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परीक्षा गुरु ३७

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कर इस डूबती नाव का सहारा लगानें वाला कोई न था. विष्णु पुराण के इस वाक्य सै उन्के सब लक्षण मिल्ते थे "जाचत हूं निज मित्र हित करैं न स्वारथ हानि। दस कौड़ी हू की कसर खायँ न दुखिया जानि॥+[]"

निदान लाला मदनमोहन आज की डाक देखे पीछे बाहर के मित्रों की सहायता से कुछ, कुछ निराश हो कर शहर के बाक़ी मित्रों का माजना देखनें के लिये सवार हुए


 

प्रकरण ३७.


बिपत्तमैं धैर्य.

प्रिय बियोग को मूढ़जन गिनत गड़ी हिय भालि॥
ताही कोंं निकरी गिनत धीरपुरुष गुणशालि॥*[]

रघुबन्शे.

लाला ब्रजकिशोर नें अदालत मैं पहुंचकर हरकिशोर के मुकद्दमे मैं बहुत अच्छी तरह बिबाद किया. निहालचन्द आदि के कई छोटे, छोटे मामलों मैं राजीनामा होगया जब ब्रजकिशोर को अदालत के काम सै अबकाश मिला तो वह वहां से सीधे मिस्टर ब्राइट के पास चले गए.

हरकिशोर नें इस अवकाश को बहुत अच्छा समझा तत्काल अदालत मैं दरख्वास्त की कि "लाला मदनमोहन अपनें बाल-बच्चों को पहलै मेरठ भेज चुके हैं उन्के सब माल अस्बाब पर मिस्टर ब्राइट की कुर्की हो रही है और अब वह आप भी रूपोश (अतंर्धान) हुआ चाहते हैं मैं चाहता हूं कि उन्के नाम गिरफ्तारी या वारन्ट जारी हो." इस बात पर अदालत मैं बड़ा बिबाद हुआ जवाब दिही के वास्तै लाला ब्रजकिशोर बुलाए गए परन्तु उन्का कहीं पता न लगा हरकिशोर के वकील ने कहा कि लाला ब्रजकिशोर झूंट बोलने के भय सै जान बूझकर टल गए हैं. निदान हरकिशोर के हलफ़ी इजहार (अर्थात शपथ पूर्वक वर्णन करनें पर हाकम को बिबस होकर वारन्ट जारी करनें का हुक्म देना पड़ा हरकिशोर नें अपनी युक्ति सै तत्काल वारन्ट जारी करा लिया और आप उस्की तामील करने के लिये उस्के साथ गया. मदनमोहन सै जिन लोगों का मेल था उन्मैं सै कोई, कोई मदनमोहन को ख़बर करनें के लिये दौड़े परन्तु मन्द भाग्य सै मदनमोहन घर न मिले.

हां मदनमोहन की स्त्री अभी मेरठ सै आई थी वह यह ख़बर सुन्कर घबरा गई उस्नें चारों तरफ़ को आदमी दौड़ा दिये. मेरठ में मदनमोहन के बिगड़नें की ख़बर कल सै फैल रही थी परन्तु उस्के दुःख का विचार करके उस्के आगे यह बात करनें का किसी को साहस न हुआ आज सबेरे अनायास यह बात उस्के कान पड़ गई बस इस बात को सुन्ते ही वह मच्छी की तरह तड़पनें लगी, रेलके समय मैं दो घंटे की देर थी यह उसै दो जुग सै अधिक बीते उस्के घरके बहुत कुछ धैर्य देते थे परन्तु उसै किसी तरह कल नहीं पडती थी. जब वह दिल्ली पहुंची तो उस्नें अपनें घरका और ही रङ्ग देखा न लोगों की भीड़, न हँसी दिल्लगी की बातें, सब मकान सूना पड़ा था और उस्मैं पांव रखते ही डर लगता था जिस्पर विशेष यह हुआ कि आते ही यह भयङ्कर ख़बर सुनी जब सै उस्ने यह ख़बर सुनी उस्के आंसू पल भर नहीं बन्द हुए वह अपनें पतिके लिये प्रसन्नता सै अपना प्राण देने को तैयार थी.

इधर लाला मदनमोहन अपनें स्वार्थपर मित्रों सै नए, नए बहानों की बातें सुन्ते फिरते थे इतनें मैं एकाएक कान्सटेबल ने कोचमैंन को पुकार कर बग्गी खड़ी कराई और नाज़िर नें पास पहुंचतेही सलाम करके वारन्ट दिखाया, लाला मदनमोहन उस्को देखते ही सफ़ेद होगए, सिर झुका लिया, चहरेपर हवाइयां उडनें लगी, मुखसै एक अक्षर न निकला. हरकिशोर नें एक खखार मारी परन्तु मदनमोहन की आंख उस्के सामनें न हुई. निदान मदनमोहन नें नाज़िर को संकेत मैं अपनी पराधीन्ता दिखाई इस्पर सबलोग कचहरी को चले.

मदनमोहन अदालत मैं हाकम के साम्‌नें खड़े हुए उस्समय लाजसै उन्की आंख ऊंची नहीं होती थी. हाकम को भी इसबात का अत्यंत खेद था परन्तु वह कानून सै परबस थे,

"हमको आपकी दशा देखकर अत्यंत खेद है और इस हुक्म के जारी करनें का बोझ हमारे सिर आपड़ा इस्सै हमको और भी दुःख होता है परन्तु हमारे आपके निजके संबन्ध को हम अदालत के काम मैं शामिल नहीं कर सक्ते ताजकी वफ़ादारी, ईमान्दारी, मुल्क का इन्तज़ाम सब लोगों की हरक़सी, और हरेक आदमीके फ़ायदे के लिये इन्साफ करना बहुत जरूरी हैं" हाकम नें कहा "आपसे सीधे सादे आदमियोंको अपनें भोलेपन सै इतनी तक्‌लीफ उठानी पड़े यह बड़े खेदकी बात है और मेरा जी यह चाहता है कि मुझसै हो सके तो मैं अपनें निज सै आपके कर्ज़ का इन्तजाम करके आपको छोड़ दूं परंतु यह बात मेरे बूते सै बाहर है क्या आपके कोई ऐसे दोस्त नहीं हैं जो इस्समय आपकी सहायता करें? या आप इन्साल़बन्सी वगैरे की दरख्वास्त रखते हैं।

लाला मदनमोहन के मुख सै कुछ अक्षर न निकले इस वास्तै थोड़ी देर पीछे हारकर उन्को हवालात मैं भेजना पड़ा.

इतनें मैं लाला ब्रजकिशोर आ गए. उन्का स्वभाव बड़ा गंभीर था परंतु बिना बादलके इस बिजली गिरनें सै तो वह भी सहम गए उन्को इतनें तूल हो जानें का स्वप्न मैं भी खयाल न था इस लिये वह थोड़ी देर कुछ न समझ सके वह कभी इन्साल्‌वन्सी क़ा विचार करते थे कभी हरकिशोर कि डिक्री का रुपया दाखिल करके मदनमोहन को तत्काल छुड़ा लिया चाहते थे परंतु इन बातों सै उनके और प्रबन्ध मैं अन्तर आता था इसलिये इन्मैं सै कोई बात उस्समय न कर सके। वह समझे कि "ईश्वर की कोई बात युक्ति सून्य नहीं होती कदाचित इसी मैं कुछ हित समझा हो ईश्वर की अपार महिमा है सेआक्सनी का हेन्‌री नामी अमीर बड़ा दुष्ट, क्रूर और अन्याई था उस्के स्वेच्छाचारसै सब प्रजा त्राहि त्राहि कर रही थी इसलिये उस्को भी प्रजासै बड़ा भय रहता था एकबार वह कुछ दुष्कर्म करके निद्राबस हुआ उस्समय उस्नें यह स्वप्न देखा कि वहां का ग्राम्य देवता उस्की ओर कुछ क्रोध और दयाकी दृष्टिसै देख रहा है और यह कह रहा है कि "ले अधम पुरुष! तेरे लिये यह आज्ञा हुई है" यह कहकर उस ग्राम देवताने एक लिपटा हुआ काग़ज़ हेन्‌री की तरफ़ फेंक दिया और आप अन्तर्धान हो गया हेनरीने काग़ज़ खोलकर देखा तो उस्मैं ये शब्द लिखेथे कि "छः के पश्चात्" हेन्‌रीनें जगकर निश्चय समझा कि मैं छःपहर, छःदिन, छःअठवाड़े, छ:मास या छःवर्षमैं अवश्य मरजाऊंगा इस्सै हेन्‌री को अपने दुष्कर्मों का बड़ा पछतावा हुआ और छः महिने तक मृत्यु भयसै अत्यंत व्याकुल रहा परंतु फिर मृत्यु की अवधि छटे बर्ष समझकर समाधानी सै सत्कर्म करनें लगा अपनें कुकर्मों के लिये सच्चे मनसै ईश्वर की क्षमा चाही और उस्सै पीछे केवल सत्कर्म करके प्रजा की प्रीति प्रतिदिन बढ़ाता गया उस्की पहली चालसै वह कडुआ फल उस्को मिला था कि जिस्सै बेचैन होकर वह गुमराह हुआ जाता था उस्के बदले इस्समयके आनन्दके मिठास सै उस्का चित्त प्रफुल्लित रहनें लगा और जैसै, जैसै वह पहले के कडुआपनसै इस्समयके मिठासका मुकाबला करता गया वैसे वैसे उस्का आनन्द विशेष बढ़ता गया उस्के चित्तमैं कोई बात छिपानें के लायक नहीं रही इस्सै उस्के मन पर किसी तरह का बोझ न मालूम होता था लोगों के जीमैं उस्का विश्वास एक साथ बढ़ गया बडे, बड़े राजा उस्को अपना मध्यस्थ करनें लगे और छः वर्ष पीछे जब वो अपनें मरनें की घड़ी समझता था ईश्वर की कृपा सै उसी स्वप्न के कारण वह जर्मनी का राज करनें के लिये सबसै योग्य पुरुष समझा जाकर राज सिंहासन पर बैठाया गया!!!" इस लिये अब यह सूरत हो चुकी है तो लाला मदनमोहन के चित्तपर इस्का पुरा असर हो जाना चाहिये क्योंकि जो बात सौ बार समझानें से समझमें नहीं आती वह एक बार की परीक्षा सै भली भांति मनमैं बैठ जाती है और इसी वास्तै लोग "परीक्षा (को) 'गुरु' मान्ते हैं" बस इतनी बात समझमैं आते ही लाला ब्रजकिशोर मदनमोहन को धैर्य देनें के लिये उस्के पास हवालात मैं गए उस्का मुंह उतर गया था, आंसू डबडबा रहे थे, लज्जाके मारे आंख उंची नहीं होती थी.

"आप इतनें अधैर्य न हों इस बिना बिचारी आफ़त आनेंसै मुझको भी बहुत खेद हुआ परन्तु अब गई बीती बातोंके याद करनें सै कुछ फायदा नहीं मालूम होता लाला ब्रजकिशोर कहनें लगे "हर बात के बन्ते बिगडते रहनें सै मालूम होता है कि सर्व शक्तिमान परमेश्वरको इच्छा संसार का नकशा एकसा बनाये रखनें की नहीं है देवताओं को भी दैत्योंसै दुःख उठाना पड़ता है, सूर्य चन्द्रमा को भी ग्रहण लगता है, महाराज रामचन्द्रजी और राजा नल, राजा हरिश्चन्द्र, राजा युधिष्ठिर आदि बड़े बड़े प्रतापियों को भी हद्दसै बढकर दुःख झेलनें पड़े हैं अभी तीन सौ साडे तीन सौ बर्ष पहलै दिल्ली के बादशाह महम्मद बाबर और हुमायूंनें कैसी, कैसी तक्लीफ़े उठाईं थीं कभी वह हिन्दुस्थान के बादशाह हो जाते थे कभी उन्के पास पानी पीने तकको लोटा नहीं रहता था और बलायतों मैं देखो फ्रान्स का सुयोग्य बादशाह चोथा हेन्‌री एक बार भूखों मरनें लगा तब उस्नें एक पादरी सै गवैयों मैं नौकर रखनें की प्रार्थना की परन्तु उस्के मन्द भाग्यसै वह भी नामंजूर हुई फ्रान्सके सातवें लूईने एक बार अपना बूट गांठनें के लिये एक चमार को दिया तब उस्की गठवाईके पैसे उस्की जेबमैं न निकले इस्सै उसे लाचार होकर वह बूट चमारके पास छोड़ देना पड़ा. अरस्ततालीस नें लोगों के जुल्मसै विष पीकर अपनें प्राण दिये थे और अनेक विद्वान बुद्धिमान राजा महाराजाओं को कालचक्र की कठिनाई सै अनेक प्रकार का असह्य क्लेश झेल, झेल कर यह असार संसार छोड़ना पड़ा है इसलिये इस दुःख सागर मैं जो दुःख न भोगना पड़े उसी का आश्चर्य है जब अपनें जीनें का पलभर का भरोसा नहीं तो फिर कौन्सी बातका हर्ष बिषाद किया जाय यदि संसार मैं कोई बात बिचार करने के लायक है तो यह है कि हमारी इतनी आयु वृथा नष्ट हुई इस्मैं हमनें कौन्सा शुभ कार्य किया? परन्तु इस विषय मैं भी कोरे पछतावे के निस्बत आगै के लिये समझ कर चलना अच्छा है क्योंकि समय निकला जाता है तुलसी दास जी विनय पत्रिकामें लिखते हैं "लाभ कहा मानुष तन पाये। काय वचन मन सपने हुं कबहुंक घटत न काज पराये। जो सुख सुर पुर नरक गेह बन आवत विनहिं बुलाये। तिह सुख कहुं बहु यत्न करत मन समुझत नहीं समुझाये। परदारा पर द्रोह मोहबस किये मूढ मन भाये। गर्भ बास दुखरासि जातना तीब्र बिपति बिसराये। भय निद्रा मैथुन अहार सबके समान जग जाये। सुरदुर्लभ तन धरिन भजे हरि मद अभिमान गंवाये। गई न निज पर बुद्धि शुद्धि हैरहे राम लयलाये। तुलसि दास यह अवसर बीते का पुनकै पछताये॥?" धर्म का आधार केवल द्रब्य पर नहीं है हरेक अवस्था मैं मनुष्य धर्म कर सक्ता है अलबत्ता पहले उस्को अपना स्वरूप यथार्थ जाना चाहिये यदि अपनें स्वरूप जान्नें मैं भूल रह जायगी तो धर्म अधर्म हो जायगा और व्यर्थ दुःख उठाना पड़ेगा. विपत्तिके समय घबराहटकी बराबर कोई बस्तु हानिकारक नहीं होती बिपत्ति भंवर के समान है जों, जों मनुष्य बल करके उस्सै निकला चाहता है अधिक फंसता है और थक कर बिबस होता जाता है परन्तु धैर्य से पानी के बहावके साथ सहज मैं बाहर निकल सक्ता है. ऐसे अवसर पर मनुष्य को धैर्य सै उपाय सोचना चाहिये और परमदयालु भगवान की कृपा दृष्टि पर पूर्ण विश्वास रखना चाहिये उस्को सब सामर्थ है"

"यह सब सच है परन्तु विपत्तिके समय धैर्य नहीं रहता" लाला मदनमोहन में आंसू भर कर कहा.

"बिपत्ति मनुष्य की कसोटी है नीति शास्त्र में कहा है "दूरहि सों डरपत रहैं निकट गए तें शूर। बिपत पड़े धीरज गहैं सज्जन सब गुण पूर॥*[]" लाला ब्रजकिशोर कहनें लगे "महाभारत मैं लिखा है कि राजा बलि देवताओं से हार कर एक पहाड की कन्दरा मैं जा छिपे तब इन्द्र नें वहां जाकर अभिमान सै उन्को लज्जित करनें का बिचार किया इस्पर बलि शान्तिपूर्वक बोले "तुम इस्समय अपना बैभव दिखाकर हमारा अपमान करते हो परन्तु इस्मैं तुह्मारी कुछ भी बड़ाई नहीं है हारे हुए के आगे अपनी ठसक दिखानें सै पहली निर्बलता मालूम होती है जो लोग शत्रुको जीत कर उस्पर दया करते हैं वही सच्चे वीर समझे जाते हैं. जीत और हार, किसी के हाथ नहीं है यह दोनों समयाधीन हैं प्रथम हमारा राज था अब तुह्मारा हुआ आगे किसी और का हो जायगा. दुःख सुख सदा अदलते बदलते रहते हैं होनहार को कोई नहीं मेट सक्ता तुम भूल सै इस वैभव को अपना समझते हो यह किसी का नहीं हैं. पृथु, ऐल, मय, और भीम आदि बहुत सें प्रतापी राजा पृथ्वी पर होगए हैं परन्तु कालने. किसी को न छोड़ा इसी तरह तुह्मारा समय आवेगा तब तुम भी न रहोगे इसलिये मिथ्याभिमान न करो. सज्जन सुख दुःख सै कभी हर्ष विषाद नहीं करते वह सब अवस्थाओं मैं परमेश्वर का उपकार मान कर सन्तोषी रहते हैं ++ और सव मनुष्यों को अपना समय देख कर उपाय करना चाहिये सो यह समय हमारे बल करनें का नहीं है सहन करनेंका है इसीसै हम तुमारे कठोर बचन सहन करते हैं. दुःख के समय धैर्य रखना बहुत आवश्यक है क्योंकि अधैर्य होनें सै दुःख घटता नहीं बल्कि बढ़ता जाता है इसलिये हम चिन्ता और उद्वेग को अपनें पास नहीं आनें देते" ऐसे अवसर पर मनुष्य के मन को स्थिर रखनें के लिये ईश्वर नें कृपा करके आशा उत्पन्न की है और इसी आशा सै संसार के सब काम चल्ते हैं इसलिये आप निराश न हों परमेश्वर पर विश्वास रख कर इस दुःख की निवृत्ति का उपाय सोचें. यह बिपत्ति आप पर किस तरह एकाएक आपड़ी इस्का कारण ढूंडें ईश्वर शीघ्र कोई सुगम मार्ग दिखावेगा"

"मुझको तो इस्समय कोई राह नहीं दिखाई देती तुह्मैं अच्छा लगे सो करो" लाला मदनमोहन ने जवाब दिया.

इतनें मैं लाला ब्रजकिशोर सै आकर एक चपरासी नें कहा कि "आप को कोई बाहर बुलाता है" इस्पर वह बाहर चले गए.

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  1. x अभ्यर्थि तोपि सुत्‌हदा स्वार्थहानिं न मानवः॥
    पणार्धार्धाध मात्रेण करिष्यति तदाहिज॥

    • अवगच्छति मूढचेतन : प्रियनाशं तदृदिशल्य मर्पितम्॥

    स्थिरधी स्तुतदेव मन्यते कुशलहारतया समुद्धतम्॥

    • महतो दूरभीरुत्व मासन्ने शूरता गुणः।

    विपत्तौ हि महांल्लोके धीरता मनुगच्छति।