नैषध-चरित-चर्चा/५—श्रीहर्ष के ग्रंथ

विकिस्रोत से
[ ४५ ]
(५)
श्रीहर्ष के ग्रंथ

नैषध-चरित के अतिरिक्त श्रीहर्ष ने और जो-जो ग्रंथ बनाए हैं, उनका नाम उन्होंने नैषध के किसी-किसी सर्ग के अंतिम श्लोकों में दिया है । श्रीहर्ष ही के कथनानुसार उनके ९ ग्रंथ हैं; यथा—


१. नैषध-चरित
२. गौडोर्वीशकुलप्रशस्ति
३. अर्णव-वर्णन
४. स्थैर्य विचार


५. विजय-प्रशस्ति
६. खंडनखंड-खाद्य
७.छंदःप्रशस्ति
८. शिवशक्तिसिद्धि

६. नवसाहसांक-चरित

इनमें से नैषध-चरित के विषय में प्रमाण देने की तो कोई आवश्यकता ही नहीं । द्वितीय, तृतीय और नवम ग्रंथ के विषय में नैषध के श्लोक हम पहले उद्धृत कर चुके हैं। शेष पाँच ग्रंथों के परिचायक श्लोकार्द्ध नीचे दिए जाते हैं—

(४) तूर्यः स्थैर्य विचारणप्रकरणभ्रातर्ययं तन्महा-
काव्ये चारुणि नैषधीयचरिते स! निसर्गोज्ज्वलः ।
(५) तस्य श्रीविजयप्रशस्तिरचना तातस्य नव्ये महा-

[ ४६ ]

काव्ये चारुणि नैषधीयचरिते सर्गोऽगमत्पन्चमः ।
(६) षष्ठः खण्डनखण्डतोऽपि सहजात् चोदक्षमे तन्महा-
काव्येऽयं व्यगलालस्य चरिते सर्गो निसर्गोज्ज्वलः ।
(७) यातः सप्तदशः स्वसुः सुसशि च्छन्दःप्रशस्तेमहा-
काव्ये तद्भुवि नैषधीयचरिते सगों निसर्गोज्ज्वलः ।
(८) यातोऽस्मिन् शिवशक्तिसिद्धिभगिनी सौभ्रात्रभव्ये महा-
काव्ये तस्य कृतौ नलीयचरिते सर्गोऽयमष्टादशः।

नैषध-चरित और खंडनखंड-खाद्य, श्रीहर्ष के ये ही दो ग्रंथ उपलब्ध हैं। खंडनखंड-खाद्य श्रीहर्ष के अगाध पांडित्य और नैषध-चरित उनके अप्रतिम कवित्व का द्योतक है। खंडन- खंड-खाद्य (खंडनरूपी खंड शर्करा का भोजन) में अन्यान्य मतों का अद्भुत रीति से खंडन करके, एकमात्र वेदांत-मत का मंडन किया गया हैछ । स्थैर्य विचार में, नहीं कह सकते, क्या है; परंतु अन्यान्य ग्रंथों के नाम ही से उनके विषय का बहुत कुछ अनुमान हो सकता है। गोडोर्वोशकल- प्रशस्ति में गौड़ेश्वर को प्रशंसा ; विजय-प्रशस्ति में विजय- नामक राजा की प्रशंसा; और छंदःप्रशस्ति में छंद-नामक राजा की प्रशंसा होगी। विजय प्रशस्ति के विषय में तो टीका- कार मल्लिनाथ कुछ नहीं कहते; परंतु छंदःप्रशस्ति के विषय


  • स्मरण होता है कि महामहोगध्याय डॉक्टर गंगानाथ झा ने,

कुछ समय हुआ, खंडनखंड-खाद्य का अनुवाद अँगरेज़ी में करके उसे प्रकाशित किया है। [ ४७ ]में स्पष्ट कहते हैं कि वह छद-नामक राजा की स्तुति है। छंद कहाँ का राजा था, इसका पता नहीं लगता । विजय से मतलब विजयचंद्र से जान पड़ता है । वह महाराज जयचंद का पिता था। अर्णव-वर्णन में समुद्र-वर्णन और नवसाहसांक-चरित में साहसीक राजा का वर्णन होगा, इसमें संदेह नहीं । शिवशक्ति- सिद्धि में शाक्त अथवा शैवमत की कोई बात अवश्य होगी । यदि यह ग्रंथ शाक्त-मतानुयायी है, जैसा कि इसके नाम से विदित होता है, तो इसको लिखने से श्रीहर्ष का शाकमत की ओर अनुराग होना सूचित होता है।



—————