(१२४) और किलकिला को एक ही प्रदेश मानता है या पूर्वी मालवा को भी किलकिला के ही अंतर्गत रखता है। इस प्रकार सभी संम- तियों के अनुसार इस राजवंश का स्थान बुंदेलखंड में ठहरता है । ६५७. अब हमें वाकाटक शब्द के इतिहास पर भी कुछ विचार कर लेना चाहिए। वाकाटकानाम् महाराज श्री अमुक- अमुक आदि जो पद मिलते हैं, उनका यह अभिप्राय नहीं है कि अमुक-अमुक नाम के राजा वाकाटक जाति के राजा थे; बल्कि इसका अभिप्राय केवल यही है कि अमुक-अमुक महाराज वाका- टक राजवंश के थे। बहुवचन रूप वाकाटकानाम् का अभिप्राय ठीक उसी प्रकार केवल "वाकाटक राजवंश का" है। जिस प्रकार कदंबों के संबंध में कदंबानाम् का और उनके सम-कालीन पल्लवों के संबंध में पल्लवाण२ (प्राकृत शब्द है जिसका अभिप्राय है पल्लवों का) का अभिप्राय होता है । "भारदायो पल्लवाण शिवखंड वमो' में पल्लवों का" पद बिलकुल स्वतंत्र है । इस प्रकार वाकाटक किसी जाति का सूचक नाम नहीं है, बल्कि वह एक वैयक्तिक वंश नाम है। वाकाटक शब्द का अर्थ है-वाकाट या वाकाट नामक स्थान का निवासी जैसा कि समुद्रगुप्त के शिलालेख में महाकांतारक कोशलक और पैष्ठापुरक आदि शब्दों से महा- कांतार का, कोशल का, और पिष्ठापुर का रहने वाला सूचित होता १. I. A. खंड ६, पृ० २६ । २. E. I. खंड १, पृ. ५ । ३. पृथिवीपेण द्वितीय के बालाघाट वाले प्लेटों का संपादन करते समय कीलहान ने इस बात पर जोर दिया था । E. I. खंड ६, पृ० २६६ ।
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