससे कि वह दुवारा वैसा कर्म न करे, फिर भी वह दण्ड सीमा के बाहिर न होना चाहिए।

२—जो अपनी शक्ति को स्थायी रखने के इच्छुक है उन्हें चाहिए कि वे अपना शासनदण्ड तत्परता से चलावे, परन्तु उसका आघात कठोर न हो।

३—उस राजा को देखो, जो अपने लोहदण्ड द्वारा ही शासन करता है और अपनी प्रजा में भय उत्पन्न करता है। उसका कोई भी मित्र न रहेगा और शीघ्र ही नाश को प्राप्त होगा।

४—जो राजा अपनी प्रजा में अत्याचार के लिए प्रसिद्ध है वह असमय में ही अपने राज्य से हाथ धो बैठेगा और उसका आयुष्य भी घट जायगा।

५—जिस राजा का द्वार अपनी प्रजा के लिए सदा बन्द है उसके हाथ मे सम्पत्ति ऐसी लगती है मानो किसी राक्षस के द्वारा रखाई हुई कोई धनराशि हो।

६-जो राजा कठोर वचन बोलता है और क्षमा जिसकी प्रकृति में नही, वह चाहे वैभव मे कितना ही बढा चढा हो तो भी उसका अन्त शीघ्र होगा।

७—कठोर शब्द और सीमातिक्रान्त-दण्ड वे अस्त्र है जो सत्ता की प्रतिष्ठा को छिन्न भिन्न कर देते है।

८—उस राजा को देखो, जो अपने मंत्रियों से तो परामर्श नही करता और अपनी योजनाओं के असफल होने पर आवेश में आ जाता है, उसका वैभव क्रमश विलीन हो जायगा।

९—समय रहते, जो, अपनी रक्षा के साधनों को नहीं देग्यता उस राजा को क्या कहे? जब उस पर सहसा आक्रमण होगा तो वह धैर्य खो बैठेगा और पकड़ा जावेगा तथा अन्त में उसका सर्वनाश शीघ्र ही होगा

१०—उस कठोर शासन के सिवाय, जो मूर्ख और चापलूसो के परामर्श पर निर्भर है और कोई बड़ा भारी भार नही है जिसके कारण पृथ्वी कराहती है।