कोविद-कीर्तन/८ रावबहादुर गणेश वेङ्कटेश जोशी

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८——रावबहादुर गणेश वेङ्कटेश जोशी, बी० ए०

पूने के प्रसिद्ध विद्वान्, बम्बई के गवर्नर की कौंसिल के मेम्बर, रावबहादुर गणेश वेङ्कटेश जोशी का शरीरान्त गत २० मई को हो गया। ये अच्छे पण्डित थे। राजकीय विषयों मे इनकी अच्छी गति थी। अर्थशास्त्र के ये उत्कृष्ट ज्ञाता थे। राजनीति, व्यापार और उद्योग धन्धे आदि के सम्बन्ध मे इनका ज्ञान बहुत बढ़ा-चढ़ा था।

कोल्हापुर के पास एक कसबा मीरज है। १८५१ ईसवी के जून महीने में वही जोशीजी का जन्म हुआ। पहले मीरज मे, फिर कोल्हापुर मे, इन्होंने शिक्षा पाई। स्कूल की शिक्षा समाप्त होने पर ये बम्बई के एल्फिन्स्टन-कालेज में भर्ती हुए। वही से इन्होंने बी० ए० की पदवी पाप्त की। कालेज छोड़ने पर इन्होंने शिक्षा विभाग मे नौकरी कर ली। धीरे-धीरे इनकी उन्नति होती गई। पूना, सतारा, रत्नागिरी, नासिक और शोलापुर आदि कई बड़े-बड़े शहरो के सरकारी स्कूलो मे इन्होंने अध्यापन का काम किया। १९०५ मे पेन्शन लेकर ये पुने मे रहने लगे।

जोशीजी बड़े निःस्पृह और विद्याव्यसनी थे। सादगी के ये मूर्तिमान् अवतार और अर्थशास्त्रीय ज्ञान के अक्षय्य भाण्डार थे। अध्यापन-कला में इन्होने इतनी प्रवीणता प्राप्त
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की थी कि भूगोल-सहश महानीरस विषय को भी ये सरस बना देते थे। जिस विषय को ये पढ़ाते थे उसमें ये मनोरञ्जकता भी उत्पन्त कर देते थे। इनके विद्या-शिष्य इनके मुख से निकले हुए ज्ञानामृत का पान बड़े ही चाव से करते थे। उनके हृदयों में कभी विरक्ति न उत्पन्न होती थी। इस समय इनके शिष्यों मे हजारों ऐसे हैं जो बड़े-बड़े उच्च पदों पर प्रतिष्ठित हैं। वे सब जोशीजी के अप्रतिम शिक्षण-कौशल की हृदय से प्रशंसा करते हैं।

जब से ये सार्वजनिक विषयों की चर्चा में संलग्न हुए और भारतवर्ष की आर्थिक तथा औद्योगिक अवस्था पर इनके महत्त्व-पूर्ण लेख निकलने लगे तबसे इनकी योग्यता का विशेष परिचय सर्व-साधारण को हुआ। इस कारण प्रजा ने इनको गवर्नर की कौंसिल मे अपना प्रतिनिधि बनाकर भेजा।

हम लोग दस-पॉच अड्कों को देखकर घबरा जाते हैं। दो-चार बड़ी-बड़ी संख्याओं को पास पास देखकर तो उन्हें दुबारा देखने को जी ही नहीं चाहता। हिसाब से यों भी लोगों को बहुत कम प्रेम होता है। फिर कही यदि करोड़ों तक की सैकड़ों संख्याओं को जोड़ने, अथवा उनसे कोई निष्कर्ष निकालने की ज़रूरत आ पड़े, तो यही जान पड़ता है कि सिर पर कोई बहुत बड़ी आफ़त आ गई। परन्तु जोशीजी की चित्तवृत्ति की विचित्रता को देखिए। इनको ऐसी ही बातो से प्रेम था। और, प्रेम भी ऐसा वैसा नही---उत्कट प्रेम था। [ १११ ]
भारत के व्यापार-वाणिज्य, आर्थिक अवस्था और उद्योग-धन्धे आदि से सम्बन्ध रखनेवाली कितनी ही बड़ी-बड़ी रिपोर्टें गवर्नमेंट की आज्ञा से हर साल प्रकाशित होती हैं। उनमे अड्को ही की भरमार रहती है। पढ़ने योग्य मज़मून बहुत नही होता। ऐसी रिपोर्टें जोशीजी को प्राणो से भी अधिक प्यारी थी। संख्यातीत बातें---संख्यातीत हिसाब-अड्को के रूप मे उनके दिमाग मे भरी रहती थी। उनके पुस्तक-संग्रह मे ऐसी ही पुस्तको की अधिकता थी। उन्हीं के बीच मे बैठकर जोशीजी उनके अड्कसागर मे डुबकियाँ लगाया करते थे। उनसे यदि कोई यह पूछता कि इस साल भारत से अमेरिका को कितना चमड़ा गया, अथवा विलायत से कितने टन लोहा भारत मे आया, अथवा कितने की शकर मिर्च के टापू से बम्बई या कराची मे उतरी तो उसके प्रत्येक प्रश्न का उत्तर जोशीजी तत्काल हो, अड्को के रूप मे, दे देते। इस विषय मे जोशीजी का सानी नहीं देख पड़ता।

माननीय महादेव गोविन्द रानडे से जोशीजी की बडी घनिष्ठता थी। रानडे के लेखो और वक्ततायो में भारत की आर्थिक और व्यापार-विषयक अवस्था के द्योतक जो अड्क पाये जाते हैं, सुनते हैं, वे सब जोशीजी ही के दिमाग की बदौलत रानडे महाशय को प्राप्त हुए थे।

जब तक जोशीजी अध्यापन-कार्य करते रहे तब तक उन्हें राजकीय विषयों पर लेख लिखने, अथवा उनकी और तरह
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चर्चा करने, का मौका नहीं मिला। उस कार्य से विरत होते ही उन्होने अपने ज्ञान-भाण्डार से नये-नये रत्न निकालने आरम्भ किये। उनके लेख विद्वान् और उच्च शिक्षा पाये हुए जन, टाइम्स आव् इंडिया आदि पत्रो में, बड़ी उत्कण्ठा से पढ़ने लगे। जोशोजी ने गवर्नमेट की भूमिकर-सम्बन्धिनी नीति का बहुत ही अच्छा ज्ञान प्राप्त किया था। यही कारण था जो इस विषय मे लिखे गये उनके लेख बडे ही गम्भीर, प्रमाणपूर्ण और अखण्डनीय होते थे। अकाल के सम्बन्ध मे उन्होंने जो लेख लिखे थे उनका फल भी बहुत अच्छा हुआ। तत्सम्बन्ध में गवर्नमेट ने जॉच की और जोशीजी की शिकायतों को अनेकांश में दूर कर दिया। विलायत के नेविन्सन साहब ने---"न्यू स्पिरिट इन इंडिया" नाम की एक पुस्तक लिखी है। उसमे उन्होंने लिखा है कि जोशीजी के मुंह से अड्को की लम्बी-लम्बी लड़ियाँ इस तरह निकलती हैं जिस तरह कि फव्वारे से पानी की सैकड़ों पतली-पतली धारायें निकलती हैं।

मिस्टर डिग्बी और मिस्टर आर० सी० दत्त ने भारत की आर्थिक और औद्योगिक अवस्थिति के विषय में जो बड़ी-बड़ी पुस्तकें लिखी हैं उनके सड्कलन मे उन्हें भी जोशीजी से बहुत सहायता मिली थी।

कौसिल मे गवर्नमेट भी जोशीजी के काम को बड़े महत्त्व का समझती थी। जो कुछ वहाँ इन्होंने कहा या लिखा
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उसमे सचाई और न्यायशीलता को कभी हाथ से नहीं जाने दिया। इनकी न्यायनिष्ठा बड़ी ही प्रबल थी। कौंसिल मे इनके कार्य-कलाप से प्रसन्न होकर ही गवर्नमेंट ने इन्हे राव-बहादुर बनाया था। धन्य है वह पुरुष जो राजा और प्रजा दोनो का कृपापात्र और विश्वास-भाजन हो।

जोशीजी के मरने पर माननीय मिस्टर गोखले आदि, पूने के प्रतिष्ठित जनों, ने सभा करके शोक-प्रदर्शन किया। अब जोशीजी की स्मृति-रक्षा का प्रबन्ध हो रहा है।

[सितम्बर १९११