चन्द्रकान्ता सन्तति 6/21.6

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चंद्रकांता संतति भाग 6  (1896) 
द्वारा देवकीनंदन खत्री
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रात आधे घण्टे से कुछ ज्यादा जा चुकी थी जब सब कोई अपने जरूरी कामों से निश्चिन्त हो बंगले के अन्दर घुसे और घूमते-फिरते उसी चलती-फिरती तस्वीरों वाले कमरे में पहुंचे। इस समय बँगले के अन्दर हर एक कमरे में रोशनी बखूबी हो रही थी जिसके विषय में भूतनाथ और देवीसिंह ने ताज्जुब के साथ खयाल किया कि यह काम बेशक उन्हीं लोगों का होगा जिन्हें यहाँ पहुँचने के साथ ही हम लोगों ने पहरा देते देखा था या जो हम लोगों को देखते ही बँगले के अन्दर घुसकर गायब हो गए थे। ताज्जुब है कि महाराज को तथा और लोगों को भी उनके विषय में कुछ खयाल नहीं है और न कोई पूछता ही है कि वे कौन थे और कहां गए, मगर हमारा दिल उनका हाल जाने बिना बेचैन हो रहा है।

चलती-फिरती तस्वीरों वाले कमरे में फर्श बिछा हुआ था और गद्दी लगी हुई थी जिस पर सब कोई कायदे से अपने-अपने ठिकाने पर बैठ गए और इसके बाद इन्द्रजीत-सिंह की आज्ञानुसार रोशनी गुल कर दी गई। कमरे में बिल्कुल अन्धकार छा गया, यह नहीं मालूम होता था कि कौन क्या कर रहा है, खास करके इन्द्रजीतसिंह की तरफ लोगों का ध्यान था जो इस तमाशे को दिखाने वाले थे, मगर कोई कह नहीं सकता था कि वह क्या कर रहे हैं।

थोड़ी ही देर बाद चारों तरफ की दीवारें चमकने लगीं और उन पर की कुल तस्वीरें बहुत साफ और बनिस्वत पहले के अच्छी तरह पर दिखाई देने लगी। पहले तो वे तस्वीरें केवल चित्रकारी ही मालूम पड़ती थीं परन्तु अब सचमुच की बातें दिखाई देने लगीं। मालूम होता था कि जैसे हम बहुत दूर से सच्चे किले, पहाड़, जंगल, मैदान,आदमी, जानवर और फौज इत्यादि को देख रहे हैं। सब कोई बड़े ताज्जुब के साथ इस कैफियत को देख रहे थे कि यकायक बाजे की आवाज कान में आई। उस समय सभी का ध्यान जमानिया के किले की तस्वीर पर जा पड़ा, जिधर से बाजे की आवाज आ रही थी । देखा कि-

एक बहुत बड़े मैदान में बेहिसाब फौज खड़ी है जिसके आमने-सामने दो हिस्से हैं मानो दो फौजें लड़ने के लिए तैयार खड़ी हैं। पैदल और सवार दोनों तरह की फौजें हैं तथा तोप इत्यादि और भी जो कुछ सामान फौज में होना चाहिए, सब मौजूद है । इन दोनों फौजों में एक की पोशाक सुर्ख और दूसरे की आसमानी थी। वाजे की आवज केवल सुर्ख वर्दी वाली फौज में से आ रही थी बल्कि बाजे वाले अपना काम करते हुए साफ दिखाई दे रहे थे। यकायक सुर्ख वर्दी वाली फौज हिलती हुई दिखाई पड़ी। गौर करने पर मालूम हुआ कि सिपाहियों का मुंह घूम गया है और वे दाहिनी तरफ वाली एक पहाड़ी की तरफ तेजी के साथ बाजे की गत पर पैर रखते हुए जा रहे हैं । जैसे-जैसे फौज दूर होती जाती, वैसे ही वैसे बाजे की आवाज भी दूर होती जाती थी। देखते-ही-देखते वह फौज मानो कोसों दूर निकल गई और एक पहाड़ी के पीछे की तरफ जाकर [ ४३ ]आँखों की ओट हो गई। अब यह मैदान ज्यादा खुलासा दिखाई देने लगा। जितनी जगह दोनों फौजों से भरी थी, वह एक फौज के हिस्से में रह गई । अब दूसरी अर्थात् आसमानी वर्दी वाली फौज में से बाजे की आवाज आने लगी और सवार तथा पैदल भी चलते हुए दिखाई देने लगे। एक सवार हाथ में झंडा लिए तेजी के साथ घोड़ा दौड़ा कर मैदान में आ खड़ा हुआ और झंडे के इशारे से फौज को कवायद कराने लगा । यह

कवायद घण्टे भर तक होती रही और इस बीच में आला दर्जे की होशियारी, चालाकी,मुस्तैदी, सफाई और बहादुरी दिखाई दी जिससे सब कोई बहुत ही खुश हुए और महाराज बोले, "बेशक फौज को ऐसा ही तैयार करना चाहिए।"कवायद खतम करने के बाद बाजा बन्द हुआ और वह फौज एक तरफ को रवाना हुई, मगर थोड़ी ही दूर गई होगी कि उस लाल वर्दी वाली फौज ने यकायक पहाड़ी के पीछे से निकल कर इस फौज पर धावा मारा। इस कैफियत को देखते ही आसमानी वर्दी वाली फौज के अफसर होशियार हो गए, झंडे का इशारा पाते ही बाजा पुनःबजने लगा, और फौजी सिपाही लड़ने के लिए तैयार हो गये। इस बीच में वह फौज भी आ पहुंची और दोनों में घमासान लड़ाई होने लगी।

इस कैफियत को देखकर महाराज सुरेन्द्रसिंह, वीरेन्द्रसिंह, गोपालसिंह, जीतसिंह,तेजसिंह वगैरह तथा ऐयार लोग हैरान हो गए और हद से ज्यादा ताज्जुब करने लगे। लड़ाई के फन की ऐसी कोई बात नहीं बच गई थी जो इसमें न दिखाई पड़ी हो। कई तरह की घुसबन्दी और किलेबन्दी के साथ ही साथ घुड़सवारों की कारीगरी ने सभी को सकते में डाल दिया और सभी के मुंह से बार-बार 'वाह-वाह' की आवाज निकलती रही। यह तमाशा कई घण्टे में खत्म हुआ और इसके बाद एकदम से अन्धकार हो गया,उस समय इन्द्रजीतसिंह ने तिलिस्मी खंजर की रोशनी की और देवीसिंह ने इशारा पाकर कमरे में रोणनी कर दी जो पहले बुझा दी गई थी।

इस समय रात थोड़ी-सी बच गई थी जो सभी ने सोकर बिता दी, मगर स्वप्न में भी इसी तरह के खेल-तमाशे देखते रहे । जब सब की आँखें खुली तो दिन घण्टे भर से ज्यादा चढ़ चुका था। घबड़ा कर सब कोई उठ खड़े हुए और कमरे के बाहर निकल कर जरूरी कामों से छुट्टी पाने का बन्दोबस्त करने लगे। इस समय जिन चीजों की सभी को जरूरत पड़ी वे सब चीजें वहाँ मौजूद पाई गईं, मगर उन दोनों स्त्रियों पर किसी की निगाह न पड़ी जिन्हें यहाँ आने के साथ ही सभी ने देखा था।


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जरूरी कामों से छुट्टी पाकर ऐयारों ने रसोई बनाई, क्योंकि इस बंगले में खाने-पीने की सभी चीजें मौजूद थीं और सभी ने खुशी-खुशी भोजन किया। इसके बाद सब कोई उसी कमरे में आ बैठे जिसमें रात को चलती-फिरती तस्वीरों का तमाशा देखा