तिलिस्माती मुँदरी/7
क़रीब २ सारे दिन राजा की लड़की अपनी कोठड़ी ही मैं रही, कभी तोते से बात चीत कर लेती थी, कभी सीने लगती थी, और कभी एक किताब जो अपने साथ ले गई थी पढ़ने लगती थी। अख़ीर को उसने एक उकसा हुआ सा पत्थर कोठड़ी की दीवार में देखा, और उसको जो अपनी तरफ़ खींचा तो वह गिर पड़ा और उसकी जगह एक चौकोर छेद हो गया जिसमें से वह कोतवाल के मकान का बाग़ देख सकती थी, इससे वह निहायत खुश हुई और इस बात को जान कर उसे और भी ज़ियादा खुशी हुई कि वह उस सूराख़ से उस कमरे की खिड़की को देख सकती थी जिसमें दयादेई और वह सोया करती थीं-रात आने तक वक्त बहुत बड़ा मालूम पड़ा, लेकिन अख़ीर को शाम का अंधेरा शुरू हुआ और तोता, बड़े मियां उल्लू और दोनों कौओं को खंडहर के चारों तरफ़ ख़बर्दारी रखने का हुक्म देकर, दयादेई के लेने को जो कि अपनी मां के साथ बाग़ में टीले पर खड़ी हुई थी उड़ कर उनके पास पहुंचा। तब दयादेई से उसकी मां ने कहा-"मैं तेरे लिए यहीं ठहरी रहूंगी-तोते को अभी मेरे पास भेज दीजो, जब तेरे लौटने का वक्त होगा मैं उसे तेरे बुलाने को भेज दूंगी"-दयादेई अब उस सिड्ढी से बाग़ के पार उतर गई और मीनार के नीचे जा पहुंची। तोते के इशारे पर रेशमी सिड्ढी तले गिरा दी गई और
दयादेई उस पर चढ़ के ऊपर पहुंच गई; सब तरह की खाने की चीजें एक टोकरी में लिये हुए थी। दोनों लड़कियां एक दूसरे से गले लिपट के खूब मिलीं-बाद थोड़ी देर के टोकरी खोली गई और दोनों ने खूब खाने को खाया, उन्हें भूख भी
खूब लग रही थी क्योंकि एक दूसरे से मिलने की खुशी में एक ने भी शाम का खाना नहीं खाया था-तोता कोतवाल की बीबी के पास उड़ गया और राजा की लड़की ने दयादेई को दीवार का सूराख़ दिखाया और उससे अपने सोने के कमरे की खिड़की पर अक्सर पाने के लिये कहा ताकि वह उसे देख सके और उसकी तरफ इशारे कर सके। इतने में तोता वापस आया और बोला कि "अब चलने का वक्त है”। दयादेई राजा की लड़की के बहुत से बोसे लेकर अपनी मां के पास लौट आई।
ख़िराज जो उस शहर से मांगा गया था इतना ज़ियादा था कि उस के वसूल होने में बहुत रोज़ लग गये, क्योंकि बहुत लोगों ने अपनी क़ीमती चीज़े छिपाने की कोशिश की और राजा के अफ़सरों को तमाम मकानों की तलाशी में बहुत वक्त लगा।
यह सब वक्त राजा की लड़की ने मीनार के ऊपर उस छोटी कोठड़ी ही में अपनी तीनों चिडियाओं के साथ गुज़ारा। वह अक्सर कौओं के ज़रिये से बातों और संदेशे के रुक्के दयादेई के पास भेजा करती थी और दयादेई अपने सोने के कमरे की खिड़की में आ बैठा करती थी जहां कि राजा की लड़की उसे अपनी कोठड़ी की दीवार के छेद से देख सके। और उसमे से अपने हाथ बाहर निकाल कर उंगलियों के इशारे से बात कर सके। वह हाथों को इतना बाहर नहीं निकालती थी कि कोई गैर शख्स़ देख सके, और मीनार पर एक घनी बेल छाई हुई थी जिसके सबब से दयादेई की खिड़की के सिवा और कहीं से वह सूराख नहीं दीख सकता था। तीनों चिड़ियां उसके लिये के दयादेई पास से खाने की चीज़ लाने
में भी बहुत कुछ लगी रहती थीं, क्यों दयादेई दो तीन दिन
तक उसके पास फिर नहीं जाने पाई थी, क्योंकि जल्दी जल्दी। जाने से डर था कि कोई जान जायगा। अब की बार वह वहां कुछ रात गुज़र जाने पर गई, क्योंकि चांद रोशन हो रहा था, उसके छिप जाने तक उसे रुका रहना पड़ा। और वहां उनको बातें करते करते करीब करीब सवेरा हो गया, तब दयादेई गई। उस वक्त राजा की लड़की को इतनी नींद आ रही थी कि वह दयादेई के उतर जाने के बाद रेशम की सिड्ढी को ऊपर खींच लेना भूल गई। सुबह को तोता उससे पहले जाग गया और कौओं को कश्मीर की फ़ौज की ख़बरें लाने के लिये भेज कर आप कोतवाल के घर को, लड़की के वास्ते खाना लाने के लिये, उड़ गया। तोते को गये बहुत देर नहीं हुई थी कि राजा की लड़की को आंख किसी के हंसने की आवाज़ से खुल गई। यह आवाज़ उसके नज़दीक ही सुनाई दी और बेचारी के होश उड़ गये जब उसने एक काली सूरत को ज़ीने से निकल कर अपनी तरफ़ आते हुए देखा। लेकिन वह उस सूरत से खूब वाकिफ़ थी, क्योंकि वह उसी लौंडी की थी जिसने उसका ज़िक्र कोतवाल के मकान की तलाशी के वक्त उसे पकड़वाने की ग़रज़ से राजा के अफ़सरों से किया था। वह लौंडी उसकी हमेशा दुश्मन रही थी।
वह उससे तनूज़ के साथ कहने लगी-“हये, हये, तोते- वाली, मैं ने आज तुझे पकड़ लिया! मैं अब तुझे जल्द उन लोगों को सपुर्द कर दूंगी जो तुझे पाकर खुश होंगे और मुझे इनाम देंगे"-और फुरती से अंदर आकर राजा की लड़की को पकड़ लिया और उसकी चद्दर फाड़ के उसके दो टुकड़े कर उनसे उसके हाथ पैर बांध दिये-और यह कहती हुई कि "मुझे यक़ीन है तू मेरे लौट आने तक यहां से भाग न सकेगी" डोरी की सिड्ढी के रास्ते नीचे उतर गई और ज़ोर से उसे
झटका दिया कि वह कील समेत नीचे जा पड़ी। उसको झट पट समेट कर और साथ लेकर वह बदज़ात लौंडी वहां से बड़ी फुरती के साथ दौड़ती हुई चली गई; राजा की लड़की को उसी तरह बंधी हुई पड़ी छोड़ गई। अगर उसके हाथ बंधे हुए न भी होते तो भी अब वह वहां से कहीं नहीं जा सकती थी।
लौंडी ने राजा की लड़की को वहाँ इस तरह पाया था- वह उस मकान से कि जिसमें पकड़े हुए लौंडी गुलाम रक्खे गये थे किसी तरकीब से उसी रात को भाग आई थी। और मंदिर के खंडहरों में छुपने को जगह ढूंढ रही थी। ढूंढते में उसे मीनार से लटकती हुई वह रेशमी रस्सी की, सिड्डी दिखाई दी; उस पर वह चढ़ गई यह देखने को कि वह ऊपर कहां लगी हुई है, और जब उसने राजा की लड़की को वहां सोता देखा तो फ़ौरन उसके जी में आया कि उसे राजा के अफ़सरों के हवाले कर दे, क्योंकि अलावा इसके कि वह उसले जलती थी वह यह भी जानती थी कि भागे हुए लौंडी गुलामों के पकड़ लाने वालों और पता बताने वालों को इनाम मिलता है और उसे यकीन था कि राजा को लड़की के मानिन्द उमदा लौंडी को पकड़वाने के इनाम में वह सिर्फ़ भाग आने के लिये मुआफ़ ही नहीं कर दी जायगी बल्कि क़ैद से छोड़ भी दी जायगी।
वह लौंडिया बराबर दौड़ती ही गई जब तक कि उस मकान में न पहुंची जहां कि उसके साथ के लौंडी गुलाम बन्द थे और वहां पहुंच कर दरबान से कहा कि उसे गुलामों के दारोग़ा के पास ले चले; जब वह दारोग़ा के पास पहुंची दारोग़ा उससे बहुत नाराज़ हुआ और भाग जाने के कुसूर पर सज़ा देने को धमकाने लगा, लेकिन वह बीच ही में बोल उठी कि
"आप मुझे क्या इनाम देंगे अगर मैं आप को एक हज़ार अशर्फी की कीमत की छिपी हुई लौंडी का पता बता दूं"? उसने कहा “अगर तू ऐसा कर सकती है तो तू छोड़ दी जायगी और १० अशर्फी इनाम पाएगी लेकिन अगर तू ने मुझे धोखा दिया तो तेरे पैर के तलुओं पर इतने चाबुक पड़ेंगे कि तू चलने और खड़ी होने के काम की न रहेगी"-वह बोली, "मंजूर, लेकिन देर न कीजिये, मेरे साथ चलिये और अपने साथ एक सिड्ढी, इतनी लम्बी जितनी कि यह रस्सी की सिड्ढी है, लेते चलिये; मैं आप के हवाले उस लौंडी को कर दूंगी जिसे कोतवाल इतना चाहता है और जो हज़ार अशर्फी से कम दाम की नहीं है"-दारोग़ा ने फ़ौरन दो तीन सिपाही मय एक सिड्ढी के लौंडी के साथ किये, और वह उन्हें मीनार की जड़
पर ले गई। उस पर सिड्ढी लगाई गई और एक सिपाही ऊपर चढ़ गया, लेकिन कोठड़ी को उसने खाली पाया, राजा की लड़की का वहां नामोनिशान भी न था, सिर्फ कुछ असबाब था जो कि दयादेई ने उसके आराम के लिये पहुंचा दिया था और कुछ कपड़े की धज्जियां पड़ी हुई थीं जो कई जगह खून से सनी थीं। ये चीज़ वह आदमी नीचे ले आया और खंडहरों में लड़की को हर जगह तलाश कर नाकामयाब हो, वह लोग दारोग़ा के पास वापस गये। दारोग़ा निहायत गुस्सा हुआ और लौंडी को उसे धोखा देने के वास्ते
उसके पैर के तलुओं पर कोड़ों की मार लगाने का हुक्म दिया। लेकिन वह ज़ोर से कहने लगो कि-"मैंने धेाखा नहीं दिया है, अगर कोतवाल के घर की तलाशी फिर ली जायगी तो तोते वाली लौंडी वहां ज़रूर मिलेगी, क्योंकि इतने थोड़े वक्त में वह दूर नहीं भाग सकती, ज़रूर उसी के यहां फ़िर आ गई होगी, चाहे जिस तरह से वह खंडहर से निकल गई हो”। जिस वक्त कि यह सब हो रहा था, राजा
खुद वहां आ पहुंचा, वह अपनी आंखों से देखना चाहता था कि कितने लौंडी गुलाम इकट्ठे किये जा चुके हैं। जब उसने पूछा कि क्या माजरा है तो दारोग़ा ने सब किस्सा सुना दिया। राजा ने जब यह सुना कि कोतवाल की लौंडी छुपा दी गई थी तो बहुत नाराज़ हुआ, और सख़ हुक्म दिया कि जब तक वह लौंडी न मिले कोतवाल की लड़की दयादेई उसके बजाय पकड़ ली जाय और कई सिपाहियों के साथ एक अफ़सर को फौरन राजा की लड़की को तलाश करने के लिये रवाना किया और ताकीद कर दी कि अगर वह न मिले तो दयादेई को पकड़ लावें। हुक्म के मुताबिक़ वह उसी वक्त कोतवाल के मकान पर गये और उसकी और बाग़ की खूब अच्छी तरह तलाशी ली लेकिन राजा की लड़की वहां न मिली। दयादेई और उसकी मां को बड़ा ख़ौफ़ पैदा हुआ कि कहीं राजा की लड़की का मीनार के अन्दर छिपा हुआ होना उन्हें मालूम न हो जावे, लेकिन उनको जल्द मालूम हो गया कि मीनार की तलाशी तो पहले
ही हो चुकी थी और वहां वह नहीं मिली थी। इस बात को जान कर उनका ख़ौफ़ कुछ कम हुआ लेकिन जब उन्हों ने लोहू में सने उसकी चादर के टुकड़े सिपाही के पास देखे उन की फ़िक्र कि उस बेचारी पर न जाने क्या नई आफ़त पड़ी होगी, और ज़ियादा बढ़ गई। लेकिन जब उन से अफ़सर ने कहा कि राजा ने दयादेई को पकड़ ले जाने का हुक्म दिया है उनके दिल की हालत क्या हुई होगी कहा नहीं जा सकता और बावजूद दोनों मां बेटियों के रोने चिल्लाने और मिन्नत करने के दयादेई को वह लौंडी बना कर ले गये। जब वह लौंडीख़ाने के आंगन में हो कर अपनी कोठड़ी में पहुंचाई जा रही थी उस ने वहां उस काली लौंडी को देखा जो
उससे कीना रखती थी-दो सिपाही उसे उसकी बदज़ाती की सज़ा देने के लिए लिये जाते थे, हालांकि दारोग़ा ने वह सज़ा बेइंसाफ़ी से दी थी।