( १२१ ) बनाना ही कोई सामान्य व्यापार था। जिन पुराणों ने भारत में राज्य करनेवाले विदेशी राजकुलों तक का वर्णन किया है, वे प्रवरसेन और उसके वंश को कभी भूल नहीं सकते थे और वास्तव में बात भी यही है कि वे उन्हें भूले नहीं हैं । तुखार अर्थात् कुशन राजवंश के पतन का उल्लेख करने के उपरांत तुरंत ही उन्होंने विध्यकों के राजवंश का उल्लेख किया है और उस वंश के मूल पुरुप का नाम उन्होंने विध्यशक्ति दिया है और उसके पुत्र का नाम प्रवीर बतलाया है। कहा गया है कि यह नाम बहुत प्रसिद्ध और प्रचलित है और इसका शब्दार्थ है-बहुत बड़ा वीर । पुराणों में उसके वाजपेय यज्ञों का भी उल्लेख है। और वायु पुराण के एक संस्करण में, जो वस्तुतः मूल ब्रह्मांड पुराण है', वाजपेय शब्द के स्थान में वाजिमेध शब्द मिलता है जिसका अर्थ अश्वमेध ही है और यह शब्द भी बहुवचन में रखा गया है- वाजिमेधैश्च । संस्कृत व्याकरण के अनुसार इस शब्द का अर्थ यह है कि उसने तीन या इससे अधिक अश्वमेध यज्ञ किए थे। उसका शासन-काल ६० वर्ष बतलाया गया है। यद्यपि यह काल बहुत विस्तृत है, तो भी एक तो वाकाटक शिलालेखों से और दूसरे इस बात से इसका समर्थन होता है कि अश्वमेध यज्ञ एक तो बहुत दिनों तक होते रहते हैं और दूसरे बहुत दिनो के अंतर पर 1 १. पाजिटर द्वारा संपादित वायु पुराण का मत डा. हालवाले ब्रह्मांड पुराण के मत से पूरी तरह से मिलता है । अाजकल ब्रह्मांड पुराण का जो मुद्रित संस्करण मिलता है, वह संशोधित संस्करण है ब्रह्माड पुराण की हस्तलिखित प्रति इतनी दुर्लभ है कि न तो वह मि. पारजिटर को ही मिल सकी और न मुझे ही । २. पारजिटर कृत Purana Text पृ० ५०, टिप्पणी ३५ ।
पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/१४९
दिखावट