चोखे चौपदे/नोक झोंक

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[ ५९ ]

नोक झोंक

जा रही है सूखती सुख क्यारिया।
जो रही न्यारे रसों से सिंच गई॥
खिंच गये तुम भी इसी का रंज है।
खिच गई भौहें बला से खिच गई॥

सॉच को ऑच है नही लगती।
हम करेंगे कभी नहीं सौहे॥
चिढ़ गये तो चिढ़ रहे डर क्या।
चढ़ गई तो चढ़ी रहें भौहें॥

जाय जिस से कुचल कभी कोई।
चाल ऐसी भले न चलते है॥
आप तो बात ही बदलते थे॥
आँख अब किस लिये बदलते हैं॥

[ ६० ]

जब जगह रह गई नही जी में।
तब भला क्यों न जी फिरा पाते॥
जब बचा रह गया न अपनापन।
ऑख कैसे न तब, बचा जाते॥

जो बहुत से भेद जी के थे छिपे।
आँख से ही लग गये उन के पते॥
क्या हुआ जी को अगर चोरी खुली।
जब रहे ऑखे चुरा कर देखते॥

क्या अजब जो ललक पड़े, उमगे।
खिल उठें, स्वांग सैकड़ों रच लें॥
मुॅह खिला देख प्यार-पुतलों का।
आँख की पुतलियां अगर मचलें॥

पक गया जो, नाक मे दम हो गया।
तुम न सुधरे, सिर पड़ी हम ने सही॥
हॅस रहे हो या नही हो हॅस रहे।
पर तुमारी आँख तो है हॅस रही॥

[ ६१ ]

छोड़िये ऐठ मानिये बातें।
किस लिये आप इतने ऐंठे हैं॥
आइये ऑख पर बिठायेंगे।
आज ऑखे बिछाये बैठे है॥

हम तुम्हें देख देख जोयेंगे।
और के मुॅह को देख तुम जी लो॥
हम न बदलेंगे रंग अपना, तुम।
ऑख अपनी बदल भले ही लो॥

हम सदा जी दिया किये तुम को।
तुम हमें जी कभी नहीं देते॥
आँख हम तो नहीं बदलते है।
आप हैं आँख क्यों बदल लेते॥

कुछ पसीजी और जी के मैल को।
एक दो बूँदें गिरा कुछ धो गईं।
देख लो लाचार तुम भी हो गये।
आज तो दो चार ऑखें हो गईं॥

[ ६२ ]

लूट लो, पीस दो, मसल डालो।
पर सितम मौत का बसेरा है॥
देख अंधेर, यह कहेंगे हम।
आँख पर छा गया अँधेरा है॥

जब कि धन भर गया बहुत उस मे।
तब मुरौअत कहाँ ठहर पाती॥
जब उलट कर न आप देख सके।
ऑख कैसे न तब उलट जाती॥

छुट कैसे हाथ से उस के सकें।
जो किसी को हाथ में नट कर करे॥
किस तरह उस से बचावे ऑख हम।
जो हमारी आँख ही मे घर करे॥

देखना हो कमाल रखता है।
प्यार का रग कब जमा वैसे॥
आँख जिस पर ठहर नहीं पाती।
ऑख में वह ठहर सके कैसे॥

[ ६३ ]

आज भी है याद वैसी ही बनी।
है वही रंगत औ चाहत है वही॥
तुम तरस खा कर कभी मिलते नहीं।
ऑख अब तक तो तरसती ही रही॥

देखने ही के लिये सूरत बनी।
देखने ही में न वह पीछे पड़े॥
आँख में चुभ कर न ऑखों मे चुभे।
ऑख मे गड़ कर न आँखों में गड़े॥

जो किसी को लगा बुरा धब्बा।
तो ढिठाई उसे नहीं धोती॥
सामने आँख तब करें कैसे।
सामने आँख जब नहीं होती॥

हो सराबोर तुम रसों में, तो।
मै रसों का अजीब सोता हू॥
किस लिये आँख यों बचाते हो।
मैं नही आँखफोड़ तोता हूं॥

[ ६४ ]

देखिये क्या कर दिखाता भाग है।
वे भरे है और हम भी हैं खरे॥
आज वे बेदरदियों पर हैं अड़े।
हम खड़े हैं आँख में आँसू भरे॥

तब भला बात का असर क्या हो।
जब असर के न रह गये नाते॥
है कसर बैठ जब गई जी में।
किस तरह ऑख तब उठा पाते॥

तब भला सीध में कसर क्यों हो।
जब रहे ठीक आँख का तारा॥
तब सके चूक किस तरह से वह।
जब गया तीर ताक कर मारा॥

आज तक कुछ भी सॅभल पाये नहीं।
बात से तो नित सॅभलते ही रहे॥
ढंग बदलें जो बदलते बन सके।
आप तेवर तो बदलते ही रहे॥

[ ६५ ]

काम टेढ़ से बने टेढ़े चला।
मान सीधे ही सके सीधे कहे॥
क्यों न हम भी आज तेवर लें चढ़ा।
है बुरे तेवर दिखाई दे रहे॥

हम बढ़ी बाते करे तो क्यों करे।
आप ही तो कर बढ़ी बातें बढ़े॥
हम चढ़ायेगे कभी तेवर नही।
क्यों न होवें आप के तेवर चढ़े॥

बेतरह अरमान मेरे मिस उठे।
साँसतें सारी उमंगों ने सहीं॥
हम रहे तो किस तरह अच्छे रहें।
आज तेवर आप के अच्छे नहीं॥

किस लिये उन पर कड़े पड़ते रहे।
हाथ बाँधे जो रहे सब दिन खड़े॥
डर हमें तिरछी निगाहों का नहीं।
देखिये अब बल न तेवर पर पड़े॥

[ ६६ ]

चाहिये था न चोट यों करना।
पत्थरों के बने न सीने थे॥
क्यों भला आप भर गये साहब।
कान हो तो भरे किसी ने थे॥

क्यों कहेंगे न, सुन सके, सुन लें।
हम मनायेगे, आप ऐंठे हैं।
हम सकें मूॅद मुॅह भला कैसे।
आप तो कान मूॅद बैठे हैं॥

आप तूमार बाँध देते हैं।
और हम ने न खोल मुॅह पाया॥
हो न जावें तमाम हम कैसे।
आप का गाल तमतमा आया॥

आप ही जब कि तन गये मुझ से।
तब भला किस तरह भवें न तनें॥
जब हुईं लाल लाल आँखें तब।
गाल कैसे न लाल लाल बनें॥

[ ६७ ]

भेद कितने बिन खुले ही रह गये।
आज तक भी आप ने खोले नही॥
आप का मुॅह ताकते हो रह गये।
आप तो मुॅह भर कभी बोले नहीं॥

किस तरह से दूसरे मीठे बने।
और हम कैसे बने तीते रहे॥
आप मुॅह से बोल तक सकते नहीं।
आप का मुॅह देख हम जीते रहे॥

हैं हमी ऐसे कि जिस को हर घड़ी।
निज सगों का ही बना खटका रहा॥
लख लट्ठरे बाल को जी लट गया।
लट लटकती देख मुँह लटका रहा॥

आँख से क्या निकल पड़े आँसू।
मैल जी का सहल नहीं धुलना॥
आप मुँह देख जीभ ले ही लें।
है बहुत ही मुहाल मुँह खुलना॥

[ ६८ ]

बढ़ गये पर बुरे बखेड़ों के।
बैर का पाँव गाड़ना देखा॥
हो गये पर बिगाड़ बिगड़े का।
मुँह बिगड़ना बिगाड़ना देखा॥

वह उतर कर चढ़ा रहा चित पर।
रंग लाया पसीज पड़ कर भी॥
बन गई बात बिन बनाये ही।
रंग मुँह का बना बिगड़ कर भी॥

कारनामा वह बहुत आला रहा।
आप की करतूत है भोंड़ी बड़ी॥
मुँह दिया था दैव ने ही तो बना।
आप को क्या मुँह बनाने की पड़ी॥

क्यों न सब दिन मुँह चुराते वे रहें।
चोर को देती चिन्हा हैं चोरियाँ॥
हैं बड़ी कमजोरियाँ उन में भरी।
देख लीं मुँहजोर की मुँहजोरियाँ॥

[ ६९ ]

बात वह भी लगी बहुत खलने।
आप को जो न थी कभी खलती॥
अब लगे आप मुँह चलाने क्यों।
जीभ तो कम नहीं रही चलती॥

इस तरह का बना कलेजा है।
जो कि सारी मुसीबतें सह ले॥
बेधड़क आग मुँह उगल लेवे।
जीभ बातें गरम गरम कह ले॥

आप साहस बँधाइये मुझ को।
क्या करेंगी भली बुरी घातें॥
देखिये दूब न जाय जी मेरा।
सुन दबी जीभ की दबी बातें॥

जब कि नीरस बात मुँह पर आ गई।
किस तरह रस-धार तब जी में बहे॥
छरछराहट जब कलेजे में हुई।
मुस्कुराहट होंठ पर कैसे रहे॥

[ ७० ]

प्यार का कुम्हला गया मुखड़ा खिला।
पड़ गये अरमान पर रस के घड़े॥
मल कितना ही निकल पल में गया।
खोल कर दिल खिलखिला कर हँस पड़े॥

आँख कैसे न तब बहा करती।
आँख ही आँख जब गड़ाती है॥
किस तरह तब हँसी न छिन जाती।
जब हँसी ही हँसी उड़ाती है॥

दिल छिलेंगे कभी न क्या उन के।
क्या पड़ेंगे न जीभ पर छाले॥
बेतरह छिल गये कलेजे को।
छील लें बात छीलने वाले॥

सामना जब बदसलूकी का हुआ।
तब बिचारी बूझ जाती दब न क्यों॥
बान ही जब है उलझने की पड़ी।
बात कह उलझी उलझते तब न क्यों॥

[ ७१ ]

दिल भला किस तरह न जाता हिल।
जब कपट से न ठीक ठीक पटी॥
जीभ कैसे न लटपटा जाती।
बात कहते हुए लगी लिपटी॥

बान जिन को पड़ी बहकने की।
मानते वे नहीं बिना बहके॥
बेतुकापन नही दिखाते कब।
बेतुके बात बेतुकी कह के॥

जब सुलझना उन्हें नहीं आता।
तब गिरह खोल किस तरह सुलझें॥
चाल का जाल जब बिछाते हैं।
तब न क्यों बात बात में उलझे॥

लूटते है फँसा लपेटों में।
बेतरह हैं कभी कभी ठगते॥
कब नहीं बूझ से गये तोले।
हैं बतोले बहुत बुरे लगते॥

[ ७२ ]

जो किसी चित से नहीं पाती उतर।
दे बना बेचैन वह मूरत नहीं॥
अनबनों में पड़ न आँखों मे गड़े।
देखिये बिगड़े बनी सूरत नहीं॥

सब तरह के लाभ की बातें सुना।
रुचि बहुत ही आज बहलाई गई॥
किस तरह देखे बिना सूरत जियें।
वह हमें सूरत न बतलाई गई॥

भौह सीधी, हँसी बहुत सादी।
औ सरलपन भरी हुई बोली॥
हम भला भूल किस तरह देवें।
भूलती हैं न सूरते भोली॥

लालसा है रस बरसती ही रहे।
पर तुमारी आँख रिस से लाल है॥
यह चमेली है खिलाना आग में।
यह हथेली पर जमाना बाल है॥

[ ७३ ]

वह सताने मे सहमता ही नही।
सब सुखों के हैं हमें लाले पड़े॥
सुन गँसोली अत हाथों के मले।
छिल गया दिल, हाथ में छाले पड़े॥

मत बचन-बान मार बीर बने।
क्या नही प्यार प्यार-थाती मे॥
छेदलें छेदने चले हैं तो।
देखिये हो न छेद छाती में॥

आप के जैसा जिसे हीरा मिले।
क्यों मरे वह चाट हीरे की कनी॥
आप तन करके हमें तन बिन न दें।
जो तनी है तो रहे छाती तनी॥

जब कभी बात तर कही न गई!
हो सके किस तरह कलेजा तर॥
देखना हो अगर दहल दिल की।
देखिये हाथ रख कलेजे पर॥

[ ७४ ]

किस तरह प्यार कर सकें उन को।
जो चुभे बार बार नेजे स॥
दुख कलेजा गया जिन्हें देखे।
क्यों लगाये उन्हें कलेजे से॥

बेतरह रोब गाँठते ही थे।
अब गया मौत को सहेजा क्यों॥
आँख तो आप काढ़ते ही थे।
अब लगे काढ़ने कलेजा क्यों।

किस तरह रीझता रिझाये वह।
जब किये प्यार खीज खीजा ही॥
किस तरह तब पसोजता कोई।
जब कलेजा नहीं पसीजा ही॥

है बड़े बेपीर से पाला पड़ा।
भाग में सुख है न दुखियों के लिखा॥
जो कलेजा देख दुख पिघला नहीं।
तो कलेजा काढ़ कैसे दे दिखा॥

[ ७५ ]

प्यार ही से भरा हुआ वह है।
देख लें देख वे सकें जैसे॥
जब निकलती नही कसर जी की।
हम कलेजा निकाल दें कैसे॥

ताड़ने वाले नहीं कब ताड़ते।
तोड़ना है दिल अगर तो तोड़ लो॥
मुँह चिढ़ा लो मोड़ लो मुँह बक बहॅक।
फोड़ लो दिल के फफोले फोड़ लो॥

वे चुहल के चाव के पुतले बने।
चोचलों का रग हैं पहचानते॥
चाल चलना, चौंकना, जाना मचल।
दिल चलाना दिलचले हैं जानते॥

वह भला है, है भलाई से भरा।
या घिनोने भाव है उस में घुसे॥
खोल कर हम दिल दिखायें किस तरह।
देख लें दिल देखने वाले उसे॥

[ ७६ ]

देखने दें मूद ऑखों को न दें।
हिल गये क्यो, जो गई है जीभ हिल॥
आप छन भर सोचने देवे हमें।
सब गया छिन, अब न लेवे छीन दिल॥

कुछ नही रग ढग मिल पाता।
हिल गया वह, कभी गया वह खिल॥
क्या भला खीज कर किया दिल ने।
क्या करेगा पसीज करके दिल॥

क्यों हँसी मेरी उड़ाती है हँसी।
बात रंगत मे चुहल की क्यो ढली॥
किस लिये दिल काटने चुटकी लगा।
आप ने चुटकी अगर दिल में न ली॥

प्यार तो हम किया करेंगे ही।
बारहा क्यों न जाय दिल फेरा॥
दिलचले हम बने रहेगे ही।
क्यों न हो दिल दलेल में मेरा॥

[ ७७ ]

प्यार जब चाहते नहीं करना।
क्यों न सुन नाम प्यार का कॉखें॥
रग बदला, बदल गये तेवर।
दिल बदलते बदल गई ऑखे॥

कर सके तो कर दिखाये प्यार ही।
वह सितम के खोज ले हीले नही॥
ले भले ही ले दुखाये दिल नही।
छीन ले दिलदार दिल छीले नही॥

है कलह तोर मार का पुतला।
है कपट का उसे मिला ठीका॥
है भरी पोर पोर कोर कसर।
वह बड़ा ही कठोर है जी का॥

हम नहीं आँखें लड़ाना चाहते।
है लड़ाकी आप की आँखें लड़ें॥
आप जी में जल रहे हैं तो जलें।
क्यों फफोले और के जी में पड़ें॥

[ ७८ ]

अब न ऑसू आँख मे मेरी रहा।
आप ने ऑखें उठा ताका नही॥
क्य पके जी का मरम वह पा सके।
हो गया जिसका कि जी पाका नही॥

थी पसद बनाव की बातें हमे।
अनबनों का तुम गला रेते रहे॥
कब रहे लेते हमारा जी न तुम।
हम तुम्हे कब जी नही देते रहे॥

बात पर आन बान वालों की
आप क्यों कान दे नही सकते॥
तो गॅवा मान और क्या मांगें।
जी अगर दान दे नही सकते॥

बे ठने उस से रहेगी किस तरह।
जो कि उठते बैठते है ऐंठता॥
बात क्यों उस से बिठाये बैठती।
फेर करके पीठ जो है बैठता॥

[ ७९ ]

श्राप के हाथ हो बिके हम हैं।
रुचि रही कब न आप की चेरी॥
है अगर चाह भाँप लेने की।
आप तो पीठ नाप ले मेरी॥

अड़ गये अपनी जगह पर गड़ गये।
देख लो तुम टाल टलते ही नहीं॥
हम न मचले है चलें तो क्यों चलें।
ए हमारे पाँव चलते ही नहीं॥




अनमोल हीरे

दृष्टान्त



है जिन्हें सूझ, जोड़ से ही, वे।
भिड़ सके लाग डाँट साथ बड़ी॥
भूल कर भी लड़ी न भौंहों से।
जब लड़ी आँख साथ आँख लड़ी॥