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दुखी भारत/१७ निःशुल्क शिक्षा

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दुखी भारत
लाला लाजपत राय

प्रयाग: इंडियन प्रेस, लिमिटेड, पृष्ठ २२३ से – २२५ तक

 

सत्रहवाँ अध्याय
निःशुल्क-शिक्षा

मिस मेयो को यह ज्ञात होना चाहिए कि दूसरे देशों के सरकारी स्कूलों में निःशुल्क शिक्षा दी जाती है। परन्तु भारतवर्ष में प्रत्येक गवर्नमेंट स्कूल में प्रत्येक विद्यार्थी से फ़ीस ली जाती है।

मदर इंडिया के १२९ और १३० पृष्ठों पर निम्नलिखित वक्तव्य देखने में आता है:–'प्रायः भारतवर्ष के सभी धनी मनुष्य आज अपने हृदय में यही सोचते हैं कि यदि उनकी पुत्रियों को शिक्षा दी भी जा सकती है तो तभी जब सरकार उनके लिए निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था कर दे।' मिस मेयो ने अपनी पुस्तक में जैसे अन्य बेसिर-पैर की बातें लिख मारी हैं वैसी ही एक बात यह भी है। कठिनाई यह है कि ऐसे समस्त वक्तव्यों के पक्ष में वह कोई प्रमाण नहीं उद्धृत करती। लाहौर के कई एक कन्या-पाठशालाओं और कालेजों की नियमावली इस समय मेरे सामने मौजूद हैं। उनमें से नीचे मैं फ़ीस का विवरण देता हूँ:–

महिला गवर्नमेंट कालेज

(छात्राओं की संख्या लगभग ६० है। इनमें से ३० छात्रावास में रहती हैं)

इन्टर मेडिएट की कक्षाओं की पढ़ाई की फ़ीस......६० रुपये वार्षिक इन्हीं कक्षाओं की प्रवेश फ़ीस............२ रुपये।

विश्वविद्यालय से रजिस्ट्री कराने की फ़ीस......५ रुपये।

डिग्री की कक्षाओं की पढ़ाई की फ़ीस......११४ रुपये।

प्रवेश-फ़ीस (बी॰ ए॰)........... २ रुपये।

विश्वविद्यालय की विशेष फ़ीस.......३ रुपये। यह फीस केवल दिन की छात्राओं के लिए है। छात्रा वास में रहनेवाली छात्राओं को इसके अतिरिक्त २२ रुपये मासिक अर्थात् २६४ रुपये वार्षिक और देना पड़ता है।

दी सेकरेड हार्ट स्कूल

स्कूल-विभाग

छात्रावास की फ़ीस—४० रुपये मासिक अर्थात् ४८० रुपये वार्षिक।

छात्रावास की प्रवेश फ़ीस—१० रुपये।

दिन की छात्राओं के लिए प्रवेश फ़ीस—५ रुपये।

छोटी बालिकाओं की पढ़ाई की फ़ीस—८ रु॰ मासिक अर्थात् ९६ रु॰ वा॰।

आरम्भिक कक्षाओं की फ़ीस—८ रु॰ मासिक अर्थात् ९६ रु॰ वार्षिक।

मिडिल कक्षाओं की फ़ीस—८ रु॰ मासिक अर्थात् ९६ रु॰ वार्षिक।

ऊँची कक्षाओं की फ़ीस—१० रु॰ मासिक अर्थात् १२० रु॰ वार्षिक।

स्कूल की गाड़ी की फ़ीस—१० रु॰ मासिक अर्थात् १२० रु॰ वार्षिक।

पियानो सीखने की फ़ीस—१० रु॰ मासिक अर्थात् १२० रू॰ वार्षिक।

दिन की छात्राओं के लिए जलपान की फ़ीस—५ रु० मासिक।

इस पाठशाला में इस समय ६८ छात्रावास में रहनेवाली और ३०० बाहर रहनेवाली छात्राएँ हैं।

इस संस्था के कालिज-विभाग में पढ़ाई की फ़ीस १५ रु॰ मासिक और छात्रावास में रहने की फीस ४० रु॰ मासिक तक है।

कुइन मैरी का कालिज

(यह एक स्कूल है पर आदर के लिए कालिज के नाम से पुकारा जाता है।)

प्रवेश-फीस......१० रुपये।

छात्रावास की फीस......३० रुपये मासिक से आरम्भ।

दिन की छात्राओं के लिए

मिडिल से नीचे की कक्षाओं की फीस...५ रुपये मासिक।

मिडिल और उच्च कक्षाओं की फीस...१० रुपये मासिक। किनेयर्ड कालिज नामक एक दूसरे कालेज की फ़ीस भी इसी प्रकार बहुत अधिक है। इस कालेज में १३० छात्राएँ छात्रावास में रहती हैं और १२० बाहर।

वास्तव में कोई भी व्यक्ति, जो भारतीय स्थितियों से परिचित है, इस बात का हठ नहीं कर सकता कि धनी भारतीय अपनी बालिकाओं के लिए निःशुल्क शिक्षा चाहते हैं और उनकी शिक्षा के लिए कुछ व्यय करने को तैयार नहीं हैं। यह बिल्कुल प्रमाण-रहित और मिथ्यारोप है।

अपनी पुस्तक के १३२ वें पृष्ठ पर मिस मेयो ने विक्टोरिया गर्ल्स स्कूल लाहौर की अध्यक्षा मिस दोस से निम्नलिखित बातें कहलाई हैं मिस मेयो के कथनानुसार इस स्कूल ५०० छात्राएँ हैं:––

"पढ़ाई की फ़ीस! ओह! यह तो केवल नाम-मात्र को है। हम भारतवासी अपनी पुत्रियों की शिक्षा के लिए कुछ नहीं ब्यय कर सकते।...यह स्कूल सरकार की सहायता और व्यक्तिरूप से प्राप्त इँगलैंड के चन्दों से चल रहा है।"

अन्तिम कथन कहाँ तक सत्य है? इसका पता दीवान बहादुर के॰ पी॰ थापर ओ॰ बी॰ ई॰ की निम्न लिखित चिट्ठी से चल जाता है:––

प्रिय लाला लाजपतराय जी,

आपका विक्टोरिया गर्ल्स स्कूल लाहौर के सम्बन्ध में पत्र प्राप्त हुआ। जब इस स्कूल को सरकार ने अपने अधिकार में ले लिया था और इसे प्रान्तीय रूप दे दिया गया था तब अर्थात् १८८७ ईसवी से १९१४ ईसवीं तक इसका मंत्री था। मेरा निवेदन है कि इस सम्पूर्ण समय में को कोई आर्थिक सहायता न तो इंगलैंड से प्राप्त हुई थी और न योरप के किसी दूसरे देश से।

पञ्जाब एसोसिएशन––प्रान्तीय सरकार की वार्षिक सहायता और स्थायी कोष की आय से––इसका प्रबन्ध करता था। स्थायी कोष रजवाड़ों और प्रान्त के रईसों के दान का फल था।

लाहौर:––आपका प्रेमी
के॰ पी॰ थापर

इससे मिस मेयो के एक और झूठ का भण्डाफोड़ हो जाता है।