चन्द्रकान्ता सन्तति 5/19.13

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चंद्रकांता संतति भाग 5  (1896) 
द्वारा देवकीनन्दन खत्री

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दरबार बर्खास्त होने के बाद जब महाराज सुरेन्द्रसिंह, जीतसिंह, वीरेन्द्रसिंह, तेजसिंह, गोपालसिंह और देवीसिंह एकान्त में बैठे तो यों बातचीत होने लगी।

सुरेन्द्रसिंह––ये दोनों नकाबपोश तो विचित्र तमाशा कर रहे हैं। मालूम होता है कि इन सब मामलों की सबसे ज्यादा खबर इन्हीं लोगों को है।

जीतसिंह––बेशक ऐसा ही है।

वीरेन्द्रसिंह––जिस तरह इन दोनों ने तीन दफे में तीन तरह की सूरतें दिखाई इसी से मालूम होता है और भी कई दफे कई तरह की सूरतें दिखायेंगे।

गोपालसिंह––निःसन्देह ऐसा ही होगा। मैं समझता हूँ कि या तो ये अपनी सूरत बदलकर आया करते हैं या दोनों केवल दो ही नहीं हैं और भी कई आदमी हैं जो पारी-पारी से आकर लोगों को ताज्जुब में डालते हैं और डालेंगे।

तेजसिंह––मेरा भी यही खयाल है। भूतनाथ के दिल में भी खलबली पैदा हो रही है। उसके चेहरे से मालूम होता था कि वह इन लोगों का पता लगाने के लिए परेशान हो रहा है।

देवीसिंह––भूतनाथ का ऐसा विचार कोई ताज्जुब को बात नहीं। जब हम लोग उनका हाल जानने के लिए व्याकुल हो रहे हैं, तब भूतनाथ का क्या कहना है।

सुरेन्द्रसिंह––इन लोगों ने मुकदमे की उलझन खोजने का ढंग तो अच्छा निकाला है, मगर यह मालूम करना चाहिए कि इन मामलों से इन्हें क्या सम्बन्ध है?

देवीसिंह––अगर आज्ञा हो तो मैं उनका हाल जानने के लिए उद्योग करूँ?

वीरेन्द्रसिंह––कहीं ऐसा न हो कि पीछा करने से ये लोग बिगड़ जायें और फिर [ १७९ ]यहाँ आने का इरादा न करें।

गोपालसिंह––मेरे खयाल से तो उन लोगों को इस बात का रंज न होगा कि लोग उनका हाल जानने के लिए पीछा कर रहे हैं, क्योंकि उन लोगों ने काम ही ऐसा उठाया है कि सैकड़ों आदमियों को ताज्जुब हो और सैकड़ों ही उनका पीछा भी करें। इस बात को वे लोग खूब ही समझते होंगे और इस बात का भी उन्हें विश्वास होगा कि भूतनाथ उनका हाल जानने के लिए सबसे ज्यादा कोशिश करेगा।

वीरेन्द्रसिंह––ठीक है और इसी खयाल से वे लोग हर वक्त चौकन्ने भी रहते हों तो कोई ताज्जुब नहीं।

जीतसिंह––जरूर चौकन्ने रहते होंगे और ऐसी अवस्था में पता लगाना भी कठिन होगा।

गोपालसिंह––जो हो, मगर मेरी इच्छा तो यही है कि स्वयं उनका हाल जानने के लिए उद्योग करूँ

सुरेन्द्रसिंह––अगर उनके मामले में पता लगाने की इच्छा ही है तो क्या तुम्हारे यहाँ ऐयारों की कमी है जो तुम स्वयं कष्ट करोगे? तेजसिंह, देवीसिंह, पण्डित बद्रीनाथ या और जिसे चाहो इस काम पर मुकर्रर करो।

गोपालसिंह––जो आज्ञा, देवीसिंह कहते ही हैं तो इन्हींको यह काम सुपुर्द किया जाय।

सुरेन्द्रसिंह––(देवीसिंह से) जाओ तुम, तुम ही इस काम में उद्योग करो, देखें क्या खबर लाते हो।

देवीसिंह––(सलाम करके) जो आज्ञा।

गोपालसिंह––और इस बात का भी पता लगाना कि भूतनाथ उनका पीछा करता है या नहीं।

देवीसिंह––जरूर पता लगाऊँगा।

इस बात से छुट्टी पाने के बाद थोड़ी देर तक और बातें हुईं, इसके बाद महाराज आराम करने चले गये तथा और लोग भी अपने ठिकाने पधारे।