चन्द्रकान्ता सन्तति 5/19.9

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चंद्रकांता संतति भाग 5  (1896) 
द्वारा देवकीनन्दन खत्री

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चुनारगढ़ वाली तिलिस्मी इमारत के चारों तरफ छोटे-बड़े सैकड़ों खेमों, डेरों रावटियों और शामियानों की बहार दिखाई दे रही है, जिनमें से बहुतों में लोगों के डेरे पड़ चुके हैं और बहुत अभी तक खाली पड़े हैं। मगर वे भी धीरे-धीरे भर रहे हैं। किशोरी के नाना रणधीरसिंह और किशोरी, कामिनी वगैरह को लिए हुए राजा गोपालसिंह भी आ गए हैं और इन लोगों के साथ कुछ फौजी सिपाही भी आ पहुँचे हैं जो कायदे के साथ रावटियों में डेरा डाले हुए हैं। किशोरी इत्यादि महल में पहुँचा दी गई हैं जिसके सबब से अन्दर तरह-तरह की खुशियाँ मनाई जा रही हैं। राजा गोपालसिंह का डेरा भी तिलिस्मी इमारत के अन्दर ही पड़ा है। राजा वीरेन्द्रसिंह ने उनके लिए अपने कमरे के पास ही एक सुन्दर और सजा हुआ कमरा मुकर्रर कर दिया है, और उनके (गोपालसिंह के) साथी लोग इमारत के बाहर वाले खेमों में उतरे हुए हैं। इसी तरह रणधीरसिंह का भी डेरा इमारत के बाहर उन्हीं के भेजे हुए खेमे में पड़ा है और वे यहाँ पहुँच कर राजा सुरेन्द्रसिंह और वीरेन्द्रसिंह तथा और लोगों से मुलाकात करने के बाद किशोरी और कमला से मिल कर खुश हो चुके हैं और साथ ही इसके भूतनाथ की नजर भी कबूल कर चुके हैं जिसकी उम्मीद भूतनाथ को कुछ भी न थी।

इसी तरह राजा वीरेन्द्रसिंह के बचे हुए ऐयार लोग भी जो यहाँ मौजूद न थे, अब आ गए हैं। यहाँ तक कि रोहतासगढ़ से ज्योतिषीजी का डेरा भी आ गया है और वे भी तिलिस्मी इमारत के बाहर एक खेमे में टिके हुए हैं।

इनके अतिरिक्त कई बड़े-बड़े, रईस जमींदार और महाजन लोग भी गया, रोहतासगढ़, जमानिया और चुनार वगैरह से राजा वीरेन्द्रसिंह को नजर और मुबारक-

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[ १६५ ]बाद देने की नीयत से आये हुए हैं, जिनके सबब से यहाँ खूब अमन-चमन हो रहा है और सभी को यह भी विश्वास है कि कुँअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह भी तिलिस्म फतह करते हुए शीघ्र आना चाहते हैं और उनके आने के साथ ही ब्याह-शादी के जलसे शुरू हो जायेंगे। साथ ही इसके भूतनाथ वगैरह के मुकदमे से भी सभी को दिलचस्पी हो रही है, यहाँ तक कि बहुत से लोग तो केवल इसी कैफियत को देखने-सुनने की नीयत से आए

हुए हैं।

तिलिस्मी इमारत के बाहर एक छोटा-सा बाजार लग गया है जिसमें जरूरी चीजें तथा खाने का कच्चा गल्ला तथा सब तरह का सामान मेहमानों के लिए मौजूद है और राजा साहब की आज्ञा है कि जिसको जिस चीज की जरूरत हो दी जाय और उसकी कीमत किसी से भी न ली जाय। इस काम की निगरानी के लिए कई नेक और ईमानदार मुंशी मुकर्रर हैं जो अपना काम बड़ा खूबी और नेकनीयती के साथ कर रहे हैं। यह बात तो हुई है, मगर लोगों को आश्चर्य के साथ उस समय और भी आनन्द मिलता है जब एक बहुत बड़े खेमे या पण्डाल के अन्दर कुँअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह की शादी का सामान इकट्ठा होते देखते हैं।

कैदियों को किसी खेमे में जगह नहीं मिली है। बल्कि वे सब तिलिस्मी इमारत के अन्दर एक ऐसे स्थान में रखे गये हैं जो उन्हीं के योग्य है, मगर भूतनाथ बिल्कुल आजाद है और आश्चर्य के साथ लोगों की उँगलियाँ उठवाता हुआ इस समय चारों तरफ घूम रहा है और मेहमानों की खातिरदारी का खयाल भी करता रहता है।

राजा साहब की आज्ञानुसार तिलिस्मी इमारत के अन्दर पहले खण्ड में एक बहुत बड़ा दालान उस आलीशान दरबार के लिए सजाया जा रहा है जिसमें पहले तो भूतनाथ तथा अन्य कैदियों का मुकदमा फैसल किया जाएगा और बाद में दोनों कुमारों के ब्याह की महफिल का आनन्द लोगों को मिलेगा और इसे लोग 'दरबारे-आम' के नाम से सम्बोधन करते हैं। इसके अतिरिक्त 'दरबारे-खास' के नाम से दूसरी मंजिल पर एक और कमरा सजा कर तैयार हुआ है। उसमें नित्य पहर दिन चढ़े तक दरबार हुआ करेगा और उसमें खास-खास तथा ऐयारी पेशे वाले लोग बैठ कर जरूरी कामों पर विचार किया करेंगे। इस समय हम अपने पाठकों को भी इसी दरबारे-खास में ले चल कर बैठाते हैं।

एक ऊँची गद्दी पर महाराज सुरेन्द्रसिंह और उनके बाईं तरफ वीरेन्द्रसिंह बैठे हुए हैं। सुरेन्द्रसिंह के दाहिने तरफ जीतसिंह और वीरेन्द्रसिंह के बाईं तरफ तेजसिंह बैठे हैं और उनके बगल में क्रमशः देवीसिंह, पण्डित बद्रीनाथ, रामनारायण, जगन्नाथ ज्योतिषीजी, पन्नालाल और भूतनाथ वगैरह बैठे हुए दिखाई दे रहे हैं और भूतनाथ के बगल में चुन्नीलाल हाथ में नंगी तलवार लिए खड़ा है। उधर जीतसिंह के बगल में राजा गोपालसिंह और फिर क्रमशः बलभद्र सिंह, इन्द्रदेव, भैरोंसिंह वगैरह बैठे हैं और उनके बगल में नाहरसिंह नंगी तलवार लिए खड़ा है और इस बात पर विचार हो रहा है कि कि कैदियों का मुकदमा कब से शुरू किया जाय तथा उस सम्बन्ध में किन-किन बातों या चीजों की जरूरत है। [ १६६ ]इसी समय चोबदार ने आकर अदब से अर्ज किया––"महल के दरबाजे पर एक नकाबपोश हाजिर हुआ है। उसने पूछने पर भी अपना परिचय नहीं दिया परन्तु दरबार में हाजिर होने की आज्ञा माँगता है।"

इस खबर को सुन कर तेजसिंह ने राजा साहब की तरफ देखा और इशारा पाकर उस सवार को हाजिर करने के लिए चोबदार को हुक्म दिया।

वह नौजवान नकाबपोश सवार जो सिपाहियाना ठाठ के बेशकीमत कपड़ों से अपने को सजाए हुए था, हाजिर होने की आज्ञा पाकर घोड़े से उतर पड़ा। अपना नेजा जमीन में गाड़ कर उसी के सहारे घोड़े की लगाम अटका कर वह इमारत के अन्दर गया और चोबदार के साथ घूमता-फिरता दरबारे-खास में हाजिर हुआ। महाराज सुरेन्द्रसिंह, वीरेन्द्रसिंह, जीतसिंह और तेजसिंह को अदब से सलाम करने के बाद उसने अपना दाहिना हाथ जिसमें एक चिट्ठी थी दरबार की तरफ बढ़ाया और देवीसिंह ने उसके हाथ से पत्र लेकर तेजसिंह के हाथ में दे दिया। तेजसिंह ने राजा सुरेन्द्रसिंह को दिया, उन्होंने उसे पढ़ कर जीतसिंह के हवाले किया और इसके बाद वीरेन्द्र सिंह और तेनसिंह ने भी वह पत्र पढ़ा।

जीतसिंह––(नकाबपोश से) इस पत्र के पढ़ने से जाना जाता है कि खुलासा हाल तुम्हारी जुबानी मालूम होगा!

नकाबपोश––(हाथ जोड़ कर) जी हाँ। मेरे मालिकों ने यह अर्ज करने के लिए मुझे यहाँ भेजा है कि "हम दोनों भूतनाथ तथा और कैदियों का मुकदमा सुनने के समय उपस्थित रहने की इच्छा रखते हैं और आशा करते हैं कि इसके लिए महाराज प्रसन्नता के साथ हम लोगों को आज्ञा देंगे। हम लोग यह प्रतिज्ञापूर्वक कहते हैं कि हम लोगों के हाजिर होने का नतीजा देखकर महाराज प्रसन्न होंगे।

जीतसिंह––मगर पहले यह तो बताओ कि तुम्हारे मालिक कौन हैं, और कहाँ रहते हैं?

नकाबपोश––इसके लिए आप क्षमा करें, क्योंकि हमारे मालिक लोग अभी अपने को प्रकट नहीं करना चाहते और इसलिए जब यहाँ उपस्थित होंगे तो अपने चेहरे पर नकाब डाले होंगे। हाँ, मुकदमा खत्म हो जाने के बाद वे अपने को प्रसन्नता के साथ प्रकट कर देंगे। आप देखेंगे कि उनकी मौजूदगी में मुकदमा सुनने के समय कैसे-कैसे गुल खिलते हैं। हमें आशा है कि इससे महाराज भी बहुत प्रसन्न होंगे।

जीतसिंह––कदाचित तुम्हारा कहना ठीक हो। मगर ऐसे मुकदमों में, जिन्हें घरेलू मुकदमे भी कह सकते हैं, अपरिचित लोगों को शरीक होने और बोलने की आज्ञा महाराज कैसे दे सकते हैं?

नकाबपोश––ठीक है, महाराज मालिक हैं जो उचित समझें करें। मगर इसमें भी कोई सन्देह नहीं कि अगर उस समय हमारे मालिक लोग (केवल दो आदमी) उपस्थित न होंगे तो मुकदमे की बारीक गुत्थी सुलझ न सकेगी, और यदि वे पहले ही से अपने को प्रकट कर देंगे तो...

जीतसिंह––(तेजसिंह से) इस विषय में उचित यही है कि एकान्त में इस नकाब[ १६७ ]पोश से बातचीत की जाय।

तेजसिंह––(हाथ जोड़ कर) जो आज्ञा!

इतना कहकर तेजसिंह उठे और उस नकाबपोश को साथ लिए हुए एकान्त में चले गए।

इस नकाबपोश को देख कर सभी हैरान थे। इसकी सिपाहियाना, चुस्त और बेशकीमत पोशाक, इसका बहादुराना ढंग और इसकी अनूठी बातों ने सभी के दिल में खलबली पैदा कर दी थी, खास करके भूतनाथ के पेट में तो चूहे दौड़ने लग गये और उसने इस नकाबपोश की असलियत जानने का खयाल अपने दिल में मजबूती के साथ बाँध लिया था। यही कारण था कि जब थोड़ी देर बाद तेजसिंह उस नकाबपोश से बातें करके और उसको साथ लिए हुए वापस आए, तब सभी का ध्यान उसी तरफ चला गया और सभी यह जानने के लिए व्यग्र होने लगे कि देखें तेजसिंह क्या कहते हैं।

तेजसिंह ने अपने बाप जीतसिंह की तरफ देखकर कहा, "मेरे खयाल से इनकी प्रार्थना स्वीकार करने में कोई हर्ज नहीं है। यदि मान लिया जाय कि वे लोग हमारे साथ दुश्मनी भी रखते हों तो भी इसकी कुछ परवाह नहीं हो सकती और न वे लोग हमारा कुछ बिगाड़ ही सकते हैं।"

तेजसिंह की बात सुनकर जीतसिंह ने महाराज की तरफ देखा और कुछ इशारा पाकर नकाबपोश से कहा, "खैर, तुम्हारे मालिकों की प्रार्थना स्वीकार की जाती है। उनसे कह देना कि कल से नित्य एक पहर दिन चढ़ने के बाद इस दरगारे-खास में हाजिर हुआ करें।"