तुलसी चौरा/१९

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तुलसी चौरा  (1988) 
द्वारा ना॰ पार्थसारथी, अनुवादक डॉ॰ सुमित अय्यर

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होगा। वर वधू को वह अपने बिस्तर तक ले गयी। वेणुकाका इसी अवसर की तलाश में थे जैसे, अक्षत की कटोरी रवि को पकड़ा दी बोले, 'अम्मा से आशीर्वाद ले लो।'

रवि ने अक्षत माँ के हाथ देकर उन्हें प्रणाम किया।

'दीर्घायुष्मान भव' कामाक्षी का स्वर शांत था।

दूध में केला और चीनी मिलाकर बोली, 'विवाह में दूध-केला देना शास्त्र सम्मत है। मैं तो वहाँ आ नहीं पायी, तुम दोनों पहले इसे ले लो……।'

रवि और कमली के हाथ से चम्मच में दूध केले का मिश्रण दिया। उनका स्नेह, वह आत्मीयता रवि और कमली को ही नहीं सभी को भिगो गयी।

'सहसा कामाक्षी का सिर चकराया और लड़खड़ने लगी! रवि ने लपक कर उसे थाम लिया'

'तुम उस पर जाकर बैठ जाओ। मैं बहू से दो बातें कर लूँ।'

रवि पीछे रह गया। कमली को इशारे से अपने पास बुलाया। उनका चेहरा एकदम निष्कलंक लग रहा था।

कामाक्षी की हालत देखकर कमली ने उन्हें सहारा दिया और बिस्तर पर बैठा दिया, 'आप बैठ जाइये, बहुत कमजोर हो गयीं हैं आप……।' और उनके पास सिर झुकाकर खड़ी हो गयी, कामाक्षी ने उसे आँख भर कर देखा दुल्हन रूप में कमली की खूबसूरती देखकर उनका जी जुड़ा गया। पारू को बुलवाकर गुँथे हुए फूल मँगवाए। अपने हाथों से कमली के बालों में लगाया।

'खड़ी क्यों हो। यही मेरे पास बैठ जाओ।' कमली वहीं खाट के पास नीचे बैठ गयी।

'तुम बहुत चतुर हो। सब कुछ तुम्हारी इच्छा के अनुसार हुआ है। इस वक्त मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है। पर कभी यह भी सोचा है मेरा मन इस समय भरा हुआ है! तुम दोनों सुखी रहोगें, [ १९० ]
इसमें कोई संदेह नहीं। पता नहीं मैं ही मूर्ख थी, जिंद करती थी विवाह के खिलाफ भी रही। पर अब सब कुछ भूल गयी हूँ। तुम भी भूल जाना बेटी। या माफ कर देना...।'

'अरे, ये क्या कह रही हैं अम्मा। मैं तो बहुत छोटी हूँ। आपसे तो बहुत कुछ सीखना है। मैं कौन होती हूँ माफ करने वाली?'

'तुममें अहँ नहीं है, तुम सचमुच पढ़ी लिखी हो। तभी तो मेरे इस निष्ठुरता के बावजूद मेरे प्रति आदर भाव अब भी बना है। खैर कोई बात हो अब एक ही अनुरोध और करूँगी।'

'अनुरोध नहीं आप तो आज्ञा दीजिए अम्मा....।'

'मैं तो इसे अनुरोध ही मानूँगी अगर तुम ही मेरा आदेश मानती हो तो मुझे खुशी है।'

'मैं भी तुम्हारी तरह जब इस घर में बहू बनकर आयी थी। तो मेरी सास ने जो सीख मुझे दी वही तुम्हें भी दूँगी। पर एक फर्क जरूर है। हम लोग तो इसी मिट्टी के थे। पर तुम इस मिट्टी के आचार अनुष्ठानों पर विश्वास करती हो। विद्या और विनय दोनों का यह मेल कठिन है। तुम्हारे पास दोनों ही हैं।'

'मैंने तो अग्नि को साक्षी मानकर आपके बेटे से विवाह कर लिया अब मैं दूसरे देश की कैसे रह गयी हूँ।'

'अब नहीं कहूँगी। देश जो भी चाहे हो। प्रेम, लगाव, परोपकार, सम्मान, सत्य, सहनशी यता, न्याय, निष्ठा―यह सब तो सार्वभौम सत्य है सब लोग कह रहे थे कि यहाँ के लोगों की अपेक्षा तुममे श्रद्धा अधिक है। मेरी कोई बहुत अधिक इच्छा नहीं है। मेरे बेटे के साथ तुम यहीं रहो, गृह लक्ष्मी बनकर इसी घर में बनी रहो। यह अन्तर्जातीय विवाह है। लोगों के डर से या उनकी बातों के भय से, ऐसा मत करना कि से चली जाओ। यहीं इसी घर में तुम रहो। पुरुष अग्नि संघातम औपासना करते हैं और अग्नि को प्रज्जवलित करते हैं इसी तरह इस घर की औरतें वर्षों से इस तुलसी के पौधे [ १९१ ]
को दीये से प्रज्वलित करती रही हैं। पूजन भी होता है। मैं नहीं चाहती, कि यहाँ पूजन करने वाला कोई भी न रहे। तुलसी सूख जाये, यह मैं नहीं चाहती। केवल खास दिनों में ही नहीं प्रतिदिन दीप प्रज्वलित हो, यह मेरी कामना है। मेरा विश्वास है इस परिवार का सौभाग्य, लक्ष्मी और श्रीवृद्धि हमारी इस अन्तरंग शुद्धि और तुलसी पूजन के कारण ही है। यही हमारे परिवार की रक्षिका शस्कि है।

एक बार रानी मंगम्मा एक व्रत नेम वाली ब्राह्मण सुहागन की तलाश में थी। अन्त में खोजकर उसे इसी परिवार की एक बहू को उसने दान में दिया था। उसी दिन से इस परिवार की बहुएँ उस स्वर्ण दीपक एवं तुलसी पूजन की अधिकार अपनी पिछली पीढ़ी से ग्रहण करती आयी हैं। आज भी पौष का शुक्रवार है। तुम इस स्वर्ण दीपक से प्रज्वलित करो और अब पूजन तुम ही करना।' स्वर्ण दीपक को प्रज्वलित कर उसके हाथ में पकड़ा दिया।

'जैसा आपने कहा, मैं अब इस दीपक को बुझने नहीं दूँगी। पर एक बार जरूर मैं अपने माता पिता से मिलने की अनुमति चाहूँगी?'

कमली ने भक्तिभाव से उस दीपक को हाथ में लिया। कामाक्षी ने कमली का अनुरोध स्वीकार किया। उसकी आँखें भींग गयीं। वह विस्तर पर थक कर लेट गयी। बसंती रवि कुछ दूरी पर यह देख सुन रहे थे। शर्मा और वेणुकाका, पुरोहित के साथ तैयारियों में लगे थे। पार्वती उनकी मदद कर रही थी। कुमार कुएँ के पास कुल्ला करने चला गया। सुबह खिल आयी थी।

कमली हाथ में दीपक लिये तुलसी चौके के पास गयी।

'तुलसी! श्रीसखि शुभे पापा हारिणी पुण्यदे, नमस्ते नारदनुते नारायण नमः प्रिये।

कमली का मधुर स्वर गूँजने लगा। वह भीतर लौटी, तो बैठक में सन्नाटा छाया था। रवि, शर्मा, वेणुकाका, बसंती, पार्वती इत्यादि सभी कामाक्षी के विस्तर के पास शाँत खड़े थे। कमली तेजी से [ १९२ ]
लपकी। कामाक्षी बेहोश सी पड़ी थी।

'शर्मा कामाक्षी के तलुओं की मालिश कर रहे थे।'

रवि मां की नाड़ी देख रहा था। वेणुकाका ने कुमार को दौड़ाया।

'डाटर को बुलवा लाओ, कार बाहर खड़ी है। तुम्हारी अम्मा को अंग्रेजो डाक्टर पसन्द नहीं है। पर इस समय तो वही काम आयेगा। जाओ―भागो―'

कुमार दौड़ गया। पार्वती डर के मारे रोने लगी। शर्मा ने वेणुकाका और रवि को देखा और होंठ बिचका दिए। सीधे पूजा घर गये और गंगाजल लाकर कामाक्षी के मुँह में डाल दिया। जल होठों के कोर से बह गया।

अब तक शर्मा किसी तरह शांत बने रहे थे फूट-फूट कर रो पड़ें।

'भाग्यशाली हैं शुक्रवार के दिन सुहागिन ही चढ़ रही है...।'

पुरोहित बुदबुदाए। रवि की आँखें लाल हो गयीं। कमली, बसंती भी फूट-फूट कर रो दीं।

तुलसी चौरे पर दीपशिखा शांत प्रकाश फैला रही थी। गृह लक्ष्मी के आते ही, कामाक्षी ने बिदा ली। बसन्ती ने धीमे से कमली के कान में कहा? 'लगता है जैसे काकी। आशीर्वाद देने भर के लिए रुकी थीं।'

कमली फूट पड़ी।

'रो नहीं कमली। उन्हें तो हमेशा यही भय लगा रहता था कि तुम रवि को अपने साथ विदेश ले जाओंगी। तुमसे कुछ कहा क्या?'

'न, उन्होंने बता दिया कि मैं यहीं रहूँ, और तुलसी पूजन करती रहूँ। यह आश्वासन लेकर ही मुझे यह दीपक सौंपा है।'

'और नहीं तो क्या तुम उनके दिए आश्वासन की रक्षा करना तुलसी को सूखने मत देना।'

शंकरमंगलम में सुबह अब सरकने लगी थी। सूर्य की किरणें मन्दिर [ १९३ ]
कलश पर चमक उठीं।

अंतिम बात
 

अब तक इस उपन्यास को सुरुचि पूर्वक पढ़ने वाले पाठकों के लिए यह अंतिम बात कहना चाहूँगा। पूर्व की संस्कृति पश्चिम के लोग और पश्चिम की संस्कृति पूर्व के लोग अपना रहे हैं, परस्पर विनिमय भी करते हैं दुनिया की सीमाएँ सिमट रही हैं। लोगों के बीच वैर-वैमनस्य और नफरत अब कम होने लगी है। आस्तिक सीमावय्यर की तुलना में नास्तिक इरैमुडिमणि अधिक सभ्य और मानववादी हैं। कमली को भारतीयता से मोह है कामाक्षी की हठधर्मिता को उसकी सहज निष्ठा ने चूर-चूर कर दिया।

विपरीत सिद्धान्तों वाले शर्मा और इरैमुडिमणि पारस्परिक स्नेह भाव से मित्रवत बने रह सकते हैं।

'हमारे चारों ओर विश्व में 'ट्रांसफर ऑफ वैल्यूज (मूल्यों का अंतरण, लगातार चल रहा है। धर्म और दर्शन सम्बन्धी विश्वासों और सांस्कृतिक रीति रिवाजों को यह अंतरण किसी न किसी रूप में प्रभावित करते हैं। पर वह भी सच है कि एक धारा दूसरे को भिगोती चल रही है। इस तरह के सांस्कृतिक आदान प्रदान, या सांस्कृतिक परिवर्तन भी हो रहे हैं इसे कोई नहीं रोक सकता। कमली और रवि भी सांस्कृतिक आदान प्रदान के प्रतीक हैं। हजार भेद- भावों के बावजूद, उन्हें भूलकर स्नेह को बनाये रखना भारतीय मातृत्व की खास पहचान है।'

संस्कृति का तात्पर्य अब राष्ट्रीय पहचान ही नहीं बल्कि मानवता के रूप में 'अंतर्राष्ट्रीय पहचान है।' कहानी की कथाभूमि शंकरमंगलम जैसे छोटे गाँव की है, पर इसमें आने वाले पात्र ऐसे हैं जो गाँव को ही नहीं विश्व को प्रभावित करते हैं, 'प्रभावित कर चुके हैं और करने नाले पात्र हैं।'

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[ परिचय ]


तमिल कथा एवं उपन्यास साहित्य के एक
महत्वपूर्ण नाम। लगभग बीस-एक उपन्यास
और कई संग्रह प्रकाशित। 'पोन विलंगु',
'नील नयनंगल', कुरंजी मेलर', 'समुदाय
वीथि' चर्चित पुरस्कृत उपन्यास है।
'समुदाय वीथि' के लिए साहित्य अकादमी
पुरस्कार से पुरस्कृत। तमिल की प्रतिष्ठित
साहित्य पत्रिका 'दीपम' के सम्पादक।
१९८७ में मान्न ५५ वर्ष की आयु में देहांत।



सुमति अय्यर
 


हिन्दी कथा लेखिका एवं कवियित्री। हिन्दी
में मौलिक लेखन। तमिल व अंग्रेजी से
अनुवाद कार्य भी प्रकाशित। दो कथा
संग्रह, जीवनियाँ, कविता संग्रह एवं सम्पा-
दित संग्रह प्रकाशित। [ विक्रेता ]










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