चन्द्रकांता सन्तति २/७.५

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चंद्रकांता संतति भाग 2  (1896) 
द्वारा देवकीनन्दन खत्री

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पाठकों को याद होगा कि भूतनाथ को नागर ने एक पेड़ के साथ बाँध रक्खा है। यद्यपि भूतनाथ ने अपनी चालाकी और तिलिस्मी खंजर की मदद से नागर को बेहोश कर दिया मगर देर तक उसके चिल्लाने पर भी वहां कोई उसका मददगार न पहुँचा और नागर फिर से होश में आकर उठ बैठी।

नागर––अब मुझे मालूम हुआ कि तेरे पास भी एक अद्भुत वस्तु है।

भूतनाथ––जो अब तुम्हारी होगी।

नागर––नहीं, जिसके छूने से बेहोश हो गई उसे अपने पास क्यों कर रख सकती हूँ! मगर मालूम होता है कि कोई ऐसी चीज भी तेरे पास जरूर है जिसके सबब से इस खंजर का असर तुझ पर नहीं होता। खैर, मैं तेरा यह तीसरा कसूर भी माफ करूँगी यदि तू यह खंजर मुझे दे दे और वह दूसरी चीज भी मेरे हवाले कर दे जिसके सबब से इस खंजर का असर तुझ पर नहीं होता।

भूतनाथ––मगर मुझे क्योंकर विश्वास होगा कि तुमने मेरा कसूर माफ किया?

नागर––और मुझे क्योंकर विश्वास होगा कि तूने वास्तव में वही चीज मुझे दी जिसके सबब से खंजर की करामात से तू बचा हुआ है?

भूतनाथ––बेशक मैं वही चीज तुम्हें दूँगा, और तुम आजमाने के बाद मुझे छोड़ सकती हो।

नागर––मगर ताज्जुब नहीं कि आजमाते ही मैं फिर बेहोश हो जाऊँ क्योंकि तू धोखा देने में मुझसे किसी तरह कम नहीं है!

भूतनाथ––इसका जवाब तुम खुद समझ सकती हो!

नागर––हाँ ठीक है, यदि मैं थोड़ी देर के लिए बेहोश भी हो जाऊँगी तो तू मेरा कुछ कर नहीं सकता क्योंकि पेड़ के साथ बँधा हुआ है और तेरे हाथ-पैर भी खुले नहीं हैं।

भूतनाथ––और मेरे चिल्लाने से भी यहां कोई मददगार न पहुँचेगा।

नागर––हो, इसका प्रमाण भी... [ १६४ ]कहते-कहते नागर रुक गई क्योंकि तभी पत्तों के खड़खड़ाने की आवाज उसने सुनी और किसी के आने का उसे शक हुआ। नागर ने पीछे घूम कर देखा तो कमलिनी पर नजर पड़ी जो नागर के दिए घोड़े पर सवार इसी तरफ आ रही थी। कमलिनी इस समय भी उसी सूरत में थी जिस सुरत में नागर के यहाँ गई थी और उसका पहचानना मुश्किल था, मगर भूतनाथ को जुबानी नागर को पता लग चुका था इसलिए उसने कमलिनी को तुरत पहचान लिया और भूतनाथ को उसी तरह छोड़ फुर्ती से अपने घोड़े पर सवार हो गई। कमलिनी भी पास पहुँची और नागर की तरफ देखकर बोली––

कमलिनी––तुझे तो विश्वास हो गया होगा कि मैं मिर्जापुर चली गई!

नागर––बेशक तुमने मुझे धोखा दिया, खैर, अब मेरे हाथ से बच कर कहाँ जा सकती हो? यद्यपि तुम मायारानी की बहिन हो और इस सबब से मुझे तुम्हारा अदब करना चाहिए मगर तुम्हारी बुराइयों पर ध्यान देकर मायारानी ने हुक्म दे रक्खा है कि जो कोई तुम्हारा सिर काट कर उनके पास ले जायेगा वह मुँहमाँगा इनाम पाएगा, अस्तु अब मैं तुम्हें किसी तरह छोड़ नहीं सकती। हाँ, अगर तुम खुशी से मायारानी के पास चली चलो तो अच्छी बात है!

कमलिनी––(मुस्कुरा कर) ठीक है, मालूम होता है कि तू अभी तक अपने को अपने मकान में मौजूद समझती है और चारों तरफ अपने नौकरों को देख रही है।

नागर––(कुछ शर्माकर) मैं खूब जानती हूँ कि इस मैदान में मैं अकेली हूँ लेकिन यह भी देख रही हूँ कि तुम्हारे साथ भी कोई दूसरा नहीं है। अगर तुम अपने को हर्बा चलाने और ताकत में मुझसे बढ़कर समझती हो तो यह तुम्हारी भूल है और इसका फैसला हाथ मिलाने से ही हो सकता है (हाथ बढ़ाकर) आइए!

कमलिनी––(हँसकर) वाह, तू समझती है कि मुझे उस अँगूठी की खबर नहीं जो तेरे इस बढ़े हुए हाथ में देख रही हूँ, अच्छा ले!

"अच्छा ले" कह कर कमलिनी ने दिखा दिया कि उसमें कितनी तेजी और फुर्ती है। घोड़ा आगे बढ़ाया और तिलिस्मी खंजर निकाल कर इतनी तेजी के साथ नागर के हाथ पर रख दिया कि वह अपना हाथ हटा भी न सकी और खंजर की तासीर से बदहवास होकर जमीन पर गिर पड़ी। कमलिनी ने घोड़े से उतर कर भूतनाथ को कैद से छुट्टी दी और कहा, "वाह, तुम इतने बड़े चालाक होकर भी इसके फन्दे में आ गये!"

भूतनाथ––मैं इसके फन्दे में न आता यदि उस अँगूठी का गुण जानता जो इसकी उँगली में चमक रही है, वास्तव में यह अनमोल वस्तु है और कठिन समय पर काम दे सकती है।

कमलिनी––इस कम्बख्त के पास यही तो एक चीज है जिसके सबब से मायारानी की आँखों में इसकी इज्जत है। इसके जहर से कोई बच नहीं सकता, हाँ यदि यह चाहे तो जहर उतार भी सकती है। न मालूम यह अँगूठी और इसका जहर उतारने की तरकीब मनोरमा ने कहाँ से पाई।

भूतनाथ––मायारानी से और इससे क्या सम्बन्ध?

कमलिनी––मनोरमा उसकी छह सखियों में सबसे बड़ा दर्जा रखती है और वह

च॰ स॰-2-10

[ १६५ ]इस कम्बख्त को अपनी बहिन से बढ़ के मानती है। यह अँगूठी भी मनोरमा ही की है।

भूतनाथ––तो मायारानी ने यह अँगूठी क्यों न ले ली? उसके तो बड़े काम की चीज थी!

कमलिनी––उसको भी मनोरमा ने ऐसी ही अँगूठी बना दी है और जहर उतारने की दवा भी तैयार कर दी है मगर इसके बनाने की तरकीब नहीं बताती।

भूतनाथ––खैर, अब यह अँगूठी आप ले लीजिए।

कमलिनी––यद्यपि यह मेरे काम की चीज नहीं है बल्कि इसको अपने पास रखने में मैं पाप समझती हूँ तथापि जब तक मायारानी से खटपट चली जाती है तब तक यह अँगूठी अपने पास जरूर रक्खूगी (तिलिस्मी खंजर की तरफ इशारा करके) इसके सामने यह अँगूठी कोई चीज नहीं है।

भूतनाथ––बेशक बेशक! जिसके पास यह खंजर है उसे दुनिया में किसी चीज की परवाह नहीं और वह अपने दुश्मन से चाहे वह कैसा जबरदस्त क्यों न हो कभी नहीं डर सकता। आपने मुझ पर बड़ी ही कृपा की जो ऐसा खंजर थोड़े दिन के लिए मुझे दिया। आह, वह दिन भी कैसा होगा जिस दिन यह खंजर हमेशा अपने पास रखने की आज्ञा आप मुझे देंगी।

कमलिनी––(मुस्कुराकर) खैर, वह दिन आज ही समझ लो, मैं हमेशा के लिए यह खंजर तुम्हें देती हूँ, मगर नानक के लिए ऐसा करने की सिफारिश मत करना।

भूतनाथ ने खुश होकर कमलिनी को सलाम किया। कमलिनी ने नागर की उँगली से जहरीली अँगूठी उतार ली और उसके बटुए में से खोज कर उस दवा की शीशी भी निकाल ली जो उस अँगूठी के भयानक जहर को बात की बात में दूर कर सकती थी। इसके बाद कमलिनी ने भूतनाथ से कहा, "नागर को हमारे अद्भुत मकान में ले जाकर तारा के सुपुर्द करो और फिर मुझसे आकर मिलो। मैं फिर वहीं अर्थात् मनोरमा के मकान पर जाती हूँ। अपने कागजात भी उसके बटुए में से निकाल लो और इसी समय उन्हें जलाकर सदैव के लिए निश्चिन्त हो जाओ!"