( ११८ ) अपने हाथ में लिया होगा, क्योंकि शास्त्रों में राज्याभिषेक की यही अवस्था बतलाई गई है । इस प्रकार अपने दो पुत्रों के अल्पवयस्क रहने की दशा में प्रभावती गुप्त ने संभवतः २० वर्षों तक अभि- भावक रूप में राज्य किया होगा। न तो कभी प्रभावती गुप्त ने और न वयस्क होने पर उसके पुत्र ने ही गुप्त संवत् का व्यवहार किया था । अतः हम निश्चयपूर्वक यह मान सकते हैं कि उस समय वाकाटकों की ऐसी स्थिति हो गई थी कि चंद्रगुप्त द्वितीय और उसके उत्तराधिकारियों के शासन-काल में वाकाटक राज्यों में गुप्त संवत् का व्यवहार करने की आवश्यकता ही नहीं होती थी। यद्यपि समुद्रगुप्त के उपरांत वाकाटक लोग गुणों के साम्राज्य में थे, तो भी वे लोग पूरे स्वतंत्र राजा थे। अजंता के शिलालेखों और बालाघाट के दानपत्रों से यह भी स्पष्ट है कि इन लोगों के निजी करद राजा भी थे और वे स्वयं ही युद्ध तथा संधि करते थे। उन्होंने त्रिकट, कुंतल और आंध्र आदि देशों के राजाओं पर विजय प्राप्त की थी और उन्हें अपना करद राजा बनाया था । उनका राज्य बुंदेलखंड की पश्चिमी सीमा से, जहाँ से बुंदेल- खंड शुरू होता है अर्थात् अजयगढ़ और पन्ना से, प्रारंभ होता था और समस्त मध्य प्रदेश तथा बरार में उनका राज्य था। त्रिकूट देश पर भी उन्हीं का राज्य था जो उत्तरी कोकण में स्थित था और वे समुद्र तक मराठा देश के उत्तरी भाग के भी स्वामी थे। वे कुंतल अर्थात् कर्नाटक और आंध्र देश के पड़ोसी थे। वे विंध्य की सारी उपत्यका और विंध्य तथा सतपुड़ा के बीच की तराई पर, जिसमें मैकल पर्वतमाला भी संमिलित थी, प्रत्यक्ष रूप से शासन करते थे । अजंता घाटों से होकर दक्षिण जाने का जो मार्ग था, वह भी उन्हीं के अधिकार में था। उनके साम्राज्य में १. हिंदु-राज्यतंत्र, दूसरा भाग, ६२४३ ।
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