दृश्य-दर्शन/मलाबार।

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दृश्य-दर्शन  (1928) 
द्वारा महावीर प्रसाद द्विवेदी

[ ८८ ]मलावार का पुराना नाम कैरल देश है। केर नारियल को कहते हैं। नारियल इस देश में बहुत होता है। इसी लिये इसका नाम केरल पड़ा। इस समय जितना भूभाग मलाबार के अन्तर्गत है, केरल कहने से उससे अधिक का बोध होता है; क्योंकि और भी दो एक ज़िलों की गिनती केरल ही में है।

मलाबार मदरास हाते का एक जिला है। वह १०-१५ और २०- १८ उत्तर-अक्षांश और ७५-१४ और ७६-५२ पूर्व-देशांश के बीच में है। उसके उत्तर में दक्षिणी कनारा; दक्षिण में कोचीन और ट्रावनकोर के राज्य; पूर्व में कुर्ग और नीलगिरि पर्वत; और पश्चिम

में अरब का समुद्र है। उसका क्षेत्रफल ५,७६५ वर्ग मील और आवादी २५,००,००० है। बोली वहां की मलायम या मलयाली है। रहने वाले वहां के मलाबारी या मलयाली कहलाते हैं। प्राचीन मलय[ ८९ ]
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पर्वत इसी जिले के अन्तर्गत है। यहां चन्दन बहुत होता है । मलयाली शब्द मलयाचल या मलयाचलो का अपभ्रंश जान पड़ता है।

मलावार के दो भाग हैं; उत्तरी मलावार और दक्षिणी मलाबार। उत्तरी का सदर स्थान टेलिचरी है और दक्षिणी का कालीकट । पर जिले का सबसे बड़ा अधिकारी कालीकट ही में रहता है ! वह मैजिस्ट भी है; कलेकर भी है; और पोलिटिकल एजेंट भी है। कालीकट और टेलिचरी के सिवा पाल घाट, कनानूर, बेपुर और बड़गरा भी मलावार के मशहूर शहर हैं। पर इन सब में कालीकट ही सबसे बड़ा है। वह बन्दरगाह भी है ! वहां फौज भी रहती है और बन्दरगाह का एक अफसर भी रहता है। कालीकट जाने के दो मार्ग हैं। एक थल की राह से, दूसरा जल की राह से। थल की राह से जाने में कालीकट तक बराबर रेल मिलती है। जल की राह जाने से बम्बई में जहाज़ पर सवार होना पड़ता है और रत्नगिरी,कारवार,मंगलोर कनानूर और टेलीचरी होते हुए कालीकट जाना पड़ता है।

मलानार पहाड़ी देश है; पहाड़ी ही नहीं, जङ्गली भी है । समुद्र के किनारे किनारे पश्चिमी बाट-पर्वत, ३००० से लेकर ७००० फुट ऊँचा, बरावर चला गया है। वह बहुत ही निविड़ जङ्गल से व्याप्त है, जिसमें शेर, भालू, भेड़िये, हाथी और हिरन भरे पड़े हैं। इन

जङ्गलों के भीतर, दूर दूर तक, समुद्र की खाड़ियों का जल भरा रहता है। मैदानों में भी जल की बहुत अधिकता है। कोटा, माही और पूर्णा इत्यादि नदियां भी इसी जिले को अपने पानी से तर किया करती हैं। पानी, जंगल और पहाड़ों से प्रायः कोई भी कोना इसका [ ९० ]
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नहीं बचा। यह प्रदेश हमेशः हरा बना रहता है; और नारियल, इलायची, सुपारी और केले के स्वाभाविक जौर अस्वाभाविक घने घने घनों और उपवनों से अपनी नैसर्गिक शोभा को सदैव बढ़ाया करता है। यहां के मलयानिल से दूर दूर तक का देश सौरभमय हो जाता है। इस प्रदेश ने संस्कृत-कवियों को काव्य-रचना के लिए इतना मसाला दिया है कि शायद ही कोई ऐसा कवि हुआ होगा जिसने मलय और मलयानिल पर दो चार श्लोक न कहे हों। इसी मलयानिल- मण्डित देश के राजा के साथ,मलयस्थली में विहार करने की सिफारिश इन्दुमती से कालिदास,इस प्रकार,करते हैं -

ताम्बूलवल्लोपरिणद्धपूगास्वेलालतालिङ्गितचन्दनासु ।
तमालपत्रास्तरणासु रन्तुं प्रसोद शश्वन्मलयस्थलीषु ॥

मलावार का मुख्य नगर कालीकट है। वह बहुत बड़ा शहर है।

उसके दक्षिण-पूर्वी भाग में मोपला मुसलमानों की बस्ती है ; उत्तर-पश्चिमाञ्चल में पोर्चुगीज लोग रहते हैं। जेल, जिले की कचहरियों और रोमन कैथलिक गिरजाघर भी उधर ही हैं। इस भाग में एक बहुत बड़ा तालाब है । मलायालियों की वस्ती अलग है। जेल के पास क्रिस्तानों का समाधि स्थान है। वहां पर मलाबार के कलेकर और मजिस्ट्रेट कानली साहब गड़े हुए हैं। १८५५ ई० में मोपला लोगों ने आपका खून कर डाला था। कानली साहब की अदालत में इन लोगों का एक मुकदमा चला। पर जिस पक्षवालों की हार हुई उन्होंने न्यायकारो साहब ही को भाले से छेद डाला । कानली साहब की हत्या होने पर देशी फौज मंगाई गई मगर मोपालों ने उसे भी मार भगाया। तब [ ९१ ]
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गोरों की पल्टन आई;उसने इन लोगों को परास्त किया। कालीकट के जिस महल्ले में मोपला लोग रहते हैं उसका नाम मालापुरम् और जिसमें हिन्दू रहते हैं उस का नीलमपुर है। कालीकटमें सफाई बहुत रहती है। वहां के मकान, उनके बरान्डे, और नारियल तथा अनेक प्रकार के लता पत्रादिक से वेष्टित स्वच्छ वाटिकायें देख कर तबीयत खुश हो जाती है । गरीब से गरीब आदमियों के मकान भी मैले नहीं रहते।

यह वही कालीकट है जहां से किसी समय सैकड़ों तरह की छीटें विलायत को जाती थीं। जो कपड़ा कालीकट से जाता था उसका

नाम, यूरोप वालों ने, कालीकट के नामानुनार “कैलीको” रक्खा था। यह “कैलोको" शब्द अब तक प्रचलित है । ११ मई १४९८ ईस्वी को सब से पहले यूरोप के पोर्चुगीज प्रवासी वास्कोडिगामा ने कालीकट के किनारे पैर रक्खा । उस समय यह नगर दक्षिण भारत की अमरावती था। वहां सैकड़ों ऊँचे ऊँचे मकान और मन्दिरों के शिखर आकाश में बादलों से बातें करते थे । १५०९ ईस्वी में पोर्चुगीजों के सेना नायक डान फरनन्डो केटिन्हो ने ३००० सिपाही ले कर कालीकट पर हमला किया; परन्तु वह खुद मारा गया और उसकी फौज जो कटनेसे बची भाग खड़ी हुई। १५१० में पोर्चुगल वालों ने इस नगर पर फिर धावा किया और इस बार इसे लूट लिया। परन्तु पीछे से उनको भागना पड़ा और बहुत कुछ नुकसान भी उठाना पड़ा। १५१३ में कालीकट के जमोरिन राजा ने पोर्चुगीज़ों से सन्धि कर ली और उन को किला बन्दी कर के एक कोठी खोलने की अनुमति भी देदी। [ ९२ ]
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१६१३ में अंगरेजों ने भी अपनी कोठी यहां खोली। टीपू ने कालीकट को कई बार जीता और उसका विध्वंस । नगर को उसने जला दिया। अनेक स्त्रियों की गर्दन पर उनके बच्चों को बांध कर, दोनों को एक साथ हो, फांसी देदी और शेष को हाथियों के पैरों से कुचला दिया ! परन्तु पीछे से टीपू के लेनापति को ९०० आदमियों के साथ अगरेजों ने कैद कर लिया और १७९२ ईस्वी में मला भार सड़ा के लिए अंगरेजी झण्डे की छाया में आगया।

शङ्कराचार्य की जन्मभूमि झाल्डी गांव भी मलावार ही में है। वह पूर्णा नदी के किनारे है। इस नदी का पानी इतना स्वच्छ, मधुर और रोगहारक है कि शायद ही और किसी नदी, तालाब या कुंर्वे का होगा। दूर दूर के आदमी इसका जल पीने के लिए ले जाया करते हैं। इस नदी के किनारे सैकड़ों गांव हैं। इन गांवों के निवासी इस नदी में अकसर सुबह से शाम तक गोते लगाया करते हैं। भावुक ब्राह्मण दिन भर इसके तट पर बैठे हुए सन्ध्या बन्दन और पूजापाठ में निमग्न रहा करते हैं। मालाबारी लोग, स्त्रियों और बच्चों समेत, त्रिकाल स्नान करते हैं । मलाबार की अबो हवा गरम होने के कारण स्नानाधिक्य से उनको कोई कष्ट नहीं होता। यहां की नदियों और तलाबों में मिट्टी का सर्वदा अभाव रहता है। इस कारण, बार बार नहाने से, इन लोगों के कपड़े मैले नहीं होते।

मालाबार का जो भाग अधिक पार्वतीय है वह नारियल के निबिड़ जंगलों से भरा हुआ है। समुद्र के किनारे किनारे सिवा नारियल के

ऊँचे ऊँचे वृक्षों के और कुछ नज़र नहीं आता। नारियल का वहां [ ९३ ]
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सब से अधिक व्यापार होता है। उसका तेल निकाला जाता है; उस की जटाओं की चटाइयां और रस्से रस्सियां बनती हैं; और उसके पत्तों से पंखे और छाते बनते हैं। जो भाग कम पार्वतीय है उसमें चावल बहुत होता हैं,सुपारी,इलायची,जायफल,जायवित्रो और लौंग भी वहां खूब होती है। कहवा भी बहुत होता है।

मलाबार में पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों का अधिक प्रभुत्व है। प्रायः घर की स्वामिनी वही होती हैं। उन के पति उन के घर आते हैं वे पति के घर नहीं जाती। वहां पर मातृवंश स्थावर-जंगम सम्पत्ति का वारिस माना जाता है;पितृवंश नहीं माना जाता। अथवा यों कहिए कि लड़का अपनी मां का कहलाता है,वाप का नहीं।

मलावारी स्त्री पुरुषों में कोई कोई बातें बहुत ही विलक्षण हैं। यहां के नंबूरी ब्राह्मणों में सिर्फ सब से बड़े लड़के का विवाह होता है। उसी की सन्तति वारिस मानी जाती है। इन ब्राह्मणों में स्त्रियां बहुत वर्षों तक बेव्याही रहती हैं। कभी चालीस चालीस पचास पचास वर्ष की बूढ़ी बूढ़ो कुमारिकाओं का व्याह होता है ! कोई कोई वेब्याही बूढ़ी हो कर मर जाती हैं। नायर जाति की शूद्र-स्त्रियों के साथ कभी कभी और वर्ण वाले भी विवाह कर लेते हैं। पर इन लोगों के पति नाम के लिए पति होते हैं; अपनी स्त्रियों पर उन का बहुत कम अधिकार रहता है। बहन और बहन की सन्तति ही का स्वामित्व सारी सम्पत्ति पर रहता है । मलावा- रियों की एक सम्प्रदाय थियार नाम से प्रसिद्ध है। इन लोगों के भी रीति-रवाज नाम्यूरियों के जैसे होते हैं

(मार्च १९०५)