(६१ ) नाग राजा लोग भार-शिव हो गए। उन्होंने वह संहारक राष्ट्रीय नृत्य करने का भार अपने ऊपर लिया और गंगा-तट के मैदानों में बहुत सफलतापूर्वक यह नृत्य किया। उस समय के भार-शिव राजाओं ने वीरसेन, स्कंद नाग, भीम नाग, देव नाग और भव नाग आदि अपने जो नाम रखे थे, उन सबसे यही प्रमाणित होता है कि उन दिनों इसी बात की आवश्यकता थी कि सब लोग शिव के भाव से अभिभूत हो जायँ और उसी प्रकार के उत्तरदायित्व का अनुभव करें। उन्होंने जिस प्रकार बार बार वीर और योद्धा देवताओं के नाम रखे थे और बार बार जो अश्वमेध यज्ञ किए थे, वे स्वयं ही इस बात के बहुत बड़े प्रमाण हैं। भार-शिवों ने अनेक बार बहुत वीरतापूर्वक युद्ध किए और उनके इन प्रयत्नों का फल यह हुआ कि आर्यावर्त से कुशनों का शासन धीरे धीरे नष्ट होने लगा। वीरसेन के उत्थान के कुछ ही समय बाद हम देखते हैं कि कुशन लोग गंगा-तट से पीछे हटते हटते सरहिंद के आसपास पहुँच गए थे । सन् २२६-२४१ ई० के लग- कुशनों के मुकाबले में भग कुशन राजा जुनाह यौवन' ने सरहिंद भार-शिव नागों की से ही प्रथम सासानी सम्राट अरदसिर के साथ कुछ राजनीतिक पत्र-व्यवहार और संबंध किया था। उस समय तक उत्तर- पूर्वी भारत का पंजाब तक का हिस्सा स्वतंत्र हो गया था। इस सफलता १. J. B. O. R. S. खंड १८, पृ० २०१ । २. विंसेंट स्मिथ कृत Early Histcry of India चौथा संस्करण, पृ० २८९ की पाद-टिप्पणी ।
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