(१२३) शक्तिः' । अब इनके मूल निवास स्थान को लीजिए । पुराणों में इसे विध्यक या विंध्य देश का राजवंश कहा गया है जिससे यह स्पष्ट सिद्ध हो जाता है कि ये लोग विंध्य प्रदेश के रहने वाले थे; और आगे विचार करने से उनके ठीक निवास स्थान का भी पता चल जाता है । विंध्यक या वाकाटक लोग किलकिला नदी के तट के या उसके आस-पास के प्रदेश के रहने वाले थे (किलकिला- याम् )। कुछ लोग यही समझते होंगे कि यह वही नदी है जो नक्शों में केन के नाम से दी गई है। पर इसमें कल्पना के लिये कोई स्थान ही नहीं रह जाता, क्योंकि मेरे मित्र ( अब स्व० ) राय वहादुर हीरालाल ने स्वयं किलकिला देखी है जो पन्ना के पास एक छोटी नदी है और जो अपने स्वास्थ्यनाशक जल के लिये बदनाम है । इस प्रकार हम फिर उसी अजयगढ़ और पन्नावाले प्रदेश में आ पहुँचते हे जहाँ वाकाटकों के सबसे प्राचीन शिलालेख मिले हैं और यह वही गंज-नचना का प्रांत है। विदिशा के नागों और प्रवीरक का उल्लेख करते समय भागवत पुराण में इन सबको एक ही वर्ग में रखकर “किलकिला के राजा लोग" कहा है। इसका अभिप्राय यही है कि उक्त पुराण पूर्वी मालवा, विदिशा १. A. D. S. R. खंड ४, पृ० १२५ और १२८ की पाद- टिप्पणी, प्लेट ५७ । २. इस नदी का पूरा विवरण मुझे सतना (रीवाँ ) के श्रीयुक्त शारदा प्रसाद ने लिख भेजा है जिससे मुझे पता चला कि मैंने इस नाले को दो बार बिना उसका नाम जाने ही, उसकी तलाश में, पार नाला पन्ना से होकर बहता है। नागौद से पन्ना जाते समय इसे पार करना पड़ता है। यह एक सँकरा नाला है । देखो पृ. १४ की पाद-टिप्पणी। किया था ।
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