चन्द्रकान्ता सन्तति 5/19.11
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दूसरे दिन नियत समय पर फिर दरबार लगा और वे दोनों नकाबपोश भी आ मौजूद हुए। आज के दरबार में बलभद्रसिंह भी अपने चेहरे पर नकाब डाले हुए थे। आज्ञानुसार पुनः वह नकटा दारोगा और नकली बलभद्रसिंह हाजिर किए गए और सबके पहले इन्द्रदेव ने नकली बलभद्रसिंह से इस तरह पूछना शुरू किया––
इन्द्रदेव––क्यों जी, क्या तुम असली बलभद्रसिंह का ठीक-ठीक पता नहीं बताओगे?
नकली बलभद्रसिंह (लम्बी सांस लेकर और महाराजा साहब की तरफ देखकर) कैसा बुरा जमाना हो रहा है। हजार बार पहचाने जाने पर भी अभी तक मुझे नकली बलभद्रसिंह ही कहा जाता है और गुनाहों की टोकरी सिर पर लादने वाले भूतनाथ को मूंछों पर ताव देता हुआ देखता हूँ। (इन्द्रदेव की तरफ देखकर) मालूम होता है कि आपको जमानिया के दारोगा वाला रोजनामचा नहीं मिला, अगर मिलता तो आपको मुझ पर किसी तरह का शक न रहता
भूतनाथ––(जैपाल अर्थात् नकली बलभद्रसिंह से) तुझे अभी तक हौसला बना ही हुआ है? (तेजसिंह से) कृपानिधान, अभी कल की बात है, आप उन बातों को कदापि न भूले होंगे जो मैंने कमलिनीजी के तालाब वाले तिलिस्मी मकान में इस दुष्ट के सामने आप लोगों से उस समय कही थीं जब आप लोग इसे सच्चा मानकर मुझे कैदखाने की हवा खिलाने का बन्दोबस्त कर चुके थे। क्या मैंने नहीं कहा था कि महाराज के सामने मेरा मुकदमा एक अनूठा रंग पैदा करके मेरे बदले में किसी दूसरे ही को कोठरी का मेहमान बनावेगा? देखिये आज वह दिन आपकी आँखों के सामने है, आपके साथ वे लोग भी हर तरह से मेरी बातों को सुन रहे हैं जिन्होंने उस दिन इसे असली बलभद्रसिंह मान लिया और मुझे घृणा की दृष्टि से भी देखना पसन्द नहीं करते थे। आशा है आप लोग उस समय की भूल पर अफसोस करेंगे और इस समय मैं बड़े अनूठे रहस्यों को खोलकर जो तमाशा दिखाने वाला हूँ, उसे ध्यान देकर देखेंगे।
तेजसिंह––बेशक ऐसा ही है, औरों के दिल की तो मैं नहीं कह सकता, मगर मैं अपनी उस समय की भूल पर जरूर अफसोस करता हूँ।
इस कमरे में जिसमें दरबार लगा हुआ था, ऊपर की तरफ कई खिड़कियाँ थीं जिनमें दोहरी चिकें पड़ी हुई थीं जहाँ बैठी लक्ष्मीदेवी, कमलिनी वगैरह इन बातों को बड़े गौर से सुन रही थीं। भूतनाथ ने पुनः जैपाल की तरफ देखा और कहा––
भूतनाथ––अब मैं उन बातों को भी जान चुका हूँ जिन्हें उस समय न जानने के कराण मैं सचाई के साथ अपनी बेकसूरी साबित नहीं कर सकता था। हाँ कहो, अब तुम अपने बारे में क्या कहते हो?
जैपालसिंह––मालूम होता है कि आज तू अपने हाथ की लिखी हुई उन चिट्ठियों से इनकार किया चाहता है जो तेरी बुराइयों के खजाने को खोलने के काम में आ चुकी हैं और आवेंगी। क्या लक्ष्मीदेवी की गद्दी पर मायारानी को बैठाने की कार्रवाई में तूने सबसे बड़ा हिस्सा नहीं लिया था और क्या वे सब चिट्ठियाँ तेरे हाथ की लिखी हुई नहीं हैं?
भूतनाथ––नहीं-नहीं, मैं इस बात से इनकार नहीं करूँगा कि वे चिट्ठियाँ मेरे हाथ की लिखी हुई नहीं हैं, बल्कि इस बात को साबित करूँगा कि लक्ष्मीदेवी के बारे में मैं बिल्कुल बेकसूर हूँ और चिट्ठियाँ, जिन्हें मैंने अपने फायदे के लिए लिख रक्खा था मुझे नुकसान पहुँचाने का सबब हुईं, तथा इस बात को भी साबित करूँगा कि मैं वास्तव में वह रघुबरसिंह नहीं हूँ जिसने लक्ष्मीदेवी के बारे में कार्रवाई की थी। इसके साथ ही तुझे और इस नकटे दारोगा को भी यह सुनकर अपने उछलते हुए कलेजे को रोकने के लिए तैयार हो जाना चाहिए कि केवल असली बलभद्र सिंह ही नहीं, बल्कि इन्दिरा तथा सरयू भी दम भर में तुम लोगों की कलई खोलने के लिए यहाँ आ चुकी हैं!
जैपाल––(बेहयाई के साथ) मालूम होता है कि तुम लोगों ने किसी को जाली बलभद्रसिंह बनाकर राजा साहब के सामने पेश कर दिया है।
इतना सुनते ही बलभद्र सिंह ने अपने चेहरे से नकाब हटाकर जैपाल की तरफ देखा और कहा, "नहीं-नहीं, जाली बलभद्रसिंह नहीं बनाया गया बल्कि मैं स्वयं असली बलभसिंह यहाँ बैठा हुआ तेरी बातें सुन रहा हूँ।"
बलभद्रसिंह की सूरत देखकर एक दफे तो जयपाल हिचका। मगर तुरन्त ही उसने अपने को सम्हाला और परले सिरे की बेहयाई को काम में लाकर कहा, "आहा, हेलासिंह भी यहाँ आ गए! मुझे तुमसे मिलने की कुछ भी आशा न थी, क्योंकि मेरे मुलाकातियों ने जोर देकर कहा था कि हेलासिंह मर गया और अब तुम उसे कदापि नहीं देख सकते।"
बलभद्रसिंह––(मुस्कराता हुआ तेजसिंह की तरफ देख कर) ऐसे बेहया की सूरत भी आज के पहले आप लोगों ने न देखी होगी! (जयपाल से) मालूम होता है कि तू अपने दोस्त हेलासिंह की मौत का सबब भी किसी दूसरे को ही बताना चाहता है। मगर ऐसा नहीं हो सकता, क्योंकि मेरे दोस्त भूतनाथ मेरे साथ हेलासिंह के मामले का सबूत भी बेगम के मकान से लेते आये हैं।
भूतनाथ––हाँ-हाँ, वह सबूत भी मेरे पास मौजूद है जो सबसे ज्यादा मेरे खास मामले में काम देगा।
इतना कहकर भूतनाथ ने दो-चार कागज, दस-बारह पन्ने की एक किताब और हीरे की अँगूठी जिसके साथ छोटा-सा पुरजा बँधा हुआ था, अपने बटुए में से निकाल कर राजा गोपालसिंह के सामने रख दिया और कहा, "बेगम नौरतन और जमालो को भी तलब करना चाहिए।"
इन चीजों को गौर से देख कर राजा गोपालसिंह ताज्जुब और भूतनाथ का मुँह देखने लगे।
भूतनाथ––(गोपालसिंह से) आप जिस समय कृष्ण जिन्न की सूरत में थे, उस समय मैंने आपसे अर्ज किया था कि अपनी बेकसूरी का बहुत अच्छा सबूत किसी समय आपके सामने ला रखूँगा, सो यह सबूत मौजूद है, इसी से दोनों का काम चलेगा।
गोपालसिंह––(ताज्जुब के साथ) हाँ ठीक है, (वीरेन्द्रसिंह से) ये बड़े काम की चीजें भूतनाथ ने पेश की हैं। बेगम नौरतन और जमालो के हाजिर होने पर मैं इनका मतलब बयान करूँगा।
वीरेन्द्रसिंह ने तेजसिंह की तरफ देखा और तेजसिंह ने बेगम नौरतन और जमालो के हाजिर होने का हुक्म दिया। इस समय जयपाल का कलेजा उछल रहा था। वह उन चीजों को अच्छी तरह देख नहीं सकता था और न उसे इसी बात का गुमान था कि बेगम के यहाँ से भूतनाथ फलाँ चीजें ले आया है।
कैदियों की सूरत में बेगम नौरतन और जमालो हाजिर हुई। उस समय एक नकाबपोश ने, जिसने भूतनाथ की पेश की हुई चीजों को अच्छी तरह देख लिया था, गोपालसिंह से कहा, "मैं उम्मीद करता हूँ कि भूतनाथ की पेश की हुई इन चीजों का मतलब बनिस्बत आपके मैं ज्यादा अच्छी तरह बयान कर सकूँगा। यदि आप मेरी बातों पर विश्वास करके ये चीजें मेरे हवाले करें तो उत्तम हो।"
नकाबपोश की बातें सभी ने ताज्जुब के साथ सुनी, खास करके जयपाल ने, जिसकी विचित्र अवस्था हो रही थी। यद्यपि वह अपनी जान से हाथ धो बैठा था, मगर साथ ही इसके यह भी सोचे हुए था कि मेरी चालबाजियों में उलझे हुए भूतनाथ को कोई कदापि बचा नहीं सकता और इस समय भूतनाथ के मददगार जो आदमी हैं, वे लोग तभी भूतनाथ को बचा सकेंगे जब मेरी बातों पर पर्दा डालेंगे या मेरे कसूरों की माफी दिला देंगे, तथा जब तक ऐसा न होगा मैं कभी भूतनाथ को अपने पंजे से निकलने न दूँगा। यही सबब था कि ऐसी अवस्था में भी वह बोलने और बातें बनाने से बाज नहीं आता था।
नकाबपोश की बात सुनकर राजा गोपालसिंह ने मुस्करा दिया और भूतनाथ की दी हुई चीजें उसके सामने रख कर कहा, "अच्छी बात है, यदि आप मुझसे ज्यादा जानते हैं तो आप ही इस गुत्थी को साफ करें।"
नकाबपोश––अच्छा होता यदि इन चीजों को पहले बड़े महाराज और जीतसिंह भी देख लेते।
गोपालसिंह––मैं भी यही चाहता हूँ।
इतना कह कर राजा गोपालसिंह ने उन चीजों को हाथ में उठा लिया और तेजसिंह की तरफ देखा। तेजसिंह का इशारा पाकर देवीसिंह राजा गोपालसिंह के पास गए और वे चीजें लेकर जीतसिंह के हाथ में दे आए।
महाराज सुरेन्द्रसिंह, जीतसिंह, राजा वीरेन्द्रसिंह और तेजसिंह ने भी उन चीजों को अच्छी तरह देखा और इसके बाद महाराज की आज्ञानुसार जीतसिंह ने कहा, "महाराज हुक्म देते हैं कि आज की कार्रवाई यहीं खत्म की जाय और इसके बाद की कार्रवाई कल दरबारे-आम में हो और इन पुर्जो का मतलब भी कल ही के दरबार में नकाबपोश साहब बयान करें।"
इस बात को सभी ने पसन्द किया, खासकर दोनों नकाबपोशों की और भूतनाथ की भी यही इच्छा थी, अस्तु, दरबार बर्खास्त हुआ और कल के लिए दरबार-आम की मुनादी की गई।