सामग्री पर जाएँ

चन्द्रकान्ता सन्तति 6/23.3

विकिस्रोत से
चंद्रकांता संतति भाग 6
देवकीनंदन खत्री

दिल्ली: भारती भाषा प्रकाशन, पृष्ठ १३३ से – १३८ तक

 

3

अब हम कुँअर इन्द्रजीतसिंह की तरफ चलते और देखते हैं कि उधर क्या हो रहा है। किशोरी और कमलिनी की बातचीत सुनकर कुंअर इन्द्रजीतसिंह से न रहा गया और उन्होंने बेचैनी के साथ उन दोनों की तरफ देखकर कहा, "क्या तुम लोगों ने मुझे सताने और दुःख देने के लिए कसम ही खा ली है ? क्यों मेरे दिल में हौल पैदा कर रही हो? असल बात क्यों नहीं बतातीं?"

किशोरी-–(मुस्कुराती हुई) यद्यपि मुझे आपसे शर्म करनी चाहिए, मगर कमला और कमलिनी बहिन ने मुझे बेहया बना दिया, तिस पर आज की दिल्लगी मुझे हंसाते- हँसाते बेहाल कर रही है। आप बिगड़े क्यों जाते हैं । ठहरिये-ठहरिये, जल्दी न कीजिए, और समझ लीजिए कि मेरी शादी आपके साथ नहीं हुई बल्कि कमलिनी की शादी आपके साथ हुई है।

कुमार--सो कैसे हो सकता है ! और मैं क्योंकर ऐसी अनहोनी बात मान लूं?

कमलिनी--अब आपकी हालत बहुत ही खराब हो गई ! क्या कहूँ, मैं तो आप को अभी और छकाती, मगर दया आती है इसलिए छोड़ देती हूँ । इसमें कोई शक नहीं कि मैंने आपसे दिल्लगी की है, मगर इसके लिए मैं आपसे इजाजत ले चुकी हूँ ! अपनी तर्जनी उंगली की अंगूठी दिखाकर) आप इसे पहचानते हैं?

कुमार--हाँ-हाँ, मैं इस अंगूठी को खूब पहचानता हूं। तिलिस्म के अन्दर यह अंगूठी मैंने इन्द्रानी को दो थी, मगर अफसोस !

कमलिनी--अफसोस न कीजिए, आपकी इन्द्रानी मरी नहीं, बल्कि जीती-जागती आपके सामने खड़ी है।

कमलिनी की इस आखिरी बात ने कुमार के दिल से आश्चर्य और दुःख को धोकर साफ कर दिया और उन्होंने खुशी-खुशी कमलिनी और किशोरी का हाथ पकड़कर कहा, "क्या यह सच है ?"

किशोरी--जी हाँ, सच है।

कुमार--और जिन दोनों को मैंने मरी हुई देखा था, वे कौन थीं? किशोरी-वे वास्तव में माधवी और मायारानी थीं जो तिलिस्म के अन्दर ही अपनी बदकारियों का फल भोगकर मर चुकी थीं । आपके दिल से उस शादी का खयाल उठा देने के लिए ही उनकी लाशें इन्द्रानी और आनन्दी बनाकर दिखा दी गई थीं, मगर वास्तव में इन्द्रानी यहीं मौजूद हैं और आनन्दी, यही लाड़िली थी जो आनन्दसिंह के साथ ब्याही गई थी-इस समय उधर भी कुछ ऐसा ही रंग मचा हुआ है।

कुमार--तुम्हारी बातों ने इस समय मुझे प्रसन्न कर दिया । विशेष प्रसन्नता तो इस बात से होती है कि तुम खुले दिल से इन बातों को बयान कर रही हो और कम- लिनी में तथा तुममें पूरे दर्जे की मुहब्बत मालूम होती है । ईश्वर इस मुहब्बत को बरा- बर इसी तरह बनाए रहे। (कमलिनी से) मगर तुमने मुझे बड़ा ही धोखा दिया, ऐसी दिल्लगी भी कभी किसी ने नहीं सुनी होगी ! आखिर ऐसा किया ही क्यों !

कमलिनी--अब क्या सब बातें खड़े-खड़े ही खतम होंगी और वैठने की इजाजत न दी जायगी?

कुमार--क्यों नहीं, अब बैठकर हँसी-दिल्लगी करने और खुशी मनाने के सिवाय और हम लोगों को करना ही क्या है !

इतना कहकर कुंअर इन्द्रजीतसिंह गद्दी पर बैठ गये और हाथ पकड़कर किशोरी और कमलिनी को अपने दोनों बगल बैठा लिया। कमला आज्ञा पाकर बैठा ही चाहती थी कि दरवाजे पर ताली बजने की आवाज आई जिसे सुनते ही वह बाहर चली गई और तुरन्त लौटकर बोली, "पहरे वाली लौंडी कहती है कि भैरोसिंह खड़े हैं।"

कुमार--(खुश होकर) हां-हो, उन्हें जल्द ले आओ, इन हजरत ने मेरे साथ क्या कम दिल्लगी की है ? अब तो मैं सब बातें समझ गया। भला आज उन्हें इत्तिला कराके मेरे पास आने का दिन तो नसीब हुआ।

कुमार की बातें सुनकर कमला पुनः बाहर चली गई और कमलिनी तथा किशोरी, कुमार के बगल से कुछ हटकर बैठ गईं, इतने ही में भैरोंसिंह भी आ पहुँचे।

कुमार--आइए-आइए ! आपने भी मुझे बहुत छकाया है। पर क्या चिन्ता है, समय मिलने पर समझ लूंगा।

भैरोंसिंह--(हँसकर)जो कुछ किया (किशोरी की तरफ बताकर) इन्होंने किया, मेरा कोई कसूर नहीं!

कुमार--खैर, जो कुछ हुआ सो हुआ, अब मुझे सच्चा-सच्चा हाल तो सुना दो कि तिलिस्म के अन्दर इस तरह की रूखी-फीकी शादी क्यों कराई गई और इस काम के अगुआ कौन महापुरुष थे?

भैरोंसिंह--(किशोरी की तरफ इशारा करके)जो कुछ किया सब इन्होंने किया, यही सब काम थे। अगुआ थीं और राजा गोपालसिंह इस काम में इनकी मदद कर रहे थे। उन्ही के आज्ञानुसार मुझे भी मजबूर होकर इन लोगों का साथ देना पड़ा था। इसका खुलासा हाल आप कमला से पूछिये, यही ठीक-ठीक बतावेगी।

कुमार--(कमला से) खैर, तुम्हीं बताओ कि क्या हुआ?

कमला--(किशोरी से) कहो बहिन, अब तो मैं साफ-ही-साफ कह दूं?

किशोरी--अब छिपाने की जरूरत ही क्या है?

कमला ने इस तरह से कहना शुरू किया, "किशोरी बहिन ने मुझसे कई दफे कहा कि 'तू इस बात का बन्दोबस्त कर कि किसी तरह मेरी शादी के पहले ही कमलिनी की शादी कुमार के साथ हो जाय ।' मगर मेरे किये इसका कुछ भी बन्दोबस्त न हो सका और कमलिनी रानी भी इस बात पर राजी होती दिखाई न दीं, अतः मैं बात टाल कर चुपकी हो बैठी, मगर मुझे इस काम में सुस्त देखकर किशोरी ने फिर मुझसे कहा कि 'देख कमला, तू मेरी बात पर कुछ ध्यान नहीं देती, मगर इसे खूब समझ रखना कि अगर मेरा इरादा पूरा न हुआ अर्थात् मेरी शादी के पहले ही कमलिनी की शादी कुमार के साथ न हो गई तो मैं कदापि ब्याह न करूँगी, बल्कि अपने गले में फांसी लगाकर जान दे दूंगी । कमलिनी ने जो कुछ अहसान मुझ पर किये हैं, उनका बदला मैं किसी तरह चुका नहीं सकती, अगर कुछ चुका सकती हूँ तो इसी तरह कि कमलिनी को पटरानी बनाऊँ और आप उसकी लौंडी होकर रहूँ, मगर अफसोस है कि तू मेरी बातों पर कुछ भी ध्यान नहीं देती जिसका नतीजा यह होगा कि एक दिन तू रोयेगी और पछताएगी।' "किशोरी की इस आखिरी बात से मेरे कलेजे पर एक चोट-सी लगी और मैंने सोचा कि जो कुछ यह कहती हैं, बहुत ठीक है, ऐसा होना ही चाहिए । आखिर मैंने राजा गोपालसिंह से यह सब हाल कहा और उन्हें अपनी तरफ से भी बहुत-कुछ सम- झाया जिसका नतीजा यह निकला कि वे दिलोजान से इस काम के लिए तैयार हो गये। जब वे खुद तैयार हो गये तो फिर क्या था ? सब काम खूबी के साथ होने लगा।

"राजा गोपालसिंह ने इस विषय में कमलिनीजी से कहा और इन्हें बहुत सम- झाया, मगर ये राजी न हुई और बोली कि 'आपकी आज्ञानुसार मैं कुमार से व्याह कर लेने के लिए तैयार हूँ, मगर यह नहीं हो सकता कि किशोरी से पहले ही अपनी शादी करके उसका हक मार दूं । हाँ, किशोरी की शादी हो जाने के बाद जो कुछ आप आज्ञा देंगे मैं करूंगी।" यह जवाब सुनकर गोपालसिंहजी ने फिर कमलिनी को समझाया और कहा कि 'अगर तुम किशोरी की इच्छा पूरी न करोगी तो वह अपनी जान दे देगी, फिर तुम ही सोच लो कि उसके मर जाने पर कुमार की क्या हालत होगी और तुम्हारी इस जिद का क्या नतीजा निकलेगा?'

"गोपालसिंहजी की इस बात ने इन्हें (कमलिनी की तरफ बता कर) लाजवाब कर दिया और ये लाचार हो शादी करने पर राजी हो गईं। तब राजा साहब ने भैरों- सिंह को मिलाया और ये भी इस बात पर राजी हो गये। इसके बाद यह सोचा गया कि कुमार इस बात को स्वीकार न करेंगे अतः उन्हें धोखा देकर जहाँ तक जल्द हो तिलिस्म के अन्दर ही कमलिनी के साथ उनकी शादी कर देनी चाहिए, क्योंकि तिलिस्म के बाहर हो जाने पर हम लोग स्वाधीन न रहेंगे और अगर बड़े महाराज इस बात को सुनकर अस्वीकार कर देंगे तो फिर हम लोग कुछ भी न कर सकेंगे, इत्यादि ।

"बस यही सबब हुआ कि तिलिस्म के अन्दर आपसे तरह-तरह की चालबाजियाँ खेली गईं और भैरोंसिंह ने भी आप से सब भेद छिपा रक्खा । खुद राजा गोपालसिंहजी तिलिस्म के अन्दर आये और बुड्ढे दारोगा बनकर इस काम में उद्योग करने लगे।"

कुमार--(बात रोक कर ताज्जुब के साथ) क्या खुद गोपालसिंह बुड्ढे दारोगा बने थे?

कमला--जी हां, वह बुड्ढी मैं बनी थी, तथा किशोरी और इन्दिरा आदि ने लड़कों का रूप धरा था।

कमला--(हँसकर) यह बुड्ढी भैरोंसिंह की जोरू बनी थी। अब इस बात को सच कर दिखाना चाहिए, अर्थात् इस बुड्ढी को भैरोंसिंह के गले मढ़ना चाहिए।

कुमार--जरूर ! (कमला से) तब तो मैं समझता हूँ कि 'मकरन्द' इत्यादि के बारे में जो भैरोंसिंह ने बयान किया था, वह सब झूठ था?

कमलिनी--हां, बेशक उसमें बारह आने से ज्यादा झूठ था।

कुमार--खैर, तब क्या हुआ ? तुभ आगे बयान करो।

कमला ने फिर इस तरह बयान करना शुरू किया--

"भैरोंसिंह जान-बूझ कर इसलिए पागल बनाकर आपको दिखाये गये थे जिसमें एक तो आप धोखे में पड़ जायँ और समझें कि हमारे विपक्षी लोग भी वहाँ रहते हैं, दूसरे आपसे मिलाप हो जाने पर यदि भैरोंसिंह से कुछ भूल भी हो जाय तो आप यही समझें कि अभी तक इनके दिमाग में पागलपन का कुछ धुआं बचा हुआ है । जिस समय हम लोग तिलिस्म के अन्दर पहुँचाए गये थे, उस समय राजा गोपालसिंह ने अपनी खास तिलिस्मी किताब कमलिनीजी को दे दी थी जिससे तिलिस्म का बहुत-कुछ हाल मालूम हो गया था और इनकी मदद से हम लोग जो चाहते थे करते थे तथा हमें किसी बात की तकलीफ भी नहीं होती थी और खाने-पीने की सभी चीजें राजा गोपालसिंहजी पहुंचा दिया करते थे।

"भैरोंसिंह जव पागल बनने के बाद आपसे मिले थे तो अपना ऐयारी का बटुआ जान-बूझ कर कमलिनी के पास रख गये थे। फिर जब भैरोंसिंह को बुलाने की इच्छा हुई तो उन्हीं का बटुआ और पीले मकरन्द की लड़ाई दिखा कर वे आपसे अलग कर लिए गये, कमलिनी पीछे मकरन्द की सूरत में थीं और मैं उनका मुकाबला कर रही थी, कही-बदी और मेल की लड़ाई थी इसलिए आपने समझा होगा कि हम दोनों बड़े बहादुर और लड़ाके हैं । अतः इस मामले के बाद जब इन्द्रानी और आनन्दी वाले बाग में भैरों- सिंह आपसे मिले तब भी इन्होंने बहुत-सी झूठी बातें बनाकर आपसे कहीं और जब आप इनसे रंज हुए तो आपका संग छोड़ कर ये फिर हम लोगों की तरफ चले आये। आप दोनों भाई उस शादी करने से इन्कार करते थे, मगर मजबूरी और लाचारी ने आपका पीछा न छोड़ा, इसके अतिरिक्त खुद इन्द्रानी और आनन्दी ने भी आप दोनों को किशोरी और कामिनी की चिट्ठी दिखा कर खुश कर लिया था। यहाँ आकर आपने सुना ही है कि कमलिनीजी के पिता बलभद्रसिंहजी, जिन्हें भूतनाथ छुड़ा लाया था, यकायक गायब हो गए और कई दिनों के बाद लौट कर आये।"


कुमार-–हाँ, सुना था।

कमला--बस, उन्हें राजा गोपालसिंह ही यहाँ आकर ले गये थे और खुद बल- भद्रसिंहजी ने ही अपनी दोनों लड़कियों का कन्या-दान किया था।

कुमार--(हंसते हुए) ठीक है, अब मैं सब बातें समझ गया और यह भी मालूम हो गया कि केवल धोखा देने के लिए ही माधवी और मायारानी, जो पहले ही मर चुकी थीं, इन्द्रानी और आनन्दी बनाकर दिखाई गई थीं।

भैरोंसिंह--जी हाँ।

कुमार--मगर नानक वहाँ क्योंकर पहुंचा था? भैरोंसिंह--आप सुन चुके हैं कि तारासिंह ने नानक को कैसा छकाया था, अतः वह हम लोगों से बदला लेने की नीयत करके वहाँ गया और मायारानी से मिल गया था। कमलिनीजी ने वहाँ का रास्ता उसे बता दिया था, उसी का यह नतीजा निकला। जब मायारानी राजा गोपालसिंह के कब्जे में पड़ गई तब राजा साहब ने नानक को बहुत कुछ बुरा-भला कहा, यहाँ तक कि नानक उनके पैरों पर गिर पड़ा और उनसे अपने कसूर की माफी मांगी। उस समय राजा साहब ने उसका कसूर माफ करके उसे अपने साथ रख लिया। तब से वह उन्हीं के कब्जे में रहा और उन्हीं की आज्ञानुसार आपको धोखे में


1. देखिए चन्द्रकान्ता सन्तति, अठारहवाँ भाग, ग्यारहवाँ बयान । डालने की नीयत से मायारानी और माधवी की लाश के पास दिखाई दिया था। वे दोनों पहले ही मारी जा चुकी थीं, मगर आपको भुलावा देने की नीयत से उनकी लाश इन्द्रानी और आनन्दी बना कर दिखाई गई थीं । इसके अतिरिक्त और जो कुछ हाल है, वह आपको राजा गोपालसिंहजी की जुबानी मालूम होगा।

कुमार-ठीक है, मैं ईश्वर को धन्यवाद देता हूँ कि मायारानी और माधवी की लाश को इन्द्रानी और आनन्दी की सुरत में देखकर जो कुछ रंज मुझे हुआ था और आज तक इस घटना का जो कुछ असर मेरे दिल पर था वह जाता रहा अब मैं अपने को खुश- नसीब समझने लगा । (कमलिनी से) अच्छा यह बताओ कि रात की दिल्लगी तुमने किस तौर पर की ? मेरी समझ में कुछ नहीं आया और न इसी बात का पता लगा कि मेरी सूरत क्योंकर बदल गई?

कमलिनी--इस बात का जवाब आपको कमला से मिलेगा।

कमला--यह तो एक मामूली बात है। समझ लीजिये कि जब आप सो गए तो इन्हीं (कमलिनी) ने आपको बेहोश करके आपकी सूरत बदल दी।

कुमार--ठीक है मगर ऐसा क्यों किया?

कमला--एक तो दिल्लगी के लिए और दूसरे किशोरी के इस खयाल से कि जिसकी शादी पहले हुई है, उसी की सुहागरात भी पहले होनी चाहिए।

कुमार--(हँस कर और किशोरी की तरफ देखकर) अच्छा, तो यह सब आपकी बहादुरी है । खैर, आज आपकी पारी होगी ही, समझ लूंगा!

किशोरी ने शरमाकर सिर नीचा कर लिया और कुमार की बात का कुछ भी जवाब न दिया।

इसके बाद वे लोग कुछ देर तक हंसी-खुशी की बातें करते रहे और तब अपने- अपने ठिकाने चले गये।

कुंअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह की शादी के बाद कई दिनों तक हँसी-खुशी का जलसा बराबर बना रहा क्योंकि इस शादी के आठवें ही दिन कमला की शादी भैरों- सिंह के साथ और तारासिंह की शादी इन्दिरा के साथ हो गई और इस नाते को भूतनाथ तथा इन्द्रदेव ने बड़ी खुशी के साथ मंजूर कर लिया।

इन सब कामों से छुट्टी पाकर महाराज ने निश्चय किया कि अब पुनः उसी बगुले वाले तिलिस्मी मकान में चल कर कैदियों का मुकदमा सुना जाय, अतः आज्ञानुसार बाहर के आये हुए मेहमान लोग हँसी-खुशी के साथ बिदा किए गये और फिर कई दिनों तक तैयारी करने के बाद सभी का डेरा कूच हुआ और पहले की तरह पुनः वह तिलिस्मी मकान हरा-भरा दिखाई देने लगा। कैदी भी उसी मकान के तहखानों में पहुँचाये गये और सब का मुकदमा सुनने की तैयारी होने लगी।


1.यही काम उघर लाडिली ने किया 'था। खुद तो पहले ही से कामिनी बनी हुई थी मगर जब कुमार सो गये तब उन्हें बेहोश करके उनकी सूरत बदल दी और सुबह को उनके जागने के पहले ही अपना चेहरा साफ कर लिया।