तितली/1.7

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तितली - उपन्यास - जयशंकर प्रसाद  (1934) 
द्वारा जयशंकर प्रसाद

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गंगा की लहरियों पर मध्यान्ह के सूर्य की किरणें नाच रही थीं। उन्हें अपने चंचल हाथों से अस्त-व्यस्त करती हुई, कमर-भर जल में खड़ी, मलिया छींटे उड़ा रही थी। करारे के ऊपर मल्लाहों की छोटी-सी बस्ती थी। सात घर मल्लाहों और तीन घर कहारों के थे। मलिया और रामदीन का घर भी वहीं था। दोपहर को छावनी से छुट्टी लेकर, दोनों ही अपने घर आए थे। रामदीन करारे से उतरता हआ कहने लगा-मलिया, मैं भी आया। मलिया हँसकर बोली—मैं तो जाती हूं। जाओगी क्यों? वाह?—कहते हुए रामदीन ‘धम' से गंगा में कूद पड़ा। थोड़ी दूर पर एक बुड्ढा मल्लाह बंसी डाले बैठा था, उसने क्रोध से कहा—देखो रामदीन, तुम छावनी के नौकर हो, इससे मैं डर न जाऊंगा। मछली न फंसी, तो तुम्हारी बुरी गत कर दूंगा। [ ३१ ]________________

तैरते हुए रामदीन ने कहा—अरे क्यों बिगड़ रहे हो दादा! आज कितने दिनों बाद छुट्टी मिली है। ऊधम मचाने अब कहां आता हूं। तैरते हुए तीर की ओर लौटकर उसने मलिया के पास पहुंचने का ज्यों ही उपक्रम किया, वह गंगा से निकलने लगी। रामदीन ने कहा—अरे क्या मैं काट लूंगा? मलिया, ठहर न! वह रुक गई। रामदीन ने धीरे से पास आकर पूछा—क्यों रे, तेरी सगाई पक्की हो गई? उसने कहा—धत! रामदीन ने कहा—तो आज मैं तेरे चाचा से कहूं कि... मलिया ने बीच ही में बात काटकर कहा—देखो, मुझे गाली दोगे तो.. .हां, कहे देती 'hca " क्या कहे देती है? क्या मुझे डराती है? अब तो मुझे तेरी बीबी रानी का डर नहीं। मलिया, तू जानती है छोटी कोठी में मेम साहब जब से आई हैं, तब से मैं ही उनका खाना बनाता हूं चौबेजी का काम भी मैं ही करता हूं? अब तो... ___ मेम साहब के भरोसे कूद रहे हो न! देखो तो तुम्हारी मेम साहब की दुर्दशा चार दिन में होती है। बीबी रानी... क्या...बकती है! चल, अपना काम देख! वह तो कहती थीं कि रामदीन, तुझको मैं सरकार से कहकर खेत दिलवा दूंगी। वहीं... । चल, अपना मुंह देख, मुझसे चला है सगाई करने! तीन ही दिन में छोटी कोठी से भी तेरी मेम साहब भागती हैं। तब लेना खेत! अरे तो क्या... आगे रामदीन कुछ न बोल सका; क्योंकि एक गौर वर्ण की प्रौढ़ा स्त्री धोती लिये हुए उत्तर की ओर से धीरे-धीरे गंगा में उतर रही थी। उसे देखते ही दोनों की सिट्टी भूल गई। दोनों ही गंगा जल में से निकलकर उसे अभिवादन करके भलेमानसों की तरह अपनी-अपनी धोती पहनने लगे। उस स्त्री के अंग पर कोई आभषण न था. और न तो कोई सधवा का चिन्ह! था केवल उज्ज्वलता का पवित्र तेज, जो उसकी मोटी-सी धोती के बाहर भी प्रकट था। एक पत्थर पर अपनी धोती रखते हुए उसने घूमकर पूछा—क्यों रे रामदीन, तुझे कभी घंटे भर की भी छुट्टी नहीं मिलती? आज अठवारों हो गया, कोई सौदा ले आना है। तेरी नानी कहती थी, आज रामदीन आने वाला है। सो तू आज आने पर भी यहीं धमाचौकड़ी मचा रहा है? ____मालकिन! मैं नहाकर कोट में आ ही रहा था। यही मलिया बड़ी पाजी है, इसने धोती पर पानी के छींटे...सरकार... रामदीन अपनी बनावटी बात को आगे न बढ़ा सका। बीच ही में मलिया अपनी सफाई देती हुई बोल उठी—इसकी छाती फट जाए, झूठा कहीं का! मालकिन, यह मुझको दे रहा है। इसका घमंड बढ़ गया है। मेम साहब का खानसामा बन गया है, तो चला है मुझसे सगाई करने! [ ३२ ]मालकिन अपनी आती हुई हँसी को रोककर बोलीं वह देख , इसकी नानी आ रही है , उसी से कह दे। मलिया , सचमुच रामदीन पाजी हो गया है। दोनों ने देखा , बुढ़िया रामदीन की नानी — तांबे का एक घड़ा लिये धीरे - धीरे आ रही है । मालकिन स्नान करने लगी। कभी - कभी स्नान करने के लिए वह इधर आ जाती , तो कई काम करती हुई जातीं । भाई मधुबन के लिए मछली लेना और मल्लाही -टोली की किसी प्रजा को सहेजकर गृहस्थी का और कोई काम करा लेना भी उनके नहाने का उद्देश्य होता । उनको देखते ही बूढ़े मल्लाह ने अपनी बंसी खींची । मछली फंस चुकी थी । वह स्नान करके सूर्य को प्रणाम करती हुई जब ऊपर आकर खड़ी हुईं तो मल्लाह ने मछली सामने लाकर रख दी । उन्होंने रामदीन से कहा — इसे लेता चल । । मलिया ने बुढ़िया के स्नान कर लेने पर उसके लाए हुए घड़े को भर लिया । मालकिन की गीली धोती लेकर बुढ़िया उनके साथ हो गई । मल्लाह ने कहा — मालकिन , आज इस पाजी रामदीन को बिना मारे मैं न छोड़ता । आज कई दिन पर मैं मधुबन बाबू के लिए मछली फंसाने बैठा था , यह आकर ऊधम मचाने लगा । इसी की चाल से बड़ा - सा रोहू आकर निकल गया । आज लगा है छावनी की नौकरी करने, तो घमंड का ठिकाना ही नहीं । हम लोग आपकी प्रजा हैं मालकिन ! यह बूढ़ा इस बात को नहीं भूल सकता । अभी कल का लड़का — यह क्या जाने कि धामपुर के असली मालिक — चार आने के पुराने हिस्सेदार — कौन हैं । मालकिन , बेईमानी से वह सब चला गया , तो क्या हुआ ? हम लोग अपने मालिक को न पहचानेंगे? ___ मालकिन को उसका यह व्याख्यान अच्छा न लगा । उनके अच्छे दिनों का स्मरण करा देने की उस समय कोई आवश्यकता न थी । किंतु सीधा और बूढ़ा मल्लाह उस बिगड़े घर की बड़ाई में और कहता ही क्या ? शेरकोट के कुलीन जमींदार मधुबन के पास अब तीन बीघे खेत और वही खंडहर - सा शेरकोट है, इसके अतिरिक्त और कुछ चाहे न बचा हो ; किंतु पुरानी गौरव - गाथाएं तो आज भी सजीव हैं । किसी समय शेरकोट के नाम से लोग सम्मान से सिर झुकाते थे। ____ मधुबन के लिए वंश- गौरव का अभिमान छोड़कर , मुकदमे में सब कुछ हारकर , जब उसके पिता मर गए , तो उसकी बड़ी विधवा बहन ने आकर भाई को संभाला था । उसकी ससुराल संपन्न थी ; किंतु विधवा राजकुमारी के दरिद्र भाई को कौन देखता! उसी ने शेरकोट के खंडहर में दीपक जलाने का काम अपने हाथों में लिया ! शेरकोट मल्लाही -टोले के समीप उत्तर की ओर बड़े- से ऊंचेटीले पर था । मल्लाही टोला और शेरकोट के बीच एक बड़ा - सा वट - वृक्ष था । वहीं दो - चार बड़े- बड़े पत्थर थे। उसी के नीचे स्नान करने का घाट था । मल्लाही-टोले में अब तो केवल दस घरों की बस्ती है । परंतु जब शेरकोट के अच्छे दिन थे, तो उसकी प्रजा से काम करने वालों से यह गांव भरा था । शेरकोट के विभव के साथ वहां की प्रजा धीरे - धीरे इधर - उधर जीविका की खोज में खिसकने लगी । मल्लाहों की जीविका तो गंगातट से ही थी ; वे कहां जाते ? उन्हीं के साथ [ ३३ ]________________

दो-तीन कहारों के भी घर बच रहे—उस छोटी-सी बस्ती में। कहीं-कहीं पुराने घरों की गिरी हुई भीतों के ढूह अपने दारिद्र्य -मंडित सिर को ऊंचा करने की चेष्टा में संलग्न थे, जिसके किसी सिरे पर टूटी हुई धरनें, उन घरों का सिर फोड़ने वाली लाठी की तरह, अड़ी पड़ी थीं! उधर शेरकोट का छोटा-सा मिट्टी का ध्वस्त दुर्ग था! अब उसका नाममात्र है, और है उसके दो ओर नाले की खाई—एक और गंगा। एक पथ गांव में जाने के लिए था। घर सब गिर चुके थे। दो-तीन कोठरियों के साथ एकआँगन बच रहा था। भारत का वह मध्यकाल था, जब प्रतिदिन आक्रमणों के भय से एक छोटे-से भूमिपति को भी दुर्ग की आवश्यकता होती थी। ऊंची-नीची होने के कारण, शेरकोट में अधिक भूमि होने पर भी, खेती के काम में नहीं आ सकती थी। तो भी राजकुमारी ने उसमें फल-फूल और साग-भाजी का आयोजन कर लिया था। शेरकोट के खंडहर में घुसते हुए राजकुमारी ने बूढ़े मल्लाह को विदा किया। वह बूढ़ा मनुष्य कोट का कोई भी काम करने के लिए प्रस्तुत रहता। उसने जाते जाते कहामालकिन, जब कोई काम हो, कहलवा देना, हम लोग आपकी पुरानी प्रजा हैं, नमक खाया उसकी इस सहानुभूति से राजकुमारी को रोमांच हो गया। उसने कहा—तुमसे न कहलवाऊंगी, तो काम कैसे चलेगा; और कब नहीं कहलवाया है? बूढ़ा दोनों हाथों को अपने सिर से लगाकर लौट गया। रामदीन ने एक बार जैसे सांस ली। उसने कहा—तो मालकिन, कहिए, नौकरी छोड़ जो प्रेरणा उसे बूढ़े मल्लाह से मिली थी, वही उत्तेजित हो रही थी। राजकुमारी ने कहा—पागल! नौकरी छोड़ देगा, तो खेत छिन जाएगा। गांव में रहने पावेगा फिर? अब हम लोगों के वह दिन नहीं रहे कि तुमको नौकर रख लूंगी। मैंने तो इसलिए कहा था कि मधुबन ने कहीं पर खेत बनाया है; वही बाबाजी की बनजरिया में। कहता था कि 'बहन, एक भी मजूर नहीं मिला!' फिर बाबाजी और उसने मिलकर हल चलाया! सुनता है रे रामदीन, अब बड़े घर के लोग हल चलाने लगे, मजूर नहीं मिलते, बाबाजी तो यह सब बात मानते ही नहीं। उन्होंने मधुबन से भी हल चलवाया। वह कहते हैं कि 'हल चलाने से बड़े लोगों की जात नहीं चली जाती। अपना काम हम नहीं करेंगे, तो दूसरा कौन करेगा।' आज-कल इस देश में जो न हो जाए। कहां मधुबन का वंश, कहां हलचलाना! बाबाजी ने उसको पढ़ाया-लिखाया और भी न जाने क्या-क्या सिखाया। वह जाता है शहर यहां से बोझ लिवाकर सौदा बेचने! जब मैं कुछ कहती हूं; तो कहता है- 'बहन! वह सब रामकहानी के दिन बीत गए। काम करके खाने में लाज कैसी। किसी की चोरी करता हूं या भीख मांगता हूं?' धीरे-धीरे मजूर होता जा रहा है। मधुबन हल चलावे, यह कैसे सह सकती हूं। इसी से तो कहती हूं कि क्या दो घंटे जाकर तू उसका काम नहीं कर सकता था! दोपहर को खाने-नहाने की छुट्टी तो किसी तरह मिलती है। कैसे क्या कहूं अभी न जाऊं तो रोटी भी रसोईदार इधर-उधर फेंक देगा। फिर दिन भर टापता रह जाऊंगा। मालकिन, पहले से कह दिया जाए, तो कोई उपाय भी निकाल लूं। [ ३४ ]________________

अच्छा, जा; कल आना तो मुझसे भेंट करके जाना; भूलना मत! समझा न? मधुबन मिले तो भेज दो। रामदीन ने मछली रखते हुए सिर झुकाकर अभिवादन किया। फिर मलिया की ओर देखता हुआ वह चला गया। __रामदीन की नानी धूप में धोती फैलाकर रसोई-घर की ओर मछली लेकर गई। वह चौके में आग-पानी जुटाने लगी। ___मलिया मालकिन के पास बैठ गई थी। राजकुमारी ने उनसे पूछा–मलिया! तेरी ससुराल के लोग कभी पूछते हैं? उसने कहा नहीं मालकिन, अब क्यों पूछने लगे। राजकुमारी ने कहा—तो रामदीन से तेरी सगाई कर दूं न? आओ मालकिन, इसीलिए मुझको... राजकुमारी उसकी इस लज्जित मूर्ति को देखकर रुक गईं। उन्होंने बात बदलने के लिए कहा—तो आज-कल तू वहां रात-दिन रहती है? - क्यों न रहूंगी। बीबीरानी माधुरी की तरेर-भरी आँखें देखकर ही छठी का दूध याद आता है। अरे बाप रे! मालकिन, वहां से जब घर आती हूं तो जैसे बाघ के मुंह से निकल आती हूं। इधर तो उनकी आँखें और भी चढ़ी रहती हैं। चौबे, जो पहले कुंवर साहब की रसोई बनाता था, आकर न मालूम क्या धीरे-धीरे फुसफुसा जाता है। बस फिर क्या पूछना! जिसकी दुर्दशा होनी हो वही सामने पड़ जाए। क्यों रे, चौबे तो पहले तेरे कुंवर साहब के बड़े पक्षपाती थे। अब क्या हुआ जो... छावनी की बातें अच्छी तरह सुनने के लिए राजकुमारी ने पूछा। कोई भी स्वार्थ न हो: किंत अन्य लोगों के कलह से थोड़ी देर मनोविनोद कर लेने की मात्रा मनष्य की साधारण मनोवृत्तियों में प्राय: मिलती है। राजकुमारी के कुतूहल की तृप्ति भी उससे क्यों न होती? __मलिया कहने लगी मालकिन! यह सब मैं क्या जानूं, पहले तो चौबेजी बड़े हंसमुख बने रहते थे। पर जब से बड़ी सरकार आई हैं; तब से चौबेजी इसी दरबार की ओर झुके रहते हैं। कंवर साहब से तो नहीं पर मेम साहब से वह चिढ़ते हैं। कहते हैं. उसकी रसोई बनाना हमारा काम नहीं है। बबिरिनिा से और भी न जाने क्या-क्या उसकी निंदा करते हैं। सुना था, एक दिन वह रसोई बना रहे थे, भूल से मेम साहब जूते पहने रसोई-घर में चली आईं, तभी से वह चिढ़ गए, पर कुछ कह नहीं सकते थे। जब बड़ी सरकार आ गईं, तो उन्होंने इधर ही अपना डेरा जमाया। अब तो वहछोटी कोठी जाकर, वहां क्या-क्या चाहिए —यही देख आते हैं क्यों रे! क्या तेरे कुंवर साहब इस मेम से ब्याह करेंगे? मैं क्या जाएं मालकिन! अब छुट्टी मिले। जाऊं, नहीं तो रसोईदार महाराज ही दोचार बात सुनावेंगे। अच्छा, जा, अभी तो चाचा के पास जाएगी न? हां, इधर से होती हुई चली जाऊंगी—कहकर मलिया अपने घर चली। राजकुमारी से आकर रामदीन की नानी ने कहा—चलिए, अपनी रसोई देखिए। अभी [ ३५ ]मधुबन बाबू तो नहीं आए। राजकुमारी ने एक बार शेरकोट के उजड़े खंडहर की ओर देखा और धीरे-धीरे रसोईघर की ओर चलीं । रोटी सेंकते हुए राजकुमारी ने पूछा - बुढ़िया , तूने मलिया के चाचा से कभी कहा था ।

क्या मालकिन ?

रामदीन से मलिया की सगाई के लिए । अब कब तक तू अकेली रहेगी ? अपने पेट के लिए तो वह पाजी जुटा ले ; सगाई करके क्या करेगा मालकिन ! ब्याह होता मधुबन बाबू का ; हम लोगों को वह दिन आखों से देखने को मिलता... किसका रे बुढ़िया ! — कहते हुए मधुबन ने आते ही उसकी पीठ थपथपा दी ।

राजकुमारी ने कहा — रोटी खाने का अब समय हुआ है न ? मधु ! तुम कितना जलाते हो ।

बहन ! मैं अपने आलू और मटर का पानी बरा रहा था , आज मेरा खेत सिंच गया । कहकर वह हंस पड़ा । वह प्रसन्न था ; किंतु राजकुमारी अपने पिता के वंश का वह विगत वैभव सोच रही थी ; उनको हंसी न आई ।