चोखे चौपदे/अछूते फूल

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अछूते फूल

फूल में कीट, चॉद में धब्बे।
भाग में धूम,दीप में काजल॥
मैल जल मे, मलीनता मन में।
देख किस का गया नही दिल मल॥

है बुरा, घास-फूस-वाला घर।
मल भरा तन, गरल भरा प्याला॥
रिस भरी ऑख, सर भरा सौदा।
मन भरा मैल, दिल कसर वाला॥

है कहाँ गोद तो भरी पूरी।
जो सकी गोद मे न लाल सुला॥
क्या मिला पूत जो सपूत नहीं।
क्या खुली कोख जो न भाग खुला॥

क्या रहा ताल तब भरा जल से।
जब कि उस में रहा कमल न खिला॥
क्या फली डाल जो सुफल न फली।
क्या खुली कोख जो न लाल मिला॥

[ ५३ ]

पुल सकेगा न बँध सितारों पर।
कुल धरा धूल ढुल नहीं सकती॥
धुल सकेंगे न चाँद के धब्बे।
बाँझ की कोख खुल नहीं सकती॥

जब नही उस ने बुझाई भूख तो।
मोतियों से क्या भरी थाली रही॥
जो न उस के फल किसी को मिल सके।
नो फलों से क्या लदी डाली रही॥

जोत कैसे मलीन होवेगी।
क्या हुआ भूमि पर अगर फैली॥
धूल से भर कभी न धूप सकी।
हो सकी चाँदनी नही मेली॥

आम में आ सका न कड़वापन।
है मिठाई न नीम मे आती॥
छोड़ ऊंचा सका न ऊंचापन।
नीच की नीचता नही जाती॥

[ ५४ ]

रस के छीटें

भाग में मिलना लिखा था ही नहीं।
तुम न आये साँसतें इतनी हुईं॥
जी हमारा था बहुत दिन से टँगा।
आज आँखे भी हमारी टँग गईं॥

सूखती चाह-बेलि हरिआई।
दूध की मक्खियां बनीं माखे॥
रस बहा चाँदनी निकल आई।
खिल गये कौल, हँस पड़ी आँखें॥

सादगी चित से उतर पाई नहीं।
है नहीं भूली भलाई आप की॥
काढ़ने से है नहीं कढ़ती कभी।
आँख में सूरत समाई आप की॥

लोग कैसे न बेबसों सा बन।
रो उठे, खिल पड़े, खिझें, माखें॥
हो न किस पर गया खुला जादू।
देख जाढ़ भरी हुई आँखें॥

[ ५५ ]

बेबसी बेतरह सताती है।
वह हुआ जो न चाहिये होना॥
थाम कर रह गये कलेजा हम।
कर गया काम आँख का टोना॥

मानता मन नही मनाने से।
तलमलाते है आँख के तारे॥
जागते रात बीत जाती है।
माख के या कि आँख के मारे॥

वह बहुत ही लुभावनी सूरत।
हम भला भूल किस तरह जाते॥
है तुम्हें देख आँख भर आती।
आँख भर देख भी नही पाते॥

आँसुओं साथ तरबतर हो हो।
हैं जलन के अगर पड़ी पाले॥
सूरतों पर बिसरती आँखें।
सेंक लें आँख सेंकने वाले॥

[ ५६ ]

तब कहें कैसे किसी की चाहते।
रगतों में यार की है ढालती॥
जब कि मुखड़े की लुनाई आप की।
आँख में है लोन राई डालती॥

लूट ले प्यार को लपेटों से।
दे निबौरी दिखा दिखा दाखें॥
पट, पटा कर, न पट सकी जिस से।
क्यों गई पटपटा न वे ऑखे॥

है पहेली अजीब पेचीला।
हैं खिली बेलि हैं पकी दाखे॥
अधकढ़ी बात अधगिरी पलकें।
अधखुले होंठ अधखुली आँखें॥

प्यार उन से भला न क्यों बढ़ता।
हो सके पास से न जो न्यारे॥
वे उतारे न चित्त से उतरे।
हिल सके जिन से आँख के तारे॥

[ ५७ ]

देखते ही पसीज जावेंगे।
रीझ जाते कभी न वे ऊबे॥
टल सकेंगे न प्यार से तिल भर।
आँख के तिल सनेह में डूबे॥

जी टले पास से धड़कता है।
जोहते मुख कभी नहीं थकते॥
आँख से दूर तब करे कैसे।
जब पलक ओट सह नही सकते॥

देह सुकुमारपन बखाने पर।
और सुकुमारपन बतोले है॥
छू गये नेक फूल के गजरे।
पड़ गये हाथ में फफोले हैं॥

धुल रहा हाथ जब निराला था।
तब भला और बात क्या होती॥
हाथ के जल गिरे ढले हीरे।
हाथ झाड़े बिखर पड़े मोती॥

[ ५८ ]

बात लगतो लुभावनी कह सुन।
बन दुखी, हो निहाल, दुख सुख से॥
दिल हिले, आँख से गिरे मोती।
दिल खिले, फूल झड़ पड़े मुख से॥

चाह कर के हैं बढ़ाते चाह वें।
खिल रहे है औ खिला है वे रहे॥
मिल रहे है औ रहे हैं वे मिला।
दे रहे दिल और दिल हैं ले रहे॥

क्यों पियेगा ललक चकोर नहीं।
जायगी चद की कला जो मिल॥
फूल खिल क्यों लुभा न दिल लेगा।
चोर दिल का न क्यों चुरा ले दिल॥

लोचनों को ललक हुई दूनी।
वह बिना मोल का बना चेरा॥
देख कर लोच लोच वाले का।
रह गया दिल ललच ललच मेरा।

[ ५९ ]

बाप मा के अडाल कानों को।
बूॅद मिलती न तो अमी घोली॥
बोल अनमोल रस लपेटे जो।
बोलती बेटियाँ न मुॅहबोली॥