चन्द्रकान्ता सन्तति 5/19.12

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चंद्रकांता संतति भाग 5  (1896) 
द्वारा देवकीनन्दन खत्री

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आज के दरवारे-आम की बैठक भी उसी ढंग की है जैसा कि हम दरबारे-आम के बारे में बयान कर चुके हैं, अगर फर्क है तो सिर्फ इतना ही कि दरबारे-खास में बैठनेवाले लोगों के बाद उन रईसों-अमीरों और अफसरों तथा ऐयारों को दर्जे-बदर्जे जगह मिली है जो आज के दरबार में शरीक हुए हैं और आदमी भी बहुत ज्यादा इकट्ठे हुए मगर आवाज के खयाल से पूरा-पूरा सन्नाटा छाया हुआ है। शोरगुल की तो दूर रही किसी की मजाल नहीं कि बिना मर्जी के चुटकी भी बजा सके। इसके अतिरिक्त नंगी तलवार लिए रुआबदार फौजी सिपाहियों के पहरे का इन्तजाम भी बहुत ही मुनासिब और खूबसूरती के साथ किया गया है और बाहर के आये हुए मेहमान भी बड़ी दिलचस्पी के साथ बलभद्रसिंह और भूतनाथ का मुकदमा सुनने के लिए तैयार हैं।

नकटा दारोगा, जैपाल, बेगम, नौरतन और जमालो के हाजिर होने के बाद तेजसिंह ने कल के दरबार में भूतनाथ की पेश की हुई चिट्ठियाँ, अँगूठी और छोटी किताब राजा गोपालसिंह को दे दी और राजा गोपालसिंह ने इस खयाल से कि कल के और परसों के मामले से भी सभी को आगाही हो जानी चाहिए, जो कुछ पिछले दो दिन के दरबार-खास में हुआ था, रणधीरसिंह की तरफ देखकर बयान किया और इसके बाद "आज भी वे दोनों नकाबपोश इस दरबार में हाजिर हैं जिन्हें हम लोग ताज्जुब की [ १७४ ]निगाहों से देख रहे हैं और नहीं जानते कि कौन हैं, कहाँ के रहने वाले हैं, या इन मामलों से इन्हें क्या सम्बन्ध है जिसके लिए इन दोनों ने यहाँ आने और मुकदमे में शरीक होने का कष्ट स्वीकार किया है। फिर भी जब तक ये दोनों अपने को प्रकट न करें हम लोगों को इनका हाल जानने के लिए उद्योग न करना चाहिए और देखना चाहिए कि इनकी कार्रवाइयों और बात का असर कम्बख्त मुजरिमों पर कैसा पड़ता है।"

यह कहकर गोपालसिंह ने वह अँगूठी, चिट्ठियाँ और छोटी किताब नकाबपोश के आगे रख दी।

इस दरबार-आम वाले मकान में भी ऐसी जगह बनी हुई थी जहाँ से रानी चन्द्रकान्ता और किशोरी, कामिनी, लक्ष्मीदेवी, कमलिनी वगैरह भी यहाँ की कैफियत देख-सुन सकती थी, इसलिए समझ रखना चाहिए कि वे सब भी दरबार के मामले को देख-सुन रही हैं।

उन दोनों में से एक नकाबपोश ने भूतनाथ के पेश किए हुए कागजों में से एक कागज उठा लिया और खड़े होकर इस तरह कहना शुरू किया––

"निःसन्देह आप लोग हम दोनों को ताज्जुब की निगाह से देखते होंगे और यह भी जानने की इच्छा रखते होंगे कि हम लोग कौन हैं, और कहाँ के रहनेवाले हैं, मगर अफसोस है कि इस समय इस बारे में हम इससे ज्यादा कुछ नहीं कह सकते कि हम लोग ईश्वर के दूत हैं और इन दुष्टों के अच्छे-बुरे कर्मों को अच्छी तरह जानते हैं। यह जैपाल अर्थात् नकली बलभद्रसिंह चाहता है कि अपने साथ भूतनाथ को भी ले डूबे, मगर इसे समझ रखना चाहिए कि भूतनाथ हजार बुरा होने पर भी इज्जत और कदर की निगाह से देखे जाने के लायक है। अगर भूतनाथ न होता तो यह जैपाल इस समय असली बलभद्रसिंह बनकर न मालूम और भी कैसे-कैसे अनर्थ करता और असली बलभद्रसिंह की जान न जाने किस तकलीफ के साथ निकलती। अगर भूतनाथ न होता तो आज का यह आलीशान दरबार भी हम लोगों के लिए न होता और राजा गोपालसिंह भी इस तरह बैठे हुए दिखाई न देते, क्योंकि भूतनाथ की ही बदौलत दारोगा की गुप्त कमेटी का अन्त हुआ और इसी की बदौलत कमलिनी भी मायारानी के साथ मुकाबला करने लायक हुई। अगर भूतनाथ ने दो काम बुरे किये हैं तो दस काम अच्छे भी किए हैं, जो आप लोगों से छिपे नहीं हैं। भूतनाथ के अनूठे कामों का बदला यह नहीं हो सकता कि उसे किसी तरह की सजा मिले बल्कि यही हो सकता है कि उसे मुंहमांगा इनाम मिले, आशा है कि मेरी इस बात को महाराज खुले दिल से स्वीकार भी करेंगे।"

इतना कहकर नकाबपोश चुप हो गया और महाराज की तरफ देखने लगा। महाराज का इशारा पाकर तेजसिंह ने कहा, "महाराज आपकी इस बात को प्रसन्नता के साथ स्वीकार करते हैं।"

इतना सुनते ही भूतनाथ ने खड़े होकर सलाम किया और नकाबपोश ने भी सलाम करके पुनः इस तरह कहना शुरू किया––

"बहुतों को ताज्जुब होगा कि जैपाल जब बलभद्रसिंह बन ही चुका था तो इतने दिनों तक कहाँ और क्योंकर छिपा रहा, लक्ष्मीदेवी या कमलिनी से मिला क्यों [ १७५ ]नहीं? और इसी तरह से भूतनाथ भी जब जानता था कि बलभद्रसिंह कौन और कहाँ है तो उसने इस बात को इतने दिनों तक छिपा क्यों रक्खा? इसका जवाब मैं इस तरह देता हूँ कि अगर भूतनाथ कमलिनी का ऐयार बना हुआ न होता तो यह नकली बलभद्रसिंह अर्थात् जैपाल, जिसे भूतनाथ मरा हुआ समझे बैठा था, कभी का प्रकट हो चुका होता, मगर भूतनाथ का डर इसे हद से ज्यादा था और यह चाहता था कि कोई ऐसा जरिया हाथ लग जाय जिससे भूतनाथ इसके सामने कभी भी सिर उठाने लायक न रहे, और तब यह प्रकट होकर अपने को बलभद्रसिंह के नाम से मशहूर करे। आखिर ऐसा ही हुआ अर्थात् वह छोटी सन्दूकड़ी, जिसकी तरफ देखने की भी ताकत भूतनाथ में नहीं है, इसके हाथ लग गई और वह कागज का मुट्ठा भी इसे मिल गया जो भूतनाथ के हाथ का लिखा हुआ था। अपनी इस बात के सबूत में मैं इस (हाथ की चिट्ठी दिखाकर) चिट्ठी को, जो आज के बहुत दिन पहले की लिखी हुई है, पढ़कर सुनाऊँगा!"

इतना कहकर उसने चिट्ठी पढ़ना शुरू किया जिसमें यह लिखा हुआ था––"प्यारी बेगम,

वह सन्दूकड़ी तो मेरे हाथ लग गई जो भूतनाथ को बस में करने के लिए जादू का असर रखती है, मगर भूतनाथ तथा उसके आदमी बेतरह मेरे पीछे पड़े हुए हैं। ताज्जुब नहीं कि मैं गिरफ्तार हो जाऊँ, इसलिए यह सन्दूकड़ी तुम्हारे पास भेजता हूँ। तुम इसे हिफाजत के साथ रखना। मैं भूतनाथ को धोखा देने का बन्दोबस्त कर रहा हूँ। अगर मैं अपना काम पूरा कर सका तो निःसन्देह भूतनाथ को विश्वास हो जायगा कि जयपालसिंह मर गया। उस समय मैं तुम्हारे पास आकर अपनी खुशी का तमाशा दिखाऊँगा। मुझे इस बात का पता भी लग चुका है कि वह कागज की गठरी उसकी स्त्री के सन्दूक में है जिसका जिक्र मैं कई दफे तुमसे कर चुका हूँ और जिसके मिले बिना मैं अपने को बलभद्रसिंह बनाकर प्रकट नहीं कर सकता।

––वही जयपाल।"

पढ़ने के बाद नकाबपोश ने वह चिट्ठी गोपालसिंह के आगे फेंक दी और बेगम की तरफ देख के पूछा, "तुझे याद है कि यह चिट्ठी किस महीने में जयपाल ने तेरे पास भेजी थी?"

बेगम––बहुत दिन की बात हो गई। इसलिए मुझे महीना और दिन तो याद नहीं है।

नकाबपोश––(जयपाल से) क्या तुझे याद है कि यह चिट्ठी तूने किस महीने में लिखी थी?

जयपालसिंह––यह चिट्ठी मेरे हाथ की लिखी हुई होती तो मैं तेरी बात का जवाब देता।

नकाबपोश––तो यह बेगम क्या कह रही है?

जयपालसिंह––तू ही जाने कि तेरी बेगम क्या कह रही है? मैं तो उसे पहचानता भी नहीं।

इतना सुनते ही नकाबपोश को गुस्सा चढ़ आया। उसने अपने चेहरे से नकाब हटाकर गुस्से-भरी निगाहों से जयपाल की तरफ देखा, जिसकी ताज्जुब-भरी निगाहें [ १७६ ]पहले ही से उसकी तरफ जम रहीं, और इसके बाद तुरन्त अपना चेहरा ढाँप लिया।

न मालूम उस नकाबपोश की सूरत में क्या बात थी कि उसे देखते ही जयपाल की सूरत बिगड़ गई और काँपता तथा नकाबपोश की तरफ देखता हुआ अपने हथकड़ी सहित हाथों को जोड़कर बोला, "बस-बस, माफ कीजिए, बेशक यह चिट्ठी मेरे हाथ की लिखी हुई है! ओफ, मैं नहीं जानता था कि तुम अभी जीते हो? मैं तुम्हारी तरफ देखना नहीं चाहता हूँ!"

इतना कहकर जयपाल ने दोनों हाथों से अपनी आँखें ढक लीं और लम्बी-लम्बी साँसें लेने लगा।

इस नकाबपोश की सूरत पर सभी की तो नहीं, मगर बहुतों की निगाह पड़ी। हमारे राजा साहब, ऐयार लोग, गोपालसिंह, इन्द्रदेव और भूतनाथ वगैरह ने भी इसे देखा, मगर पहचाना किसी ने भी नहीं, क्योंकि इन लोगों में से किसी ने भी आज के पहले इसे देखा न था। इसके अतिरिक्त पहले दिन दरबार में नकाबपोश की जो सूरत दिखाई दी थी, उसमें और आज की सूरत में जमीन-आसमान का फर्क था। इस विषय में लोगों ने यह खयाल कर लिया कि पहले दिन एक नकाबपोश ने सूरत दिखाई थी और आज दूसरे ने, क्योंकि नकाब और पोशाक इत्यादि के खयाल से जाहिर में दोनों नकाबपोश एक ही रंग-ढंग के थे।

इन नकाबपोशों की तरफ से भूतनाथ का दिल तरद्दुद और खुटके से खाली न था। पहले दिन उस नकाबपोश की जो सूरत भूतनाथ ने देखी, उसे उसने अपने दिल में अच्छी तरह नक्श कर लिया था––बल्कि एक कागज पर उसकी सूरत (तस्वीर) भी बना कर तैयार कर ली थी और आज भी इसी नीयत से उसी सुरत के विषय में बारीक निगाह से भूतनाथ ने काम लिया, मगर ताज्जुब कर रहा था कि ये दोनों कौन हैं जो बेवजह मेरी मदद कर रहे हैं और ये गुप्त बातें इन दोनों को कैसे मालूम हुईं।

थोड़ी देर तक वह नकाबपोश चुप रहा और इसके बाद उसने राजा साहब की तरफ देख के कहा, "महाराज देखते हैं कि मैं इस मुकदमे की गुत्थी को किस तरह सुलझा रहा हूँ और इस जयपाल के दिल पर मेरी सूरत का क्या असर पड़ा, अब मैं इसी जगह एक और भी गुप्त बात की तरफ इशारा करना चाहता हूँ जिसका हाल शायद अभी तक भूतनाथ को भी मालूम न होगा। वह यह है कि मनोरमा इस (बेगम की तरफ बताकर) बेगम की एक मौसेरी बहिन है और भूतनाथ की गुप्त सहेली नन्हों से गहरी मुहब्बत रखती है। यही सबब है कि भूतनाथ के घर से यह गठरी गायब हुई और जयपाल ने भी यह प्रकट होने के साथ ही लामाघाटी[१] की तरफ इशारा करके भूतनाथ को काबू में कर लिया। इस बात को महाराज तो न जानते होंगे, मगर भूतनाथ को इनकार करने की जगह अब नहीं तो दो दिन बाद न रहेगी।

नकाबपोश की इस बात ने भूतनाथ को चौंका दिया और उसने घबराकर नकाबपोश से कहा, "क्या यह बात आप पूरी तरह से समझ-बूझकर कह रहे हैं?" [ १७७ ]नकाबपोश––हाँ, और यह बात तुम्हारे ही सबब से पैदा हुई थी जिसके सबूत में मैं यह पुर्जा पेश करता हूँ।

इतना कहकर नकाबपोश ने अपनी जेब में से एक पुर्जा निकालकर पढ़ा और फिर राजा गोपालसिंह के सामने फेंक दिया। उसमें लिखा हुआ था––

"प्यारी नन्हों,

अब तो उन्होंने अपना नाम भी बदल दिया। तुम्हें पता लगाना हो तो 'भूतनाथ' के नाम से पता लगा लेना और मुझे भी चाँद वाले दिन गौहर के यहाँ देखना जो शेर की लड़की है।

––करौंदा की छैये-छये।"

इस चिट्ठी ने भूतनाथ को परेशान कर दिया और उसने खड़े होकर कहा, "बस बस, मुझे आपके कहने का विश्वास हो गया और बहुत-सी पुरानी बातों का पता भी लग गया।"

नकाबपोश––मैं इस बारे में और भी बहुत-सी बातें कहूँगा, मगर अभी नहीं। जब समय तथा बातों का सिलसिला आ जायगा। मैं यह तो ठीक-ठीक नहीं कह सकता कि तुम्हारी स्त्री तुमसे दुश्मनी रखती है या वह इस बात को जानती है कि नन्हों और बेगम की मुहब्बत है, मगर इतना जरूर कहूँगा कि तुमने अपनी स्त्री को गौहर के यहाँ जाने की इजाजत देकर अपने पैर में आप कुल्हाड़ी मार ली। मुझे इन बातों के कहने की कोई जरूरत नहीं थी, मगर इस खयाल से बात निकल आई कि तुम भी अपनी गठरी के चोरी जाने का सबब जान जाओ। (तेजसिंह की तरफ देखकर) औरों को क्या कहा जाय, भूतनाथ ऐसे चालाक और ऐयार लोग भी औरतों के मामले में चूक ही जाते हैं।

इसी समय बेगम उद्योग करके उठ खड़ी हुई और महाराज की तरफ देखकर जोर से बोली, "दोहाई महाराज की! इस नकाबपोश का यह कहना कि नन्हों नाम की किसी औरत से मुझसे दोस्ती है। बिल्कुल झूठ है। इसका कोई सबूत नकाबपोश साहब नहीं दे सकते। मैं तो जानती भी नहीं कि नन्हों किस चिड़िया का नाम है। असल तो यह है कि यह केवल भूतनाथ की मदद करने को आये हैं और झूठ-सच बोलकर अपना काम निकालना चाहते हैं। अगर सरकार उस सन्दूकड़ी को खोलें तो सारी कलई खुल जाय।" बेगम की बात सुनकर दोनों नकाबपोश गुस्से में आ गये। दूसरा नकाबपोश जो बैठा था, उठ खड़ा हुआ और अपने चेहरे की एक झलक लापरवाही के साथ बेगम को दिखाकर क्रोध-भरी आवाज में बोला, "क्या ये सब बातें झूठ हैं?"

इस दूसरे नकाबपोश ने अपनी सुरत दिखाने की नीयत से अपनी नकाब को दम भर के लिए इस तरह हटाया जिससे लोगों को गुमान हो सकता था कि धोखे में नकाब खसक गई, मगर होशियार और ऐयार लोग समझ गये कि इसने जानबुझ के अपनी सूरत दिखाई है। यद्यपि इसके चेहरे पर केवल तेजसिंह, देवीसिंह, गोपालसिंह, भूतनाथ, जयपाल और बेगम की निगाह पड़ी थी, मगर इस दूसरे नकाबपोश के चेहरे पर निगाह पड़ते ही बेगम यह कहकर चिल्ला उठी––आह, तू कहाँ! क्या नन्हों भी गई!" [ १७८ ]बस इससे ज्यादा और कुछ न कह सकी, एक दफे काँपकर बेहोश हो गई और जयपाल भी जमीन पर गिरकर बेहोश हो गया, अतएव मुकदमे की कार्रवाई रोक देनी पड़ी।

भूतनाथ तथा हमारे ऐयारों को विश्वास था कि यह दूसरा नकाबपोश वही होगा जिसने पहले दिन सूरत दिखलाई थी, मगर ऐसा न था। उस सूरत और इस सूरत में जमीन-आसमान का फर्क था, अतएव सभी ने निश्चय कर लिया कि वह कोई दूसरा था और यह कोई और है।

इस सूरत को भी भूतनाथ पहचानता न था। उसके ताज्जुब की हद न रही और उसने निश्चय कर लिया कि आज इनकी खबर जरूर ली जायगी। और यही कैफियत हमारे ऐयारों की भी थी।

कैदी पुनः कैदखाने में भेज दिये गये, दोनों नकाबपोश बिदा हुए और दरबार बर्खास्त किया गया।

  1. देखिए चन्द्रकान्ता संतति, ग्यारहवाँ भाग, आठवाँ बयान।