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चोखे चौपदे

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चोखे चौपदे  (1924) 
अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध'

वाकरगंज, पटना: खड्गविलास प्रेस, पृष्ठ मुखपृष्ठ से – विषय-सूची तक

 






चो खे चौ प दे








प्रथम सस्करण, फरवरी १९२४


चोखे चौपदे

अथवा

हरिऔधे-हजारा


प्रणेता

अयोध्या सिंह उपाध्याय, साहित्यरत्न,

अधखिला फूल, प्रियप्रवास, चुभते

चौपदे आदि के रचयिता


ख ङ्ग वि ला स प्रे स

बा कर गंज, पटना

मूल्य १॥)

 

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वक्तव्य

मैं ने 'बोलचाल' नाम की एक पुस्तक लिखी है। इस पुस्तक में बाल से लेकर तलवे तक के समस्त अंगों के मुहाविरों पर साढ़े तीन सहस्र से अधिक पद्य हैं । अङ्गों के अतिरिक्त और भी बहुत से मुहाविरे प्रयोजन के अनुसार इस ग्रंथ में आये हैं । इस ग्रंथ की भाषा बिल्कुल बोलचाल की भाषा है, हां कवितागत विशेषतायें उस में अवश्य मौजूद हैं।

वीणा के छेड़ने पर जो साधारण स्वर-लहरी उत्पन्न होती है, वह उँगलियों के सनियम संचालन से अनेक सरस, सुन्दर, कोमल, मधुर एव रुचिकर लहरियों में परिणत हो जाती है और आनुषगिक नाना प्रकार की धुनों के आधार से विमुग्धकर राग रागिनो की जनना बनती है। जो कण्ठ कभी सप्तस्वरों के साधनम रत दिखलाता है, यहो काल पाकर उन्हीं सप्तस्वरों के आधार से ऐसी ध्वनियों और भालापों का अव-लम्बन बन जाता है, जो प्रत्येक राग रागिनी को उन के सम भेदों के साथ गा कर हदय में सुधास्रोत
प्रवाहित कर देता है । चिन्ता द्वारा परिचालित चित्त की भी कुछ ऐसी ही दशा है । कवि जब किसी एक विषय का चिन्तन करने में तद्गत होता है, और उस को सुन्दरता एवं भावुकता के साथ प्रकट करने के लिये, भावराज्य में भ्रमण करता है, विचारों को, वाक्यों को छोलने, छालने और खरादने लगता है, तो उस समय अनुषंगिक अनेक भाव उस के हृदय में स्वभावत. उदय होते और उपस्थित विषय के अतिरिक दूसरे अन्य विषयों की ओर भी उस के चित्त को आकर्षित करते हैं। वही अवस्था प्रायः मेरी अनेक अङ्गो के मुँहादिसे पर कोई कविता लिखते समय होती थी। उस समय मैं मुहाविरे पर कविता लिखने के उपरान्त हृदय में स्फुरित अन्य भावों की भी कविता लिख लेता था। इस प्रकार की ही कविताओं का संग्रह यह ग्रंथ है। यदि इन कविताओं अथवा प्रधों को मैंने बोलचाल नामक उक ग्रंथ में ही रहने दिया होता, तो प्रथम तो अंथ का आकार बड़ा हो जाता, दुसरे आंगिक मुहा-विरों का सम्बन्ध इन कविताओं से न होने कारण
ग्रंथ में वे अनावश्यक प्रतीत होते । एक हो मुहाविरे पर दो दो तीन तीन कवितायें भी कभी कभी लिख गई हैं, ग्रंथ की कलेवरवृद्धि के विचार से ऐसी कविताओं में से केवल एक कविता मुख्य प्रथ में रखी गई है, शेष इस ग्रंथ में सगृहोत हैं।

प्रत्येक भाषा के लिये स्थायी साहित्य की आव-श्यकता होती है। जो विचार व्यापक और उदात्त होते हैं, जिन का सम्बन्ध मानवीय महत्त्व अथवा सदा-चार से होता है, जो चरित्रगठन और उल की चरितार्थता के सम्बल होते हैं, जिन भावों का परम्परागत सम्बन्ध किसी जाति की सभ्यता और आदर्श से होता है, जो उद्गार हमारे तमोमय मार्ग के आलोक बनते हैं, उन का वर्णन अथवा निरूपण जिन रचनाओं अथवा कविताओं में होता है, वे रखना और उक्तियां स्थायिनी होती हैं । इस लिये जिस साहित्य में वे संगृहीत होती हैं, वह साहित्य स्थायी माना जाता है। सामयिक साहित्य यह है, जिस में तत्कालिक घात प्रतिघात और घटित


घटनाओं से प्रसूत आवेशों, उद्गारों और भावों का समावेश होता है। उस समय जाति के नियंत्रण, उद्धोधन, जागरित करण, और संरक्षण इत्यादि में इस से बड़ी सहायता मिलती है, अतएव कुछ समय तक इस प्रकार के साहित्य का बड़ा आदर रहता है। किन्तु समय की गति बदलने और उस की उपयोगिता का अधिक ह्रास अथवा प्रभाव होने पर वह लुम्न हो जाता है। साम येक साहित्य पावस ऋतु के उस जलद जाल के तुल्य है, जो समय पर घिरता है, जल प्रदान करता है, खेतों को सींचता है, सूखे जलाशयों को भरता है, और ऐसे ही दूसरे लोकोपकारी कार्यो को करके अन्तहित हो जाता है । किन्तु स्थायी साहित्य उस जल-चाम्प-समूह के समान है, जो सदैव वायु में सम्मिलित रहता है, पल पल पर संसार-हित-कर कार्यों को करता है, जीवों के जीवनधारण, सुखसम्पादन, स्वास्थ्यवर्द्धन का साधन और समय पर सामयिक जलदजाल के जन्द्रा देने का हेतु भी होता है।
प्रस्तुत पुस्तक स्थायी साहित्य के भावों और विचारों का हो संग्रह है, किन्तु प्रत्येक वस्तु की स्थायिता उपयोगिता से सम्बंध रखती है। इस ग्रंथ की उप-योगिता के विषय में मुझ को कुछ कहने का अधिकार नही । केवल इतना ही वक्तव्य है कि यदि यह पुस्तक मानवजाति अथवा हिन्दीप्रमिकों के लिये कुछ भी उपयोगिनी सिद्ध हुई. यदि इस के द्वारा किसी सज्जन का क्षणिक मनोरजन भी होगा, तो मैं परिभ्रम को सफल और अपने को कृतकृत्य समझंगा।

हरिऔध

सदार्वती महल्ला, आजमगढ़
१३ फरवरी, १९२४
विषय-सूची


गागर में सागर
१ देवदेश
२ मा की ममता
३ कवि
४ प्यार के पुतले
केसर की क्यारी
१ अनूठी बातें
२ सुनहली सीख
३ अछूते फूल
४ रस के छींटे
५ नोकझोक
अनमोल हीरे
१ दृष्टान्त
२ अन्योक्ति
३ बाल
४ चोटी
५ सिर और चमड़ी
६ सिर और सेहरा
७ सिर और पांव
८ सिर






१२

१४
२९
३९
४१
४९

६७
८४
८४
८६
८७
८८
८९
९०



माथा
तिलक
आम
भौंरा
नाक
कान
गाल
मुंह
दांत
जीभ
होंठ
हंसी
दम
छींक
मूंछ
दांढ़ी
गला
कंठ
गना गला कंठ
हथेली
उंगली



९२
९३
९५
१००
१०१
१०४
१०६
१०८
११४
११६
१२१
१२३
१२४
१२४
१२५
१२५
१२६
१२८
१३०
१३१
१३२

( २ )


नख
मूठी
हाथ
छाती
पेट
तल्वा
काम के कलाम
१ बात की करमात
२ अनूठे विचार
३ पते की बातें
४ भेद की बातें
५ अनवान
१ प्यार की पहलू
२ निवेदन
निराले नगीने
१ मन
२ कुछ कलेजे
३ कलेजा कमाल
४ कसौटी
५ हाथ और दांत
६ हाथ और कमल
७ हाथ और फूल
८ हाथ और फल
९ हाथ और तलवार


१३६
१३७
१३७
१४३
१४४
१४५

१४५
१५१
१५९
१६१
१६५
१७०
१७२

१७३
२०३
२०९
२११
२१७
२१८
२१९
२२२
२२३


कोर कसर
१ मौ की कचट
२ थपेड़े
जाति के कलंक
१ निघरघट
२ मंहचोर
३ हमारे मालदार
४ निराले लोग
तरह-तरह की बातें
१ मोह
२ पेट के पचडे
३ बेचारा बाप
४ निराली धुन
५ खरी बातें
६ कांख
बहारदार बातें
१ बसंत बहार
२ बसंत के पौधे
३ बसंत की बेलि
४ बसंत के फूल
५ बसंत बयार
६ कोयल
७ बसंत के भौंरे
८ हम और तुम

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