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तिलिस्माती मुँदरी/1

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तिलिस्माती मुँदरी
श्रीधर पाठक

इलाहाबाद: पंडित गिरिधर पाठक, पृष्ठ १ से – ६ तक

 
तिलिस्माती मुँदरी
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अध्याय १


हरिद्वार से आगे उत्तर की तरफ़ पहाड़ों में दूर तक चले जाइये तो एक ऐसे मुक़ाम पर पहुंचियेगा जहां पानी की एक मोटी धारा, गाय के मुंँह के मानिंद एक मुहरे की राह, बरफ़ के पहाड़ों से निकल कर बड़े ज़ोर और शोर के साथ एक नीची जगह में गिरती है। यह धारा हमारी गंगामाई है, उसके निकलने के मुहरे को गौमुखी कहते हैं और उस सारी जगह का नाम गंगोत्री है।

गंगोत्री बड़ी सुहावनी जगह है। बर्फ़िस्तान से आती हुई गंगाजी की सफ़ेद धारा देखने में बहुत खूबसूरत मालूम होती है और उसके उतरने की आवाज़, पहाड़ों में गूंजती हुई, कानों को बहुत प्यारी लगती है। गंगोत्री हिन्दुओं का बड़ा तीर्थ है। देस यानी मैदान के रहने वालों के लिये वहां जाने का पहाड़ी रास्ता बड़ा मुशकिल है और जिस ज़माने का किस्सा इस किताब में लिखा जाता है उस ज़माने में और भी मुशकिल था, क्योंकि अब तो कहीं कहीं सड़कें और पुल भी बन गये हैं, पहले सिर्फ तंग पगडंडियां थीं जिन पर से रास्तागीरों को पैर फिसल कर पहाड़ के नीचे खड्ड में गिर जाने का डर रहता था; और गहरी नदियों को उतरने के लिये उनके ऊपर एक किनारे से दूसरे किनारे तक मोटे रस्से लगे रहते थे जिन्हें झूला कहते थे, उनपर चलने से वह

बहुत हिलते डुलते थे और उतरने वाले अक्सर पैर चूकने से उनपर से गिर कर मर जाते थे।

सैकड़ों बरस की बात है इस गंगोत्री के नज़दीक एक छोटी झोंपड़ी में एक योगी रहता था। उम्र उसकी ५० से ज़ियादा और ४५ से कम न थी, पर देखने में वह बहुत ही बूढ़ा जान पड़ता था। डील उसका लम्बा, रंग गोरा, चिहरा आर्यों का सा, माथा ऊँचा था, और एक बड़ी भूरी डाढ़ी उसकी चौड़ी छाती को ढकती हुई नाफ़ तक लटकती थी। उसके सारे बदन पर ग़ौर करने से ऐसा मालूम होता था कि वह जवानी में बड़े आराम से रहा होगा, मगर माथे पर की सिकड़ी हुई लकीरों से और भवों के भीतर गड़ी हुई आंखों से ऐसा ख़याल होता था कि कोई बड़ा भारी दुख इस आदमी के योगी हो जाने का सबब हुआ है।

यह योगी चिड़ियों और जानवरों पर बहुत मुहब्बत रखता था, उन्हें आदमी की तरह चाहता था और वह इसके मिज़ाज को यहां तक जान गये थे कि हत्यारे जानवर भी दूसरे जानवरों की तरह इसके पास आने में डर नहीं खाते थे और न इस को किसी तरह का नुकसान पहुंचाते थे।

एक दिन शाम को यह योगी आसन पर बैठा हुआ अस्ताचल के पीछे डूबते हुए सूरज की सजावट को देख रहा था कि उसकी नज़र दो कौओं पर पड़ी जो कि उड़ते उड़ते खिलवाड़ कर रहे थे। लड़ते लड़ते एक उनमें से गंगा जी की धारा में गिर पड़ा। वहां पर बहाव ज़ोर का था और उसके पंख भीग कर इतने भारी हो गये थे कि उड़ने की ताकत न रख कर वह बह चला और ज़रूर डूब जाता, लेकिन योगी ने पानी में धस झट अपनी कुबड़ी की चोंच से उसे बाहर

निकाल लिया और किनारे पर रख दिया। जब उसके पंख सूख गये दोनों कौए एक ऊंची चट्टान की तरफ़ जो कि गौमुखी के ठीक ऊपर थी कांव कांव करते हुए उड़ गये। योगी ने उन्हें उस चट्टान के बीचों बीच एक छोटी सी खोह में घुसते हुए देखा और थोड़ी ही देर पीछे देखता क्या है कि दोनों कौए फिर उसकी तरफ़ आ रहे है और आकर उसके पैरों के पास बैठ जाते हैं। एक कौआ एक अंगूठी योगी के पैरों पर रख देता है और योगी उसको उठा कर अपनी उंगली में पहन लेता है। मगर उसे बड़ा तअज्जुब होता है जब कि वह अंगूठी को पहनते ही कौए को यों कहते सुनता है-“ऐ मिहर्बान बड़े योगी! आज आप ने मेरी जान बचाई है। और सब चिड़ियों और जानवरों पर आप हमेशा बड़ी मिहर्बानी रखते हैं। इस लिये यह अंगूठी मैं आप को भेट करता हूं, इसे कबूल कीजिये। यह मुँदरी जादू की है और इस में यह तासीर है कि जो कोई इस को पहनता है सब चिड़ियों की बोली समझ सकता है और उन्हें जिस काम का हुक्म देता है उसे वह इसके दिखाने से उसी वक्त करने को तैयार हो जाते हैं। अगर इस वक्त हमारे लायक कोई काम हो तो हुक्म दीजिये"।

यह सुन कर योगी ने कहा-"हां, मेरा एक काम है। मैं पहले कश्मीर का राजा था, पर मेरे दामाद ने मुझे गद्दी से उतार कर राज छीन लिया और मैं यहां योगी के भेस में छुपा हुआ हूं। मैं चाहता हूं कि मरने के पहले अपनी लड़की की जो कि वहां रानी है कुछ ख़बर सुन लू और राज की हालत भी जान लूं। अगर तुम पहाड़ों के पार कश्मीर जाकर ख़बर ले आओ तो बड़ा एहसान मानूं"।

"बहुत अच्छा" कह के दोनों कौए वहां से उड़ चले और

पल भर में योगी की नज़र से गायब हो गये। कई दिन तक योगी ने उनको न देखा। एक दिन वह शाम को अपनी मढ़ी के दरवाज़े पर बैठा था, उसे दो काले दाग़ से दूर आसमान में दिखाई दिये, वह उसकी तरफ़ आ रहे थे और जब नज़दीक आ गये वही दोनों कोए निकले। आकर वह उसके पास एक तिपाई पर जो वहां पड़ी थी बैठ गये और उनमें से एक अपने कश्मीर जाने का नतीजा यों सुनाने लगा-

"ऐ महाराज, हम आप के लिये बुरी ख़बर लाये हैं। रानी यानी आप की बेटी तो इस दुनिया से कूच कर गई है और एक लड़की छोड़ गई है। राजा ने दूसरा ब्याह कर लिया है। पर पहली रानी के तोते से जो कुछ हमने सुना उस से जाना कि नई रानी आप की दोहती को विलकुल नहीं चाहती, बल्कि उसे दुश्मनी की नज़र से देखती है और यह भी डर है कि जब राजा अब की बार शहर से दूर शिकार हो जायगा यह बेरहम सनी उस बग़ैर मां की बेगुनाह बच्ची को मरवा डालेगी या किसी दूसरी तदबीर से अलहदा कर देगी"।

उस बूढ़े बैरागी को यह बात सुन कर बड़ा दुख हुआ और फ़िक से रात को नींद न आई। सवेरा होने पर राज़ की तरह वह कौए नदी किनारे जब फिर उड़ने आये, योगी ने उन्हें फौरन अपने पास बुलाया और कहा-“ऐ नेक चिड़ियो, यह अंगूठी मेरी दोहती को जाकर दो और कहो कि जब उसे किसी तरह की मदद या सलाह की ज़रूरत पड़े वह इसके ज़ोर से चाहे जिस चिड़िया को बुला लिया करे हर एक चिड़िया उसे अपनी ताक़त भर मदद देगी-बस मैं अपनी प्यारी दोहती को सिर्फ़ इतनी ही मदद पहुंचा सकता हूं"-और आंखों में आंसू भर अंगूठी कौओं को देदी-कौए यह कह कर कि- "बहुत अच्छा महाराज़, हम आपके हुक्म के

बमूजिब अंगूठी लड़की को दे देंगे और उसके पास रह कर मक़दूर भर उसकी मदद करेंगे और हो सका तो आप के पास उसे ले भी आवेगे," वहां से उड़ दिये और पहाड़ और बन और पटपरों को तै करते हुएं थोड़े ही दिनों में कश्मीर के राजा के महलों में दाखिल हुए-और सीधे उसी जगह पर पहुंचे जहां राजा की बेटी बैठी हुई अपने तोते को चुगा रही थी और मुंँदरी को लड़की के आगे रख दिया। लड़की उसे छूते ही चिड़ियों की बोली समझने लगी।

कौओ ने उसे उसके नाना मे जो कहला भेजा था सब सुना दिया और तोते ने जिस तरह उसका राज छिन गया था सब बयान किया। राजा की लड़की सुन कर बहुत रोई और बोली-“ऐ परिन्दो, मुझे जैसे बने मेरे नाना के पास ले चलो, क्योंकि रानी मुझ पर इतना कड़ापन रखती है कि बाप के साथ सिवा अपने सामने के मुझे बात तक नहीं करने देती, इस से मैं उसकी बातें बाप से नहीं कह सकती-अलावा इस के वह हर एक को मेरे ख़िलाफ़ बनाये रहती है और सिवा इस प्यारे तोते के कोई मुझे नहीं चाहता और न मेरी ख़बर लेता है।

इस पर तोता अपनी बैठक से झुक, चेांच से लड़की के हाथ को चूम, कहने लगा-"मेरी प्यारी बच्ची, तू पूरा यक़ीन रख कि जो कुछ मैं तेरे लिये कर सकूंगा उससे कभी बाहर न हूंगा, क्योंकि मैं तुझे अपने बच्चे के बराबर मानता हूं-मैंने तेरा और तेरी मां दोनों का पैदा होना अपनी आंखों से देखा है। रही तेरे नाना के पास तेरे जाने की बात, मेरी समझ में यह काम मुशकिल और ख़तरे का है, पर साथ ही यह भी अंदेशा है कि राजा के शिकार को चले जाने के बाद, इस

सखदिल रानी के पास रहने में हमारे राजा की प्यारी लड़की का किसी तरह बचाव नहीं"।

इसके बाद यह तै हुआ कि दोनों कौए तो महल के बाग़ में बसेरा करें और हमेशा ऐसी जगह रहे कि काम पड़ने पर झट बुला लिये जा सके और तोते ने महलों के भीतर ख़बरदारी रखने का काम लिया और यह मालूम करने की कोशिश में रहा कि रानी लड़की को तकलीफ़ पहुंचाने की कोई तदबीर तो नहीं करती।