तुलसी चौरा/१७

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तुलसी चौरा  (1988) 
द्वारा ना॰ पार्थसारथी, अनुवादक डॉ॰ सुमित अय्यर

[ १६९ ]मिथुन मूर्ति की घटना को वेणूकाका ने झूठा सिद्ध कर दिया। उनके अनुसार चप्पल वाली घटना और मिथुन मूर्ति की घटना एक ही दिन घटी है। तो चौकीदार और पुजारी के बयान के अनुसार तो वह अकेली थी। फिर भिथुन मूर्ति के साथ रवि कहाँ से आया। गवाह एक दूसरे को काट रहे हैं। फिर इन लोगों को मन्दिर में दर्शनार्थ गए सालों हो गये हैं, शायद तभी मिथुन मूर्ति की सही स्थिति वे नहीं बता पाये। दो बार पूछने पर दूसरी परिक्रमा के उत्तरी कोने में इसकी स्थिति पुजारी जी ने बतायी है, तो मैं आप लोगों की सूचना के लिए बता दूँ कि यह तीसरी परिक्रमा में है। इससे साफ जाहिर है कि मेरे मुवक्किल को अपमानित करने के लिए ऐसी घटना गढ़ी गयी है।'

वेणुकाका के इस तर्क को काटते हुए प्रतिपक्ष के वकील ने कहा, 'अब यहाँ मुद्दा यह नहीं है कि घटना किस जगह घटी। मुद्दा यह है कि उन दोनों ने मन्दिर को भ्रष्ट किया।'

वह आगे कुछ नहीं बोल सके। प्रतिपक्ष के वकील ने अंत में अपने ही गवाहों के आधार पर अपनी ही बात दोहराई और मन्दिर के शुद्धी- करण की माँग पर विचार करने का अनुरोध किया।

निर्णय की तिथि सप्ताह भर बाद के लिए स्थगित कर दी गयी।

पर प्रतिपक्ष के वकील का विचार था कि चूँकि मामला मन्दिर के शुद्धीकरण से संबंधित है, इसलिए इसे शीघ्र निपटाया जाना चाहिए। उनके अनुरोध पर तीसरे दिन निर्णय तिथि घोषित कर दी गयी।

अदालत की कार्यवाही स्थगित कर दी गयी।

वेणुकाका बाहर आये तो पुजारियों ने उन्हें घेर लिया। 'यह क्या कर दिया आपने हमने तो आन पर विश्वास करके ही बात की थी। उसे आपने रिकार्ड कर लिया और हमें बेइज्जत कर दिया।' कैलाश नाथ पुजारी ने दीन आवाज में पूछा। [ १७० ]'जो झूठ बोलता है, उसको कहीं भी किसी भी तरह से वेइज्जत किया जा सकता है।' वेणुकाका ने निष्ठुर स्वर में कहा। पुजारी उनके स्वर की कठोरता को बर्दाश्त नहीं कर पाये और चले गए।

रवि ने कहा, जो 'झूठ बोलता है, उसकी अपनी ही जीभ धोखा दे जाती है। उस चौकीदार ने पहले बताया कि कमली ने अंग्रेजी में कुछ कहा था। फिर घबराकर कहने लगा कि तमिल में बोली थी। उन्हें तो पता ही नहीं है कि मिथुन मूर्ति कहाँ है। झूठ भी बोला जाए, ऐसे कि सच लगे। देखा सारे गवाह टांय टाय फिस्स…।'

'अरे यही क्यों, इन आस्तिकों ने तो ईश्वर को साक्षी बनाकर झूठी गवाही दी पर मेरे नास्तिक मित्र ने आत्मा को साक्षी बनाकर सच्ची गवाही दी।' शर्मा जी उस दिन की कार्यवाही से खासतौर पर भजन मन्डली के पद्मनाभ अय्यर के उस झूठे बयान से बेहद दुखी थे। माना उनका गुस्सा शर्मा जी पर था, पर इसके लिए कितने ओछेपन पर उतर गए।

'शर्मा, देखा यार, उन्हें जबरन यहाँ गवाही देने लाया गया था। किस तरह खुद ही अपने खिलाफ होते चले गए।'

वेणुकाका ने कहा। कमली ने कुछ नहीं कहा।

शर्मा जी ने उसे देखा और बोले, 'इसे देख कर, बेटी यह मत सम- झना, कि मेरा देश ही गलत है। यहाँ का शास्त्र, यहाँ का दर्शन जितना ऊँचा है, लोग उतने ऊँचे नहीं उठ पाये। यह हमारी त्रासदी है दरअसल अध्ययन और जीवन में अब कोई मेल नहीं रहा।'

'बाऊ जी, कुछ लोग अज्ञानतावश झूठा कहते हैं, तो इसके लिए देश कहाँ से जिम्मेदार बन जाएगा।' कमली ने कहा।

शर्मा आश्वस्त हो गये।

XXX
 

घर के लोग अदालत के मामले में उलझे थे, इधर कामाक्षी की हालत बिगड़ती चली गयी। कुमार और पार्वती ही घर पर उनकी देख [ १७१ ]
भाल कर रहे थे। एक पुरजोर गुस्से और जिद में वह लोगों को अपने पास ही नहीं आने दे रही थी। जब से उसे इस बात का पता चल गया कि शर्मा जी उसकी सलाह के बगैर ही कमली और रवि के विवाह की तैयारियों में लगे हैं, तब से कामाक्षी बिस्तर से लग गयी। शर्मा और लोगों की परवाह किए बिना ही, कुमार को अपने मायके भिजवाकर मौसी को बुलवा लिया। कमली चूँकी वेणुकाका के घर रह रही थी इसलिए मौसी को यहाँ रहने में कोई आपत्ति नहीं होगी। यही सोचा था। मीनाक्षी दादी, देख रेख के बहाने अक्सर आ जाती।

शर्मा, रवि या कमली की बातें उठते ही वह तिलमिला जाती और उसका स्वास्थ्य बिगड़ने लगता। यही वजह थी कि कुमार और पारू उनकी बातें ही नहीं करते। हालांकि किसी तरह झगड़ा नहीं हुआ, पर झगड़े की शुरूआत के पूर्व वाला असहज भौन जरूर वहाँ पसर गया था।

कुमार मौसी को गाँव से लिवा लाया। उसी दिन शाम मौसी ने कामाक्षी से पूछ लिया, 'क्यों री कामू, पहले एक फिरंगिन यहाँ रहा करती थी, कहाँ गयी? लौट गयीं या तुम लोगों ने उसे निकाल दिया।'

कामाक्षी ने पहले तो इसे अनसुना कर दिया पर बुढ़िया भी पीछा कहाँ छोड़ने वाली थी।

'जानती हो, काहे पूछ रही हूँ। हमने तो कुछ सुना था। हमारे गाँव से कुछ लोग आचार्य जी के पास गये थे, उन लोगों ने लौट कर बताया कि वह फिरंगिन तुम्हारे बेटे के साथ वहाँ आयी थी। उसने सौन्दर्य लहरी, कनक धारा स्तोत्र, भजगोबिंद का स्पष्ट पाठ किया था और अपनी भाषा में भी उसे सुनाया था। सुना है, आचार्य जी बहुत खुश थे। वे मौन ब्रत में रहे, इसीलिए सुना, कुछ नहीं बोले, पर बहुत प्यार से सुनते रहे, आशीर्वाद भी दिया । पूरा गांव कह रहा है। हम तो हैरान रह गए। आचार्य जी को तो जानते ही हैं हम। वे सबको इस तरह नहीं [ १७२ ]
बिठाते। दो साल पहले, तुम्हारे गाँव के सीमावय्यर ने मठ का रुपया मबन कर लिया था, तब उनके पास क्षमा याचना करने गया था। तो उन्होंने सिर्फ हाथ हिलाकर जाने का संकेत कर दिया था। और वही आचार्य जी इनके प्रति इतना स्नेह दिखाये। कुछ खासियत जरूर है इनमें।' 'हाँ' हमसे भी कहते रहे लोग, पर हम ही नहीं माने। हमने तो सोचा ये ही सब मनगढ़न्त सुना रहे हैं कि हमारा मन बदल जाए। मठ के मैनेजर का पत्र भी पढ़कर सुनाने को कहा, वह भी जिसने नहीं सुना।'

'झूठ नहीं कहा होगा। अरे, हमारे गाँव के लोग तो तारीफ पै तारीफ किए जा रहे हैं। झूठी बात होती तो इतनी तारीफ कैसे होती।'

कामाक्षी सोच में पड़ गयीं। आगे क्या कहे, उसकी समझ में नहीं आया। कमली और रवि की शादी की बात क्या मौसी जानती है? या फिर सिर्फ टोह लेना चाहती है? मौसी ने वही पुराना सवाल दोहराया, 'क्यों री जवाब नहीं दे रही। कहाँ गयी वह फिरंगिन?'

'कहीं नहीं गयी है मौसी। वेणुकाका के घर ठहरी है। उनकी बिटिया बसँती उसकी अच्छी सहेली है। वह भी बम्बई से आयीं हुई है। जो भी हो, यहाँ तो पिंड छूटा।' कामाक्षी ने बातचीत को खत्म करना चाहा। पर मौसी को तो नहीं टाल सकी।

दो दिन बाद मीनाक्षी दादी ने पूछ लिया, 'क्यों री, तूने मुझे बताया ही नहीं। सुना है कोर्ट में केस चल रहा है। सारा गाँव कह रहा है। तुम्हारे मरद ने, तुम्हारे बेटे ने भी गवाही दी है।' मौसी उस वक्त सामने थी, कमली की बात फिर आ गयी। कामाक्षी ने ही पूछा, 'कैसा केस दादी! हमें तो मालूम नहीं। हमें कौन आकर बताता है।'

पता नहीं लोग बता रहे थे कि उसके मन्दिर प्रवेश से मन्दिर भ्रष्ट हो गये हैं, इसलिए उसे पवित्र करना था। सुना है, चप्पल पहने ही [ १७३ ]
मन्दिर चली गयी। बाकी तो हमें नहीं मालूम।

पर कमली चप्पल पहने मन्दिर गयी हो, हमें नहीं विश्वास होता। इस घर में जब तक रही, उसके नेम अनुष्ठान में कोई कमी नहीं देखी हमने। हमारे देश की नहीं है, जाति की नहीं है, हमारे रंग की नहीं है, पर इतना सम्मान, इतनी विनम्र और सुशील है...।'

मीनाक्षी दादी चौंक गयी। क्या सचमुच कामाक्षी है?

'दादी, क्या हुआ? ऐसे क्या देखती हो? शक होने लगा है क्या? अरे, किसी को पसन्द नहीं करते, तो उसके ऊपर झूठे आरोप तो नहीं लगा सकते। कमली से मेरे मन मुटाव के कारण कुछ और हैं। मौसी ने आकर बताया है कि उसके श्लोक पाठ से आचार्य जी भी खुश हुए। हम कैसे उसकी बुराई कर दें। यहाँ के लोगों की तो आदत ही पड़ गयी है, कि किसी को नापसन्द करो, तो उसकी बेइज्जती कर डालो।'

'कोर्ट में वेणुगोपाल ही तुम्हारे पति का वकील था। सुना है कि कैलाश नाथ जी उनके घर पर तो कमली को साक्षात् सरस्वती का अवतार कहा, पर कोर्ट में कमली के खिलाफ गवाही दी। पर इन्होंने उस बात को रिकार्ड कर लिया और कोर्ट में सुनवा दिया। बड़ी बेइज्जती हो गयी। बेचारे की।'

'तो और नहीं तो क्या इतने बुजुर्ग हैं। मन्दिर में पूजा पाठ करते हैं पर झूठ कैसे बोल लेते हैं?'

'झूठ ही नहीं, यहाँ तक कह दिया कि कमली और रवि ने मन्दिर को भ्रष्ट कर दिया है....।'

'लोगबाग केस के बारे में क्या कह रहे हैं?'

'तुझे क्या? तू तो अभी अच्छी हो गयी है। उसकी फिक्र क्यों कर रही है।'

'फिक्र नहीं दादी, बात जानना चाहती हूँ।'

'वेणुगोपाल और तुम्हारे पति तो विवाह की तैयारी में लगे हैं। आज भी वेणु के घर सुहागन का ज्योनार है। उनकी बिटिया के [ १७४ ]ब्याह में जैसा करवाया था वैसा ही अब भी करवाया है।'

'मौसी ने बीच में ही रोक दिया।'

'क्यों कामू? कैसी शादी! किसकी शादी।'

पहले तो कामाक्षी हिचकी। फिर एक-एक कर सारी बातें बता डाली यह भी बता दिया कि हम ब्याह की वजह से दोनों में बोलचाल बन्द है।

'घोर कलयुग आ गया है तभी न ऐसा हो रहा है।' मौसी ने कहा।

कामाक्षी चुप रही।

'तेरा बेटा रवि तो पगला गया है, पर तुम्हारे आदमी की मति भ्रष्ट हो गयी है क्या?'

'छोड़िए भी। अब क्या कहें, मौसी! हमारी बात सुनने वाला कौन है?'

कामाक्षी की आवाज भीग गयी। बोल नहीं पायी आँखें पनिया गयीं।

'हे भगवान व्याकरपा शिरोमणि रचुस्वामी शर्मा के खानदान में यह भी लिखा था।'

कामाक्षी ने करवट लेकर मुँह छिपा लिया। आँखें बरसने लगीं रवि के ब्याह के लिए जो-जो सपने वर्षों से देखे थे सब चकनाचूर हो गये।

'कुछ लोगी। कब तक भूखे पेट रहोगी।'

'कुछ नहीं चाहिए मौसी। भूख ही नहीं लगती। पेट ठीक नहीं है। थोड़ी देर आँखें मूँद लेती हूँ। थकान सी लग रही है।'

उनके बार्तालाप को वे एक अन्त देना चाहतीं थीं।

XXX
 

अगले दिन केस का निर्णय होना था। पहले दिन शर्मा और वेणुकाका अपने मित्रों को निमंत्रण-पत्र बाँट रहे थे। वे लोग न केस [ १७५ ]
के बारे में सोच रहे थे, न निर्णय के बारे में चिंतित थे। मद्रास से एक पत्रिका के सम्पादक इस विवाह का आँखों देखा हाल लेना चाहते थे उसके लिए अनुमति भी ली थी। वेणुकाका ने उन्हें अनुमति ही नहीं दी, बल्कि उन्हें एक निमंत्रण-पत्र भी भिजवा दिया। समाचार पत्रों में दक्षिण भारतीय ब्राह्मण और फ्रेंच करोड़पति की बेटी के इस विचित्र विवाह की सबर छप गयी थी।

शर्मा जब इरैमुडिमणि को निमंत्रण देने के लिए गए, उस समय वह अपने संगठन का समाचार पत्र पढ़ रहे थे। उसकी एक ही प्रति शंकरमगलम में आती। आमतौर पर यह पत्र स्टाल में नहीं मिलता। इस विवाह के बारे में एक खबर उसमें भी थी। इरैमुडिमणि ने हँसते हुए शर्मा को अखबार पढ़ाया।

'एक ओर कोर्ट में सीमावय्यर और मेरा केस चल रहा है। मलर- कोडी वाली घटना याद है न वही। सीमावय्यर की दिली इच्छा है कि मैं और मेरे साथी जेल चले जाएँ। जेल नहीं गए तो जरूर हाजिर होंगे।'

'तुम यार, जेल-वेल कहाँ जाओगे। आ जाना शादी में। शर्मा लौट गए।' अगले दिन कोर्ट में काफी भीड़ थी। बसंती, कमली, रवि, शर्मा, वेणुकाका, इरैमुडिमणि―सब आए थे। सीमावय्यर और उनके मित्र भी थे। पत्रकारों की भीड़ भी थी। लोग निर्णय की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे थे।

न्यायाधीश अपनी जगह पर भाकर बैठ गए, कोर्ट में निस्तब्धता छा गयी। कई पृष्ठों में लिखे गए निर्णय को पढ़ना शुरू किया। पहले कुंछ पृष्ठों में हिन्दु धर्म की स्थितियाँ, आचार-विचार, धर्म परिवर्तन के आधिकारिक रिवाज के न होने की कमी आदि पर टिप्यणी की गयी थी।

'हिन्दू धर्म से जुड़े लोग इसका प्रचार प्रसार करें या उसमें सहायक हों, ऐसी घटनाएँ कई बार देखने को मिलती हैं। स्वार्थी और ईर्ष्यालु [ १७६ ]
लोगों से एक धर्म का विकास नहीं रुक जाता है। हिन्दू धर्म ने ईसाई और इस्लाम की तरह कई देशों में जड़ें नहीं फैलाई। भारत और नेपाल में यह धर्म इस मामले में विशिष्ट है―कि सच्ची भक्ति और श्रद्धा के साथ जो पालन करे, उन्हें अपने में स्थान देता है।

कन्वर्शन या परिवर्तन न होकर यह स्वीकार की पद्धति को अप- नाता है। भीतर समाहित करने की यह उचारता भारतीय है। एनी वैसेन्ट जैसे कितने लोग भारतीय संस्कृति के प्रचार का कार्य करते रहे हैं।'

कई यूरोपीय भक्ति और श्रद्धालु भी हिन्दू धर्म के अनुयायी हो गए! इसके कई उदाहरण हैं। (न्यायाधीश ने कुछ उदाहरण दिए) यहाँ जब तमाम गवाहों के आधार पर मामले की जाँच की गयी, तो लगता है, कि ये तमाम आरोप जानबूझकर लगाए गये हैं। कमली नाम की फ्रेंच युवती के हिन्दू धर्म के प्रति आस्था और अभिव्यक्ति के कई तर्क संगत प्रमाण हैं। यहाँ उन लोगों की निष्ठा पर प्रश्न चिन्ह लगता जो यह दावा करते हैं इसके मन्दिर प्रवेश के कारण मन्दिर अपवित्र हो गए हैं।

देखा जाए तो गवाहों और विवरणों से स्पष्ट है कि गाँव के आम आस्तिकों की तुलना में वह अधिक आस्थावान और श्रद्धालु रही है। मेरे विचार में मन्दिरों की पवित्रता कहीं भंग नहीं हुई है, इसलिए इस मुकदमे को स्थगित किया जाता है। 'यह भी कहा गया था कि शर्मा व कमली को मुकदमे का सारा खर्च वादी द्वारा दिया जाये।'

वेणुकाका को ऐसे निर्णय की अपेक्षा थी ही पर फूले नहीं समाए। रवि भागता हुआ आया और वेणुकाका का हाथ थाम लिया। कमली ने उन्हें पूरी श्रद्धा के साथ धन्यवाद दिया। उस दिन सांयकालीन अखबारों और अगले दिन प्रातःकालीन अखबारों की प्रमुख खबर यही रही।

सीमावय्यर और उनके साथियों ने कलियुग पर सारी जिम्मेदारी डाल दी। 'सर्वनाश होने वाला है संसार का।'― [ १७७ ]अब सीमावय्यर दूसरी शरारतों में लग गए। हलवाई, पंडित आदि को विवाह में सम्मिलित होने से रोक देना चाहते थे।

'देखो जंबूनाथ पंडित, वेणुकाका के रुपयों के लालच में शास्त्र द्वारा निषिद्ध विवाह करा दोगे क्या? तुम करवाओगे, और तुम्हें रुपये भी मिल जाएँगे। चलो मान लिया, पर सोच लो कल फिर गाँव वाले तुम्हें अपने घर के कामों में बुलवायेंगे?'

पुरोहित जी घबड़ा गये। काशी यात्रा का बहाना बनाकर वहाँ से गायद हो गये।

वेणुकाका ने छेड़ा, 'शादी में काशी यात्रा का विधान हैं। पर यह शख्स खुद चला गया यात्रा में।'

उन्होंने तुरन्त दूसरे शहरी पुरोहित को बुलवा लिया।

पर हलवाई को सीमावय्यर रोक नहीं पाये?

'हलवाई शंकर अय्यर बोले 'हम तो नौकरों को रखे इसी आय में जीते हैं, कि कब यहाँ शादी का मुहूर्त आए। अब तुम्हारे लिये हम अपना धन्धा चौपट कर लें, यह नहीं होगा। चार दिन का ब्याह है। काम भी अधिक है, कोई किसी से ब्याह करे, तुम्हें क्या? चुपचाप घर पर पड़े रहो।' हलवाई ने मना कर दिया। सीमावय्यर कुछ नहीं कह पाये।

पुरोहित जंबूनाथ शास्त्री के गाँव से भाग निकलने की बात इरै- मुडिमणि ने जब शर्मा से सुनी तो बोले, 'ऐसे पुरोहितों के कारण ही तो शास्त्र सम्मत विवाह हमारे संगठन वाले नहीं करते। बस रजिस्टर्ड विवाह करवा देते हैं हम, वे हँस पड़े। शर्मा भी चुप नहीं रहे। बोले, 'तो वह भी क्या आसान है? अब तो एक के दस पुरोहित हो गये। तुम्हारे संगठन वाले, मंत्री, जाने किस-किस को बुलवाते हैं। जिस दल की सरकार है, उस दल के किसी कार्यकर्ता का विवाह हो, तो मंत्री ही पुरोहित बन बैठता है।'

'तुम भी यार, 'अपनी ही कहोगे। और मैं अपनी जिद पर अड़ा [ १७८ ]
रहूँगा।’

छोड़ो अब।’ इरैमुडिमणि ने कहा।

पारस्परिक मतभेद हो, तब भी उनमें एक खास शालीनता रही। उनकी दोस्ती में इससे कोई फर्क नहीं पड़ा वह इनकी टाँग खींचते हैं, ये उनकी। पर सीमा का उल्लंघन कभी नहीं किया। विवाह के पहले दिन पथबंधु विनायक के मन्दिर से ही बारात प्रस्थान तय हुआ था। नादस्वरम के स्वर में पूरे वातावरण में मंगलध्वनि घोल दी।

‘रवि जमाई बाबू के लिए नया सूट, नये जूते सब तैयार हैं, बसंती ने रवि से कहा।’

‘अब तो यहाँ ब्राह्मणों के विवाह में भी फैंसी ड्रेस चलने लगा है। हम लोंगों के विवाह में इसका प्रवेश कहाँ से हो गया? धोती, कुरता और उत्तरीय पहन कर यदि बारात में चलूँ, तो क्या घट जाएगा। मुझे यह नहीं चाहिए। ले जाओ यदि लड़के को सूट पहनाया जाना है, तो क्या लड़की स्कर्ट पहनेगी? इंडियन मेरेज शुड वी इंडियन मैरेज... रवि ने मना कर दिया। शर्मा जी का हृदय भर गया। विदेश में कार्य- रत दुल्हे को, धोती और उत्तरीय में देखकर पूरा गाँव आश्चर्य में पड़ गया।

पूरा गाँव बारात में उमड़ आया था। आस पास के गाँव वाले भी समाचार पत्रों के माध्यम से इसमें रुचि लेने लगे थे। इसलिए वे भी चले आये।

शहरी पुरोहित ने विवाह के सारे अनुष्ठान पूरे किए। कमली को ठेठ देहाती शैली में सजाया गया था। हाथों और पाँवों में लगी मेंहदी उसके साफ गुलाबी रंग पर निखर आयी थी। दुल्हन को सजाने के बाद बसन्ती ने उसकीं नजर उतारी।

वेणूकाका की तैयारियों में कोई कमी नहीं थी। रवि-कमली का विवाह उनके लिये एक चुनौती थी। अग्रहारग के लोगों को कुछेक को छोड़कर शेष इस विवाह में रुचि लेने लगे। कुछ लोगों ने इसका