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जमसेदजी नसरवानजी ताता का जीवन चरित्र/४—स्वर्गारोहण

विकिस्रोत से
जमसेदजी नसरवानजी ताता का जीवन चरित्र
मन्नन द्विवेदी 'गजपुरी'

कलकत्ता: हिंदी पुस्तक एजेंसी, पृष्ठ ४० से – ५५ तक

 

चौथा अध्याय।


स्वर्गारोहण।

संसार चक्र बराबर चलता रहता है। जो बातें पहले देखी गई थीं वे आज नहीं दिखाई पड़ती हैं, जो आज हैं वे आगामी दिन परिवर्तित रूपमें मिलैंगी। गंगाकी तरंगोंमें जो बारिबुद उस दिन गंगोत्री पर पतली धारामें अठखेलियां करते थे वे हरद्वारमें हरकी पैड़ीके पास कलोलें करते पाये गये। उन्हींको थोड़े दिन बाद काशी मणिकर्णिका घाट पर जीवन मरणके गंभीर विचारमें आपने मग्न देखा था। अब वे कहां हैं? सबके पाप दोष धोकर, हमारे हृदयकी कालिमाको लेकर नील शोभा धारण करते हुए समुद्रकी गोदमें खेल रहे हैं। मनुष्यकी भी यही दशा है। बाल्यावस्था में हम नन्हेसे थे फिर किशोर होकर कर्मण्यता दिखलाई, अंतमें स्मशानकी अग्निमें भस्मस्नान करके नहीं, स्वयं भस्म होकर हम कृपा वारिधिकी पवित्र शरणमें लीन होते हैं। मिलकर एक होजाते हैं। हम भगवानसे मिल जाते हैं। आत्मा और परमात्माका भेद मिट जाता है। अर्जुनने इसीके लिये कहा है।

"यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगाः
समुद्रमेवाभिमुखा द्रवन्ति।
तथा तवामी नरलोक वीराः
विशन्ति वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति।

भगवानके अनेक मुखोंमें हम वैसे ही घुसते हैं जैसे नदियां समुद्र में प्रवेश करती हैं। बनोंमें बहती, पर्वतोपर टकराती, गह्वरों में गरगराती, झरनोंमें झरती सरिताओंका यही अंतिम उद्देश्य है कि वे समुद्र में मिल जाय, मिलकर एक हो जायं। मरमर कर, एक एक बंद जिसके लिये जोड़ी थी उसकी थाती उसको सौंप दी, सरका बोझ हलका हो गया, आप खुद भी हलकी होकर हवाकी झोकोंपर इधर उधर लहराने लगी।

हम भी रोज मरते, पटकते और काम करते रहते हैं जिसमें मालिक खुश हो और प्रसन्न होकर हमको अपने दरबारमें बुला ले। मालिक दयावान है, हमको अपनी शरणमें, अपने चरणों में अवश्य स्थान देगा! लेकिन हमको देख लेना चाहिये कि कहीं सुस्तीसे काम अधूरा न छूट जाय, नहीं तो डांट पड़ना अलग रहा, वही काम करनेके लिये हम बारबार लौटाये जायेंगे।

लेकिन जो कर्मवीर हैं, जिनने अपना सारा जीवन काम करते करते बिताया है, काम भी ऐसे जिनसे संसारका उपकार, दीनोंका उद्धार, सत्य और सदाचारका प्रचार, विद्याका विस्तार और मातृभूमि की उन्नति हुई है, उनके लिये मृत्युका क्या डर है! वे आनंदसे प्रत्येक स्थानमें मरनेको तैयार रहते हैं।

जिसने कर्मपथके यात्रियों को मार्ग दिखाया, अंधेरेमें भटकते हुएके लिये प्रकाश किया, सिसकते हुएका आंसू पोंछा, कराहते हुएको कलेजेसे लगाया, डूबते हुएको निकालकर बाहर खड़ा किया, सोते हुएको सचेत किया, जागते हुएको बैठाया, बैठेको खड़ा किया, खड़ेको चलाया, चलते हुएको कार्यमें सन्नद्ध किया ऐसे ही लोगोंका जीना और मरना धन्य है। हमारे चरित्र नायक महाशय जमसेदजी नसरवानजी ताता ऐसे ही महापुरुषोंमें थे। आपने इस छोटीसी पुस्तकमें देखा है कि ताताने एक साधारण पारसी कुलमें जन्म ग्रहण किया था और अपने लड़कपन हीसे किस परिश्रमसे काम करते हुए असंख्य धन जोड़कर उसको किस तरह परोपकारमें लगाया।

ऐसे लोग हर घड़ी मृत्युका स्वागत करते हैं। हम चाहते थे कि ऐसे महापुरुष और कुछ दिन तक हमको जगाते रहैं, उठाते रहैं, हमको कर्म पथपर चलाते रहैं। लेकिन परमात्मा हमारी रायसे काम नहीं करता है, वह न्यायशील, दयासागर सच्चिदानन्द जो अच्छा समझता है वही करता है। अंतमें हमको मालूम हो जाता है जो हमने सोचा था वह बात गलत थी, परम पिताने जो कुछ किया है अच्छे के लिये किया है, जो कुछ करता है हमारी भलाई के लिये करता है, सदा वह हमारा हित करेगा। अगर हम इस सिद्धांतको अच्छी तरह समझ लें, समझकर हृदयमें धारण कर लें तो हमारे बहुत कुछ रोग, शोक, संताप मिट जायं।

हमको अपने पैरों पर खड़ा करनेके लिये, आत्मनिर्भरता सिखानेके लिये, शायद परमात्माने आवश्यक समझा कि वह कुछ दिनोंके लिये मिस्टर ताताको अपने पास बुलालें।

इस देशकी दशा देखते हुए यह नहीं कहा जा सकता है कि ताताजीकी असमय और अकालमृत्यु हुई। यों तो हमारी प्रार्थनामें कहा जाता है "जीवेम शरदःशतम्" लेकिन कितने लोग सौ बरस तक जीते हैं!

सब कुछ होते हुए भी समय पड़ने पर हम धैर्य छोड़ देते हैं।

सन १९०३ ई॰ के अंतमें ताताजी बीमार पड़े। डाक्टरोंकी रायसे जल वायु बदलनेके लिये आप युरोप गये। जनवरी सन् १९०४ ई॰ में आप बंबईसे रवाना हुए। उसी सन्के मार्चमें आपकी स्त्रीका देहांत होगया। इससे आपको बड़ी चोट पहुंची। कुछ ही दिनके बाद तारोख १९ मईको जर्मनी देशके एक नगरमें आपका देहांत होगया। आपके ज्येष्ठ पुत्र सर दोराब ताता आपकी मृत्यु शय्याके पास मौजूद थे।

आपकी मृत्युका समाचार देश भरमें बिजलीकी तरह फैल गया। समग्र देश शोक सागरमें डूबने उतराने लगा। गरीब, दानवीर ताताके दानका स्मरण करने लगे, कलाकुशल कारीगर और व्यापारी, कर्मवीर ताताकी व्यवसाय चातुरीका ध्यान करने लगे। शिक्षाप्रेमी आपके अधूरे रिसर्च इन्स्टीट्यूटको देखकर हताश होने लगे, देश भक्त आपके स्वदेश प्रेमको समझ समझकर पछताने लगे। सबने अपने मन में सोचा कि इस आंदोलनके समयमें लेखक और व्याख्यान दाता बहुतसे होंगे, देशके लिये अपना सर्वस्व बलिदान करनेवाले भी होंगे। राजनैतिक संसारमें बड़े बड़े देशोंके दांत खट्ट करने वाले भी कितने ही निकलेंगे, लेकिन इतना बड़ा व्यवसायी देशकी कारीगरीका इतना बड़ा उद्धारकर्ता जल्द न मिलेगा।

बंबईके प्रसिद्ध आदमियोंकी ओरसे टाउनहालमें एक मीटिंग हुई। छोटे बड़े सब शरीक हुए थे। गवर्नर लार्ड लैमिंगटन सभापतिके आसन पर विराजमान थे। मुख्य वक्ता थे प्रजाप्रिय चीफ जस्टिस सर लारेंस जैकिंस। आपका व्याख्यान बड़ा ही ओज पूर्ण और हृदय ग्राही था। आपने उचित शब्दों में ताता महोदयके अतुलनीय गुणोंका वर्णन किया। दान, कलाकुशलता, व्यवसायपटुता, देशभक्ति आदि गुणोंका वर्णन करते हुए आपने बतलाया कि मिस्टर तातामें सादगी हद दरजेकी थी। इसके साथ साथ सदाचार, निरभिमान और निर्लोभने आपका स्थान और भी ऊंचा बना दिया था।

मिस्टर ताताने कर्तव्य हीको अपने जीवनका आदर्श बनाया था। आदर और मानकी तलाशमें आप कभी नहीं गये, वे स्वयं इनकी खोजमें लगे रहे। जेंकिंस साहब ताता जीके अंतरंग मित्र थे। अपने तजरबेसे आपने बतलाया कि जहां ताता जीका सार्वजनिक जीवन सफलता और उपकार पूर्ण था वहां निजी जीवन में भी आप बड़े ही सर्वप्रिय थे। आपके साथका आनंद वे ही लोग जानते हैं जिनको सौभाग्यसे वह सुख प्राप्त हुआ था। भोजनके समय आप अपनी आनंदवार्ता और विनोदपूर्ण कहानियोंसे सबको प्रसन्न करते रहते थे। अपनी जापान यात्राके बाद आप सदा जापानियोंकी प्रशंसा किया करते थे।

जेंकिंस साहबने बहुत ठीक कहा है कि ताताजी काम करने वाले आदमी थे। सूखे कुए में खाली डोल डालनेके आप पक्षपाती नहीं थे। लेक्चर देनेकी आदत आपमें नहीं थी। इससे यह नहीं समझना चाहिये कि आपमें भाषण शक्ति नहीं थी। सर फिरोजशाहमेहताके आग्रह पर आप एक दफा बोले थे जिससे पता चलता है कि अगर आप वक्ता बनना चाहते तो आपका स्थान इस देशके व्याख्यान दाताओं में बहुत ऊंचा होता। लेकिन आप तो दूसरे और विशेष महत्वके कामोंके लिये बनाये गये थे।

जैकिंस साहबने अंतमें कहा कि जहां ताताने बड़ेसे बड़े काम उठाये, वहां उद्योग और सदाचारके छोटेसे छोटे काममें भी आपकी सहानुभूति रहती थी, आपसे सहायता मिलती थी।

लार्ड लैमिंगटन महोदयने भी ताताजी की मुक्तकंठसे प्रशंसा की। आपने कहा कि ताताजीका सबसे बड़ा गुण था उनका व्यवसाय पूर्ण परोपकार। इस बातमें आपका मुकाबिला करनेवाला हिन्दुस्तानसें दूसरा आदमी अभीतक नहीं पैदा हुआ। लाट साहबकी रायमें ताताजीमें दूसरी खास बात थी सादगी! अपने धनको आपने अपनी शान शौकमें न लगाकर सदा परोपकार और व्यवसायमें लगाया।

जस्टिस तैयबजीने ताताजीके प्रति आदर और प्रेम दिखलाते हुए आपके अनेक गुणोंकी प्रशंसाकी। आपने एक फारसी कवि के निम्नलिखित वचनको उद्धृत किया "ऐ मुसलमान! मुझे क्या करना है? मैं खुद अपनेको नहीं पहचानता हूं। मैं न तो इसाई हूं, न यहूदी और न मुसलमान। मैं न तो पूरब का हूँ और न पश्चिमका। मैं न तो ईरानसे आरहा हूं और न खुरासान से" तैयबजीने कहा कि कविने कहा है कि न वह पूरबका है और न पश्चिमका, लेकिन ताता महोदयने अपने कामोसे दिखला दिया है कि वे पूरब और पश्चिम दोनोंके थे। अपने व्यवसाय, अपने परोपकार, अपनी उदारता और अपने दानके कारण ताताजी पूरब और पश्चिम दोनोंके आदमी कहला सकते हैं, मुसलमान भी कहे जासकते हैं और पारसी भी कहला सकते हैं। अपने सादे किंतु प्रभावशाली और दयापूर्ण जीवनके कारण आप मुसलमान हिंदू और पारसी सब कुछ कहे जासकते हैं। हिन्दुस्तान के हर सूबेके लोग आपको प्यार करते थे, आपका आदर करते थे। मिस्टर ताताके चरित्रका ठीक पता उनके रिसर्च इन्स्टीट्यूटसे लगता है। इससे न सिर्फ उनकी उदारता मालूम होती है बल्कि आपकी कल्पना शक्तिका भी पता लगता है। सर भालचंद्रकृष्णने कहा कि ताताजीको मृत्युसे सारा भारतवर्ष दुखी है। आपने कहा कि तातामें खास बात यह थी कि वे जिस कामको करते थे अच्छी तरहसे करते थे। आप जिस कामको उठाते थे विघ्नोंकी परवाह न करके आगे बढ़ते जाते थे। और जबतक कार्य सिद्ध नहीं होता था रुकते नहीं थे। आपने भी बतलाया कि मिस्टर ताताके सब कामों में उनका रिसर्च-इन्स्टीट्यूट प्रधान है।

रेवरेंड डाक्टर मैकीकनने एक सारगर्भित व्याख्यानमें ताता स्मारक बनवानेका प्रस्ताव पेश किया। आपने कहा कि ताताजीके स्मारककी आवश्यकता इसलिये नहीं है कि उन्होंने अपार धन पैदा किया बल्कि इसलिये है कि आपने धनका बहुत अच्छा उपयोग किया। ताताको भारतवर्षके औद्योगिक भविष्यमें बड़ा विश्वास था। बहुतसे लोग ख्याल करते हैं कि हिन्दुस्तान कलाकौशलमें संसारके बड़े बड़े देशोंका मुकाबिला नहीं कर सकता है। उनका निर्बल हृदय समझता है कि हमारा देश मर मरकर कच्चा माल पैदा करनेके लिये बनाया गया है और लैंकशायर और मैंचेस्टर उसको लेकर हमारी आंखों में धूल झोंककर, हमारे रक्तके कमाये पैसोंसे घर भरनेके लिये हैं। उनको डर है कि शायद हमेशा हमको विलायती कपड़े, जर्मनीकी पेंसल, तथा जापान और नारवेकी दियासलाई खरीदनी पड़े।

लेकिन ताताजी ऐसे लोगों में नहीं थे। आपका ख्याल था कि कोई वजह नहीं है कि जो काम दूसरे लोग कर सकैं हम न कर सके। स्वर्गीय मिस्टर ताताको चाहे हम व्यवसायी आदमी की हैसियतमें लें, या एक दानवीर सज्जनके रूपमें उनको देखें, एक बात सब जगह मिलैगी। ताताके जीवनका प्रधान गुण यह था कि उनके ख्यालात सदा ऊंचे रहते थे। संसारसे ऊंचसे ऊंचे विचार आपके चित्तको आकर्षित करते रहते थे। यह कहा जाता है कि मिस्टर ताताका दिमाग ख्यालातोंसे भरा रहता था। ठीक बात तो यह है कि उनका मस्तिष्क हृदय उमगानेवाले आदर्शो से पूर्ण रहता था। इससे भी ठीक यह बात होगी कि मिस्टर ताता स्वप्न देखनेवाले आदमी थे। इसमें शक नहीं कि ख्याली पुलाव बेवकूफ आदमी पकाते हैं। लेकिन बेवकूफोंके ख्यालात उनके मन में पैदा होकर वहीं मर जाते हैं। विचारको कामके रूपमें बदलना उनकी शक्तिके बाहर है। विचारवान आदमी अपने स्वप्नको कार्य रूपमें कर दिखलाता है। अगर वह कभी नाकामयाब भी रहता है तो भी उसके उद्योग और परिश्रमसे संसारके दूसरे लोगोंको नसीहत मिलती है। ताताजीमें खास बात यह थी कि वे अपने स्वप्नको स्वप्न नहीं रहने देते थे। उनके विचार कार्य रूपमें परिवर्तित होजाते थे।

ताताजीका बड़ा भारी गुण यह था कि वे सदा व्यवसायमें आध्यात्मिक भाव ला देते थे। आपने अपने इस गुणके कारण कलाकौशल और व्यवसायको साहित्यका स्थान देदिया था। इस देशके बहुतसे लोग समझते थे कि कारीगरी हाथकी चीज है और कलाकौशल रूखा व्यवसाय है। लेकिन ताताजीने अपने चरित्रसे दिखला दिया कि सच्ची कारीगरी दिमागके बिना हो ही नहीं सकती है। हमारे अधःपतनका मुख्य कारण यह है कि हम अपने व्यवसायको प्रेमसे, हंसते हुए, हौसला भरे दिलसे नहीं चलाते हैं।

इस देशमें कई तरहके दान प्रचलित हैं, कुछ लोग तो अपना नाम करनेके लिये दान करते हैं, कुछ लोग आंख मूंदकर आलसी लोगोंको भोजन करानाही दान समझते हैं, कुछ ऐसे सज्जन हैं कि वे दीन दुखियोंके दुःख दूर करने के लिये उनको अन्न वस्त्र देते हैं।

लेकिन ताताजीका दान इन सबसे निराले ढंगका था। अगर कोई ताताजीसे पूछता तो वे कहते कि यह व्यवसाय है, दान नहीं। बात सच है, लेकिन इस तरहका व्यवसायही सच्चा दान कहला सकता है। आपके दान आपके देशवासियोंको परिश्रमी और सदाचारी बनाते हुए उनके दिलको हौसलेसे भर देते थे। इस देशके निर्जीव और उत्साह हीन निवासियोंके लिये इससे बढ़कर और क्या उपकार होसकता है!

कुछ लोग पूछते हैं कि रिसर्च इन्स्टीट्यूटसे क्या फायदा है। शिक्षा आरंभ होनेके पहले भी इस संस्थासे बड़ा लाभ हुआ है। इसने देशके शिक्षित लोगोंको जगा दिया है। इसके कारण हमारे पढ़े लिखे लोगों में उत्साह जाग उठा है। वे अपने पूर्वजोंके 'सादी रहनी ऊंची करनी' आदर्श पर चलते हुए, आराम-तलबी पर लात मारते हुए, परिश्रमसे जीवन बिताते हुए, साधारण भोजनपर जीवन व्यतीत करते हुए खोजका काम करैंगे। एक ग्रैजुयेट तहसीलदारने सर नारायण चंदावरकरको लिखा था कि वह अपने जीवनकी कमाई १० हजार रुपये इन्स्टीट्यूट को दान करके नौकरी छोड़कर वहाँ शिक्षा ग्रहण करैगा!

इससे आप देख सकते हैं कि रिसर्च इन्स्टीट्यूटका लोगों पर कितना प्रभाव पड़ा है।

ताता महोदयके बनवाये हुए आदर्श मकानोंके देखनेसे कितनी सकाई टपकती है और उनसे कितनी शिक्षा मिलती है।

सच बात तो यह है कि इस महात्माके प्रत्येक काम, उसकी बातचीत, उसका साथ, सब हमलोगों को उच्च जीवनकी शिक्षा देते थे। सबसे बड़ा काम जो आपने किया वह यह है कि हममें आत्मविश्वासका भाव जागृत कर दिया। हमको प्रेमपूर्ण सच्चा जीवन सिखला दिया।

सभापति लाई लैमिंगटन महोदयने ताताजीके गुणोंका वर्णन करते हुए महत्वपूर्ण व्याख्यान दिया। आपने कहा कि ताज़ा स्मारक सभा में प्रत्येक जाति और धर्म के सज्जन हैं यह बड़े हर्षकी बात है। आपने कहा कि किसी बड़े आदमीके मर जानेपर थोड़े दिनोंतक लोगोंका अफसोस ताजा रहता है। उस समय सभा होनेसे लोग बहुत बड़ी संख्यामें उपस्थित होजाते हैं। लेकिन ऐसे वक्त, जोशके मौके पर लोगों के विचारों का मूल्य बहुत थोड़ा है।

खूबीकी बात यह है कि ताता स्मारक सभा इतने दिनोंके बाद की गई तब भी उपस्थित सज्जनोंकी संख्या इतनी अधिक है। इससे पता चलता है कि ताताके जीवनका कितना प्रभाव लोगों पर है।

हिज एक्सेलेंसीने कहा कि ताताजीका खास गुण उनका व्यवसाय मिला हुआ दान था। इस संबंधमें हिन्दुस्तानके और किसी निवासीने इतना बड़ा काम नहीं किया है। ताताने अपने उदाहरण दिखला दिया है कि व्यवसायमें रुपया लगाने से सर्वसाधारणका विशेष लाभ होता है और बनिस्बत कोरे दान करने के अधिक रुपया भी दानमें दिया जाता है। ताताजी में दूसरी अपूर्व बात उनकी सादगी थी। आप सदा अपने देशवासियोंको लाभ पहुंचाते रहे। आपने अपने फायदेका बहुत कम ख्याल किया। आप काम करना चाहते थे नाम करना नहीं। आप तारीफसे इतना भागते थे कि रिसर्च इन्स्टीट्यूटके साथ आप अपना नाम नहीं जोड़ना चाहते थे गोकि आपही उस संस्थाके कर्ताधर्ता विधाता थे। स्मारक बनवानेमें मिस्टर ताताका कुछ लाभ नहीं है। फायदा इसमें सोलहों आना उनलोगोंका है जो इसको बनवा रहे हैं। मिस्टर ताताका आदर करके मानों हम उन गुणोंका आदर करते हैं जिनके कारण वे जगत् प्रसिद्ध हुए या जिनके प्रभावसे उन्होंने देश-सेवाके इतने बड़े बड़े काम किये।

स्मारक कमेटीने आधेलाखके लगभग रुपये इकट्ठे किये जिसमें न सिर्फ बंबई, बल्कि हिन्दुस्तानकी दूसरी जगहोंके लोगोंने भी चंदा दिया था। उन रुपयोंसे मिस्टर ताताकी प्रस्तरमूर्त्ति तैयार की गई तारीख ११ अप्रैल सन् १९१२ ई॰ में बंबईके दूसरे गवर्नर सर जार्ज क्लार्कने ताताजीकी मूर्ति परसे परदा उठाया। बंबईके सभी प्रसिद्ध लोग मौजूद थे।

सर दिनशाईदुलजी वाचा (उस वक्त मिस्टर वाचा) ने एक सारगर्भित व्याख्यान देते हुए कार्रवाई शुरूकी। आपने कहा कि मिस्टर ताता जर्मनीके नाहेम नगरमें तंदुरुस्ती ठीक करने गये थे वहीं आपकी मृत्यु होगई। तारीख १९ मई सन् १९०४ ई॰ में आपके मरनेकी खबर इस देश में पहुंची। समग्र देश पर शोक की घनघोर घटा छा गई। उनके मरने से हिन्दुस्तान ने एक कर्मवीर व्यवसायी और सरल चित्तका सर्वप्रिय दाता और परम दूरदर्शी नेता खो दिया। देश भर में जगह जगह शोक प्रकाशित किया गया। वंबई में गवर्नर लार्ड लैमिंगटन बहादुरकी अध्यक्षतामें एक बड़ी सभा कीगई। उसी स्मारक सभाके उद्योगसे ताताजीकी भव्य प्रस्तर मूर्ति तैयार हुई है।

वाचाजीने गवनर सर जार्ज क्लार्क महोदयसे मूर्त्ति परसे परदा हटानेके लिये निवेदन किया। आपके बाद स्वर्गीय सर फिरोजशाह मेहताने गवर्नर महोदयसे मूर्ति खोलनेके लिये आग्रह करते हुए ताताजी के गुणों का गान किया। आपने कहा कि जो लोग कहते हैं कि ताताजी राजनीतिमें दिलचस्पी नहीं लेते थे वह गलत कहते हैं। ताताजीने प्लैटफार्म पर खड़े होकर व्याख्यान नहीं दिये हैं लेकिन धन और सहानुभूतिसे आप सदा राजनैतिक कामों में सहायता देते रहे हैं। ताताजी में खास बात यह थी कि उन्होंने व्यवसायमें सदा धर्म और सदाचार पर ध्यान दिया। कुछ लोगोंका ख्याल है कि झूठ और चालबाजीके बिना व्यवसाय चलही नहीं सकता है। उनको मिस्टर ताताकी जिंदगीसे सबक सीखना चाहिये। इम्प्रेस मिलके संबंध में आपने एक बड़ा भारी सुधार किया था। पुरानी प्रथा यह थी कि एजेंट लोग तैयार माल पर कमीशन उगाहते थे। लेकिन ताताजीने कहा कि उनको सिर्फ उतने काम पर कमीशन मिलना चाहिये जितना उनके प्रबंधमें किया जाता है। मत, बिरादरी और जातिके भेद आपके चित्तमें कभी प्रवेश नहीं करने पाते थे। आप जो काम करते थे अपने देशकी भलाई के ख्यालसे करते थे, भारतमाताका मस्तक ऊंचा करनेके विचारसे करते थे। अंगरेजी में एक कहावत है Charity begins at home, (दान घरसे आरंभ करना चाहिये) मिस्टर ताता कहते थे कि यह ठीक होसकता है कि दानका आरंभ घरसे किया जाय लेकिन उसकी इतिश्री घरपर नहीं होनी चाहिये।

मेहताजीने कहा कि ताता स्मारक केवल उस वीर और पवित्र आत्माके आदरके लिये नहीं बनाया गया है बल्कि उसका मुख्य प्रयोजन है कि वह दीपस्तम्भकी तरह अंधेरेमें भूले भटके भाइयोंको कर्तव्य मार्ग दिखलावै।

गवर्नर साहबने निन्नलिखित वचनोंसे मूर्त्ति परसे परदा हटा दिया। देवियों और सज्जनों! सात बरससे अधिक होगये कि टाउनहालमें महाशय जमसदजी नसरवानजी ताताके स्मारकके लिये सभा हुई थी। वह एक अपूर्व सभा थी जिसमें ताताजीके गुणोंके वर्णनमें हृदयग्राही व्याख्यान हुए थे। उस समयके उपस्थित सज्जनों में बहुत से यह लोक छोड़ गये और बहुतसे हिन्दुस्तानके बाहर चले गये। फिर भी उनमेंसे बहुतसे महाशय आज भी मौजूद हैं। उनको यह देखकर प्रसन्नता होगी कि अंत में बंबई वासियोंकी अभिलाषा पूर्ण हुई। आप शायद कहैं कि विलंब अधिक हुआ। लेकिन ऐसे काममें समय लगता ही है। विलंबसे एक बात अच्छी हुई। इतने दिनों में ताताजीके जीवनके तीनों बड़े काम लगभग पूर्ण होगये। साकचीका लोहेका कारखाना अच्छी तरह चल रहा है। गत जुलाईमें रिसर्च इन्स्टीट्यूट का पहला सेशन शुरू होगया। हाइड्रोएलेक्ट्रिक स्कीममें भी खूब सफलता होरही है। अस्तु ताताजीके जिन कामोंका स्मारक बनवाया जारहा है वे सब ठीक उतर गये। मेरे लिये बड़ी असुविधाकी बात यह है कि ताताजीके दर्शन मुझको न हो पाये थे। ताताजी में वैज्ञानिक विचार और काम करनेकी अपार शक्ति का साथ साथ संयोग हुआ था। उनके जीवनका सबसे बढ़कर उद्देश्य था भारतीय कारीगरीका उद्धार। आपने सोचा कि प्रकृतिने सभी जरूरी चीजें इस देशमें बनाई हैं। उनको यह भी मालूम था कि शिक्षा मिलनेपर हिन्दुस्तानी उन चीजोंका उचित उपयोग भी कर सकते हैं। इसी विचारसे रिसर्चइन्स्टीट्यूट की रचना हुई। बहुतसे लोग सोचते थे कि हिन्दुस्तानमें लोहे का काम बड़ी कामयाबीसे चल सकता है लेकिन उसको कार्यरूपमें लाना मिस्टर ताताहीका काम था।

मिस्टर ताताने ३८ वर्षकी अवस्थामें नागपुरकी इम्प्रेस मिल खोली थी। उस कामको उठानेके पहले आपने लैंकशायरमें काफी तजरबा हासिल कर लिया था। मिल इतनी कामयाब रही कि २६ वर्षमें मूलधनका बारहगुना मुनाफा हिस्सेदारों में बांटा गया।

हिन्दुस्तानी युवकोंके उत्साहके लिये ऐसे महापुरुषका जीवन चरित्र लिखा जाना चाहिये। मालूम नहीं कितने गुण हम आपसे सीख सकते हैं। जिस स्मारकको खोलनेका सौभाग्य मुझको प्राप्त हुआ है, उससे उस महात्माका स्मरण होगा जिसके लिये पारसी जाति, बंबई सूबा और समग्र भारतवर्ष अभिमान करैगा।